Friday, April 20, 2012

शिरडी की माटी (भाग 4)

एक कहावत है कि जो समय आज और अभी है उसे कभी प्राप्त नही किया जा सकता है। उसका प्रभाव रूप और शक्ति का परिवर्तित रूप ही आगे प्राप्त होगा,बिलकुल वैसा तो कभी प्राप्त नही हो सकता है। ज्योतिष का एक नियम और भी है जो किसी भी प्रकार से हर समय हर जगह और हर प्रकार से प्रयोग मे लाया जाता है वह होता है जब सूर्य देखता है तो चन्द्र सोचता है और देखने और सोचने की क्रिया को भौतिक रूप मे बदलने के लिये शनि अपने कार्य को करता है,बाकी के ग्रह नक्षत्र योग संयोग सभी अपने अपने अनुसार सहायक शक्तियों के रूप मे देखे जाते है। ऊपर दो कुंडली आपके सामने है एक कुंडली शिरडी की प्राचीन आत्मा की है और दूसरी शिरडी की एक दूसरी आत्मा की है। दोनो के पैदा होने की लगन एक ही है समय बदल गया है,पहली कुंडली मे चन्द्रमा लगन मे ही विराजमान है दूसरे मे चन्द्रमा ग्यारहवे भाव मे विराजमान है,पहले मे सूर्य की स्थिति कार्य भाव मे है और दूसरे के सूर्य की स्थिति धन भाव मे है,पहली कुंडली मे शनि की स्थिति बारहवे भाव मे है और दूसरे की स्थिति छठे भाव मे है,यह क्रिया देखने सोचने और करने के लिये मानी जा सकती है। इसी प्रकार से बाकी की शक्तियां जो सहायक शक्तियों के रूप मे काम करने वाली है,वे अपने अपने अनुसार कार्य मे है।
  • धनु राशि का मूल्य समझने के लिये पहले धर्म का मूल्य समझना पडेगा,मेष सिंह और धनु धर्म की राशिया है,धर्म का मतलब कोई पूजा पाठ तीर्थ यात्रा या संस्कार से ही नही माना जाता है धर्म का मुख्य रूप समाज मर्यादा कानून न्याय स्थान और स्थान के इतिहास से माना जाता है,धनु लगन मे पैदा होने वाला जातक उपरोक्त कारणो मे ही अपने जीवन को लेकर चलता है.इस राशि वाले जोखिम को लेकर ही आगे बढने वाले होते है,वह जोखिम पहली कुंडली के अनुसार बारहवे शनि को देखने से पैदा होने वाले स्थान को छोड कर शमशानी स्थान जिसे वीराना भी बोलते है,मे जाकर अपनी स्थिति को दर्शाने के लिये अपनी योग्यता को जाहिर करता है तो दूसरी कुंडली का जातक छठे भाव के शनि के अनुसार अपने को सेवा वाले कामो मे ले जाकर अपनी स्थिति को दर्शाने का काम करता है.शनि के बाद वाला ग्रह या राशि व्यक्ति को अपने स्थान से दूर जाने के लिये बाध्य करती है.धनु राशि मृत्यु की राशि के बाद की राशि है,इस लगन मे पैदा होने वाला जातक एक ऐसे परिवार मे जन्म लेता है जिसके पूर्वज पहले अपना सब कुछ बरबाद करने के बाद या तो दूसरे स्थान पर आकर बसे होते है या उन्हे अपने परिवार को त्याग कर दूर जाकर बसने के बाद ही अपने जीवन को चलाने के लिये मजबूर होना पडता है.
