Thursday, April 19, 2012

शिरडी की माटी (भाग 2)

जब जनता की शिकायत अधिकारी के पास पहुंचने लगती है तो पहले तो वह शिकायत को नजरंदाज करता रहता है कि हो सकता है किसी ने कोई भूल से काम किया हो और वह उस भूल को सुधार ले लेकिन जब शिकायते अधिक आने लगती है तो अधिकारी जांच के लिये निकल देता है,वह सभी प्रकार के अपने जांच के कारको को प्रयोग मे लाता है और जब देखता है कि गल्ती अधिक हो रही है तो गल्ती करने वाले को दंड देने और जिनके साथ गल्ती हुयी है उन्हे सहायता देने का काम करता है। कभी कभी ऐसा भी होता है कि शिकायत करने के लिये भीड तो जाती है लेकिन अधिकारी या तो नियुक्त नही हुआ होता है और जब तक नियुक्त होता है तब तक जनता चली जाती है,उस बीच मे उस अधिकारी से भी बडे अधिकारी को शिकायते दूसरे मार्ग से मिलती है वह अपनी योग्यता से अपने कार्यों को पूरा करने के लिये अन्य साधनो का प्रयोग करता है। इसी प्रकार से परम पिता परमात्मा इस धरती पर आत्माओं को भेज कर जांच करवाता है कि धरती पर कितना अधर्म हो रहा है कितना धर्म हो रहा है कितना जीव को सताया जा रहा है और कितना जीव के साथ प्रकृति इंसाफ़ कर रही है कि नही कर रही है जीव का उद्देश्य परहित मे है कि नही आदि की जानकारी लेने के लिये वह मानवीय रूप मे आत्मा को धरती पर भेज कर उसके जाने के बाद उसके सुकर्मो और दुष्कर्मो की मीमांशा करता है भेजी जाने वाली आत्मा को तो सुकर्मो और दुष्कर्मो की सजा मिलती ही है लेकिन उसके कर्मो और के प्रति भी परमात्मा को पता चल जाता है कि धरती पर किस प्रकार से पाप और पुण्य घट बढ रहे है।

