Tuesday, April 17, 2012

शिरडी की माटी (भाग 1)

कहा जाता है कि आत्मा जब अपने साकार रूप को प्रकट करती है और उस आत्मा के रूप को प्रकट करने का क्षेत्र शुद्ध और सात्विक होता है तो वह आत्मा अपने अन्दर उन्ही गुणो के शरीर को धारण करके आती है जैसा उस स्थान की धरती का प्रभाव होता है। यह प्रभाव भी उसी प्रकार से माना जाता है जैसे एक बीज को बोने के लिये अलग अलग जमीन का प्रयोग किया जाता है और जमीन के प्रभाव के अनुसार ही बीज की उत्पत्ति होती है। आज संसार मे शिरडी का नाम शिरमौर केवल इसलिये हो रहा है कि उस स्थान की मिट्टी ने भगवत रूप धारण किया था और मनुष्य रूप मे रहकर भी अपनी कृपा को साक्षात किया था,उसी मिट्टी से पैदा होने वाली आत्माओं का विश्लेषण करने का सौभाग्य मुझे मिला है और आप सभी के सामने उन आत्माओं के ज्योतिषीय कथन को प्रकट करना चाहता हूँ,मेरी भी बुद्धि मानवीय है हो सकता है कोई त्रुटि रह जाये या कोई बात लिखने मे गलत लिख जाऊँ,इसलिये विद्व जनो से क्षमा का भाव भी रखता हूँ।

कुंडली मे गुरु जीव का अधिकारी होता है सूर्य आत्मा का अधिकारी माना जाता है मंगल आत्मीय शक्ति को बढाने वाला होता है बुध आत्मीय प्रभाव को प्रसारित करने का कारक होता है शुक्र जीव को सजाने और आत्मा के भावो को प्रकट करने मे अपनी सुन्दरता को प्रकट करता है तो चन्द्रमा आत्मीय मन को सृजित करने का भाव पैदा करता है.शनि भौतिक रूप को प्रकट करता है और जीव के कर्म को करने के लिये अपनी योग्यता को प्रकट करता है। यूरेनस दिमाग के संचार को प्रकट करने और भौतिक संचार को बनाने बिगाडने का काम करता है प्लूटो मिट्टी को मशीन मे परिवर्तित करने का कार्य करता है नेपच्यून आत्मा के विकास का अधिकारी माना जाता है.

समय के अनुसार जीव का रूप परिवर्तन होता रहता है जैसे आदिम युग मे जीव का रूप कुछ और होता था पाषाण युग मे कुछ था मध्य युग मे कुछ और था और वर्तमान मे कुछ और है तथा आने वाले भविष्य मे जीव का रूप कुछ हो जायेगा। जीव वही रहता है रूप परिवर्तन मे सहायक प्लूटो को मुख्य माना गया है,जो आधुनिकता से लेकर अति अधुनिकता को विकसित करने के लिये लगातार अपने प्रभाव को बढाता जा रहा है और हम क्या से क्या होते जा रहे है,लेकिन जीव के विकास की कहानी के साथ आत्मा का रूप नही बदल पाता है जीव कितना ही आधुनिक हो जाये आत्मा वही रहती है। जो भी कर्म किये जाते है उनका प्रभाव आत्मा पर उसी प्रकार से पडता रहता है जैसे एक चिट्टी विभिन्न डाकघरो मे जाकर डाकघर की उपस्थिति को दर्शाने के लिये अपने ऊपर उन डाकघरो की मुहर अपने चेहरे पर लगाकर प्रस्तुत करती है।

