Sunday, April 8, 2012

धनु राशि का मंगल राहु बनाम सामाजिकता का विनाश

कालपुरुष की कुंडली के अनुसार धनु राशि भाग्य और धर्म की राशि है,इस राशि का स्वामी गुरु होता है और गुरु के अनुसार ही इस राशि के प्रभाव देखे जाते है। धनु राशि धर्म मर्यादा कानून विदेश पारिवारिक रीतिरिवाज सामाजिकता के लिये देखी जाती है,यह राशि जन्म कुंडली मे जिस भाव मे होती है उस भाव के अनुसार तथा राशि पर पडने वाले ग्रह असर से अपने प्रभाव को जीवन मे देती है। इस राहु मे राहु नीच का होता है और मंगल भी इस राशि मे उपरोक्त कारणो मे अपनी खटरपटर करने के लिये हमेशा कोई न कोई प्रयास करता ही रहता है। पारिवारिक सदभाव बनाये रखने के लिये मंगल की उत्तेजना भी नही चल पाती है और राहु का कनफ़्यूजन भी काम नही करता है साथ ही जब धनु राशि मे राहु नीच का प्रभाव देता है,नीच का प्रभाव इसलिये भी माना जाता है क्योंकि जहां धर्म की बात होती है वही पर कई प्रकार के कनफ़्यूजन पैदा हो जाते है एक धर्म के अन्दर कई प्रकार की शाखाये और प्रतिशाखायें तैयार हो जाती है एक समाज मे कई प्रकार के सम्बन्ध बन जाते है और उस समाझ की एक प्रकार से छीछालेदर करने के लिये राहु अपना पूरा प्रभाव देने के कारण ही नीच का कहा जाता है। साथ मे मंगल और हो तो और भी दिक्कत हो जाती है हर बात मे कनफ़्यूजन और हर बात मे खटरपटर इस प्रकार से जो राहु के सामने केतु होता है वह भी हमेशा किसी न किसी प्रकार से बचने की कोशिश करता है। राहु की आदत होती है कि वह जिस भाव मे जिस राशि मे जिस ग्रह के साथ होता है साथ ही जिस जिस भाव ग्रह अपना असर देता है वह सभी राहु की उल्टी चाल के कारण कनफ़्यूजन और मतिभ्रम के कारण परेशान ही होते है यह अपने आगे और पीछे के ग्रहों को भी परेशान करने के लिये माना जाता है,साथ ही माना जाता है कि यह अपने से आगे वाले ग्रह से भाव से राशि से अपनी चालाकी से लेता है और अपने से पीछे वाली राशि भाव और ग्रह को सीधी चाल से देता है। यह जिस भाव राशि ग्रह के साथ होता है झाडू लगाने का काम भी करता है यानी जिस राशि से यह गुजर जाता है और उस भाव तथा राशि के प्रभाव साथ मे गोचर से और जन्म के जो भी ग्रहो का प्रभाव होता है उन सबकी बाट लग जाती है एक बार राहु के गुजरने के बाद फ़िर से उस ग्रह को अगर कोई राह मिलती है तो वह वापिस से अपनी चाल को शुरु कर देता है लेकिन यह किसी प्रकार से नही मिल पाती है तो वह हमेशा के लिये समाप्त भी हो जाता है। राहु की चाल जीवन मे अठारह महिने के बाद उसी भाव पर आती है जिस भाव पर वह अठारह साल पहले गुजर गया होता है। वैसे लालकिताब आदि ग्रंथो मे कहा जाता है कि राहु को सही करने के लिये मंगल अच्छा काम करता है और राहु की शक्ति को अगर मंगल की तकनीक से संभाल लिया जाये तो बजाय खराब फ़ल के अच्छे फ़ल देने लगता है। लेकिन बाकी के वैदिक ग्रंथो मे राहु को हमेशा ही खराब ग्रह की स्थिति मे गिना है। शक भ्रम और कनफ़्यूजन