मनुष्य के अन्दर एक भाव हमेशा अपने अन्दर जीवित रखना पडता है,वह भाव अपनी सुन्दरता को लेकर होता है,किसी भी उम्र का व्यक्ति अपनी सुन्दरता को कायम रखना चाहता है। सजने संवरने का कारण वैसे तो समाज मे अपने क साफ़ सुथरा दिखाने से भी होता है,लेकिन जब स्त्री पुरुष को और पुरुष को आकर्षित करने का भाव अपने मन मे लाते है तो तरह तरह की बनाव श्रंगार वाली बाते अपने अन्दर लाते है। कोई अपने को कपडों से सजाना चाहता है कोई अपने बालों से अपनी सुन्दरता को दिखाना चाहता है कोई अपने को गोरा दिखाने के लिये तरह तरह की क्रीमे और पाउडर आदि को चपेटता रहता है कोई अपने खुशबूदार बनाने के लिये तरह तरह के महक वाले तेल और परफ़्यूम आदि को प्रयोग मे लाता है। कोई अपने दांतो को खूबशूरत बनाने के लिये उन्हे चमकता हुआ दमकता हुआ दिखाना चाहता है कोई अपने नाखूनो को सजाने के लिये तरह तरह के लोशन और नेल पालिस का प्रयोग करता है अक्सर पुरुषों में नाखून सजाने की भावना भी देखी जाती है और वे उन्हे तरीके से काट कर सजावटी रूप भी देते है। सुन्दरता का रूप समझने के लिये शुक्र ग्रह की सीमा को देखा जाता है जिस व्यक्ति का शुक्र जितना अच्छा होता है वह उतने अच्छे बनाव श्रंगार से अपने को जोड कर रखता है,शुक्र के साथ राहु अगर मिलजाता है और तीसरे नवे सातवे भाव पर अच्छी राशि मे अपने प्रभाव को देता है तो पुरुष और स्त्री दोनो ही अपने अपने अनुसार सुन्दरता को कायम रखने के लिये माने जाते है। फ़िल्म मे काम करने वाले मीडिया मे अपने को प्रशारित करने वाले और कम्पनियों मे काम करने वाले लोग अपने को कृत्रिम रूप से सुन्दर दिखाने की कोशिश केवल इसलिये करते है कि उनकी सुन्दरता को देखकर साधारण व्यक्ति भी उनकी सुन्दरता की मोहन शक्ति के अन्दर आने की कोशिश करता है,अक्सर सुन्दर होने की बाते स्त्रियां अधिक अपने दिमाग मे रखती है उनके पास अगर कोई अलावा विषय बात करने का होता है तो वह अपनी सुन्दरता को बढाने वाली बाते ही करती है। यह बाते उच्च घरानो मे मिले तो ठीक है लेकिन जब यह बाते गरीब या मध्यम वर्ग के घरो में मिलती है तो बहुत ही दिक्कत देने वाली मानी जाती है। उनके पास भोजन के लिये कोई साधन बने या नही बने लेकिन ब्यूटी पार्लर मे जाने और अपनी साज सज्जा का करना बहुत जरूरी होता है। श्रंगार को भी सोलह रूप मे देखने का कारण पुराणो के अनुसार मिलता है,उसके अन्दर जब श्रंगार को सामने रखा जाता है तो हर श्रंगार मे चार श्रेणिया भी बांटी गयी है इस प्रकार से सोलह श्रंगार करने के बाद चौसठ कलाओं का होना भी जरूरी है। जब चौसंठ कलायें हो तो सोलह श्रंगार भी ठीक लगते है लेकिन बिना कला के श्रंगार करना उसी प्रकार से है जैसे किसी तारकोल की सडक पर रंगो को सजा दिया और जैसे ही रात हुयी उन रंगो का खात्मा हो जाता है।
महिलाओं के लिये जो श्रंगार सोलह प्रकार के माने गये है वे इस प्रकार से है:-
पैरों के श्रंगार