प्रस्तुत कुंडली सिंह लगन की है और सूर्य विद्या से प्राप्त बुद्धि के भाव मे विराजमान है,सूर्य का साथ देने के लिये बुध जो लगन का चेहरा और भौतिक प्राप्ति तथा कार्य के प्रभाव का नाम प्रस्तुत करने की भावना को भी देता है। सूर्य का प्रभाव धरती तक लाने के लिये सूर्य किरण ही जिम्मेदार होती है। बिना सूर्य किरण के सूर्य का प्रभाव धरती पर आ ही नही सकता है,बुध को किरण का रूप मानने पर यही पता चलता है कि बुध सूर्य की गरमी रोशनी जीवन की प्रस्तुति को धरती तक लाने के लिये संचार का काम करता है इसलिये बुध को संचार का ग्रह कहा गया है। पंचम भाव विद्या के भाव से दूसरा भाव होने से विद्या से प्राप्त बुद्धि को प्रयोग करने का भाव भी कहा गया है और जब इस भाव मे गुरु की धनु राशि का समागम होता है तो ऊंची शिक्षा वाली बुद्धि को प्राथमिक शिक्षा जैसा माना जाता है। कानून की कारक यह राशि विदेशो से भी सम्बन्ध रखती है धर्म और भाग्य से भी यह राशि जुडी होती है साथ ही यात्रा और धार्मिकता को फ़ैलाने या उस धार्मिकता से लोकहित के कार्य करने के लिये भी अपनी युति को प्रस्तुत करती है। इस राशि के प्रभाव को अगर पंचम मे लाया जाता है तो ऊंची जानकारी को खेल खेल मे प्रस्तुत करने की कला भी मानी जाते है,सूर्य भी हकीकत मे कालपुरुष की कुंडली के अनुसार इसी भाव का मालिक है,राज्य और राजनीति से भी सम्बन्ध रखता है। लेकिन उद्देश्य कुछ भी हो मतलब शिक्षा से ही होता है।

पुराने जमाने की जो कहानी कही जाती है कि गुरुओं मे इतनी दम होती थी कि वे मिट्टी को चलाने फ़िराने लगते थे,वे कहानिया अविश्वसनीय लगती है,हम कभी कभी कह देते है कि यह सब कपोल कल्पित है,लेकिन आज जिधर भी नजर घुमाई जाती है उधर ही मरी हुयी मिट्टी दौड रही है जिस इंसान को देखो मरी मिट्टी से ही खेल रहा है काम कर रहा है उसी मिट्टी को प्रयोग मे लाकर कमा रहा खा रहा है उसी मिट्टी पर बैठ कर भागा जा रहा है उसी मिट्टी से एक दूसरे से संचार कर रहा है,लेकिन उस जमाने की बातें कपोल कल्पित लगती है ! पुराने गुरु पीले कपडे पहिन कर विद्या को प्रदान किया करते थे लेकिन आधुनिक गुरु कम कपडे पहिन कर कम काम करके अधिक बुद्धि का प्रयोग करके जो कारक पैदा कर रहे है उन्हे गुरु की उपाधि से दूर करने के बाद वैज्ञानिक की उपाधि दे रहे है,वास्तविकता भी है कि जब गुरु सुपर गुरु हो जाता है और मरी मिट्टी मे इतनी जान डाल देता है कि उसका जीवन बिना मरी मिट्टी के बेकार सा हो जाता है तो वह दिमाग को हर पल हर क्षण हर मौके पर दौडाने का काम भी करता है और अपने को वैज्ञानिक कहलाने लगता है। वैज्ञानिक शब्द की व्याख्या को देखा जाये तो वह व+ऐ+ज्ञान+इक से ही देखा जायेगा और इसे अगर विच्छेद करने के बाद जाना जाये तो वाममार्गी तांत्रिको से कम नही समझा जा सकता है। व को मुर्दा कहा जाता है ऐ की मात्रा लगाते है मुर्दे मे जान डालने की क्रिया बन जाती है और जो इस क्रिया को प्रयोग करना जानता हो उसे ज्ञानी की उपाधि दी जाती है लेकिन वह सिद्धान्त के ऊपर ही निर्भर है इसलिये इक यानी एक ही के प्रति समर्पित हो जाती है,तो कौन कहता है कि वैज्ञानिक तांत्रिक नही होता है। जीव यानी गुरु को अपने तंत्र से मरी हुयी मिट्टी मे जान डाल कर लोक हित मे प्रयोग किया जाने लगे और लोग उस मरी मिट्टी जिसमे जान डाल दी गयी है उसे प्रयोग मे लेकर अपने को धन्य समझ ले तथा अपनी आवश्यकताओ को पूरा करने के लिये अपनी योग्यता को जाहिर कर दे तो जिसने उस मई मिट्टी मे जान डाल दी है वह किसी संत से कम कहा जा सकता है क्या ?

राहु फ़ैलाव देता है फ़ैलना भी सीमित नही होता है,असीमित होता है और जो व्यक्ति एक साधारण व्यक्ति से कई गुनी योग्यता सीखने की रखता हो तथा अपने को बजाय साधारण आदमी के अलग थलग दिखाने की औकात को रखता हो उसी को वक्री कहा जाता है। राहु हमेशा उल्टा चलता है,राहु को शक्ति के रूप मे देखा जाता है और जब यह राहु गुरु के साथ हो जाये तो खराब भाव मे जाकर यह जहरीली हवा बन जाता है लेकिन अच्छे भाव मे जाकर यह अमृत प्रदान करने वाली हवा भी बन जाता है और जिस व्यक्ति की कुंडली मे राहु लगन मे हो अच्छी राशि मे हो तो बात ही कुछ और होती है। लेकिन सीधा आदमी उल्टे को नही सुधार सकता है केवल उल्टा आदमी ही उल्टे को सुधार सकता है,उसी प्रकार से राहु को सुधार मे लाने के लिये गुरु को भी उल्टा कर दिया जाये तो राहु आसानी से सुधार मे लाया जा सकता है,इस कुंडली को भी देखिये राहु लगन मे है शिक्षा की राशि मे है और गुरु भी वक्री होकर राहु की गति मे बदल गया है साथ ही नवे भाव के मालिक मंगल का तकनीकी सहारा भी ले लिया है तो राहु को सुधार कर अच्छे रूप मे बदलना जाना जा सकता है। जो राहु दूसरो को डराने का काम करता है एक प्रकार से काली आंधी बनकर लोगो को परेशान करता है तो वह राहु वक्री गुरु के सानिध्य मे आकर और मंगल का साथ लेकर असीमित ज्ञान के क्षेत्र को दिखाने प्रकाश मे लाने के लिये और संसार को सामने रखने के लिये अपनी योग्यता को जाहिर कर रहा है। इसी बात को अगर राहु को सिलीकोन माना जाये गुरु को सिलीकोन को तरीके से जोडना और सर्किट आदि बनाने के काम मे लिया जाये तथा मंगल को शक्ति की कारक बिजली के रूप मे देखा जाये तो यह कम्पयूटर का रूप धारण कर सकता है सर्किट बोर्ड पर लगे हुये आई सी कण्डेन्सर रजिस्टेंस ट्रांजिस्टर डायोड आदि की जानकारी भी देता है और उस के अन्दर अपने ज्ञान का प्रयोग करने के बाद लोगो के लिये उस मशीन का तैयार करना हो जाता है जिससे लोग अपने जीवन की जरूरतो को बाहरी लोगो से लिखने पढने से लेकर आने जाने तथा कितने ही प्रकार के कार्य करने के लिये स्वतंत्र हो सकते है। यह वक्री गुरु का ही काम है कि वह शनि प्लूटो यानी मरी हुयी मशीन को हार्डवेयर आदि डालकर उसे सिस्टम से चलाने की क्रिया मे राहु नामका सोफ़्टवेयर डालकर कई प्रकार की मशीनी श्रेणी मे बदल सकता है। अगर इसी जगह पर मार्गी गुरु होता तो वह दूसरे के द्वारा बनाये गये सामान को प्रयोग करने वाला होता लेकिन वक्री गुरु होने के कारण वह अपने द्वारा बनाये गये सामान को दूसरो के हित के लिये प्रयोग करने वाला बन जाता है।

सिंह लगन का चौथा भाव वृश्चिक राशि का होता है यह राशि बहुत गूढ होती है कभी प्रकट रूप से सामने नही होती है जैसा कि मेष राशि का स्वभाव होता है कि उसके मन के अन्दर कुछ भी है वह सामने रख देती है इसलिय ही दूसरो के लिये बलि का बकरा बन जाती है उसी स्थान पर सिंह लगन का जातक अपने विचार बहुत गूढ रखता है और उस बुद्धि का प्रयोग करता है जो बुद्धि साधारण आदमी के पास नही होती है वह अपने भाव को प्रकट करने के लिये गूढ तंत्र का प्रयोग करता है उसे तकनीकी विद्या को प्राप्त करने की आदत होती है साथ ही वह अपने को इतने भेद की नीति के अन्दर रखता है कि मन के अन्दर क्या है जान लेने के लिये अपनी पूरी योग्यता को प्रस्तुत कर सकने के बाद भी यह जाहिर नही होने देता है कि आखिर मे उसकी मंशा क्या थी ? यह राशि तकनीकी राशि भी है और किसी भी प्रकार की तकनीक को दिमाग मे रखने और तकनीकी विद्या के प्रति हमेशा मन को लगाकर चलने के लिये भी मानी जा सकती है यह राशि तकनीक के अलावा दुनिया के भेद मृत्यु के बाद का जीवन पराशक्तियों और शमशानी सिद्धियों के प्रति भी जान लेने की भावना को रखती है। हकीकत मे इस भाव का मालिक चन्द्रमा होता है और जनता का मालिक भी चन्द्रमा होता है दिशाओं से यह दक्षिण पश्चिम दिशा की कारक भी कही गयी है इस प्रकार से जातक की मानसिक रुचि अन्तर की जानकारी के लिये भी मानी जा सकती है।यह राशि नकारात्मक मंगल की राशि भी कही गयी है सकारात्मक मंगल जीव के अन्दर की शक्ति कही जाती है और नकारात्मक मंगल जीव के मरने के बाद उसकी पराशक्ति का कारक होता है। सकारात्मक मंगल जीव के जिन्दा रहने तक साथ देने वाला होता है और नकारात्मक मंगल जीव के मरने के बाद उसकी शक्तियों को दूसरे लोगों के प्रति प्रयोग करने के लिये भी माना जाता है,अक्सर सामाजिक परिवेश मे इस मंगल को लोग भूत प्रेत तंत्र आदि के रूप मे कहते सुने जा सकते है।

यूरेनस इस राशि मे उपस्थित होता है तो जातक के मन के अन्दर एक तो उन शक्तियों को प्रकट करने की इच्छा होती है जो मरने के बाद की जानी जा सकती है दूसरे जातक के अन्दर मरी हुयी मिट्टी के अन्दर से यह जान लेने की कला का विकास भी होता है कि वह कैसे मरी किस अवयव की खराबी से मरी और उस मरी हुई शक्ति के अवयब को जांच लेने की और उसे बदल कर नया जीवन मरी हुयी मिट्टी को देने से भी जानी जा सकती है इस बात को अगर डाक्टरी रूप मे देखा जाता है तो एक प्राणी की मौत के पहले के जीवन को प्राप्त करने के लिये खराब हुये अवयब को बदलने का काम किया जाता है जबकि यूरेनस को संचार का ग्रह माने जाने पर जातक के अन्दर कमन्यूकेशन की चीजों के खराब होने पर उन्हे जांच लेने और उन्हे ठीक करने की क्रिया को जान लेने का कारण भी कहा जाता है इस कारण को अगर देखा जाये तो आज के जमाने मे इन्हे इन्फ़ोर्मेशन तकनीक का जानकार भी कहा जाता है और कम्पयूटर इंजीनियर के रूप मे भी देखा जाता है। नेपच्यून के इस भाव मे होने से यह भी देखा जाता है कि जातक के अन्दर राख से साख निकालने की क्षमता का होना भी होता है वह समझ सकता है कि जो कबाडा हो चुका है उस कबाडे से क्या क्या वस्तु निकाली जा सकती है जो काम की है और उस वस्तु को दूसरी वस्तुओं मे प्रयोग करने के बाद उन्हे काम मे लिया जा सकता है। नेपच्यून का रूप अक्सर आत्मा के रूप मे पाश्चात्य ज्योतिष मे प्रयोग मे लाया गया है लेकिन हमारी संस्कृति के अनुसार से मन के आगे नही मान सकते है मन और आत्मा मे भेद को समझने वाले लोग इस बात को समझ सकते है। जो आत्मा कबाड से जुगाड बनाकर उन्हे काम का सिद्ध कर सके वही एक अच्छे इंजीनियर की श्रेणी मे भी गिना जाता है।