देने वाला ग्रह राहु होने के कारण शक भ्रम और कनफ़्यूजन की आजतक कोई दवा भी नही बनी है जब किसी व्यक्ति को किसी भी प्रकार का शक हो जाता है भ्रम पैदा हो जाता है या कनफ़्यूजन आजाता है तो जब तक वह समय नही समाप्त हो जाता है व्यक्ति का शक भ्रम या कनफ़्यूजन दूर भी नही किया जा सकता है। राहु का प्रभाव एक प्रकार का नशा होता है यह नशा इतना खतरनाक होता है कि व्यक्ति को बिना किसी नशा को लिये ही हमेशा नशे मे चूर रखता है वह अपने घेरे मे से निकल भी नही पाता है और जो भी उसके चाहने वाले होते है उसकी अच्छाई को देखने वाले होते है सभी उस व्यक्ति के कारण परेशान भी होते है और दिक्कत भी उठाते है। इस राहु के कारणो को देखने समझने और परखने के बाद अक्सर देखा गया है कि यह राजा को रंक बनाकर छोडता है और कितना ही प्रेम प्यार से चलने वाला रिस्ता हो उसे भ्रम और शक मे तोड कर दूर कर देता है साथ ही कितना ही गंदा आदमी हो और सभी को पता हो कि वह किसी का सगा नही है लेकिन राहु अपनी संगति से उस व्यक्ति का साथ देने तथा उसके सभी कारनामो मे साथ रहने के लिये बाध्य भी कर देता है।
राहु की दशा मे अच्छे अच्छे पहलवान धरशायी होते देखे जा सकते है और अच्छे अच्छे फ़कीर उन्नति करते हुये देखे जा सकते है लेकिन राहु की दशा उतरने के बाद जो धराशायी हो जाते है वे फ़िर से खडे होने लगते है और जो उन्नति कर गये होते है या तो वह जेल की हवा खाते है या अकेले मे पागल होकर घूमते देखे जा सकते है अथवा डर की वजह से किसी कौने मे छुपे देखे जा सकते है। राहु की दशा मे जिस जिस भाव मे जिस जिस राशि मे ग्रह आदि के साथ राहु गोचर करता है वह झाडू लगाता चला जाता है। जो ग्रह जो भाव इस राहु के प्रभाव मे आता है वह भी चालाकी और फ़रेब वाले कारणो से भर जाता है। मै एक जातिका को जानता हूँ उसने राहु के सप्तम मे आने के बाद अपने पति की मान मर्यादा कुल व्यवहार रीति रिवाज समाज आदि मे झाडू लगा दी,पंचम मे आते ही अपनी खुद की संतान के सामाजिक जीवन मे झाडू लगा दी चौथे भाव मे आते ही अपने रहने वाले घर और जान पहिचान के लोगो मे झाडू लगा दी और अब वह अपने ससुराल खानदान के जमीन जायदाद लोगो के जीवन मे झाडू लगाने का काम अदा कर रही है,इस बीच मे एक बात और भी देखी है कि इस राहु के सामने उलझने के लिये केतु भी अपनी औकात दिखाने के लिये या बचाने के लिये सामने आजाता है अगर वह राहु के झंझावत को सहन करने के बाद अपनी युक्ति का प्रयोग करता है तो राहु बगली काट कर निकल जाता है। जिन लोगो को राहु से काम निकालने की विधि आती है वह राहु की गलत शक्ति को फ़लदायी शक्ति मे बदल लेते है,जैसे अम्बानी बन्धुओ ने अपनी राहु की दशा को केतु की बदौलत इतना बढा लिया कि वह लोग आज संसार के जाने माने व्यक्ति बन गये है उसी राहु ने अमिताभ बच्चन को अपनी युक्ति से इतना आगे बढा दिया कि वे अपनी शक्ति से सिने जगत के जाने माने व्यक्ति बन गये।