प्रस्तुत कुंडली विश्वप्रसिद्ध शिरडी धाम मे जन्म लेने वाली एक जातिका की है,पंचम भाव मे गुरु और नवम भाव मे सूर्य का होना जीवात्मा योग होने की बात को प्रकट करता है,यह जीवात्मा योग ईश्वर अंश से जन्म लेने की क्रिया को कहा जाता है और जो कारण इस जन्म के लिये माने जाते है वह गुरु का शिक्षा के भाव मे और सूर्य का धर्म के भाव मे होना भी यह प्रकट करता है कि जातिका का उद्देश्य शिक्षा से धर्म और मीमांशा के प्रति लोगों को बताना तथा उस सूर्य रूपी आत्मा को जो अपने नि:स्वार्थ भाव से धर्म के प्रति समर्पित है का गुणगान करना भी है। बुध वक्री है और मार्गी बुध तो दूसरो से कहने सुनने और अपने प्रभाव को प्रसारित करने के लिये माना जाता है जब कि वक्री बुध केवल दूसरो के भावो को सुनने के बाद उसका प्रभाव धार्मिक रूप से विवेचन मे लाकर प्रयोग करने के लिये माना जाता है। वैसे तो कहा जाता है कि बुध वक्री उल्टी बात करता है लेकिन उल्टी बात का मतलब यह नही होता है कि वह गाली देता है बल्कि बुध वक्री का मतलब होता है कि वह प्रश्न करने वाला होता है और उत्तर देने के लिये वह जिस भाव पर अपनी नजर रखता है वही भाव अपनी योग्यता के अनुसार बुध को जबाब देते है,लेकिन बुध वही प्रश्न करता है जिस ग्रह के साथ होता है तथा जिस ग्रह का असर द्रिष्टि से बुध को मिलता है इसके साथ ही उसके प्रश्न अमिट रूप से वही रहते है जो जन्म के समय मे बुध के प्रति अपनी धारणा को प्रकट करते थे,इसके अलावा भी सांसारिक गतिविधि का रूप भी तब और समझ मे आता है जब बुध गोचर से विभिन्न भावो मे गोचर करता है और जो भी उस भाव का सामयिक कारण और रूप होता है उसके बारे मे भी अपनी धारणा को जन्म के बुध की प्रकृति को साथ रखने से और केवल प्रश्न करने की क्रिया को ही प्रस्तुत करने की मान्यता से समझा जा सकता है। इस बुध से यही माना जाता है कि जातिका को प्रश्न करने की आदत है वह किसी भी बात को उल्टा इसलिये कहती है कि सामने वाला जबाब दे सके लेकिन सामने वाला जबाब तभी दे पायेगा जब वह दिमागी रूप से बुद्धिमान है और उसे बजाय करके दिखाने के समझाने की पूरी जानकारी है। करके दिखाने के लिये तो वही लोग सामने आते है जिनके पास शरीर का बल होता है लेकिन समझाकर दिखाने का कार्य वही करते है जिनके पास दिमागी बल होता है और वह अपने समझाने के तरीको को विभिन्न रूप मे सामने लाकर प्रस्तुत कर सकते है। कभी कभी यह भी देखा जाता है कि जो व्यक्ति कहना चाहता है वह सामने वाला समझ रहा है कि नही अगर कहने वाला उल्टा बोलता है और सामने वाला भी उल्टे को उल्टे रूप मे ही प्रस्तुत रखने की कला को जानता है तो दोनो अपनी अपनी बात को एक दूसरे को समझा कर सन्तुष्ट होजायेंगे और सामने वाला उल्टी बात का जबाब जब समझाने की बजाय ताकत से देना शुरु कर देता है तो उल्टा बोलने वाला या तो कभी उल्टी बात को करता ही नही है या वह हमेशा के लिये शांत हो जाता है।उल्टी बात करने का भी एक असर होता है कभी कभी कोई बात उल्टी की जाये और वह शास्त्र सम्मत हो तो उस उल्टी बात का भी आदर किया जायेगा और जब कोई उल्टी बात की जाये लेकिन वह गाली जैसी लगे तो जो सुनेगा वह बजाय उत्तर देने के या तो अपनी दिमागी शक्ति से कोई कानूनी काम करने के लिये राजी हो जायेगा या फ़िर अपने देह बल को प्रयोग करने के बाद दांत तोड देगा। इस कुंडली से भी यही समझ मे आता है कि बुध के वक्री होने का असर तो है लेकिन बुध पर गुरु के प्रभाव के कारण जो भी बात बुध करना चाहता है वह धर्म से सम्बन्धित है शिक्षा से सम्बन्धित है जीवन साथी से सम्बन्धित है बुध के राजकीय ग्रह के साथ होने से तथा राज्य के ग्रह सूर्य पर अपना असर देने के कारण सरकारी कानून से सम्बन्धित है के कारण जो भी बात बुध के द्वारा उल्टे रूप मे की जायेगी वह सुनी भी जायेगी और उसका उत्तर भी बजाय शरीर की शक्ति का प्रयोग करके दिमागी शक्ति को प्रयोग करने के बाद ही दिया जायेगा। इस बात को समझने के लिये जातिका के तीसरे भाव मे विराजमान वक्री शनि से देखा जा सकता है। मार्गी शनि शरीर की शक्ति से काम लेने वाला होता है लेकिन वक्री शनि दिमागी शक्ति से काम लेने वाला होता है जब मशीनी ग्रह और तकनीक का मालिक प्लूटो भी साथ हो जाता है तो वह शानि मशीनी रूप से दिमागी उत्तर प्रस्तुत करने के लिये अपनी योग्यता को जाहिर करने लगता है।