सूर्य और बुध का पंचम भाव मे होना आत्मा का मिलन शिक्षा के क्षेत्र मे जाने का होता है यहा जातक अपनी उपस्थिति को शिक्षा के क्षेत्र मे ले जाने और वहीं से अपनी उन्नति को शुरु करने के लिये भी माना जाता है लेकिन यह बात तभी सिद्ध हो सकती है जब जातक के पुत्र संतान की प्राप्ति हो,उसके पहले सूर्य का उदय होना और सरकारी क्षेत्र मे अपने प्रभाव को दिखाने का कारण नही बनता है,सूर्य से तीसरे भाव मे केतु के होने से भी एक कारण यह भी माना जाता है कि कुम्भ राशि का केतु उन्ही लोगो से मित्रता को बनाता है जब वह मित्रता किसी भी प्रकार से कमन्यूकेशन के मामले मे हो पुरानी ज्योतिष के अनुसार बडे भाई की पत्नी या दोस्त की पत्नी के या बडी बहिन के पति के सहायक कार्यों से जोड कर भी देखा जाता है और  इस केतु को अक्सर सहायक के रूप मे भी माना जाता है चाचा भतीजे का सम्बन्ध भी कायम करता है जीवन के अन्दर एक व्यक्ति की सलाह और शिक्षा जातक को आगे बढाने के लिये भी मानी जाती है।यह केतु पत्नी के रूप मे भी सामने आता है और जातक को अपनी सहायता से आगे बढाने के लिये भी देखा जा सकता है। यह केतु मानसिक रूप से भी अपनी सहायता को देने वाला माना जाता है और जीवन मे जो भी सहायक कार्य है उन्हे करने के लिये भी देखा जा सकता है। संतान मे यह दूसरे नम्बर की संतान का रूप भी समझा जा सकता है और पुत्री संतान के प्रति भी अपनी भावना को रखता है।

जातक एक शिक्षक के रूप मे भी जाना जा सकता है जो लोगो को आधुनिक युग मे विभिन्न प्रकार की मशीनोको उपयोग मे लाने का रूप बताये,जो लोग विद्या से जुडे है उनके लिये कार्य करने का रूप भी प्रस्तुत करता है,साथ ही कालेज शिक्षा मे कार्य को करने का रूप भी दे सकता है जो राजनीति से सम्बन्धित विषयों की जानकारी कानूनी जानकारी और विदेशी परिवेश से जुडी जानकारी को प्रदान करना जानता हो,एक संत जो अपने स्वार्थ की पूर्ति के बिना अपनी सहायता को सेवा के रूप मे लोगों को प्रदान करे भी माना जा सकता है। शनि अपनी नजर से की जाने वाली सेवा से जीवन यापन के लिये कार्य करना भी माना जाता है साथ ही प्लूटो के साथ होने से वह उतना धन नही इकट्ठा कर पाता है जो जीवन मे धन का मोह रखने वाले करते है और बिना उपयोग मे लाये मर जाते है। चन्द्रमा का ग्यारहवे भाव मे होना जातक को उतना ही लाभ दे पाता है जो अपने शरीर की पूर्ति कर ले और कहने के लिये तो उसके कोई भी काम नही बिगडते है जो भी कार्य होता है वह मित्रो की सहायता से पत्नी की सहायता से साथ मे चलने वाले दो लोगो से जो मित्रता की सीमा मे ही होते है के प्रति माना जा सकता है।

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