राहु जब मंगल के साथ होता है तो केतु उससे जूझने के लिये तैयार रहता है,जब तक केतु की शक्ति होती है वह राहु से जूझता रहता है लेकिन राहु के अपने स्थान से हटते ही वह फ़लीभूत भी हो जाता है और अपनी शक्ति की सीमा को हमशा के लिये कायम भी कर जाता है अगर केतु ने अपनी शक्ति को पूरी तरह से तरीके से स्थापित किया है तो राहु अगले समय मे जब भी गोचर करेगा तो वह केतु की हस्ती से दूर रहकर ही अपनी गति को प्रदान करेगा,लेकिन वह अपनी दूसरी स्थितियों मे भी झाडू लगा सकता है अगर केतु ने अपनी स्थिति को दिमाग से नही संभाला या राहु के उपाय किये बिना ही सोता रहा तो शर्तिया ही जीवन का एक भाग इस राहु के द्वारा खराब किया जा सकता है।
यह जीवन कर्म प्रधान है कर्म का फ़ल तभी प्राप्त किया जा सकता है जब कर्म के अन्दर कोई शंका नही रहे,कर्म वकालत का है केतु केवल स्थान दे सकता है वकालत की स्थिति दे सकता है लेकिन राहु अगर सम्भाला हुआ है दिमाग मे आने वाले न्याय और कानून के प्रति दिमाग सचेत रहता है तो वकील का काम सफ़ल हो सकता है उसी जगह पर अगर किसी कनफ़्यूजन् को पाल लिया और सोचा जाने लगा कि अमुक केश मे अमुक जज ने फ़ैसला इसी केश के मुताबिक ही दिया था तो यह भूल होगी कारण जज का का दिमाग भी सितारो के कब्जे मे है वह भी सितारो से फ़्री नही है उस समय हो सकता है कि जज का दिमाग राहु के अन्य घेरे मे हो और उसने फ़ैसला देते वक्त अपने अनुभव और कानून की मर्यादा को नही समझ पाया हो,और इस फ़ैसले मे हो सकता है कि वह अपने फ़ैसले को अनुभव के आधार पर देने की कोशिश करे और फ़ैसला को अन्य तरीके से दे दे। इसी प्रकार से अन्य कारणो को भी समझा जा सकता है और प्रयोग मे भी लाया जा सकता है।
धनु राशि मे राहु के होने से पूर्वजो की क्रिया आदर व्यवहार समाज के नियम धर्म और मर्यादा का जितना आभास होता है वह सभी राहु के कारण अन्धेरे मे चला जाता है कारण राहु नीच का होता है और राहु के प्रभाव के कारण धनु राशि का राहु पहला अपना असर कुम्भ राशि पर डालता है यह भाव बडे भाई और मित्रो का होता है,जो भी मित्र होते है वह बडे भाई के स्वभाव के ही होते है वह अपनी अपनी चालाकी को प्रयोग करने मे माहिर होते है,दूसरा राहु का प्रभाव मेष राशि पर जाता है इसलिये जातक को खुद को जाति पांति नियम कानून मर्यादा का ख्याल नही रहता है वह अपने ही नशे मे चलने वाला होता है जब भी कोई बात होती है तो वह राहु के स्थान को सोच कर चलता है लेकिन राहु अपनी गति से जो चालाकी और लाभ अधिक लेने के प्रति दोस्तो और बडे भाई बहिनो के अन्दर देता है वह जातक समय पर समझ नही पाता है फ़ल यह होता है कि जब भी कोई जायदाद या किसी प्रकार की पिता की सम्पत्ति आदि का कारण पैदा होता है तो बडे भाई या बडी बहिने के अन्दर चालाकी का भाव पैदा होता है उस चालाकी के भाव से जो भाई का प्यार और मोहब्बत होती है जो भाई का न्याय भाई का खून और भाई का अपनत्व होता है वह सभी तरह से राहु के घेरे के कारण समाप्त हो