पैरो के श्रंगार मे दस उंगलियों के साथ पंजो और पंजे से ऊपर के भाग के होते है जैसे पैरों की उंगलियों के नाखूनो को सजाना उन पर नेल पालिस का लगाना विवाहित होने पर स्त्री बिछिया को पहिनती है,इस प्रकार से बिछिया पहिने जाने से पेट के रोग और सन्तान सम्बन्धी रोग जल्दी से नही हो पाते है नाडी बन्धन होने से गर्भ के समय और सन्तान के पैदा होने के बाद शरीर के अवयव अपने स्थान पर रहते है। पैरो के पंजो पर आलता लगाने का कारण भी मिलता है जिसके अन्दर पैरों की एडी को और पैरों के ऊपरी हिस्से में पंजे पर महावर लगाने का रूप भी देखा जाता है वैसे आजकल लोग मेहंदी को भी लगाने लगे है और इस सजे हुये भाग के ऊपर चांदी की पाजेब भी पहिनी जाती है पाजेब को पहिने जाने से नाभि वाली बीमारिया भी नही होती है और जो भी कदम रखा जाता है वह तरीके से रखा जाता है,अक्सर जो स्त्रियां बजने वाली पाजेब पहिनती है वे अपनी चाल को सदैव सुधार कर ही चलती है.अधिक जल्दी चलने से या अधिक धीरे चलने से उनकी चलने वाली गति को आसपास रहने वाले लोग समझते रहते है और घर के अन्दर रहने वाली स्त्री की उपस्थिति भी समझी जाती है,कहा जाता है कि घर के अन्दर अगर पाजेब पहिन कर स्त्री चलती फ़िरती रहती है तो दिन के समय चलने से लक्ष्मी का आना होता है और सूर्यास्त के समय के बाद पहिन कर चलने से धन की हानि का जाना और पुरुष वर्ग का घर मे अनैतिक कारणो की तरफ़ जाना होता है।
कमर के श्रंगार
प्राचीन जमाने से कमर मे कनकती या करधनी का पहिना जाना जरूरी होता था। महिला और पुरुष दोनो ही कमर मे पहले काले धागे की और बाद मे चांदी की करधनी पहिना करते थे,इस पहिनावे से नाभि के नीचे की बडी संधि होने से और बार बार झुककर और चलते फ़िरते काम करते हुये रीढ की हड्डी पर जो जोर पडता था वह सुषुम्ना नाडी को साधने के लिये बहुत ही उत्तम तरीका हुआ करता था। इस भाग पर करधनी के बन्धे होने से मोटापा भी नही बढता था और पुट्ठो पर मांस भी नही चढता था,जो भी खाया पिया जाता था वह शरीर की शक्ति बनाने के काम आता था किसी प्रकार का खाया पिया पुट्ठो पर जाकर इकट्ठा नही होता था। दोनो गुर्दा भी इस करधनी से सधे रहते थे और मूत्राशय या पकाशय मे अलावा भोजन पानी का आना या जो पदार्थ नही पचे है उनका अक्समात प्रवेश करना भी नही होता था जो गुर्दे की बीमारियों से और पेशाब वाली बीमारियों से बचाने के अलावा मासिक धर्म और प्रजनन सम्बन्धी बीमारियों को भी नही होने देने के लिये माना जाता था,रीढ की हड्डी मे मजबूती बनी रहती थी,कारण करधनी के पहिने जाने से रीढ की हड्डी को ऊपरी भाग में सधे रहने के लिये बल मिलता रहता था.और अक्समात मिलने वाले शरीर के झटके आदि में करधनी ही रीढ की हड्डी की सुरक्षा करती थी।
हाथों के श्रंगार
हाथों स्त्री अंगूठी धारण करना नाखूनो को सजा कर रखना कलाई मे चूडिया पहिनना बाजुओं मे बाजूबन्द आदि का धारण करना अपने अपने प्रकार से बहुत ही लाभदायक माने जाते थे। रैकी चिकित्सा ने साबित कर दिया है कि उंगलियों के जोड जो हथेली से जुडे रहते है शरीर के नाभि के ऊपर के भागों की सभी तंत्रिकाओं को साधने के लिये अपनी अहम भूमिका को रखते है। तर्जनी का जोड दिमाग के लिये और मानसिक सम्बन्धो के लिये मध्यमा यानी बीच वाली उंगली का जोड शरीर की कार्य क्षमता का विस्तार करने के लिये और किसी भी काम को सोच समझ कर करने के लिये रहने वाले स्थान और आने जाने के साधनो का समुचित रूप से प्रयोग करने के लिये अपने प्रभाव को रखता है उसी प्रकार से अनामिका का जोड दिमागी रूप से पैदा होने वाले अहम को कन्ट्रोल करने के लिये सन्तान पैदा करने के कारकों में अपने बल को देने के लिये पुरुषों में वीर्य और स्त्री में रज की उत्पत्ति में नियंत्रण रखने के लिये अपनी क्षमता को रखने वाला माना गया है,उसी प्रकार से कनिष्ठा यानी सबसे छोटी उंगली का जोड बोल चाल में सामजस्यता को रखने के लिये दूसरे लोगों के साथ सम्बन्ध बनने और उन सम्बन्धो को हमेशा सुधार कर चलने के लिये दिमागी रूप से किसी भी बात का बेलेन्स बैठाने के लिये शरीर के स्नायु तंत्र को संचालित करने के लिये अपने प्रभाव को देने वाला है। इसी प्रकार से अंगूठे को भी इसी गणना में लिया गया है अंगूठे के जोड पर शरीर की ताकत का प्रभाव प्रत्यक्ष रूप से देखा जा सकता है जिसका यह भाग गुदगुदा और कम रेखाओं से युक्त होता है वह शरीर बलवान होता है और किसी भी प्रकार के स्त्री पुरुष सम्बन्धो में सुख देने वाला माना जाता है जिन लोगों का यह भाग सूखा होता है उन लोगों का गृहस्थ जीवन अनबन और बेकार के झगडों के लिये भी जाना जा सकता है। इस भाग की उन्नति के लिये शुक्र मुद्रिका जो केवल रात के समय पहिनी जाती है का धारण करना माना जाता था। कलाई पर चूडियों का प्रयोग सुहाग की रक्षा के लिये और दाहिने हाथ की कलाई पर पुरुषों के लिये कलावा यानी धागा बांधा जाना अपने परिवार के प्रति समझी जाने वाली जिम्मेदारियों के लिये पूर्णता को देने के लिये माना जाता है,जिसे आज भी किसी धार्मिक प्रयोजन में पुरुष वर्ग को पहिने हुए देखा जा सकता है,इसके अलावा चूडियों का पहिना जाना भी एक प्रकार से अपने गृहस्थ जीवन को सम्भाल कर चलने वाला माना जाता है कांच की चूडियां इसीलिये पहिनी जाती थी कि जैसे स्त्री अपनी कांच की चूडियों की रक्षा कर सकती है वह अपने वैवाहिक जीवन को भी सुधार कर चल सकती है,अगर स्त्री अपनी चूडियों को बार बार बदलने की आदी है तो वह अपने गृहस्थ जीवन को कोई मायना नही रखती है अथवा जिस स्त्री की चूडिया बार बार टूट जाती है तो वह अपने गृहस्थ जीवन के प्रति जरा भी ध्यान देने वाली नही है,यह चूडियां ही शरीर की तीनो नाडी यानी वात पित्त और कफ़ को सम्भाल कर शरीर मे प्रेषित करने के लिये मानी जाती है और जितनी टाइट चूडियां स्त्रियां पहिनती है उतनी ही वे शरीर से भी स्वस्थ रहती है और बीमार भी कम होती है जो ढीली ढाली और जल्दी से उतरने वाली चूडिया पहिनती है वे उतनी ही बीमार भी रहती है और कफ़ की मात्रा अधिक बढाने के बाद शरीर मे ह्रदय रोग की बढने की आशंका सांस वाली बीमारी का होना भी जल्दी पाया जाता है। मेहनती लगाने से भी अक्सर हाथो की सुन्दरता तो बढ़ती है लेकिन मेहन्दी लगाकर कभी भी धार्मिक कार्यों में शामिल नहीं हुआ जाता है.
बाजू बंद और बाजुओं की सुन्दरता
अक्सर पुरुष वर्ग को बाजू में धागा ताबीज गडा आदि बांधे देखा जा सकता है,स्त्रिया बाजू बंद को प्रयोग करती है इस जगह का सीधा सम्बन्ध कलेजे से रहता है दोनों हाथो की बाजुओं की संपर्क शक्ति कलेजे से जुडी हुयी है किसी भारी काम को करते वक्त या किसी प्रकार के भारी काम से अचानक फिसलने पर हाथो से शरीर को साधने पर जो असर कलेजे पर पड़ता है उससे रक्षा के लिए बाजू बंद का पहिनना माना जाता है इसके अलावा जवानी के दिनों में किसी भी प्रकार से स्त्री पुरुष के संबंधो में शरीर की धातुओं का कम होना भी होता है और धातुओं की कमी से सर में दर्द और शरीर में कमजोरी भी मिलाती है इस प्रकार से स्त्री पुरुष के संबंधो में तनाव बन जाता है इस तनाव के कारण कभी कभी गृहस्थी टूट भी जाती है,बाजू बंद के बांधे रहने से दिमागी संतुलन और अच्छा बुरा सुनाने और समझाने की शक्ति भी बनी रहती है अचानक किये जाने वाले फैसले भी कभी गलत नहीं होते है.सर्दी के दिनों के शुरू में बाजू में अनंत का बांधा जाना भी ठण्ड से कलेजे की रक्षा करने का उपक्रम माना जाता है.
गले और छाती की सुन्दरता
प्राचीन काल से ही गले में माला पहिनना हार पहिनना स्त्रियों के लिए मंगल सूत्र का धारण करना पेंडल पहिना आदि बाते चलाती आ रही है,गला ही शरीर और दिमाग को जोड़ने का मुख्य रास्ता है,दिमाग जब इशारा करता है तब शरीर के अंग काम करते है,अक्सर किसी को अपनी तरफ से अच्छा व्यवहार करने के लिए और उसके लिए मान मर्यादा को बढाने के लिए हार पहिनाने की प्रथा प्राचीन काल से ही चली आ रही है.जीवन भर के लिए रिश्ता बनाने के लिए भी हार पहिनाए जाते थे जो आज के जमाने में केवल वर वधु को शादी के समय पहिनाए तो जाते है लेकिन उनकी मर्यादा उसी प्रकार से नहीं निभाई जाती है जैसे आज के जमाने में नेताओं को माला पहिनाकर बाद में गालिया दी जाती है.गले का सम्बन्ध ह्रदय से रखने के लिए माला को पहिना जाता है जो बात गले से कही जाती है वह ह्रदय से निकलती है,और माला के पहिने जाने से शरीर की शक्ति ह्रदय के संपर्क और मुहं से कहने वाली आवाज का विशेष प्रभाव माला महिनाने से पड़ता है,देवताओं को भी माला पहिने देखा जाता है,वीभत्स देवता नर मुंडो की माला को धारण करते है जबकि सौम्य देवता फूलो के हार और रत्नों की माला को पहिने देखे जाते है.प्राचीन काल में पशुओं को भी माला पहिनाई जाती थी इससे उनकी सुन्दरता बढ़ जाती थी और नजर दोष आदि नहीं लगता था.स्त्रिया गले में मंगल सूत्र को धारण करती है इस धागे का महत्व तब और बढ़ जाता है जब कोइ उनके शील पर आहार करता है उस समय अगर सच्चे मन से मंगल सूत्र को अपने जीवन साथी की आयु और गरिमा को ध्यान में रख कर धारण किया गया है तो किसी प्रकार का शील हरण नहीं हो सकता है कोइ न कोइ सहायता समय पर मिल जाती है वह सहायता ईश्वरीय हो या मानवीय हो.इसी प्रकार से जब व्यक्ति रुद्राक्ष आदि की माला को धारण करता है और शुद्ध तथा सात्विक विचार से अपने जीवन को लेकर चलता है तो उसके पास बेकार के कारण पैदा नहीं हो पाते है.आदि कारण से गले के श्रृंगार किये जाते है.
माथे के श्रृंगार
आज के जमाने में केवल महिलाओं को बिंदी लगाए देखा जा सकता है,यह बात केवल फैसन से जुडी रह गयी है,जबकि महिलाओं के बिंदी को धारण करने का कारण था की उनकी शादी के बाद उनका आज्ञा चक्र खुल चुका है और वे दूर की सोचने वाली और समझने वाली है.बिंदी को देखकर स्त्री की मोहिनी शक्ति भी बहुत अधिक बढ़ जाती है किसी खाली माथे वाली स्त्री को देखा जाए और बिंदी वाले माथे वाली स्त्री को देखा जाए बिंदी के अनुसार स्त्री की मोहिनी शक्ति निखर कर दिखाई देने लगती है.पुरुष भी मोहन मारण वशीकरण और उच्चाटन के टीके प्रयोग करते है,लाल चन्दन का टीका किसी भी आफत से बचने के लिए और अपने दिमाग को कंट्रोल करने के लिए लगाया जाता है सफ़ेद चन्दन का टीका गुस्सा को शांत करने वाला होता है राख का टीका और उस पर लाल पीली बिंदी लगाना किसी देवता की सेवा में समर्पित रहना माना जाता है,दिमाग में केवल धार्मिकता को रखना माना जाता है,माथे पर तीन रेखाए आड़ी और त्रिपुंड बनाकर उसके बीच में लाल पीली रेखाए शिवजी की भक्ति के लिए मानी जाती है लाल लंबा टीका सिन्दूर का हनुमान जी की भक्ति और लाल देवताओं की भक्ति के लिए माना जाता है गोल लाल बिंदी देवी उपासक भी लगाते है.वनस्पतियों का टीका भी लगाया जाता है जो आयु को बढाने वाला और बुद्धि को शांत करने वाला होता है.
बालो का श्रृंगार
महिलाए बाल बढ़ाकर बालो में गहने और जुदा आदि सजाती है पुराने जमाने में चुटीला और जूडा बांधने का रिवाज था,बालो की चोटी जितनी लम्बी होती थी उतना ही सुन्दर महिला को माना जा सकता था,आज के जमाने में कंघी करने की भी फुरसत महिलाओं में नहीं है.समयाभाव के कारण जो महिआल्ये बाला बढ़ा भी लेती है उनके सर में ढेरो जुएँ देखने को भी मिलाती है और काम करते वक्त उनका हाथ लगातार बालो में ही लगा रहता है.गजरा सजाना बालो में रिबन आदि गूंथना भी भी बालो की सजावट का रूप माना जा सकता है.
महिलाओं के लिये जो श्रंगार सोलह प्रकार के माने गये है वे इस प्रकार से है:-
पैरों के श्रंगार
पैरो के श्रंगार मे दस उंगलियों के साथ पंजो और पंजे से ऊपर के भाग के होते है जैसे पैरों की उंगलियों के नाखूनो को सजाना उन पर नेल पालिस का लगाना विवाहित होने पर स्त्री बिछिया को पहिनती है,इस प्रकार से बिछिया पहिने जाने से पेट के रोग और सन्तान सम्बन्धी रोग जल्दी से नही हो पाते है नाडी बन्धन होने से गर्भ के समय और सन्तान के पैदा होने के बाद शरीर के अवयव अपने स्थान पर रहते है। पैरो के पंजो पर आलता लगाने का कारण भी मिलता है जिसके अन्दर पैरों की एडी को और पैरों के ऊपरी हिस्से में पंजे पर महावर लगाने का रूप भी देखा जाता है वैसे आजकल लोग मेहंदी को भी लगाने लगे है और इस सजे हुये भाग के ऊपर चांदी की पाजेब भी पहिनी जाती है पाजेब को पहिने जाने से नाभि वाली बीमारिया भी नही होती है और जो भी कदम रखा जाता है वह तरीके से रखा जाता है,अक्सर जो स्त्रियां बजने वाली पाजेब पहिनती है वे अपनी चाल को सदैव सुधार कर ही चलती है.अधिक जल्दी चलने से या अधिक धीरे चलने से उनकी चलने वाली गति को आसपास रहने वाले लोग समझते रहते है और घर के अन्दर रहने वाली स्त्री की उपस्थिति भी समझी जाती है,कहा जाता है कि घर के अन्दर अगर पाजेब पहिन कर स्त्री चलती फ़िरती रहती है तो दिन के समय चलने से लक्ष्मी का आना होता है और सूर्यास्त के समय के बाद पहिन कर चलने से धन की हानि का जाना और पुरुष वर्ग का घर मे अनैतिक कारणो की तरफ़ जाना होता है।
कमर के श्रंगार
प्राचीन जमाने से कमर मे कनकती या करधनी का पहिना जाना जरूरी होता था। महिला और पुरुष दोनो ही कमर मे पहले काले धागे की और बाद मे चांदी की करधनी पहिना करते थे,इस पहिनावे से नाभि के नीचे की बडी संधि होने से और बार बार झुककर और चलते फ़िरते काम करते हुये रीढ की हड्डी पर जो जोर पडता था वह सुषुम्ना नाडी को साधने के लिये बहुत ही उत्तम तरीका हुआ करता था। इस भाग पर करधनी के बन्धे होने से मोटापा भी नही बढता था और पुट्ठो पर मांस भी नही चढता था,जो भी खाया पिया जाता था वह शरीर की शक्ति बनाने के काम आता था किसी प्रकार का खाया पिया पुट्ठो पर जाकर इकट्ठा नही होता था। दोनो गुर्दा भी इस करधनी से सधे रहते थे और मूत्राशय या पकाशय मे अलावा भोजन पानी का आना या जो पदार्थ नही पचे है उनका अक्समात प्रवेश करना भी नही होता था जो गुर्दे की बीमारियों से और पेशाब वाली बीमारियों से बचाने के अलावा मासिक धर्म और प्रजनन सम्बन्धी बीमारियों को भी नही होने देने के लिये माना जाता था,रीढ की हड्डी मे मजबूती बनी रहती थी,कारण करधनी के पहिने जाने से रीढ की हड्डी को ऊपरी भाग में सधे रहने के लिये बल मिलता रहता था.और अक्समात मिलने वाले शरीर के झटके आदि में करधनी ही रीढ की हड्डी की सुरक्षा करती थी।
हाथों के श्रंगार
हाथों स्त्री अंगूठी धारण करना नाखूनो को सजा कर रखना कलाई मे चूडिया पहिनना बाजुओं मे बाजूबन्द आदि का धारण करना अपने अपने प्रकार से बहुत ही लाभदायक माने जाते थे। रैकी चिकित्सा ने साबित कर दिया है कि उंगलियों के जोड जो हथेली से जुडे रहते है शरीर के नाभि के ऊपर के भागों की सभी तंत्रिकाओं को साधने के लिये अपनी अहम भूमिका को रखते है। तर्जनी का जोड दिमाग के लिये और मानसिक सम्बन्धो के लिये मध्यमा यानी बीच वाली उंगली का जोड शरीर की कार्य क्षमता का विस्तार करने के लिये और किसी भी काम को सोच समझ कर करने के लिये रहने वाले स्थान और आने जाने के साधनो का समुचित रूप से प्रयोग करने के लिये अपने प्रभाव को रखता है उसी प्रकार से अनामिका का जोड दिमागी रूप से पैदा होने वाले अहम को कन्ट्रोल करने के लिये सन्तान पैदा करने के कारकों में अपने बल को देने के लिये पुरुषों में वीर्य और स्त्री में रज की उत्पत्ति में नियंत्रण रखने के लिये अपनी क्षमता को रखने वाला माना गया है,उसी प्रकार से कनिष्ठा यानी सबसे छोटी उंगली का जोड बोल चाल में सामजस्यता को रखने के लिये दूसरे लोगों के साथ सम्बन्ध बनने और उन सम्बन्धो को हमेशा सुधार कर चलने के लिये दिमागी रूप से किसी भी बात का बेलेन्स बैठाने के लिये शरीर के स्नायु तंत्र को संचालित करने के लिये अपने प्रभाव को देने वाला है। इसी प्रकार से अंगूठे को भी इसी गणना में लिया गया है अंगूठे के जोड पर शरीर की ताकत का प्रभाव प्रत्यक्ष रूप से देखा जा सकता है जिसका यह भाग गुदगुदा और कम रेखाओं से युक्त होता है वह शरीर बलवान होता है और किसी भी प्रकार के स्त्री पुरुष सम्बन्धो में सुख देने वाला माना जाता है जिन लोगों का यह भाग सूखा होता है उन लोगों का गृहस्थ जीवन अनबन और बेकार के झगडों के लिये भी जाना जा सकता है। इस भाग की उन्नति के लिये शुक्र मुद्रिका जो केवल रात के समय पहिनी जाती है का धारण करना माना जाता था। कलाई पर चूडियों का प्रयोग सुहाग की रक्षा के लिये और दाहिने हाथ की कलाई पर पुरुषों के लिये कलावा यानी धागा बांधा जाना अपने परिवार के प्रति समझी जाने वाली जिम्मेदारियों के लिये पूर्णता को देने के लिये माना जाता है,जिसे आज भी किसी धार्मिक प्रयोजन में पुरुष वर्ग को पहिने हुए देखा जा सकता है,इसके अलावा चूडियों का पहिना जाना भी एक प्रकार से अपने गृहस्थ जीवन को सम्भाल कर चलने वाला माना जाता है कांच की चूडियां इसीलिये पहिनी जाती थी कि जैसे स्त्री अपनी कांच की चूडियों की रक्षा कर सकती है वह अपने वैवाहिक जीवन को भी सुधार कर चल सकती है,अगर स्त्री अपनी चूडियों को बार बार बदलने की आदी है तो वह अपने गृहस्थ जीवन को कोई मायना नही रखती है अथवा जिस स्त्री की चूडिया बार बार टूट जाती है तो वह अपने गृहस्थ जीवन के प्रति जरा भी ध्यान देने वाली नही है,यह चूडियां ही शरीर की तीनो नाडी यानी वात पित्त और कफ़ को सम्भाल कर शरीर मे प्रेषित करने के लिये मानी जाती है और जितनी टाइट चूडियां स्त्रियां पहिनती है उतनी ही वे शरीर से भी स्वस्थ रहती है और बीमार भी कम होती है जो ढीली ढाली और जल्दी से उतरने वाली चूडिया पहिनती है वे उतनी ही बीमार भी रहती है और कफ़ की मात्रा अधिक बढाने के बाद शरीर मे ह्रदय रोग की बढने की आशंका सांस वाली बीमारी का होना भी जल्दी पाया जाता है। मेहनती लगाने से भी अक्सर हाथो की सुन्दरता तो बढ़ती है लेकिन मेहन्दी लगाकर कभी भी धार्मिक कार्यों में शामिल नहीं हुआ जाता है.
बाजू बंद और बाजुओं की सुन्दरता
अक्सर पुरुष वर्ग को बाजू में धागा ताबीज गडा आदि बांधे देखा जा सकता है,स्त्रिया बाजू बंद को प्रयोग करती है इस जगह का सीधा सम्बन्ध कलेजे से रहता है दोनों हाथो की बाजुओं की संपर्क शक्ति कलेजे से जुडी हुयी है किसी भारी काम को करते वक्त या किसी प्रकार के भारी काम से अचानक फिसलने पर हाथो से शरीर को साधने पर जो असर कलेजे पर पड़ता है उससे रक्षा के लिए बाजू बंद का पहिनना माना जाता है इसके अलावा जवानी के दिनों में किसी भी प्रकार से स्त्री पुरुष के संबंधो में शरीर की धातुओं का कम होना भी होता है और धातुओं की कमी से सर में दर्द और शरीर में कमजोरी भी मिलाती है इस प्रकार से स्त्री पुरुष के संबंधो में तनाव बन जाता है इस तनाव के कारण कभी कभी गृहस्थी टूट भी जाती है,बाजू बंद के बांधे रहने से दिमागी संतुलन और अच्छा बुरा सुनाने और समझाने की शक्ति भी बनी रहती है अचानक किये जाने वाले फैसले भी कभी गलत नहीं होते है.सर्दी के दिनों के शुरू में बाजू में अनंत का बांधा जाना भी ठण्ड से कलेजे की रक्षा करने का उपक्रम माना जाता है.
गले और छाती की सुन्दरता
प्राचीन काल से ही गले में माला पहिनना हार पहिनना स्त्रियों के लिए मंगल सूत्र का धारण करना पेंडल पहिना आदि बाते चलाती आ रही है,गला ही शरीर और दिमाग को जोड़ने का मुख्य रास्ता है,दिमाग जब इशारा करता है तब शरीर के अंग काम करते है,अक्सर किसी को अपनी तरफ से अच्छा व्यवहार करने के लिए और उसके लिए मान मर्यादा को बढाने के लिए हार पहिनाने की प्रथा प्राचीन काल से ही चली आ रही है.जीवन भर के लिए रिश्ता बनाने के लिए भी हार पहिनाए जाते थे जो आज के जमाने में केवल वर वधु को शादी के समय पहिनाए तो जाते है लेकिन उनकी मर्यादा उसी प्रकार से नहीं निभाई जाती है जैसे आज के जमाने में नेताओं को माला पहिनाकर बाद में गालिया दी जाती है.गले का सम्बन्ध ह्रदय से रखने के लिए माला को पहिना जाता है जो बात गले से कही जाती है वह ह्रदय से निकलती है,और माला के पहिने जाने से शरीर की शक्ति ह्रदय के संपर्क और मुहं से कहने वाली आवाज का विशेष प्रभाव माला महिनाने से पड़ता है,देवताओं को भी माला पहिने देखा जाता है,वीभत्स देवता नर मुंडो की माला को धारण करते है जबकि सौम्य देवता फूलो के हार और रत्नों की माला को पहिने देखे जाते है.प्राचीन काल में पशुओं को भी माला पहिनाई जाती थी इससे उनकी सुन्दरता बढ़ जाती थी और नजर दोष आदि नहीं लगता था.स्त्रिया गले में मंगल सूत्र को धारण करती है इस धागे का महत्व तब और बढ़ जाता है जब कोइ उनके शील पर आहार करता है उस समय अगर सच्चे मन से मंगल सूत्र को अपने जीवन साथी की आयु और गरिमा को ध्यान में रख कर धारण किया गया है तो किसी प्रकार का शील हरण नहीं हो सकता है कोइ न कोइ सहायता समय पर मिल जाती है वह सहायता ईश्वरीय हो या मानवीय हो.इसी प्रकार से जब व्यक्ति रुद्राक्ष आदि की माला को धारण करता है और शुद्ध तथा सात्विक विचार से अपने जीवन को लेकर चलता है तो उसके पास बेकार के कारण पैदा नहीं हो पाते है.आदि कारण से गले के श्रृंगार किये जाते है.
माथे के श्रृंगार
आज के जमाने में केवल महिलाओं को बिंदी लगाए देखा जा सकता है,यह बात केवल फैसन से जुडी रह गयी है,जबकि महिलाओं के बिंदी को धारण करने का कारण था की उनकी शादी के बाद उनका आज्ञा चक्र खुल चुका है और वे दूर की सोचने वाली और समझने वाली है.बिंदी को देखकर स्त्री की मोहिनी शक्ति भी बहुत अधिक बढ़ जाती है किसी खाली माथे वाली स्त्री को देखा जाए और बिंदी वाले माथे वाली स्त्री को देखा जाए बिंदी के अनुसार स्त्री की मोहिनी शक्ति निखर कर दिखाई देने लगती है.पुरुष भी मोहन मारण वशीकरण और उच्चाटन के टीके प्रयोग करते है,लाल चन्दन का टीका किसी भी आफत से बचने के लिए और अपने दिमाग को कंट्रोल करने के लिए लगाया जाता है सफ़ेद चन्दन का टीका गुस्सा को शांत करने वाला होता है राख का टीका और उस पर लाल पीली बिंदी लगाना किसी देवता की सेवा में समर्पित रहना माना जाता है,दिमाग में केवल धार्मिकता को रखना माना जाता है,माथे पर तीन रेखाए आड़ी और त्रिपुंड बनाकर उसके बीच में लाल पीली रेखाए शिवजी की भक्ति के लिए मानी जाती है लाल लंबा टीका सिन्दूर का हनुमान जी की भक्ति और लाल देवताओं की भक्ति के लिए माना जाता है गोल लाल बिंदी देवी उपासक भी लगाते है.वनस्पतियों का टीका भी लगाया जाता है जो आयु को बढाने वाला और बुद्धि को शांत करने वाला होता है.
बालो का श्रृंगार
महिलाए बाल बढ़ाकर बालो में गहने और जुदा आदि सजाती है पुराने जमाने में चुटीला और जूडा बांधने का रिवाज था,बालो की चोटी जितनी लम्बी होती थी उतना ही सुन्दर महिला को माना जा सकता था,आज के जमाने में कंघी करने की भी फुरसत महिलाओं में नहीं है.समयाभाव के कारण जो महिआल्ये बाला बढ़ा भी लेती है उनके सर में ढेरो जुएँ देखने को भी मिलाती है और काम करते वक्त उनका हाथ लगातार बालो में ही लगा रहता है.गजरा सजाना बालो में रिबन आदि गूंथना भी भी बालो की सजावट का रूप माना जा सकता है.
No comments:
Post a Comment