Monday, April 16, 2012

बहुविवाह दोष और परिहार के उपाय

जातक के जन्म के समय मे गुरु शुक्र मंगल चन्द्र बुध केतु शनि राहु सभी ग्रह दोहरे जीवन साथी के लिये तभी उत्पन्न करते है जब यह ग्रह एक या अधिक संख्या में दोहरे स्वभाव वाले भाव मे उपस्थित होते है,भाव के बाद राशिया भी अपनी युति को प्रदर्शित करती है और ग्रह भी गोचर से अपने प्रभाव को प्रदर्शित करते है। मेष लगन मे सप्तम स्थान मे दोहरे स्वभाव की राशि तुला होती है,साथ ही कुटुम्ब भाव मे भी दोहरे स्वभाव की राशि वृष होती है,इन राशियों मे किसी भी ग्रह का उपस्थित होना दोहरे सम्बन्धो के लिये अपने प्रभाव को देना शुरु कर देगा। लगनेश मंगल इन राशियों अपना स्थान बनाता है तो भी और शुक्र अपना स्थान बनाता है तो भी दोहरे सम्बन्ध माने जायेंगे। विवाह होने के लिये एक साथ कई कारण पैदा होते है,जैसे बुध बातचीत मे आता है गुरु सम्बन्ध की छाप देता है और शुक्र कामक्रिया का कारक है,इसी प्रकार से मंगल उत्तेजना देता है शनि उत्तेजना को ठंडा करने के लिये अपनी शक्ति को देता है लेकिन राहु उत्तेजना को बढाने का काम करता है। कर्क वृश्चिक मीन का राहु अपने सम्बन्धो को भुलाकर भी सम्बन्ध बनाने के लिये अपनी धारणा को देता है जैसे कुल सम्बन्धो के लिये भी यही बात देखी जाती है साथ ही एक ही परिवार मे भाई बहिन जैसे रिस्ते भी कभी कभी राहु की शक्ति के कारण अनदेखे किये जाते है और प्रणय सम्बन्ध बनाकर उन्हे भी कलुषित कर दिया जाता है। गुप्त सम्बन्धो का बनना और गुप्त सम्बन्धो को क्रिया मे शुरु होना दो भावो के स्वामियों पर निर्भर करता है। इसके लिये छठे और आठवे भावो के साथ उनके मालिको के चक्कर मे जब लगनेश आजाते है और अलग अलग भावो के मालिक लगनेश के साथ आमने सामने की युति को बनाने लगते है तो सम्बन्ध गुप्त रूप से बन भी जाते है और उनका क्रिया मे होना भी मान लिया जाता है। पंचमेश और लगनेश का साथ होना या पंचमेश और लगनेश का आमने सामने होना,राहु मंगल या गुरु अथवा शुक्र का साथ देना गुरु शिष्य के नाते को भी खत्म कर देता है। षष्ठेश लगनेश और पंचमेश की युति या आमना सामना माता की बहिन यानी मौसी जैसे नापाक रिस्ते को गुप्त रिस्ते के कारण बद कर देता है। लगनेश का अष्टम मे होना और केतु का साथ होना भी सभी रिस्तो को ताक मे रखकर कामुकता की शांति के लिये रिस्ता बना लिया जाता है। इन कारणो से बचने के लिये ही अलग अलग समाजो ने अपने अपने नियम बनाकर दूरिया बनाने और रिस्तो को पाक साफ़ रखने की बात की है।

उडीसा मे कई समुदाय रिस्तो को अपने समुदाय के अन्दर ही करते है जबकि यूपी और बिहार आदि के साथ राजस्थान में हरियाणा मध्य प्रदेश महाराष्ट्र मे समुदाय के रिस्ते से दूर का रिस्ता देखा जाता है यानी गोत्र भी बचाये जाते है और दादी नानी आदि के गोत्रो से दूर रहा जाता है। जबकि कई जातियों मे रिस्ता किया जा सकता है तो केवल माता के भाई के लडके के साथ या माता के भाई की लडकी के साथ इस प्रकार से प्राकृतिक रूप से ममेरी और फ़ुफ़ेरी बहिन का रिस्ता भी समाप्त हो जाता है और उन लोगो के कहने का अर्थ यह भी होता है कि खून के रिस्तेदार अपनत्व लेकर चलते है जबकि बाहरी लोग समाज व्यवस्था पारिवारिक व्यवस्था खानपान को साथ लेकर नही चल पाते है और अक्सर विवाह टूटते हुये देखे जा सकते है। राहु से सम्बन्धित जातिया भी रिस्तो के प्रति अधिक दूरिया नही देखती है यही हाल केतु से सम्बन्धित मानवीय समुदाय मे देखा जा सकता है। जबकि मंगल से सम्बन्धित रिस्तेदारो मे आपसी रिस्तो को और खून के रिस्तेदारो को देखा जाता है जबकि बुध से समन्धित समुदायो मे धन और सामाजिक बल के बडे हुये रूप को देखकर रिस्ते किये जाते है। गुरु से समन्धित समुदायों गोत्र और कई बातो का परिहार किया जाता है जबकि शुक्र से सम्बन्धित समुदायों जाति पांति धर्म आदि को नही देखा जाता है। शनि वाले समुदायों मे भी गोत्र आदि का बहुत ध्यान रखा जाता है और किसी प्रकार से कोई उच्च जाति का जीवन साथी किसी कारण से आ भी जाता है तो उसे शादी का बुखार उतरते ही सत्यता मे जाते ही अपने रिस्ते को समाप्त भी करना पड जाता है या वह दूर जाकर अपनी वैवाहिक जीवन को जीने के लिये मजबूर हो जाता है।

