Monday, April 16, 2012

विवाह मे बाधा

जीवन के चार पुरुषार्थो मे विवाह भी तीसरे पुरुषार्थ काम नाम की गिनती मे आता है। इस पुरुषार्थ के बाद शरीर जीवन और जीवन के उद्देश्य मिल जाते है जातक अपने जीवन को इसी पुरुषार्थ मे निकाल लेता है। कई बार ऐसी ग्रह युति बन जाती है कि सोच कर भी विवाह करना भारी पड जाता है और केवल भटकाव का रास्ता ही मिलता है.प्रस्तुत कुंडली वृश्चिक लगन की है मालिक मंगल दसवे भाव मे है। मंगल की द्रिष्टि मे धर्म और भाग्य का मालिक चन्द्रमा है। जीवन का हर काम चन्द्रमा के ऊपर ही निर्भर है और चन्द्रमा को भी खुद मंगल ने अपने कन्ट्रोल मे रखा हुआ है,मंगल को स्त्री कुंडली मे भाई के रूप मे भी मानते है पिता के घर मे होने से पिता के भाई के रूप मे मानते है और इस मंगल के अन्दर शुक्र और शनि का प्रभाव आने से मंगल का रूप नेक न होकर बद के रूप मे बन गया है। मंगल की नजर जब भाग्य और धर्म के कारक चन्द्रमा पर है तो जातिका का चाचा या चाचा जैसा रिस्तेदार जातिका के पिता के स्थान पर अपनी भूमिका को अदा कर रहा है शनि को बडे भाई के रूप मे जाना जाता है इसलिये जातिका के पिता का बडा भाई भी अपनी युति को विवाह नही करने और अपने अनुसार विवाह करने के लिये अपनी योजना को बनाता है लेकिन मंगल की बदनीयती से शादी मे दिक्कत का होना माना जाता है। पिता का कारक सूर्य लाभ और जोखिम के काम के अन्दर तथा केतु की पंचम नजर से आहत होने के कारण परिवार मे अपने ही बच्चो को कोई सहायता नही दे पा रहा है वह अपने परिवार को संगठित रखने के लिये अपने को अपने बडे और छोटे भाई के प्रति समर्पित है जबकि पिता के दोनो भाई अपनी योजना के अनुसार जातिका के दादा की दुश्मनी को निकालने के लिये कि जातिका के दादा ने एक अलग से रकम का बन्दोबस्त जातिका की शादी के लिये किया था और उस रकम का उपयोग दोनो भाइयों ने पिता को विस्वास मे लेकर अपने कार्य और घर के निर्माण मे लगा दिया,जब जातिका का पिता उस धन के लिये जो शादी के लिये प्रयोग मे लाना है की बात करते है तो वे दोनो कोई न कोई बहाना बनाकर शादी वाले कारण को और आगे बढा देते है। जातिका की माता भी अपनी तीन सन्तानो से परेशान है.पुत्र सन्तान शिक्षा के प्रति पहले तो जागरूक रहे लेकिन अपनी शिक्षा को प्राप्त करने के बाद अपने अपने कार्य मे लग गये उनके लिये बहिन या बहिन का विवाह आदि सभी बाते दूर हो गयी उन्हे केवल अपने स्वार्थ की पूर्ति की खबर रह गयी।

विवाह के भाव को ग्यारहवे भाव मे बैठा राहु देख रहा है पंचम भाव मे बैठा केतु देख रहा है दसवे भाव मे बैठा शनि अपनी वक्र द्रिष्टि से इस विवाह के भाव को आहत कर रहा है। गुरु जो सम्बन्ध का कारक है वह अष्टम मे जाकर अपनी सम्बन्ध वाली नीतियों को भूल कर बैठा है,दसवे भाव मे बैठा मंगल चौथे प्रभाव से जातिका के मानसिक कारणो और माता के प्रति अपनी कन्ट्रोल वाली नीति को अपना रहा है अपनी द्रिष्टि जातिका के माता के भाव मे रखकर माता को अपने प्रभाव मे रख रहा है और ननिहाल जो केतु का कारक होकर पंचम मे विराजमान होकर अपने प्रभाव को देख रहा है तथा जातिका की प्राथमिक शिक्षा को अपने अनुसार देने के बाद जातिका की शादी आदि की बात की तो यह मंगल जातिका के ननिहाल परिवार को भी मारक द्रिष्टि से देख रहा है। जातिका की उम्र तेतीस साल हो चुकी है,केतु की दशा चल रही है,केत मे शनि का अन्तर चल रहा है इसलिये जातिका शिक्षिका के रूप मे अपने निवास स्थान पर ही रह रही है और छोटे से स्कूल मे अपनी शिक्षा को देकर माता की सहायता कर रही है जबकि पिता का कोई भी सहारा जातिका और जातिका की माता को नही मिल रहा है। जातिका की ताई का कहना है कि जातिका की शादी उसके रिस्तेदारो मे कर दी जाये लेकिन जातिका की ताई के रिस्तेदार शराब कबाब आदि से बिगडे हुये लोग है,इसलिये जातिका उन लोगो से शादी नही करना चाहती है,जातिका के ऊपर जातिका के परिवार वाले नजर भी रख रहे है जिससे वह अपने प्रभाव को देकर और पंचम केतु का सहारा लेकर किसी के साथ भाग भी नही जाये,लेकिन यह केतु अपने प्रभाव को छठे भाव मे आकर अपना असर देने लगेगा,जातिका का कमन्यूकेशन फ़रवरी दो हजार तेरह मे किसी शिक्षा मे साथ रहे व्यक्ति से बन जायेगा और और गुप्त रूप से सम्बन्ध बनाकर कोर्ट मैरिज या इसी प्रकार के काम कर लिये जायेंगे। यह अपने अनुसार एक साल तक गुप्त निवास करेंगे और फ़रवरी दो हजार चौदह से शुक्र की दशा लगने पर तथा गुरु का गोचर सप्तम मे आते ही सामाजिक रूप से रहने के लिये अपना प्रभाव देने लगेंगे.

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