Thursday, April 19, 2012

शिरडी की माटी (भाग 3)

हमारा धरती पर आने के लिये दो कारण माने जाते है पहला तो हम अपने लिये ही आते है और दूसरा हम दूसरो की सहायता करने के लिये आते है.जब हम केवल अपने ही जीवन की गाडी में उलझे रहते है तो वह हमारी निजी गाडी होती है जब हम दूसरो की गाडियों को सुधारने के लिये अपने को प्रयोग मे लाते है तो हमारी बिसात एक मैकेनिक से अधिक नही होती है लेकिन हम जिस गाडी मे उलझे रहते है वह एक ही माडल की गाडी होती है जब हम दूसरो की गाडियों मे उलझने का काम करते है तो वह तरह तरह के माडल की गाडियां होती है। अगर वास्तविक रूप से योग्यता को माना जाये तो केवल एक गाडी की जानकारी से अधिक योग्यता अधिक गाडियों के बारे मे जानने से मानी जा सकती है तो मैकेनिक कहने के लिये तो छोटी औकात होती है लेकिन वह योग्यता मे गाडी मालिक से कहीं अधिक होता है। यही बात संतो के लिये मानी जाती है कहने के लिये उनके पास एक झोली के अलावा कुछ नही होता है लेकिन वह किसी भी दुखी व्यक्ति की पीडा को हरने की योग्यता को रखते है जबकि एक गृहस्थ के पास सब कुछ होते हुये भी वह किसी न किसी पीडा से ग्रसित ही रहता है। किसी की कुंडली मे देखा जाये तो केन्द्र भरा होता है और किसी की कुंडली मे देखा जाये तो केन्द्र खाली होता है,जब केन्द्र भरा होता है तो वह एक गृहस्थ के रूप मे माना जाता है और वह अपनी ही गाडी को सम्भालने और चलाने की फ़िकर मे रहता है लेकिन जब केन्द्र खाली होता है तो वह दूसरो के हित के ही काम करता रहता है.या ऐसे माना जाये कि वह एक गाडीवान है और बिना किसी परिश्रम की कीमत लिये सन्तो को लाने लेजाने का काम करता है। दूसरो के लिये जो अपने जीवन को लेकर चलता है उसके लिये परमात्मा भी योग्यता को देकर भेजता है योग्यता को देखने के लिये त्रिकोण की सीमा को ज्योतिष से वर्णित किया गया है। जब त्रिकोण मे केतु का उपस्थित होना मिल जाये तो वह व्यक्ति एक सहायक के रूप मे संसार सेवा मे लगने के लिये अपनी योग्यता को जाहिर करता रहता है। उपरोक्त कुंडली मे केन्द्र खाली है केवल प्लूटो जीवन को मशीन बनाकर विराजमान है,प्रदर्शन मे चन्द्रमा है विद्या और बुद्धि मे तथा शिक्षा मे केतु है,सेवा मे गुरु है रिस्क लेने और अपमान तथा गूढ विषयों के प्रति सेवा करने जानकारी रखने गुप्त भेद जाने की राशि मे सूर्य और शनि है,धर्म कानून नियम ऊंची शिक्षा विदेशी जानकारी राज्य और राजनीति के प्रति जानकारी के प्रति तकनीकी विकास और तकनीकी कामो के प्रति मंगल बुध और शुक्र की उपस्थिति है,ग्यारहवे भाव मे कर्म करने के फ़लो को देखा जाता है वहां राहु और यूरेनस की उपस्थिति है,बारहवे भाव मे नेपच्यून की उपस्थिति है। एक चार सात तथा दस मे कोई ऐसा ग्रह नही है जो सजीवता को प्रमाणित करता हो। इस प्रकार से इस व्यक्ति का जन्म दूसरो की सेवा करने के लिये ही हुया है।

