मकर लगन की कुंडली है सूर्य बुध शनि चन्द्र लगन मे ही विराजमान है.मंगल राहु शुक्र का स्थान बारहवे भाव मे है.राहु जिस त्रिकोण मे अपना स्थान बना लेता है उसी त्रिकोण के बारे मे सोचने के लिये अपनी युति आजीवन प्रदान करता है,वह जिस भाव मे भी गोचर करेगा सोच वही रहेगी जो जन्म स्थान के राहु की थी लेकिन राशि और भाव से उस सोच मे बदलाव केवल राशि और भावों के अनुरूप हो जायेगा.कभी कभी लोग कहते है व्यक्ति का चरित्र गंदा है वासना की सीमा नही है.यह सब होना राहु के द्वारा ही संभव है.मंगल गर्मी का कारक है शुक्र बल और वीर्य के साथ आराम के स्थानो का मालिक है और राहु इन दोनो कारकों के अन्दर विस्तार को देने वाला है.मन का कारक चन्द्रमा सप्तमेश है,जब तक मन के कारक चन्द्रमा को सप्तम का सुख नही मिलता है मन सुखी नही होता है,मन का स्थान कर्म की राशि में सूर्य जो विदेश का कारक है बुध जो विदेशी कारण भाग्य और नौकरी का कारक है,शनि जो लगन का कारक भी है और धन तथा कुटुम्ब का कारक भी है एक साथ जब शरीर से जुड जायें तो व्यक्ति के अन्दर केवल एक ही भावना शांति को प्रदान करने वाली बन जाती है वह होती है आराम का जीवन लम्बी हवाई यात्रायें और विदेशी परिवेश मे जाकर आराम से ठहरना ऊंचे होटलों मे सैर करना भोजन के रूप में हाई क्लास भोजन करना और भोजन के साथ राहु का नशा लेकर मौज मस्ती के लिये शुक्र का प्रयोग करना.इस खानपान और नशे तथा आराम के कारण गुरु जो अष्टम स्थान मे वक्री होकर बैठ गया है शुक्र को बरबाद करने के लिये काफ़ी होता है इस कारण से अपने बल वीर्य को समाप्त करना और बल और वीर्य को समाप्त करने के बाद शरीर को फ़ुलाते जाना मोटापे को धारण करना तथा एक स्थान पर पडकर सुबह शाम के कामो को कर लेना और जीवन को आखिरी मे अस्पताल की दवाइयों के सहारे निकालना.
राहु मंगल के साथ बारहवे भाव मे जाने से उत्तेजना को बडे रूप मे देने का कारक माना जाता है.उत्तेजना का कारक अक्सर राहु के साथ शुक्र के बैठने के कारण भी होता है,जहां भी सजावटी रूप को देखा या विदेशी परिवेश की नग्नता को देखा वहीं पर इस प्रकार के जातक की उत्तेजना जाग्रत हो जाती है,वह उम्र के छोटे भाग से ही यानी अपनी उम्र की अठारहवी साल से ही कामोत्तेजना मे ले जाने लगता है,उसे मानसिक आकर्षण के कारण अपनी उम्र से बडी उम्र की स्त्री से भी कामोत्तेजना शांत करने की चाहत बनी रहती है,अक्सर जो स्त्रिआं इसी प्रकार के लोगों की तलास मे रहती है वे ऐसे लोगों का खुलकर उपयोग करती है बदले मे उन्हे सामयिक रूप से उनके आराम के लिये साधनो को जुटाने मे लगी रहती है.