चुका होता है उसे एक प्रकार का नशा चढा होता है कि वह अपने लिये क्या कर सकता है और किस प्रकार से अपने दिमाग और चालाकी के प्रभाव से वह परिवार समाज धर्म और पिता आदि की सम्पत्ति को हडप कर सकता है तथा जो भी उसके सामने आने वाले है वह जब तक भाई या मित्रो के कहे अनुसार चलते है तब तक तो उनके लिये उसी प्रकार का व्यवहार किया जाता है जैसे एक पालतू कुत्ते के साथ किया जाता है जो कुछ भी बच गया उसे दे दिया नही बचा तो दुत्कार दिया आदि वाली बाते सामने आने लगती है। इसी प्रकार से इस भाव के राहु का असर मिथुन राशि पर सीधा होता है और मिथुन राशि का प्रभाव अक्सर छोटे भाई बहिनो के लिये भी माना जाता है इस राहु का असर उन पर भी जाता है और जो भी छोटे भाई बहिन होते है वह बडे भाई मित्रो आदि के सहयोग की बाते ही बोलते है वे अपने स्वभाव से ठंडे और गर्म दोनो प्रकार के होते है जब बडा भाई या बहिन जोर से बोलता है तो वे धीमे से बोलते है और जब धीमे से बोलते है उनमे जोर से बोलने की शक्ति आजाती है।मंगल के साथ होने से अगर राहु नीच का है तो मंगल भी नीच का प्रभाव देने लगता है,मंगल भाई का कारक भी है और स्त्री की कुंडली मे पति का कारक भी है अगर राहु के साथ मंगल होता है तो भाई भी मर्यादा सामाजिकता आदि को झाडू लगा देता है और पति की कुंडली मे होता है तो वह भी आसमानी सोच के कारण और अक्समात उत्तेजना मे कुछ भी कर सकता है,जब भी स्त्री की कुंडली मे मंगल इस प्रकार से हो तो मंगल और राहु की शक्ति से सम्बन्धित काम करने वाले व्यक्ति को ही जीवन साथी बनाना सही रहता है। इस युति मे अक्सर जातको को खून का इन्फ़ेक्सन भी होता है और अगर वह किसी प्रकार से बिजली या इलेट्रोनिक्स का काम करता है तो उसके अन्दर इलेक्ट्रो मेगनेटिक फ़ोर्स से कई प्रकार की बीमारी भी पैदा हो जाती है इसी प्रकार से अगर वह दवाइयों के काम मे है तो किसी न किसी प्रकार की दवाई से एलर्जी जैसी बीमारी भी हो जाती है,कभी कभी खून मे गति आजाने के कारण और कनफ़्यूजन होने के कारण जातक बिना बात के लडाई झगडा आगजनी जैसी हरकतो पर भी उतर आता है स्त्री की कुंडली मे आत्महत्या करने और आग लगाने तथा अधिक रूप से गलत दवाइयों के प्रयोग करने से भी राहु अपनी गति से जीवन को समाप्त करने के लिये माना जाता है,राहु और मंगल का योग अगर जातक की कंडली मे छठे भाव से धनु राशि का होता है तो जातक एक जाना माना डाक्टर या सर्जन बनने की योग्यता रखता है यही बात अगर छठे या आठवे भाव के मालिक के साथ होने से भी देखी जाती है इसके अलावा अगर जातक की कुंडली मे छठे भाव का मालिक ग्यारहवे भाव मे होता है और छठे भाव मे राहु पर मंगल की द्रिष्टि होती है या मंगल राहु की चपेट मे होता है जातक के अन्दर छठे से छठे भाव का असर होने के कारण जातक फ़रेब करने और चोरी आदि करने का गुण स्वभाव से ही प्राप्त करने मे माहिर हो जाता है।

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