सूर्य के धर्म के भाव मे रहने से जातिका का अहम केवल धर्म और मर्यादा के प्रति माना जाता है साथ ही सूर्य पर गुरु की नजर होने से जातिका अपने परिवेश और परिवार मे भी धर्म और संस्कृति के प्रति अटल विश्वास रखने वाली होती है वह किसी भी सम्बन्ध को केवल धर्म और पारिवारिक सम्बन्ध की द्रिष्टि से देखती है उसे अपने परिवेश का पूरा ग्यान है कि वह कहां से आयी है उसे क्या करना है उसकी धारणा क्या है उसे जीवन मे किस प्रकार के कार्य करने है और वह किस प्रकार से दूसरो से किस प्रकार के कार्य करवाने की क्षमता को रखती है। अक्सर देखा जाता है कि बहुत कम लोग ही इस बात से सम्बन्ध रखते है कि गुरु और नेपच्यून जब एक राशि मे हो और उस राशि का सम्बन्ध अगर धर्म संस्कृति और जीवन के साथ साथ न्याय दर्शन महापुरुषो के विचार उन विचारो के द्वारा समाज और धर्म के  प्रति चलने वाले विश्वास आदि भी नेपच्यून और गुरु की संगति से जातिका के पास मिलते है। एक संत की आत्मा का प्रादुर्भाव भी इसी गुरु और नेपच्यून की संगति पर जाना मिलता है और इस प्रकार की युति यही वर्णन करती है कि जातिका रूप भले ही संसार मे साधारण मनुष्य के रूप मे है लेकिन वह आत्मा से एक संत की आत्मा को लेकर ही इस धरती पर आयी है। इसी बात से एक प्रश्न और बनता है कि आखिर आत्मा का इस धरती पर आने का कारण क्या है ? इस बात को देखने के लिये :-
  • गुरु ने बल दिया सूर्य और वक्री बुध को तथा सूर्य और वक्री बुध ने अपने बल को वक्री शनि और प्लूटो को दे दिया,वक्री शनि ने अपने बल को प्लूटो की सहायता से वापस गुरु को अपना बल दे दिया।
  • वक्री शनि और प्लूटो ने अपना बल गुरु नेपच्यून को दिया गुरु ने उस बल को सूर्य और बुध पर दे दिया और सूर्य बुध (व) ने अपना बल वापस शनि प्लूटो को दे दिया।
  • सूर्य और वक्री बुध ने अपना बल शनिवक्री और प्लूटो को दिया शनि वक्री और प्लूटो ने अपना बल गुरु और नेपच्यून को दे दिया,गुरु वह बल वापस सूर्य बुध वक्री को दे दिया.
यह तीनो मीमांशा केवल शरीर और पहिचान (लगनेश से) शिक्षा संतान बुद्धि जीवन की सोच (पंचमेश से) जीवन साथी जीवन मे आने का उद्देश्य और जीवन के कार्य लोगों को दी जाने वाली सलाह (सप्तमेश से) मिलती है,साथ मे जिन और शक्तियों ने बल दिया है उनके अन्दर भौतिक धन कुटुम्ब पहिचान तथा अपने से बडे मित्र भाई बहिन आदि के मालिक बुध (व) ही बाकी का किसी का कोई लेना देना नही है यह भी है कि जो भी बुध वक्री ने दिया है वह जातिका वापस भी कर देगी किसी का कोई अहसान भी अपने पर नही रख सकती है।

