Sunday, October 2, 2011

भारत

हमारे देश का नामकरण करते समय गुरुओं ने अपनी अपनी बुद्धि का सही प्रयोग किया था। ज्योतिष से धनु राशि गुरु बृहस्पति की सकारात्मक राशि है। लेकिन इस राशि के पीछे वृश्चिक राशि होने के कारण बाहरी शक्तियों ने हमारे देश के नाम को अपमानित करने मे कोई कसर बाकी नही रखी फ़िर भी गुरु की राशि होने के कारण भारत का भाग्य हमेशा ही जोखिमो से जूझने के बाद और भी चमकने के लिये नये रूप मे तैयार होता रहा है। भारत के नाम की राशि के अनुसार उत्तर मे धर्म भाग्य न्याय विदेशी सम्बन्ध और जो भी है वह वृहद रूप मे मिलता है। दक्षिण मे मिथुन राशि के आने से कला प्रदर्शन साज सज्जा कमन्यूकेशन आदि सभी कारण मिलते है,पूर्व मे कन्या राशि के होने के कारण सेवा जनसंख्या और नौकरी करने वाले तथा कर्जा दुश्मनी बीमारियों से जूझने वाले ही मिलते है। पश्चिम मे मीन राशि के होने के कारण विदेश जाने वाले व्यय करने वाले और हमेशा बडे बडे संस्थान स्थापित करने वाले इसी दिशा के लोग मिलते है। इसी प्रकार से लोगों के रूप रंग और प्रकृति तथा जलवायु से भी मीमांसा की जा सकती है। भारत के उत्तर मे साफ़ पीत वर्ण और लम्बे व्यक्तियों का निवास तथा उत्पत्ति को माना जाता है। दक्षिण में बुध की राशि मिथुन होने के कारण हरे भरे क्षेत्र सम जलवायु तथा उत्तर से विपरीति प्रकृति के लोग मिलते है। पूर्व मे कन्या राशि के प्रभाव वाले लोग छोटे कद के हमेशा सेवा करने मे तत्पर और सेवा के बदले मे अपनी स्थिति को बनाने वाले लोग मिलते है। पश्चिम मे हमेशा अपने मे सन्तुष्ट रहने वाले लोग तथा बडी मानसिकता वाले लोग ही पाये जाते है। उत्तर-पश्चिम मे धनु और मीन का मिला जुला रूप मिलता है,पूर्व-उत्तर मे धनु और कन्या का मिला जुला रूप मिलता है,दक्षिण-पूर्व मे कन्या और मिथुन का मिला जुला रूप मिलता है,दक्षिण-पश्चिम मे मीन और मिथुन का मिला जुला रूप मिलता है।

मनुष्य के स्वभाव से और कार्यों से भी भारत नाम की सार्थकता देखने को मिलती है। भारत की राजधानी दिल्ली है। न्याय का सर्वोच्च न्यायालय दिल्ली मे ही स्थापित है। यहां से धनु राशि की उपस्थिति मिलती है। विदेश यात्रा से सम्बन्धित जितने भी विभाग है वे सभी दिल्ली मे है। धर्म के क्षेत्र मे अगर सोचा जाये तो उत्तर मे हिमालय की कन्दराओं में तपस्वी अभी भी देखने को मिल जायेंगे। हिमाचल उत्तराखंड सभी स्थान देव भूमि के नाम से जाने जाते है। इस प्रकार से भी धर्म की उपस्थिति मिलती है। भाग्य को बढाने वाले जितने भी कारक है जैसे हरिद्वार ऋषिकेश अमरनाथ आदि स्थान सभी उत्तर मे ही मिलते है,इसलिये धनु राशि की भाग्य वर्धक प्रकृति भी देखने को मिलती है। धनु राशि का जो त्रिकोण है वह मेष राशि और सिंह राशि से जुडा हुआ है,मेष राशि सैनिक राशि के नाम से भी जानी जाती है,इसलिये जो भी बडे सैनिकों के संचालन के क्षेत्र है वे सभी उत्तर दिशा मे ही मिलते है। भारत की राज्य की राशि सिंह नवे से नवां अर्थात धनु से नवां स्थान सिंह राशि को मिला हुआ है,इसलिये भारत की लोक सभा राष्ट्रपति का स्थान आदि सभी उत्तर मे है। इस दिशा मे पूर्व के लोग और दक्षिण पश्चिम के लोग अपनी अपनी प्रकृति को समय के अनुसार प्रदर्शन करने मे अपनी शक्ति का प्रयोग करते है। पूर्व दिशा के लोगों में बंगाल और आसाम आदि प्रांत आते है तथा दक्षिण पश्चिम दिशा में महाराष्ट्र केरल आन्ध्र प्रदेश के लोग आते है। इस दिशा मे अगर सीमा रेखा को बना लिया जाये तो पंजाब हरियाणा राजस्थान गुजरात महाराष्ट्र की सीमा रेखा बनती है और इस सीमा रेखा की लम्बाई चौडाई के अनुसार अन्य प्रांत के लोग भी माने जायेंगे। इसी प्रकार से दक्षिण-पूर्व दिशा तक इसकी सीमा रेखा बनायी जाये तो उत्तराखंड उत्तर प्रदेश मध्य प्रदेश बिहार झारखंड छत्तीसगढ उडीसा से तमिलनाडु का भाग भी जोडा जाता है।

