Thursday, April 26, 2012

शिरडी की माटी (भाग 5)

सूर्य और चन्द्रमा के लिये केवल शनि ही पल्ले पडा है। जैसे कर्क और सिंह के सप्तम के स्वामी शनि होता है एक सकारात्मक होता है एक नकारात्मक होता है वैसे ही शनि की दोनो राशियों के लिये भी सूर्य और चन्द्रमा ही सप्तम के स्वामी भी होते है और सकारात्मक और नकारात्मक का प्रभाव देते है। चन्द्रमा का रूप जब शनि की राशि मकर से सप्तम का होता है तो वह केवल सोच को पैदा करने के लिये ही अपना फ़ल देता है तथा सप्तम का स्वामी जिस भाव मे होता है उसी भाव का फ़ल भी प्रदान करता है। राशि भी अपना फ़ल प्रदान करती है और सप्तम के स्वामी पर जो भी ग्रह अपनी नजर देते है उन ग्रहों का असर भी सप्तम के स्वामी पर पडता है आगे पीछे के ग्रहो का प्रभाव भी बहुत अदर देता है इसके अलावा एक सिद्धान्त भी है कि राहु से आगे जो भी ग्रह होता उसे राहु के लिये खर्च करना पडता है और राहु से जो ग्रह बारहवा होता है उसके लिये राहु खर्च करता है। लेकिन जो ग्रह राहु के बारहवे होते हुये भी बक्री होता है वह राहु से न लेकर राहु को देने के लिये माना जाता है। धर्म और रोजाना के कार्यों का मालिक बुध है जो बक्री होकर सप्तम मे विराजमान है,जिन कारको के लिये इस ग्रह का प्रभाव देखा जायेगा वह राहु के लिये खर्च करने वाला माना जायेगा। शनि राहु जब एक जगह पर स्थापित हो जाये तो काली मिट्टी की आन्धी की तरह अपना असर प्रदान करते है। यह असर शनि की द्रिष्टि से भी देखा जायेगा और राहु की द्रिष्टि से भी देखा जायेगा। कुन्डली मे धर्म और भाग्य का कारक ग्रह बुध है बुध के वक्री होने का मतलब है कि जो भी भाग्य से सम्बन्धित बाते है धर्म से सम्बन्धित बाते है वह खुद न करके दूसरो के लिये करना,जब कोई बात खुद के लिये प्रयोग नही की जाती है तो यह माना जाता है कि जो लोग खुद तो मन्दिर मे रहते है और दूसरो के लिये पूजा पाठ धर्म कर्म आदि करवाते उनके लिये भाग्य केवल उतना ही काम करता है जितने से वह अपना पेट भर सकते है और अपने परिवार की गाडी धीमी गति से चलाते रहते अगर यह बुध राहु जैसे चालाक ग्रह एक साथ हो जाता तो उन्ही लोगो की तरह से हो जाता जो लोग अपने जीवन मे तो दुखी होते ही और और दूसरे को भी अपनी चालाकी से झूठ बोलकर दुखी करने के लिये माने जाते है। यह बात इस कुंडली से नही मिलती है। यह भी कहा जाता है कि राहु जब अष्टम मे होता है तो गूध ग्यान का कारक भी बन जाता है लेकिन जातक का गुरु अगर राहु के घेरे मे आजाता है तो वह अपने गूढ ग्यान को प्राप्त करने के चक्कर मे अपनी खुद की औकात को राख बना डालता है लेकिन इस राहु के घेरे मे अगर शनि आजाता है तो जातक अपने गूढ ग्यान से लोगो के जीवन मे एक प्रकार से रोशनी कर जाता है। राहु अपनी बुद्धि से अपनी गूढता को केतु को देता है और केतु को बल लेने के लिये अपने परिवार के बडे लोगो की हैसियत पर निर्भर रहना पडता है। इस बात को भी उपरोक्त कुंडली के अनुसार माना जा सकता है। इस कुंडली का मुख्य ग्रह शनि है जिसने अपने बल से सूर्य को भी घेरे मे ले रखा है इस कारण से जीवन साथी का व्यवहार अपने खुद के परिवार से सही नही रहना माना जाता है बुध वक्री से युति लेने के कारण जो भी कार्य होते है उन कार्यों मे खुद की मानसिक स्थिति से बार बार बदलने वाली पोजीशन भी मानी जाती है अक्सर यही मन मे लगा रहता है कि अमुक अपने काम को करने के बाद कितना आगे बढ गया है और वह अपने कार्यों को करने के बाद भी आगे नही बढ पा रहा है इस प्रकार को अधिक असरकारक करने के लिये शनि का प्रभाव जब जन्म के चन्द्रमा पर भी जाने लगता है तो जातक अपने बनाये प्लान कभी भी सफ़ल नही कर पाता है अगर वह अपने काम रास्ता चलते करने लग जाता है तो उसके सभी काम बडी आसानी से पूरे हो जाते है। सप्तमेश का धर्म भाव मे होना तथा इस भाव का कालेज शिक्षा आदि से भी सम्बन्ध रखना माना जाता है इस मे सूर्य की युति शनि से होने के कारण बहुत मेहनत करने के बाद यानी भटकाव के बाद ही सरकार की कृपा मिल पाती है। ऐसा भी होता है कि जब लोग बहुत ही परेशान हो जाते है और थकर बैठ जाते है तो यह शनि चन्द्र सूर्य का सहारा लेकर अपनी शक्ति को दे देता है और जातक अपने जीवन पीछे किये गये परिश्रम के आधार पर आगे बढ जाता है। वर्तमान मे गुरु का गोचर चौथे भाव मे होने से और गुरु का योगात्मक प्रभाव अष्टम के शनि से होने के कारण अक्सर जातिका ठगी का शिकार भी हो जाती है कारण गुरु जब अष्टम शनि राहु के घेरे मे आजाता है तो धन की और घर की बातो मे दिक्कत का आना हो जाता है यही बात सन्तान के मामले मे भी मानी जाती है कारण शनि का प्रभाव भी धार्मिक रूप से लेकिन राहु का रूप पूर्ण रूप से मिलने के कारण जातिका आगे अपने कार्यों मे सरलता से सफ़ल हो जाती है। 

3 comments:

RK said...
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RK said...
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RK said...
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