  • धनु राशि का चौथा भाव मीन राशि होने के कारण दिमाग मे जो सोच बनती है वह मोक्ष के लिये ही बनती है,मोक्ष का दूसरा नाम शांति से है,जिस कारक से शांति मिलती है वही कारक इस लगन के जातक को अपनाने मे अच्छा लगता है। 
  • मीन राशि का मालिक हकीकत मे राहु होता है,राहु का कार्य अचानक सोच को देना होता है जो कहा जाये उसे पूरा करने की योग्यता को भी देना होता है,पहली कुंडली मे राहु का स्थान इसी राशि मे है,राहु की नजर मीन राशि के अलावा वृष राशि पर भी है कर्क राशि पर भी है कन्या राशि पर भी है,और बारहवे भाव की वृश्चिक राशि पर भी है.चौथे भाव मे होने से सोच का रूप आसमानी शक्तिओं के अनुसार बन जाता है,जो भी सोचा जाये जो भी मन मे लाया जाये उसे अपने दिमागी असर से नही बल्कि आसमानी सोच के प्रभाव से ही माना जा सकता है.यह सोच मनुष्य को मनुष्य के जीवन मे भी रखकर सोच ईश्वरीय शक्ति की ही देती है.इस सोच मे चौथे भाव मे होने पर जो भी मानसिक लगाव होता है वह शांति को प्रदान करने के लिये ही माना जा सकता है ऐसा व्यक्ति एक स्थान पर बैठा जरूर होता है लेकिन उसका विचरण अन्य दुनिया मे होता है वह एक स्थान पर बैठ कर किसी भी स्थान के बारे मे वर्णन केवल इसलिये कर सकता है क्योंकि यह राहु उसके सामने अन्तर्मन से घटनाओ को उजागर करने के लिये अपने बल को देता है.
  • इस राहु का दूसरा प्रभाव उन कारणो को जान लेने का होता है जो कर्जा दुश्मनी बीमारी और दैनिक जीवन मे मिलने वाली दिक्कतो के लिये माना जा सकता है,छठे भाव मे राहु की पहुंचने वाली शक्ति से इस लगन का जातक अपने मन के अनुसार वही बात सोचता है जो लोगो के प्रति उनकी आगे की संतति मे मिलने वाली बाधा (वृष राशि कुटुम्ब की राशि भी है) लोगो के निर्धन होने पर उन्हे दी जाने वाली आर्थिक सहायता (वृष राशि धन की राशि भी है) तथा जो लोग धन से दुखी है परिवार से दुखी है आगे की संतति से दुखी है उनकी व्यथा को दूर करने के लिये यह राहु अपना काम करता है। इसी प्रकार से राहु की पंचम द्रिष्टि का अष्टम मे विराजमान मंगल पर होने के कारण मंगल जो पैशाचिक शक्तियो का मालिक अष्टम मे जाने से हो सकता है और वे शक्तियां जब जन सामान्य के ऊपर हावी हो जाती है तो लोगो की सोच इंसानियत से बदल कर हैवानियत मे बदल जाती है,इस राहु के द्वारा जब मानसिक बल मिलता है तो वह शक्तियां अपने रूप को बदलकर मानवीय हितो के लिये काम करना शुरु कर देती है,जैसे महामारी के फ़ैलने पर इस राहु की शक्ति के द्वारा रोका जाना,भयंकर बीमार लोगो को अपनी सोच से ही ठीक कर देना,आपसी रंजिस को जो मारकाट से सम्बन्धित हो उसे दया के भाव मे बदल देना आदि। 
  • इस राहु की सप्तम द्रिष्टि कन्या राशि पर है और जब कन्या राशि मे इस राहु का प्रभाव जाता है तो जातक की सोच लोगो की सेवा भावना मे जाने का प्रमाण मिलता है यानी धनु लगन मे पैदा होने वाला जातक उन्ही कामो को करेगा जहां से लोगो की सेवा की जा सकती है,वह सेवा धन से भी हो सकती है अस्पताल से भी हो सकती है बैंक आदि के कार्यों से भी हो सकती है और रोजाना की सेवा श्रुषूसा से भी हो सकती है। केतु के इस भाव मे होने से कार्य और सेवा मे जो लोग अपंग होते है जो लोग साधनो