दक्षिण भारत मे नाडी ज्योतिष के लिये हमने देखा है कि वे अधिकतर मामले मे ताड पत्रो के अलावा एक काम और करते है कि जातक की जन्म तारीख आदि के बारे मे भी पूंछते है जरूरी नही है कि हर आदमी की विवेचना ताड पत्र से ही की जा सके,वह जन्म तारीख के अनुसार घर के नाम आदि बखान करने के लिये कुछ प्रश्न करते है और उन प्रश्नो के आधार पर ही जातक के जीवन की विवेचना करते है,जैसे उपरोक्त कुंडली मे यह भावना तो देखी ही जा सकती है कि जातक के केन्द्र मे कोई ग्रह नही होने से वह दूसरो की सेवा के लिये पैदा हुआ है। केतु किसी नाम की व्याख्या नही करता है,केवल नवे भाव मे तीन ग्रहो की सम्मिलित रूपरेखा से जातक का नाम देखा जा सकता है.इसके अलावा भी अगर नवमांश को देखा जाये तो वहां भी नवे भाव मे शुक्र केतु का साथ चन्द्रमा की राशि कर्क मे हो गया है,अगर इसी कुंडली को भाव श्रीपति मे ले जाते है तो यह कुंडली अपना रूप अलग ही प्रकाशित कर देती है,(भाव श्रीपति विष्णु रूप मे जीव के प्रकट होने की विवेचना से माना जाता है और दक्षिण भारतीय ज्योतिष मे इस प्रथा का गुप्त रूप प्रयोग किया जाता है जो जन सामान्य की समझ से बाहर की बात होती है) इस कुंडली के अनुसार अष्टम भाव मे सूर्य शनि शुक्र बैठ जाते है। इसी पद्धति के अनुसार यह भी देखा जाता है कि लगन की नजर हमेशा अष्टम पर होती है,यानी शरीर का कारण अन्तिम गति से जुडा होता है। शरीर की जीवन के अन्त मे क्या दशा होनी है वह इसी भाव से जुडा होता है। यह भाव गुप्त शक्तियों के रूप मे जाना जाता है,और योगी साधना को करने के लिये इसी भाव का प्रयोग करते है। इसी पद्धति से अगर केतु का स्थान देखा जाये तो वह चौथे भाव मे है और मेष राशि का है,तथा अपनी पंचम द्रिष्टि से अष्टम मे बैठे सूर्य शनि शुक्र को देख रहे है,केतु के लिये सन्यासी सूर्य के साथ केतु मिलकर विष्णु शनि के साथ केतु के मिलने से शिव और शुक्र के साथ केतु के मिलने से शिव की मान्यता देखी जा सकती है,एक सन्यासी के अन्दर इन तीनो शक्तियों का होना जगत गुरु दत्तात्रेय के लिये ही माना जाता है।

तीसरा भाव घर की शिक्षा पंचम भाव प्राथमिक शिक्षा सप्तम भाव माध्यमिक शिक्षा और नवा भाव कालेज की शिक्षा तथा दूसरे भाव से शिक्षा के बाद अन्य उपाधिया जैसे डिप्लोमा किसी विषय मे अन्य डिग्री आदि का लेना माना जाता है। कालपुरुष के अनुसार शिक्षा का विश्लेषण करने पर घर की शिक्षा के लिये बडे भाई या बहिन की बात मिलती है प्राथमिक शिक्षा के लिये कान्वेंट जैसी शिक्षा मिलती है तथा कालेज शिक्षा मे तकनीकी शिक्षा का होना मिलता है और उस तकनीकी शिक्षा के अन्दर कोई उच्च डिग्री आदि के लिये दो और शिक्षाये मिलती है। जातक अपनी योग्यता से अपने धर्म परिवेश को तकनीकी शिक्षा से विदेशी परिवेश मे फ़ैलाने के लिये अपनी योग्यता को रखता है,साथ ही बैंक फ़ायनेन्स अस्पताली दवाइयों के मामले मे तकनीकी कारणो मे खेती किसानी आदि मे पानी के साधनो मे जो सोफ़्ट्वेयर काम करते है और जो स्वचलित रूप से अपने कार्य को करते के कार्यों मे जाना उचित माना जाता है,यही कारण जातक को अगर व्यापारिक रूप से करने होते है तो वह अपनी योग्यता को तरह तरह के सोफ़्टवेयर आदि को बनाकर बेचने के काम शिक्षा से सम्बन्धित कम्पयूटर की उपयोगिता के काम करने मे भी सफ़ल माना जाता है। लेकिन जो भी कार्य जातक के द्वारा होते है वह लोक हित के लिये ही माने जाते है उन साधनो का उपयोगों के लिये खुद का कोई लाभ नही मिलता है इस प्रकार से संत वही है लेकिन रूप बदला है तो केवल आधुनिक विज्ञान की सीमा मे जाकर नये नये रूप ईजाद करने के लिये और नये नये रूप मे लोगो की आवश्यकताओ को पूरा करने के लिये।

1 comment:

dagmariapabian said...

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