जन्म समय के गुरु का प्रभाव अगर किसी खराब ग्रह से कलुषित हो रहा है तो भी नाजायज सम्बन्ध बन जाते है और जन्म समय के गुरु का असर किसी गलत ग्रह पर पड रहा है तो नाजायज रिस्ता भी जायज बनाकर समाज मे ग्रहण कर लिया जाता है,कहने का मतलब यह है कि गुरु अगर जन्म समय मे ठीक है और अपने प्रकार को सही दिशा मे प्रदर्शित कर रहा है तो जातक का जीवन सही रिस्तो की तरफ़ जायेगा और सम्बन्धो के मामले मे दिक्कत नही आयेगी मगर गुरु का प्रभाव अगर गलत है तो जातक अपने जीवन मे जब भी गुरु किसी भी ग्रह के साथ गोचर करेगा उसका खराब ग्रह से दूषित भाव सम्बन्धो के प्रति गलत प्रभाव ही देगा।

चन्द्रमा जब अष्टमेश षष्ठेश सप्तमेश द्वितीयेश से सम्बन्ध कर रहा हो उस समय राहु केतु या मन्गल भी साथ दे रहे हो तो मानसिकता को साफ़ रखने के लिये युति वाले ग्रह के साकार कामो को करने लग जाना चाहिये। काम करना और काम मे रत होना दोनो अलग अलग है काम को कार्य भी कहते है और काम को यौन सुख के लिये भी देखा जाता है.यौन सुख की लालसा के समय मे कार्य को करने लग जाना चाहिये इस प्रकार से यौन सुख की लालसा कार्य रूप मे फ़लदायी हो जायेगी जबकि यौन सुख मे जाने से शरीर को भी बरबाद करेगी और शक्ति की कमी तथा बदनामी को भी प्रदान करेगी. यात्रा करना और जल विहार करना बागवानी मे मन को लगा लेना कैमिकल के काम करने लग जाना तकनीकी रूप से कार्यो का करने लग जाना विद्या के क्षेत्र मे नयी नयी विद्या को ग्रहण करने लग जाना,खट्टी और उत्तेजक भोज्य पदार्थो पेय पदार्थो को त्याग देना चन्द्रमा की मानसिक दशा मे लाभदायी हो जाते है,गोमती चक्र इसके लिये एक अचूक उपाय है चांदी मे बनवाकर कमर मे धारण करने से कामोत्तेजना मे शांति मिलती है दिमाग मे चलते हुये गलत विचार शुद्ध होने लगते है। यह भी ध्यान रखना चाहिये कि केतु उस समय साधन देता है राहु उस साधन को प्रयोग करने का अवसर देता है राहु केतु के प्रभाव से भी बचने का कारण समझकर चलना चाहिये.

शरीर मे उत्तेजना तभी आती है जब स्त्रियों के शरीर मे रज की मात्रा बढती है और पुरुष के शरीर मे वीर्य की मात्रा का बढना होता है। अक्सर जो लोग पसीना बहाने का काम नही करते है अधिकतर बैठे रहते है और उनके लिये दिमागी काम करने का समय भी कम होता है उन लोगो के लिये रज और वीर्य को साधने का कार्य करना चाहिये इसके लिये योग करना व्यायाम करना हाथ पैरो को चलाने का काम करना जिम जाना आदि भी ठीक रहता है इस प्रकार से रज और वीर्य बढने के कारण पसीना आने से दूर होने लगते है। जब भी लगे कि मन भटक रहा है उस समय अपने धर्म और रीति नीति के अनुसार चलने लग जाना चाहिये,कारण को कारकत्व मे बदलने का उपक्रम सोचना चाहिये।

राहु भीड का कारक भी होता है और शुक्र चमक दमक को देने वाला भी होता है,राहु शुक्र के साथ मिलकर शरीर मे भयंकर उत्तेजना को भी प्रदान करता है और चमक दमक को देखकर वासना की उत्पत्ति भी करता है। मंगल के समय मे यानी पच्चीस साल से लेकर पचास साल की उम्र तक इनका वेग बहुत अधिक होता है,लेकिन उम्र की तेरह साल की अवस्था से लेकर उन्नीस साल की अवस्था को केतु से जोड कर देखा गया है इस समय मे दिमाग को घुमाने के लिये फ़ोटोग्राफ़ी कलात्कम कारणो का सृजन करना अपने नाम को आगे बढाने के लिये अपने शिक्षा सम्पत्ति को बढाने के उपक्रम करने से फ़ुर्सत मे नही लाना चाहिये इस प्रकार से यह योग फ़ायदा भी दे जायेंगे और मानसिक रूप से मन भी खराब नही होगा और शरीर की भी सुरक्षा बनी रहेगी। भीड भाड वाले क्षेत्र से दूर रहना चाहिये जहां सामूहिक भोजन और नाचगाना आदि होता है वहां से किनारा कर लेना चाहिये,जहां चमक दमक और पहिनावे को विशेष महत्व दिया जाता है वहां जाने से बचना चाहिये आदि कारण उत्तेजित होने वाले कारको से दूर रखने मे सहायक हो सकते है।

No comments: