शब्द शव पर छोटी इ की मात्रा लगाने के बाद शिव शब्द का निर्माण हुआ है। शमशान की शक्ति के रूप को समझने मे प्राचीन समय से ही लोग भ्रमित होते आये है,शिव का नाम भगवान शंकर के नाम से भी जोडा जाता है। और इस शब्द को ओमकार रूप में भी समझा जाता है। लेकिन हकीकत क्या है इस विषय पर कभी किसी ने अपनी राय प्रकट नही की है। शिव शब्द में शव पर सवार शक्ति का चित्रण चित्रकारों ने जरूर किया है जैसे शंकर जी शव अवस्था मे है और माँ काली शव पर पैर रखकर खडी है। यह चित्रण किसी युद्ध मैदान के प्रति भी अपनी शंका को जाहिर करता है लेकिन हकीकत मे कुछ और ही होना चाहिये,जिसे यह क्षुद्र जीव अपनी बुद्धि से समझने मे हमेशा से दूर रहा है। सबसे पहले शिव रूप को समझना जरूरी है,जब तक शिव स्वरूप को नही समझा जाता है शिव की महिमा शमशान शक्ति के रूप मे नही समझी जा सकती है। शिव जी का आसन बाघ की खाल है,बाघ जो हिंसक पशु है और जीवाहार से ही उसका उदर पोषण है वह घास नही खा सकता है इसलिये जो भी मारक शक्तियां है और जीवो में भय पैदा करने वाली है उनके अहम को मारने के बाद उस मरे हुये अहम के प्रतिरूप में शिव आसन का प्रयोग किया गया है,बिना डर के आसन पर सवार,कारण शमशान में जाने के बाद कोई भी बडी से बडी शक्ति वाला व्यक्ति अपने अहम को प्रयोग को इसलिये नही कर सकता है क्योंकि अहम रूपी उसका मद शिव स्थान में जाने से समाप्त हो चुका है,रुद्राक्ष की माला शिवजी के दाहिने हाथ में है,रुद्राक्ष का रूप भी अन्य वनस्पतियों से भिन्न है,इसके बीज काफ़ी समय तक सुरक्षित है,अन्य बीजो की तरह जल्दी से अन्कुरित नही होते है और इन बीजो की माला को प्रयोग करने के बाद दिमाग एक जगह स्थापित हो जाता है,मंत्र साधना के लिये रुद्राक्ष की माला को प्रयोग में लाया जाता है,रुद्र का अक्ष यानी मनुष्य का मन एक स्थान पर स्थापित हो जाना,दिमाग का कहीं भटकना नही,शव की तरह से मुद्रा का स्थापित करना। विचारों के स्थाई करण के लिये रुद्राक्ष की माला का प्रयोग किया जाता है। गले मे लिपटे हुये सांप अहम के प्रतीक माने जाते है,एक शिव ही अहम को आभूषण की तरह से धारण करने के बाद दूर से भयानक लेकिन मुक्ति की साधना मे लीन समझने के लिये जाने जा सकते है। त्रिशूल शिव का शस्त्र है जिसके अन्दर तीन तरह की शक्तियां निवास करती है,जो मांत्रिक शक्तियों का प्रतीक है और मारण मोहन वशीकरण जैसे तांत्रिक कारणों को आभाषित करती है,त्रिशूल में बंधा डमरू जो वेद वाक्यों की महिमा को रुक रुक कर विद विद शब्द की उत्पत्ति करता है। सिर के ऊपर जटा से बहती हुई गंगा की धारा जो धर्म को निरंतर प्रवाहित करने वाले कारक के रूप मे स्थापित है,और निरंतर गति को प्राप्त है। माथे पर स्थापित चन्द्रमा जो खुद तो समय का कारक है लेकिन शिव स्थान पर जाकर समय को भूल गया है। माथे पर नाक के ऊपर स्थापित तीसरी आंख का निशान यह सूचना देता है कि किसी भी कारक को जो ज्ञान की सीमा को अपने क्षेत्र में बांध कर उसके प्रति अहम की भावना को प्रदर्शित करता है और जैसे ही यह आंख अपनी सीमा में जाकर खुलती है उस अहम को समाप्त कर राख कर देने मे समर्थ है।
जब अहम की सीमा समाप्त हो जाती है तो व्यक्ति शिव स्वरूप को प्राप्त करता है यानी अपने को "मै कुछ नही" समझने लगता है यह भाव आते ही व्यक्ति के अन्तर्मन मे रिक्तता का भाव भर जाता है,यह वैज्ञानिक नियम भी है और प्रकृति का नियम भी है,कि जिस स्थान पर रिक्त भाव पैदा हो जाता है वहां प्रकृति अपने बल से उस भाव को स्थान को भर देती है। और उस भाव का रूप अपने अपने समय पर अपने अपने बल के अनुसार अपनी शक्ति को प्रदर्शित करने लगता है। किसी भी संत को देख सकते है किसी भी महात्मा को देख सकते है वह जैसे ही अपने को रिक्त भाव मे ले गया उसके पास शक्तियां अपने आप आकर अपना बल देने लग जाती है,जैसे हमारे प्रसिद्ध संत साईं बाबा को ही देख लीजिये उनके अन्दर इतनी रिक्तता थी कि वे अपने को कुछ भी नही समझते थे और उनके पास कितनी शक्ति थी इसका अन्दाज नही लगाया जा सकता है।कई बार ऐसा भी देखा जाता है कि लोग अपने नाम मे शिव का नाम जोड लेते है,और उसका प्रभाव यह पडता है कि वे अपने जन्म स्थान से औकात से और आने वाली पीढियों से भी अपनी मुक्ति को प्राप्त कर लेते है। इसके उदाहरण के लिये हम आपको भारत के कई गांवो की तरफ़ ले जाते है जिनका नाम शिव से जुडा है,और उन गांवो में जो भी शिव नाम से जुडे व्यक्ति थे वे अपने घर परिवार यहां तक की पीढी को भी साफ़ करके निकल गये,अगर उनकी कोई औलाद है भी तो वह जगह जगह भटक रही है या अपनी पीढी को समाप्त कर रही है।
शिवाड गांव राजस्थान में करौली जिला में है इस गांव मे शिवजी की झांकी को इस प्रकार सजाया जाता है जैसे कैलाश पर्वत को इसी गांव मे ही उठाकर लाया गया हो,तीन पीढियों से इस गांव के बारे मे जब समझा गया है तो यह देखने मे आया है कि जिस नाम के पहले शिव लगा है वह नाम वाला अपने जीवन काल में ही गांव को छोड कर चला गया और उसकी आने वाली पीढी का भी कोई भरोसा नही है कि वह वापस अपने गांव में आकर बसे। इस बात को वह लोग भी अच्छी तरह से समझ सकते है जो अपने नाम के शुरु मे शिव या अपने नाम को ही शिव के नाम से जोड कर रखते है। जब शिव शमशान का देवता है और शव में शक्ति की कल्पना करता है तो वह अपने अन्दर अहम को कैसे स्थापित करने की आज्ञा दे सकता है,जब नाम को शिव से रखा जाता है तो वह व्यक्ति संसार के कार्यों में अपने को जोड कर चलेगा जब संसार के कार्य जुडेंगे तो किसी न किसी प्रकार की अहम की भावना दिमाग मे जरूर चलेगी जैसे मेरा नाम "शिवकुमार",जब मेरा नाम का अहम पैदा हो गया है तो शिव स्थापित नही रहने देगा। इसी प्रकार से यह भी देखा गया है कि इस नाम के व्यक्ति के अन्दर अगर यह भाव आ गया कि वह सन्तान के मामले मे अधिक उन्नत है तो सन्तान का विनाश हो गया है या सन्तान बरबाद होकर इधर उधर हो गयी है,इसके अलावा भी जब व्यक्ति को इस नाम को रखने के बाद यह अहम हो गया कि उसके पास सम्पत्ति है साधन है आश्रम है तो वह भी अपने अपने समय मे विलीन हो गया है।
हमारे देखते देखते जिस गांव में मै पैदा हुआ हूँ उस गांव का नाम पहले कोर्थ था सभी लोग हिलमिलकर इस गांव मे रहते थे। अचानक समय आया और रोडवेज में ड्राइवर की नौकरी करने वाले शिवधार सिंह ने अपने नाम के अनुसार गांव का नाम शिवनगर रख दिया। जहां जहां भी पानी के कुंये थे सभी कुओं पर डोर बाल्टी आदि का इन्तजाम करवा दिया,कुओं पर घिरनी लगवा दीं और जनता के लिये जितने भी साधन थे तैयार करवा कर अपनी तरफ़ से तो भला कर दिया। चूंकि नाम शिवधार सिंह था,अपने परिवार की स्थिति के कारण गांव की जमीन घर आदि छोड कर गांव का नाम शिव से रखने के बाद पलायन करना पडा और आज बाह में अपने घर को बनाकर रह रहे है। जब तक गांव का नाम शिवनगर नही था,मेरा परिवार भी अच्छी तरह से फ़ल फ़ूल रहा था,लेकिन शिवनगर का नाम बनते ही हमारा परिवार भी दूर दूर जाकर बिखर गया। मेरे पिताजी का नाम भी शिवराम सिंह था,इसके बाद मेरे चाचाजी का नाम भी शिवपाल सिंह था गांव का नाम पलटते ही उनके लडके भी जाकर लखनऊ मे बस गये गांव मे जब तक चाची जिन्दा है तभी तक गांव मे उनकी स्थिति है,इसके बाद कुछ भी नही है। दूसरे चाचा का नाम शिवबहादुर सिंह था अच्छी नौकरी सेल्स टैक्स में भी वे निसंतान होकर ही चले गये। एक गांव के ही दूर के ताऊ लगते थे नाम था शिवदास सिंह उनकी सन्तान भी अपने अपने अनुसार पलायन कर गयी,अन्यथा जब तक गांव का नाम शिवनगर नही रखा गया था उनका गांव मे बहुत ही सम्मान था। एक ताऊ ही गांव के अनुसार लगा करते थे,नाम था शिवपल्लटन सिंह उन्होने बहुत अच्छा घर बनाया दो लडके और एक लडकी के साथ निवास करते थे,आज उनके घर को किसी दूसरे ने खरीदा है और उनका परिवार भी गांव से बाहर जाकर किसी न किसी प्रकार की संकट से घिरा पडा है। कितने ही शिव से शुरु होने वाले नामो के व्यक्ति थे और आज भी जो लोग शिव से शुरु होने वाला नाम रख रहे है वे किसी प्रकार से भी गांव मे अपनी स्थिति को नही बना पा रहे है। शिवरतन सिंह के सन्तान के नाम पर केवल लडकी हुयी और वे भी दो दो शादिया करने के बाद गांव से निकलने के लिये तैयार है,शिवभान सिंह के भी कोई सन्तान नही हुयी। शिवसिंह अपनी ससुराल मे जाकर बस गये उनकी संतान भी किसी प्रकार से तरक्की नही कर पा रही है। एक शिवपाल सिंह और थे उनकी भी संतान ने कोई तरक्की नही कर पायी और गांव से बाहर ही रहने को मजबूर है। शिवकरण सिंह के भी कोई औकात नही रही। जब सभी शिव नाम से शुरु होने वाले लोग शिवनगर नामक गांव से या शिवाड नामक गांव से जुड कर अपनी औकात को नही बना पाये तो यह मानना जरूरी है कि शिव स्थान पर शिव के नाम से अहम रखने वाला व्यक्ति अपनी औकात को नही बना सकता है। कारण आपको समझ मे आ ही गया होगा कि शिव के शव को सम्भालने वाली काली है और उसका कार्य मोक्ष को देना है।
जब अहम की सीमा समाप्त हो जाती है तो व्यक्ति शिव स्वरूप को प्राप्त करता है यानी अपने को "मै कुछ नही" समझने लगता है यह भाव आते ही व्यक्ति के अन्तर्मन मे रिक्तता का भाव भर जाता है,यह वैज्ञानिक नियम भी है और प्रकृति का नियम भी है,कि जिस स्थान पर रिक्त भाव पैदा हो जाता है वहां प्रकृति अपने बल से उस भाव को स्थान को भर देती है। और उस भाव का रूप अपने अपने समय पर अपने अपने बल के अनुसार अपनी शक्ति को प्रदर्शित करने लगता है। किसी भी संत को देख सकते है किसी भी महात्मा को देख सकते है वह जैसे ही अपने को रिक्त भाव मे ले गया उसके पास शक्तियां अपने आप आकर अपना बल देने लग जाती है,जैसे हमारे प्रसिद्ध संत साईं बाबा को ही देख लीजिये उनके अन्दर इतनी रिक्तता थी कि वे अपने को कुछ भी नही समझते थे और उनके पास कितनी शक्ति थी इसका अन्दाज नही लगाया जा सकता है।कई बार ऐसा भी देखा जाता है कि लोग अपने नाम मे शिव का नाम जोड लेते है,और उसका प्रभाव यह पडता है कि वे अपने जन्म स्थान से औकात से और आने वाली पीढियों से भी अपनी मुक्ति को प्राप्त कर लेते है। इसके उदाहरण के लिये हम आपको भारत के कई गांवो की तरफ़ ले जाते है जिनका नाम शिव से जुडा है,और उन गांवो में जो भी शिव नाम से जुडे व्यक्ति थे वे अपने घर परिवार यहां तक की पीढी को भी साफ़ करके निकल गये,अगर उनकी कोई औलाद है भी तो वह जगह जगह भटक रही है या अपनी पीढी को समाप्त कर रही है।
शिवाड गांव राजस्थान में करौली जिला में है इस गांव मे शिवजी की झांकी को इस प्रकार सजाया जाता है जैसे कैलाश पर्वत को इसी गांव मे ही उठाकर लाया गया हो,तीन पीढियों से इस गांव के बारे मे जब समझा गया है तो यह देखने मे आया है कि जिस नाम के पहले शिव लगा है वह नाम वाला अपने जीवन काल में ही गांव को छोड कर चला गया और उसकी आने वाली पीढी का भी कोई भरोसा नही है कि वह वापस अपने गांव में आकर बसे। इस बात को वह लोग भी अच्छी तरह से समझ सकते है जो अपने नाम के शुरु मे शिव या अपने नाम को ही शिव के नाम से जोड कर रखते है। जब शिव शमशान का देवता है और शव में शक्ति की कल्पना करता है तो वह अपने अन्दर अहम को कैसे स्थापित करने की आज्ञा दे सकता है,जब नाम को शिव से रखा जाता है तो वह व्यक्ति संसार के कार्यों में अपने को जोड कर चलेगा जब संसार के कार्य जुडेंगे तो किसी न किसी प्रकार की अहम की भावना दिमाग मे जरूर चलेगी जैसे मेरा नाम "शिवकुमार",जब मेरा नाम का अहम पैदा हो गया है तो शिव स्थापित नही रहने देगा। इसी प्रकार से यह भी देखा गया है कि इस नाम के व्यक्ति के अन्दर अगर यह भाव आ गया कि वह सन्तान के मामले मे अधिक उन्नत है तो सन्तान का विनाश हो गया है या सन्तान बरबाद होकर इधर उधर हो गयी है,इसके अलावा भी जब व्यक्ति को इस नाम को रखने के बाद यह अहम हो गया कि उसके पास सम्पत्ति है साधन है आश्रम है तो वह भी अपने अपने समय मे विलीन हो गया है।
हमारे देखते देखते जिस गांव में मै पैदा हुआ हूँ उस गांव का नाम पहले कोर्थ था सभी लोग हिलमिलकर इस गांव मे रहते थे। अचानक समय आया और रोडवेज में ड्राइवर की नौकरी करने वाले शिवधार सिंह ने अपने नाम के अनुसार गांव का नाम शिवनगर रख दिया। जहां जहां भी पानी के कुंये थे सभी कुओं पर डोर बाल्टी आदि का इन्तजाम करवा दिया,कुओं पर घिरनी लगवा दीं और जनता के लिये जितने भी साधन थे तैयार करवा कर अपनी तरफ़ से तो भला कर दिया। चूंकि नाम शिवधार सिंह था,अपने परिवार की स्थिति के कारण गांव की जमीन घर आदि छोड कर गांव का नाम शिव से रखने के बाद पलायन करना पडा और आज बाह में अपने घर को बनाकर रह रहे है। जब तक गांव का नाम शिवनगर नही था,मेरा परिवार भी अच्छी तरह से फ़ल फ़ूल रहा था,लेकिन शिवनगर का नाम बनते ही हमारा परिवार भी दूर दूर जाकर बिखर गया। मेरे पिताजी का नाम भी शिवराम सिंह था,इसके बाद मेरे चाचाजी का नाम भी शिवपाल सिंह था गांव का नाम पलटते ही उनके लडके भी जाकर लखनऊ मे बस गये गांव मे जब तक चाची जिन्दा है तभी तक गांव मे उनकी स्थिति है,इसके बाद कुछ भी नही है। दूसरे चाचा का नाम शिवबहादुर सिंह था अच्छी नौकरी सेल्स टैक्स में भी वे निसंतान होकर ही चले गये। एक गांव के ही दूर के ताऊ लगते थे नाम था शिवदास सिंह उनकी सन्तान भी अपने अपने अनुसार पलायन कर गयी,अन्यथा जब तक गांव का नाम शिवनगर नही रखा गया था उनका गांव मे बहुत ही सम्मान था। एक ताऊ ही गांव के अनुसार लगा करते थे,नाम था शिवपल्लटन सिंह उन्होने बहुत अच्छा घर बनाया दो लडके और एक लडकी के साथ निवास करते थे,आज उनके घर को किसी दूसरे ने खरीदा है और उनका परिवार भी गांव से बाहर जाकर किसी न किसी प्रकार की संकट से घिरा पडा है। कितने ही शिव से शुरु होने वाले नामो के व्यक्ति थे और आज भी जो लोग शिव से शुरु होने वाला नाम रख रहे है वे किसी प्रकार से भी गांव मे अपनी स्थिति को नही बना पा रहे है। शिवरतन सिंह के सन्तान के नाम पर केवल लडकी हुयी और वे भी दो दो शादिया करने के बाद गांव से निकलने के लिये तैयार है,शिवभान सिंह के भी कोई सन्तान नही हुयी। शिवसिंह अपनी ससुराल मे जाकर बस गये उनकी संतान भी किसी प्रकार से तरक्की नही कर पा रही है। एक शिवपाल सिंह और थे उनकी भी संतान ने कोई तरक्की नही कर पायी और गांव से बाहर ही रहने को मजबूर है। शिवकरण सिंह के भी कोई औकात नही रही। जब सभी शिव नाम से शुरु होने वाले लोग शिवनगर नामक गांव से या शिवाड नामक गांव से जुड कर अपनी औकात को नही बना पाये तो यह मानना जरूरी है कि शिव स्थान पर शिव के नाम से अहम रखने वाला व्यक्ति अपनी औकात को नही बना सकता है। कारण आपको समझ मे आ ही गया होगा कि शिव के शव को सम्भालने वाली काली है और उसका कार्य मोक्ष को देना है।
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