जैसे ही उन्हे अन्य कोई इसी प्रकार का व्यक्ति और बलिष्ठ रूप मे मिलता है वे इस प्रकार के व्यक्ति को दुत्कार देती है उस समय इस प्रकार का व्यक्ति मानसिक रूप से विक्षिप्त जैसा हो जाता है और अपने को या तो किसी प्रकार की बदले की भावना से राहु मंगल का सहारा लेकर हत्या जैसे कारणो को कर बैठता है और धनु के राहु की सहायता से जेल और अदालती कारणो का भुक्तभोगी बन जाता है या उसे अपनी आत्मग्लानि की बजह से एक स्थान पर पडे रहना और बीमार होकर दवाइयों के द्वारा शरीर को चलाने की कोशिश करना भी हो जाता है। अक्सर जीवन का कारक गुरु सही है तो जीवन को सही रास्ते पर इस राहु और मंगल शुक्र की युति से ले जाया जा सकता है। गुरु के वक्री होने से जातक के अन्दर केवल वही कारण पैदा होते है जिनसे उसे अपने समाज कुल मर्यादा परिवार सम्बन्ध आदि का ख्याल नही रहता है वह अपनी मानसिक संतुष्टि के लिये कुछ भी मर्यादा से विपरीत काम कर सकता है। अक्सर इसी प्रकार के व्यक्तियों के सम्बन्ध अपनी खास बहिनो बुआ पुत्री रिस्ते मे पवित्र स्थान रखने वाली महिलाओं तक से होते देखे गये है.धनु का राहु नीच का होता है वह अगर शुक्र के साथ है तो व्यक्ति अपने सम्बन्ध बडी शिक्षा के जमाने में कालेज की शिक्षिका से भी कर सकता है और गुरु की उपाधि वाली महिला जिसे प्राचीन काल मे गुरुमाता का दर्जा दिया जाता था उसे भी अपनी हवस का शिकार बना सकता है।
लालकिताब मे भी प्रकरण आता है कि सूर्य और शनि की युति मे मंगल बद हो जाता है.इसके बाद भी नीच के राहु के साथ मंगल के साथ होने से जातक के अन्दर मंगल के बद होने की सीमा का विस्तार गणना से बाहर की बात हो जाती है.वह अपनी किसी भी क्रिया के द्वारा केवल काम शांति की कामना ही अपने मन मे लेकर चलता है और जहां भी उसे मौका मिलता है वह अपनी काम क्रिया को करने से नही चूकता है। राहु शुक्र का एक प्रभाव और भी पहिचानने के लिये देखा जाता है कि इस प्रकार के जातक अक्सर उत्तेजक परफ़्यूम और सजावटी कारको को अपने शरीर से जोड कर रखते है.राहु शुक्र और मंगल की युति से अक्सर ऐसे व्यक्तियों के अन्दर एक प्रकार की अजीब कामोत्तेजक सुगन्ध बहती रहती है जिसके कारण भली से भली महिला भी इस प्रकार की सुगन्ध से उसी प्रकार से मोहित हो जाती है जैसे कस्तूरी की सुगन्ध से मृगियों का झुंड कस्तूरी धारण करने वाले मृग के पीछे भागता रहता है.विलासिता के सभी कारण जातक को अपने खानदान से मिल जाते है और जातक के पैदा होने के बाद से ही उसके लिये माता पिता दादा आदि से साधन जुटाये जाने लगते है और जातक अपनी जवानी मे आते आते उन सभी साधनो को प्राप्त करने लगता है जो इस प्रकार के कृत्य करने के लिये उसे प्राप्त करने होते है.जातक के पिता का कार्य भी इसी प्रकार के कारको से जुडा होता है जिस प्रकार से जातक के लिये कामोत्तेजना की शांति के लिये साधन मिलते रहे.कार्यों मे यात्रा वाले कार्य होटल या यात्रियों को रोकने तथा उनके लिये साधनो को जुटाने वाले काम,किसी प्रकार के सजावटी और भाग्य से जुडे काम आदि माने जा सकते है,डाक्टरी और बडी इंजीनियरिंग वाले काम भी देखने को मिलते है.