परमात्मा भी अपनी कला को किस प्रकार से बदल कर प्रस्तुत करता है उसकी मिशाल नही मानी जाती है,पुरुष राशि मे पुरुष ग्रह के साथ अगर बुध मार्गी होता तो वह पुरुष रूप मे इस जगत मे प्रकट होता,लेकिन बुध के वक्री होने के कारण वह स्त्री रूप मे प्रकट हो गया। यही बात जीवन साथी के लिये भी मानी जा सकती है कि स्त्री राशि मे सप्तमेश शनि स्त्री रूप मे प्रकट होने थे लेकिन वक्री होने के कारण पुरुष रूप मे प्रकट हो गये। इस प्रकार की युति एक पूर्व जन्म के द्वन्द के रूप मे माना जा सकता है कि दोनो आत्माओ के अन्दर यह भाव रहा कि अगर वह स्त्री होती तो वह कुछ कार्य जो पुरुष रूप मे नही कर पाये वह कर सकती थी,तथा यही पति के लिये भी माना जा सकता है कि वह जो कार्य स्त्री रूप मे नही कर पाया वह कार्य वह पुरुष रूप मे कर सकता था और प्रकृति ने जन्म विपरीत लिंगी बनाकर दे दिया। यह भाव प्रकृति के द्वारा दिये गये नामो से भी प्रकट हो जाता है जैसे स्त्री नाम को पुरुष के साथ और पुरुष नाम को स्त्री के साथ,विनय विजय विनीत विह्वल आदि पुरुष वाचक नाम है और किरण किमी आदि स्त्री नाम है।

सूर्य बुध वक्री ने कालेज शिक्षा दी और राहु ने शिक्षा के क्षेत्र मे जाने की अलावा डिग्री दी यह साधारण आदमी के लिये सोचा जा सकता है। जब इसे कालपुरुष की कुंडली के अनुसार देखा जायेगा तो गुरु कालेज शिक्षा मे चला जाता है और राहु धन भाव मे आकर शिक्षा देने वाले अलावा कारको के लिये अपना बल देने लगता है। राहु और चन्द्र मिलकर चिन्ता मे लीन व्यक्तियों को धर्म और न्याय तथा कानून के अलावा ज्योतिष कर्मकाण्ड आदि की शिक्षा दे सकता है,यही राहु कभी तो बहुत से कार्य दे दे और कभी बिलकुल ही नही दे,जो कह दिया जाये वह सत्य हो जाये और लोग सत्य के रूप मे स्वीकार करने लग जायें,तथा यही राहु कार्य के रूप मे चिन्ता का विषय हमेशा प्रस्तुत करना शुरु कर दे। जो सूर्य अपने प्रभाव को सरकारी रूप से या राजनीति के रूप मे प्रस्तुत करना चाहे वह चन्द्रमा की चिन्ता के कारण कुछ कर भी नही पाये और संसार हित के लिये अपने को प्रस्तुत करना शुरु कर दे। जीवन की जद्दोजहद मे शामिल होने के लिये भी परमात्मा कारणो को पहले ही बनाकर भेज देता है,पति के लिये कार्य भाव खाली और पत्नी के लिये रोजाना के कार्यों और सेवा वाला भाव खाली,इन्ही दोनो भावो के लिये पति पत्नी अगर अपनी जीवन की जद्दोजहद को करते रहते है तो उनके लिये जीवन का सार्थक करने का प्रभाव पूरा नही हो पाता है अगर वह अपने अनुसार इन्ही कारणो को जो सामने है उन्हे पूरा करने की कोशिश करते रहे तो वह अपने अनुसार अपने जन्म को सार्थक भी कर सकते है और दुनिया मे नाम तथा लोक हित के लिये मशहूर भी हो सकते है। चन्द्रमा को गुरु बारहवा दे दिया है और सूर्य के लिये गुरु नवा दे दिया है,लोक हित मे गुरु सन्तुष्ट रहने का काम कर रहा है और स्वहित के लिये गुरु भाग्य का काम कर रहा है,जातिका जनता के लिये आश्रय का स्थान देने का काम करती है तो वह प्रसिद्धि की तरफ़ बढ जाती है और वह अगर राज्य या राजनीति से जुड जाती है तो वह एक सम्माननीय व्यक्ति के रूप मे प्रसिद्धि प्राप्त करती है।

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