से हीन होते है जिन लोगों की जिन्दगी किसी भी कारण से अपंग हो चुकी होती है उनकी सेवा करने की भावना भी होती है,इसी राहु की नजर जब बारहवे मे विराजमान वृश्चिक राशि मे जाती है तो जातक की नजर उन्ही स्थानो पर शांति के लिये जाती है जहां उजाड हो और उस उजाड मे रहने से उन्हे एक प्रकार की अजीब सी शांति मिलती है,उस शांति का प्रयोग वह दैनिक जीवन मे लेना शुरु कर देते है। इस भाव मे शनि के होने से जातक को ध्यान समाधि स्थान परित्याग और किये जाने वाले कार्यों मे उन्ही लोगो के प्रति उद्धार की भावना होती है जो समाज परिवार देश और स्थितियों से शमशानी कारणो मे पहुंच गये होते है।
  • दूसरी कुंडली मे यही राहु जातक के दूसरे भाव मे है,यह भाव कहने के लिये तो धन का भी कहा जाता है कार्य का भाव इसलिये बन जाता है क्योंकि इस भाव मे मकर राशि आजाती है और इस भाव मे जब राहु सूर्य के साथ होता है तो वह दैनिक जीवन के आधार को बनाने के लिये सरकारी कार्यों की तरफ़ भी चला जाता है बुध से युति होने के कारण जो भी वह कहना चाहता है उसके लिये किसी प्रकार की गणित विद्या जैसे ज्योतिष आदि के साधन सामने करने के बाद बोलता है लेकिन साधन जरूर सामने होते है और तरीके भी गणित के होते है लेकिन ऐसा भी होता है कि जातक जब अपने मे नही होकर अचानक बोलता है तो वह सत्य हो जाता है,यह बात कभी कभी जातक को सोचने के लिये मजबूर भी करती है कि यह किसी भी सिद्धान्त मे नही था लेकिन उसने जो कहा वह सत्य कैसे हो गया ? यही राहु सूर्य बुध को साथ लेकर कुटुम्ब की शक्ति के रूप मे देखा जा सकता है,इस राहु की तीसरी नजर मीन राशि पर होने से जातक जहां भी निवास करता है वहां का माहौल एक प्रकार से ईश्वरीय शक्तिओं से पूर्ण हो जाता है,अगर वह जंगल मे भी जाकर बैठ जाये तो शुक्र पर राहु की द्रिष्टि होने पर भौतिकता का अम्बार लग जाता है,जातक को यह राहु जो प्राप्तिया देताहै वह किसी भी प्रकार से कम नही होती है। राहु बुध और सूर्य के साथ होने पर बुध और सूर्य की सीमा मे विस्तार कर देता है लोग कहते है कि राहु सूर्य के साथ होने से ग्रहण लगा देता है लेकिन यह बात बुध के साथ होने पर राहु के द्वारा नही मानी जा सकती है,कारण राहु और बुध मिलकर सूर्य की सीमा मे विस्तार देते है। सूर्य से तीसरा शुक्र भी इसी मान्यता को पूर्ण करता है कि जातक की माता घर मे बडप्पन लेकर आती है और मीन राशि का शुक्र अगर राहु बुध सूर्य से तीसरा होता है तो वह जातक की उत्पत्ति तीसरी माता से ही देता है,यह राहु माता के मामले मे तीसरी शक्ति से उत्पन्न होने की बात करता है तो जातक के लिये तीसरे स्थान पर जाने के बाद यानी पहले और दूसरे मकान भी जातक के लिये काम के नही रहते है लेकिन तीसरे मकान के अन्दर जाते ही जातक का भाग्य खुल जाता है और जातक किसी भी प्रकार से अपने को दुखी नही रख सकता है,यही बात तीसरे रहने वाले स्थान पर तीन प्रकार के शुक्र होने के कारण भी मिलते है जैसे पत्नी का होना शुक्र के रूप मे वाहन का होना और इसी शुक्र के रूप मे लक्ष्मी का स्थापित होना भी माना जा सकता है। इस राहु का स्थान धन स्थान मे होने के कारण जातक के द्वारा लोगो की धन से काफ़ी मदद की जाती है लेकिन इसी राहु के द्वारा अक्समात निर्णय लेने के कारण हानि भी मिलती है लेकिन यह राहु अपनी योग्यता से लोगो के लिये हित सोचने के कारण अक्समात ही धन की प्राप्ति भी कर लेता है।कार्य की राशि मे होने के कारण और कार्य की राशि का धन स्थान मे होने के कारण जातक जो भी कार्य के समय मे कह देगा वह सत्य होने के लिये भी जाना जा सकता है। इसी प्रकार से जातक अपनी शक्ति को ईश्वरीय शक्ति मे बदलने के लिये भौतिकता का भी सहारा लेकर चलेगा,यह बात केवल शुक्र के अनुसार ही मानी जाती है और तीन शक्तियां वह किसी भी रूप मे रहकर साथ देने के लिये भी सही मानी जायेंगी। वह तीन भाइयो और बहिन की संख्या मे भी हो सकता है पुत्र और पुत्रियो के साथ भी हो सकता है पत्नी और सहायक कार्य करने वाले लोगो के कारण भी हो सकता है। यह राहु छठे भाव पर भी अपनी नजर को दे रहा है जो लोग कर्जा मे होंगे दुश्मनी मे होंगे बीमारी से ग्रसित होंगे आधुनिक कला की जानकारी के अनुसार जातक उन्हे अपनी सहायता जरूर देगा और उस सहायता को लेकर लोग आगे बढते जायेंगे। इस राहु की नजर अष्टम के केतु पर होने पर जातक रिस्क लेकर अगर अपने लिये कोई कार्य ब्रोकर वाला करेगा तो उसे लाभ होना तो है लेकिन वह लाभ को सम्भाल नही पायेगा वह उस लाभ को दूसरे मदो मे लेकर लोगो की सहायता कर देगा। इसी बात को अगर पुरानी मान्यताओ से माना जाये तो जातक को भूत प्रेत और तांत्रिक क्रियाओ की जानकारी भी होगी लेकिन वह दूसरो की सहायता के लिये मानी जा सकती है। इस राहु की गति के कारण एक बार और भी मानी जा सकती है कि जातक अगर अचल सम्पत्ति को खरीदने बेचने मे अपनी मंशा को रखेगा तो धन कैसा भी हो फ़्रीज हो जायेगा इसी प्रकार से शनि से सम्बन्धित कारणो को अपने जीवन मे लाकर वह किसी प्रकार की अपनी धारणा को रखेगा तो भी उसके धन और मानसिक सोच का फ़्रीज होना माना जा सकता है। शनि की उपस्थिति सेवा की राशि मे होने के कारण जैसे ही जातक अपने को सेवा वाले भावो से ऊपर जाकर मालिक की हैसियत से देखने की कोशिश करेगा यह शनि अपनी शक्ति से नीचे बैठा देगा और वापस सेवा के कार्यों मे जाने के लिये मजबूर कर देगा, कार्य का बदलाव कभी भी दिक्कत को देने वाला हो सकता है,जैसे पहली वाली कुंडली मे शनि का स्थान बारहवे भाव मे है तो जातक बाहरी शक्तियों से अपने कार्य को करने वाला था और उन शक्तियो को ग्रहण करने के लिये जातक को वीराने का सहारा लेना पडा था उसी प्रकार से दूसरी कुंडली वाले जातक को अपनी शक्तियों को लोगो के बीच मे रहकर अपने खुद के परिवार मे रहकर ही प्राप्त किया जा सकता है।
  • इस शनि का प्रभाव जीवन के दूसरे वर्ष मे जीवन के छठे वर्ष मे और जीवन के तीस से लेकर बत्तिसवे वर्ष तक दिक्कत देने का कारण बनता है कहने मे तो यह भी कहा जा सकता है कि शनि अपनी कठोरता से जातक को कुम्हार के बर्तन की तरफ़ से कूट कर पकाकर मजबूत बनाने की कोशिश करता है जो मुलायम होते है वह आकार ग्रहण कर लेते है और जो कठोर होते है अपने जीवन की तराजू को खुद के द्वारा तौलना चाहते है वह टूट कर बिखर जाते है,शनि जीवन की मर्यादा को झेलने की शक्ति भी देता है,यह शनि अगर पहले भाव से छठे भाव तक अपना रूप दर्शित करता है तो वह जातक को शादी के पहले तक ही दुखी करता है और शादी के बाद सुखी जीवन जीने के लिये आगे बढा देता है तथा यही शनि अगर सप्तम के बाद से बारहवे भाव तक होता है तो या तो वैवाहिक जीवन से दूर रखता है या वैवाहिक जीवन मे कठोरता को देकर तरह तरह की दिक्कते देने के लिये भी माना जाता है उसी प्रकार से राहु का क्षेत्र भी अगर जीवन मे सप्तम से पहले होता है तो जातक को ईश्वरीय शक्तियों का साक्षात्कार शादी से पहले होता है और बाद मे उसे अपने जीवन के सभी सुख भोगने के बाद जैसे ही केतु वाली उम्र मे साधु जैसा जीवन जीने के लिये मजबूर कर देता है,यह भी देखा जाता है कि सप्तम से पहले अगर केतु होता है तो जातक शादी के पहले ही साधु का जीवन जी चुका होता है और वह जीवन के दूसरे भाग मे रोमांस वाला जीवन जीता है लेकिन जिनके केतु का स्थान सप्तम के बाद होता है वह जीवन की उपलब्धियां शादी से पहले प्राप्त करने के बाद अपने को सांसारिक जीवन से दूर करना शुरु कर देते है। 
  • यही बात मंगल के लिये भी मानी जाती है अगर जातक के जीवन मे मंगल का स्थान सप्तम से पहले होता है तो जातक अपने जीवन के अन्दर सभी प्रकार के पराक्रम और तकनीकी ग्यान को शादी से पहले सीख चुका होता है और अगर जातक का मंगल सप्तम या सप्तम के बाद होता है तो जातक वैवाहिक जीवन को तकनीकी रूप से ही जी सकता है अन्यथा शादी के बाद कई प्रकार के लडाई झगडे और जीवन साथी काम करने वाले स्थान पर क्लेश के कारण भी बनते रहते है। साथ ही जब मंगल मेष या वृश्चिक का होता है तो जातक को बात का पक्का बना देता है और जब मंगल कर्क मीन या वृष राशि का होता है तो वह बात से दूर भाग जाने का क्रम बनाता है।
  • बुध मार्गी का कारण भी देखा जाता है कि वह दूसरो के लिये गुणगान करने वाला होता है और जब वह वक्री होता है तो लोग उसके बारे मे ही बखान करने लगते है.
अक्सर जिस राशि मे चन्द्रमा होता है उस राशि मे व्यक्ति की पहुंच पर ही सोच को देने के लिये और लोगो के अन्दर जानकारी देने के लिये माना जा सकता है,जब तक व्यक्ति चन्द्रमा तक नही पहु़ंचता है तब तक वह जनता के बारे मे सोचता है जैसे ही वह चन्द्रमा की सीमा को लांघ जाता है जनता उसके बारे मे सोचने लगती है,पहली कुंडली मे चन्द्रमा धनु राशि का है और यह राशि मौत के बाद की राशि है जब तक जातक जिन्दा रहता है लोग उसके बारे मे नही सोच पाते है जैसे ही जातक की मौत होती है लोग उसके बारे कई प्रकार की बाते सोच कर और उसके कार्यों को सोच कर उसके प्रति बाते करने लगते है दूसरी कुंडली मे भी चन्द्रमा तुला राशि का है जब तक जातक नौकरी और वैवाहिक जीवन मे जाता है वह लोगो के लिये सोचता रहता है लेकिन जैसे ही शादी होती या नौकरी लगती है जातक के प्रति लोग सोचने लग जाते है।
शिरडी की माटी का यह भाग इसलिये और लिखना पडा कि लोगो की मुख्य सोच अगर ज्योतिष से देखी जाये तो यह राहु किस प्रकार से भावना को बदलने के बाद कहां व्यक्ति को पहुंचा सकता है,और जो लोग इस सोच को धारण करते है वह धारणा केतु के लिये कितनी लाभदायक हो जाती है इस बात को ग्यानी लोग ही समझ सकते है और समय पर उपयोग मे ला सकते है.

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