राहु मंगल के साथ बारहवे भाव मे जाने से उत्तेजना को बडे रूप मे देने का कारक माना जाता है.उत्तेजना का कारक अक्सर राहु के साथ शुक्र के बैठने के कारण भी होता है,जहां भी सजावटी रूप को देखा या विदेशी परिवेश की नग्नता को देखा वहीं पर इस प्रकार के जातक की उत्तेजना जाग्रत हो जाती है,वह उम्र के छोटे भाग से ही यानी अपनी उम्र की अठारहवी साल से ही कामोत्तेजना मे ले जाने लगता है,उसे मानसिक आकर्षण के कारण अपनी उम्र से बडी उम्र की स्त्री से भी कामोत्तेजना शांत करने की चाहत बनी रहती है,अक्सर जो स्त्रिआं इसी प्रकार के लोगों की तलास मे रहती है वे ऐसे लोगों का खुलकर उपयोग करती है बदले मे उन्हे सामयिक रूप से उनके आराम के लिये साधनो को जुटाने मे लगी रहती है.जैसे ही उन्हे अन्य कोई इसी प्रकार का व्यक्ति और बलिष्ठ रूप मे मिलता है वे इस प्रकार के व्यक्ति को दुत्कार देती है उस समय इस प्रकार का व्यक्ति मानसिक रूप से विक्षिप्त जैसा हो जाता है और अपने को या तो किसी प्रकार की बदले की भावना से राहु मंगल का सहारा लेकर हत्या जैसे कारणो को कर बैठता है और धनु के राहु की सहायता से जेल और अदालती कारणो का भुक्तभोगी बन जाता है या उसे अपनी आत्मग्लानि की बजह से एक स्थान पर पडे रहना और बीमार होकर दवाइयों के द्वारा शरीर को चलाने की कोशिश करना भी हो जाता है। अक्सर जीवन का कारक गुरु सही है तो जीवन को सही रास्ते पर इस राहु और मंगल शुक्र की युति से ले जाया जा सकता है। गुरु के वक्री होने से जातक के अन्दर केवल वही कारण पैदा होते है जिनसे उसे अपने समाज कुल मर्यादा परिवार सम्बन्ध आदि का ख्याल नही रहता है वह अपनी मानसिक संतुष्टि के लिये कुछ भी मर्यादा से विपरीत काम कर सकता है। अक्सर इसी प्रकार के व्यक्तियों के सम्बन्ध अपनी खास बहिनो बुआ पुत्री रिस्ते मे पवित्र स्थान रखने वाली महिलाओं तक से होते देखे गये है.धनु का राहु नीच का होता है वह अगर शुक्र के साथ है तो व्यक्ति अपने सम्बन्ध बडी शिक्षा के जमाने में कालेज की शिक्षिका से भी कर सकता है और गुरु की उपाधि वाली महिला जिसे प्राचीन काल मे गुरुमाता का दर्जा दिया जाता था उसे भी अपनी हवस का शिकार बना सकता है।
लालकिताब मे भी प्रकरण आता है कि सूर्य और शनि की युति मे मंगल बद हो जाता है.इसके बाद भी नीच के राहु के साथ मंगल के साथ होने से जातक के अन्दर मंगल के बद होने की सीमा का विस्तार गणना से बाहर की बात हो जाती है.वह अपनी किसी भी क्रिया के द्वारा केवल काम शांति की कामना ही अपने मन मे लेकर चलता है और जहां भी उसे मौका मिलता है वह अपनी काम क्रिया को करने से नही चूकता है। राहु शुक्र का एक प्रभाव और भी पहिचानने के लिये देखा जाता है कि इस प्रकार के जातक अक्सर उत्तेजक परफ़्यूम और सजावटी कारको को अपने शरीर से जोड कर रखते है.राहु शुक्र और मंगल की युति से अक्सर ऐसे व्यक्तियों के अन्दर एक प्रकार की अजीब कामोत्तेजक सुगन्ध बहती रहती है जिसके कारण भली से भली महिला भी इस प्रकार की सुगन्ध से उसी प्रकार से मोहित हो जाती है जैसे कस्तूरी की सुगन्ध से मृगियों का झुंड कस्तूरी धारण करने वाले मृग के पीछे भागता रहता है.विलासिता के सभी कारण जातक को अपने खानदान से मिल जाते है और जातक के पैदा होने के बाद से ही उसके लिये माता पिता दादा आदि से साधन जुटाये जाने लगते है और जातक अपनी जवानी मे आते आते उन सभी साधनो को प्राप्त करने लगता है जो इस प्रकार के कृत्य करने के लिये उसे प्राप्त करने होते है.जातक के पिता का कार्य भी इसी प्रकार के कारको से जुडा होता है जिस प्रकार से जातक के लिये कामोत्तेजना की शांति के लिये साधन मिलते रहे.कार्यों मे यात्रा वाले कार्य होटल या यात्रियों को रोकने तथा उनके लिये साधनो को जुटाने वाले काम,किसी प्रकार के सजावटी और भाग्य से जुडे काम आदि माने जा सकते है,डाक्टरी और बडी इंजीनियरिंग वाले काम भी देखने को मिलते है.
1 comment:
Ye detail Mohan Sharma ki hai IShko itni Kamotejna Kyo Hai
DOB 24.07.1972
Time 03.33 am
Place Bikaner
Koi Upay hai aapke passs
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