Tuesday, January 10, 2012

कुम्भ राशि का नवां शनि

आज का युग कमन्यूकेशन का युग है,बिना कमन्यूकेशन के कोई भी व्यक्ति अपनी आर्थिक सामाजिक धार्मिक राजनीतिक न्यायिक आदि किसी भी क्षेत्र मे सफ़ल नही माना जाता है.कुम्भ राशि कमन्यूकेशन की राशि है और हकीकत मे इस राशि का स्वामी यूरेनस को माना गया है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार तो शनि इस राशि का स्वामी है और वह अपने दोनो चेलों राहु और केतु से अपने कार्यों का संचालन करता है,लेकिन यूरेनस की उपस्थिति से इस राशि की महत्ता का बढना और घटना दोनो ही अपने अपने स्थान पर जरूरी देखी जा सकती है। यूरेनस की चाल एक राशि पर लगभग आठ साल होती है और इस समय मे यह जिस राशि पर रहता है उसी राशि के बारे मे अपनी गति कमन्यूकेशन के मामले में संसार को देता रहता है। फ़रवरी दो हजार दो से फ़रवरी दो हजार आठ तक यह कुम्भ राशि पर ही अपना अड्डा जमाये था इस कारण से ही संसार में ही नही भारत जैसे देश मे भी कमन्यूकेशन की जो उन्नति हुयी है उससे कोई अछूता नही है,आज हर घर में हर व्यक्ति के पास कितने संचार के साधन है यह इस बात का सबूत भी माना जा सकता है। जिस प्रकार से शनि की चाल एक राशि पर लगभग दो साल छ: माह की होती है और कभी वक्री और कभी मार्गी कभी अस्त और कभी उदय होकर अपनी गति को प्रदान करता है उसी प्रकार से यूरेनस भी अपनी गति मे मार्गी भी होता है वक्री भी होता है उदय भी होता है और अस्त भी होता है लेकिन जिस भी राशि मे जाता है कुम्भ का असर ही पैदा करता है। वर्तमान मे यूरेनस मीन राशि पर गोचर कर रहा है और राहु के साथ अपनी गति को प्रदान कर रहा है।
कुम्भ राशि के नवे भाव मे शनि का गोचर तुला राशि पर पिछले नवम्बर से शुरु हुआ है। शनि की द्रिष्टि से भी पूर्ण द्रिष्टि इस राशि के लिये लाभ भाव पर पराक्रम और हिम्मत के भाव पर तथा कर्जा दुश्मनी बीमारी और रोजाना के कार्यों के भाव पर होने की बात मिलती है। शनि अपने अनुसार जहां भी बैठता है उसके आगे और पीछे के भाव को भी प्रभावित करता है और अपनी उपस्थिति का कारण पैदा करता है। शनि हमेशा अपने पीछे के भाव को अपनी गति को देता है और आगे के भाव और ग्रह से अपनी गति को प्राप्त करता है,जो भी वह प्राप्त करता है वह अपने अन्दर निश्चित समय के लिये एकत्रित करके रखता है। बाकी के ग्रहों का असर कुछ समय के लिये ही एकत्रित हो पाता है मगर शनि का प्रभाव एक साथ ढाई साल के लिये एकत्रित होने और उस प्रभाव का कोई भी फ़ल दिखाई नही देने से किसी के लिये भी दिक्कत का कारण माना जा सकता है। शनि के अधिक प्रभाव को जानने के लिये आप मेरी साइट आस्ट्रोभदौरिया डाट काम पर भी पढ सकते है और उससे सम्बन्धित अन्य साइट्स पर भी पढ सकते है। यह एक ठंडा और अन्धेरा प्रभाव देने वाला ग्रह है,इस के प्रभाव से जो भी कारक सामने होते है वह ठंडे भी हो जाते है और अन्धेरे मे भी चले जाते है।
इस शनि के द्वारा कुम्भ राशि पर जो प्रभाव सामने आ रहा है उसके अनुसार कुम्भ राशि वाला जातक जो भी कार्य कर रहा है उस कार्य के फ़ल को शनि अपने अनुसार अपने अन्दर जमा कर रहा है वह कार्य फ़ल जो इस राशि वाले ने किया है वह दिखाई भी नही देता और उस कार्य की एवज मे इस राशि वाला अगर उसे देखना चाहे और उसे प्रयोग करना चाहे तो वह प्रयोग मे भी नही आ रहा है तथा वह अपने अच्छे या बुरे फ़ल को दे भी नही दे रहा है,इसके अलावा वह ठंडा और अन्धेरे मे रहकर इसके पीछे के मृत्यु भाव में कैसे चला जाता है इसका पता भी नही चल रहा है। उदाहरण के लिये कुम्भ राशि ने कार्य किया कि उसका फ़ल उसे मेहनत के रूप में धन प्रदान करेगा,लेकिन शनि के प्रभाव के कारण वह जो कार्य किया गया है वह धन के रूप का प्रभाव या तो किसी प्रकार से बडी यात्रा में चला जायेगा,या किसी बडी शिक्षा के लिये चला जायेगा अथवा वह कोर्ट केश या पैत्रिक जायदाद के प्रति चला जायेगा.उसका परिणाम भी नही मिलेगा वह किया गया खर्च शनि के अन्धेरे मे रहकर शनि के पीछे के मृत्यु भाव मे चला जायेगा और जब उसको वापस प्राप्त करने के लिये प्रयास किया जायेगा तो वह बजाय मिलने के और भी कठिनाई दे देगा।
शनि की द्रिष्टि शनि के स्थान से तीसरे भाव में होने से कुम्भ राशि के लाभ भाव मे भी अपनी गति को प्रदान कर रहा है,जैसे इस राशि के किसी व्यक्ति को लाभ होना है और वह आशा लगाकर बैठा है कि उसने जो कार्य किया है उसकी एवज में उसे लाभ होगा और उस लाभ को वह खर्च करने के बाद अपनी मानसिक शारीरिक तथा परिवार की जरूरत को पूरा करेगा,लेकिन शनि की द्रिष्टि से वह लाभ मिलने में किसी न किसी प्रकार की दिक्कत आजायेगी। जैसे किसी का धन किसी ने लिया है वह धन को प्राप्त करने के लिये प्रयास करेगा,धन नही मिल पायेगा तो वह शनि के निवास के प्रभाव से कोर्ट केश या इसी प्रकार की कार्यवाही को करने के बाद धन को प्राप्त करने की कोशिश करेगा,कोर्ट पहले तो धन के लिये प्राप्त करने के कानून से ही देरी लगायेगा,और धन मिल भी गया तो वह अपने आदेश आदि से अपने पास जमा करवा लेगा,और केश के चलने तक उसका ही धन उसे नही मिलेगा बल्कि फ़ैसला आने तक फ़्रीज भी पडा रहेगा और इस बात के अन्धेरे मे रहेगा कि मिलेगा या नही यह बात शनि के अलावा और किसी को पता भी नही होगी।
नवे भाव के कारक कारणो में शनि का प्रभाव चल रहा है। नवा भाव शरीर और सम्बन्ध के रूप में पिता से जोडा गया है। पिता के लिये परेशानी के कारको में पिता को शनि वाली बीमारियां होना माना जाता है,शनि वाली बीमारियों में सिर की बीमारियां मस्तिष्क की बीमारियां जुकाम नजला इन्फ़ेक्सन दांतों की बीमारियां एक ही स्थान पर टिके रहने की परेशानी अन्धेरे और एकान्त मे रहने की आदत शरीर के अन्दर वायु प्रकोप भूख नही लगना चमडी के रोग खाज खुजली का हो जाना,अधिक आलस का आना,शरीर के किसी भी हिस्से में अचानक दर्द का होना दाहिने हिस्से में दर्द का या सुन्नता का होना,उस हिस्से से काम नही कर पाना,जकडन अर्धांग हो जाना,आंखों में रोशनी का कम हो जाना,मिलने वाली सहायताओं में कमी होने लगना,पेट की पाचन क्रिया का गडबडाना भोजन का नही पचना,भोजन के नही पचने के कारण पेट में गैस का बनना,सिर के दर्द की शिकायत होना,बुद्धि में कमी हो जाना,कोई बात कहनी है और बुद्धि की कमी से किसी बात को कह जाना जिससे घर के सदस्यों को बुरा लगना और जो भी सहायता मिलती थी वह बन्द हो जाना,पिता की बीमारी या पिता की परेशानी से माता का बाहर आने जाने पर पाबन्दी लग जाना,माता को भी शारीरिक कष्ट होना और पिता की चिन्ता से माता के भी स्वास्थ्य पर असर पडने लग जाना,माता को सांस वाली बीमारी पैदा हो जाना या गला अवरुद्ध होने की शिकायत होना,पिता के द्वारा कार्य नही करने से घर के खर्चो मे कमी हो जाना,पिता की बीमारी के कारण माता की नींद पूरी नही हो पाना और अनिद्रा आदि के रोग पैदा हो जाना,सन्तान का सहायता वाले कारणो से दूर चले जाना या सन्तान के अन्दर भी फ़्रीजिन्ग आजाने से सन्तान के दिमाग में पिता के भाव से दूरिया बन जाना सन्तान के द्वारा किसी न किसी प्रकार की गलत हरकत करने के बाद पिता के प्रति कर्तव्यों से दूरिया बन जाना,रोजाना के कार्यों से दिक्कत होने लगना जैसे नहाना धोना साफ़ सफ़ाई आदि से पिता की दूरिया बनने लगना,बीमारी आदि के लिये मिलने वाली सहायताओं में समय पर चिकित्सा के कारणो का नही मिल पाना या चिकित्सा के कारण मिले भी तो किसी न किसी प्रकार से गलत कारणो का मिलते रहना जो बजाय बीमारियों को ठीक करने के और बीमारियों को बढाने लग जाना,पिता के द्वारा बचत किये गये धन का भी फ़्रीज होने लग जाना किसी कानूनी अडचन या खुद की गल्ती से धन का फ़्रीज हो जाना जो समय पर नही मिलना और खुद का धन होने के बावजूद भी धन का प्रयोग पिता के शरीर हित के लिये नही कर पाना,अगर जातक के पास खुद का मकान नही है तो जातक जिस मकान मे किराये से रह रहा है उसके मकान मालिक के द्वारा किसी न किसी निर्माण या आपसी सम्बन्धो के प्रति दिक्कत करने के बाद मकान का बदलना अपने मकान को बनाने के लिये प्रयास करना लेकिन मकान का पिता और परिवार की दिक्कत से नही बन पाना आदि बाते शनि की बीमारियों से कुम्भ राशि के नवे शनि से मानी जाती है।
नवा भाव भाग्य का घर कहा जाता है। भाग्य के सही रहने तक किसी भी भाव को सही किया जा सकता है लेकिन जब भाग्य ही शनि की उपस्थिति से पत्थर मारने लगे,भाग्य ही शनि के कारण फ़्रीज हो जाये,भाग्य के अन्दर ही शनि के कारण अगर अन्धेरा हो जाये,तो बहुत ही दिक्कत का समय माना जाता है। शनि का प्रभाव ठंडक प्रदान कर रहा हो तो उपचार सूर्य से किये जाते है,मंगल भी शनि के उपचारों में कार्य करता है.पूजा पाठ धर्म कर्म से शनि की फ़्रीजिन्ग अपनी शक्ति से काम नही करने देती है इसलिये शरीर में सूर्य मंगल की उपस्थिति बनाने के लिये उन तत्वो का प्रयोग मे लाया जरूरी होता है जो शनि के कुप्रभाव को दूर रख सके। इसके लिये मैने अपने अनुभव से शनिपीडा निवारक रस को बनाया है यह रस चवालीस जडी बूटियों के मिश्रण से बना है इसे मंगाकर आप शनि के फ़्रीजिन्ग और अन्धेरा देने वाले प्रभाव से राहत प्राप्त कर सकते है.मंगाने के लिये लिख सकते है - astrobhadauria@gmail.com

1 comment:

sareeta said...

gayan dena wala lakh hai jankari kai liya thanx.shani ghrh ko deeply study kiya gaya hai, tabhi uska {satt} nikala hai jaroor upyodi hi hogashukria guruji aisai hi alaikh post kertai rahai