दक्षिण की प्रकृति मे मिथुन राशि का प्रभाव मिला है। यह राशि कालपुरुष की कुंडली के अनुसार तुला राशि में स्थापित है, इस प्रकार से मिथुन का बुध और तुला का शुक्र दोनो ही इस राशि मे सम्मिलित हो गये है। मिथुन राशि भाव और भावना को प्रदर्शित करने वाली राशि है तुला राशि व्यापार की राशि है। भाव और भावना को प्रदर्शित करने की बात और उसे व्यापारिक रूप से प्रदर्शित करने वाली बात को फ़िल्म मीडिया अभिनेता अभिनेत्री गायक कलाकार संगीतज्ञ आदि सभी इस दिशा मे स्थापित है यह स्थान मुंबई और चैन्नई के नाम से अधिक जाना जाता है। गुप्त रूप से स्थापित शुक्र जो धन सम्पत्ति और वैभव का कारक है वह भी साक्षात रूप से दक्षिण मे मिलता है,सोना चांदी रुपया पैसा जितना दक्षिण मे है उतना अन्य किसी दिशा मे नही है। इस राशि के त्रिकोण की राशिया तुला और कुम्भ है। कुम्भ राशि का स्थान उत्तर-पश्चिम दिशा मे है यह स्थान राजस्थान गुजरात  का मिला जुला भाग है। मारवाडी  लोगों ने जो लाभ के साधन दक्षिण मे पैदा किये है वह किसी अन्य प्रान्त के लोगों ने नही किये है। कुम्भ राशि का स्वभाव मित्रता का स्वभाव है,इसलिये जो भी साधन इन लोगों के द्वारा पैदा किये गये है वह सभी मित्रता के द्वारा ही पैदा किये गये है,इस राशि के प्रभाव वाले लोग लडाई झगडे मे कम विश्वास करते है और मित्रता से कार्य करने के बाद वे अपनी स्थिति के साथ अन्य लोगों की स्थिति को भी बढाने के काम करते है,वे खुद कम काम करते है लेकिन लोगों से मित्रता से अधिक काम करवाने मे विश्वास करते है। इसी प्रकृति के कारण से दक्षिण मे आज भी मारवाडी फ़लता फ़ूलता है। इस दिशा मे रहने वाले लोगों की प्रकृति बन जाती है कि वे गर्म माहौल मे अपने को ठंडा कर लेते है और ठंडे माहौल मे अपने को गर्म कर लेते है। इस दिशा मे जो भी तुला राशि वाले संभाग के व्यक्ति आते है वे अपनी प्रकृति मे कर्जा दुश्मनी बीमारी से जूझने के बाद ही यहां आते है और किसी भी कार्य को करने के लिये अपमान जान जोखिम और मृत्यु जैसे कारणो से डरते भी नही है। तुला राशि का स्थान भारत की कुंडली के अनुसार बिहार पश्चिमी उत्तर प्रदेश आते है।

पश्चिम दिशा के प्रति अगर देखा जाये तो राजस्थान और गुजरात के भूभाग को मिलाया जाता है कुछ भाग हरियाणा पंजाब मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र का भी आता है। यह मीन राशि का क्षेत्र है। लेकिन कालपुरुष की कुंडली के अनुसार यह स्थान कर्क राशि का है। कर्क राशि पानी की है,वह पानी जो समतल स्थान पर भरा हो,लेकिन कर्क वृश्चिक और मीन राशि मे पानी का रूप भी देखा जाता है,कर्क का पानी तो समतल स्थान मे भरा हुआ माना जाता है वृश्चिक राशि का स्थान कुये के पानी से माना जाता है तथा मीन राशि से आसमानी पानी से माना जाता है। नदियों का पानी समतल स्थान में जैसे गंगा यमुना सिंध व्यास सतलज चिनाव रावी आदि नदियों का क्षेत्र तो भारत के उत्तर मे है जो सिंचाई के लिये प्रयोग मे लाया जाता है। उत्तर प्रदेश का कुछ भाग राजस्थान का कुछ भाग मध्य प्रदेश का कुछ भाग उडीसा बिहार का कुछ भाग तमिलनाडु का कुछ भाग महाराष्ट्र छत्तिस गढ आदि प्रान्तो में वृश्चिक राशि के प्रभाव से कुओं का पानी प्रयोग मे लाया जाता है,लेकिन राजस्थान गुजरात मे अधिकतर स्थानो मे आज भी केवल आसमानी पानी यानी बरसात के ऊपर ही पूरी जीवन निर्भर होता है। इस कारण को और अधिक गहराई से देखने पर पता चलता है कि जहां समतल स्थान मे पानी है वहां के लोग मेहनत कम और साधनो का अधिक प्रयोग करते है,कुये से पानी लेने वाले मेहनत अधिक करते है और साधनो का कम प्रयोग कर पाते है वही आसमानी पानी वाले लोग अपने जीवन और कार्यों को देखते तो बहुत बडे रूप मे है लेकिन उन्हे प्रकृति और ईश्वर के भरोसे पर रहने और सन्तुष्ट रहने के लिये मजबूर होना पडता है। इसी कारण से राजस्थान और गुजरात के लोग अधिक जुझारू भी देखे गये है और मेष राशि के आगे होने पर तथा कुम्भ राशि के पीछे होने पर अगर इन्हे कोई मित्रता रूपी सहायता मिल जाती है तो यह अपने पराक्रम को दिखाने के लिये हमेशा तैयार हो जाते है। वह मित्रता चाहे राजस्थान के प्रसिद्ध व्यक्ति सवाई मानसिंह को अकबर के रूप मे मिली हो या गुजरात के जख सरदार को गुरु गोविंद सिंह की मिली हो। ईश्वर पर भरोसा करने के कारण सबसे अधिक धर्म स्थान और ईश्वर की आराधना पूर्वजो पर विश्वास करने वाले लोग भी राजस्थान और गुजरात मे अधिक मिलते है,कारण इनके मित्र तथा लाभ भाव मे धर्म की धनु राशि होती है और धन की प्राप्ति के स्थान मे मेष राशि होती है। धनु का दूसरा नाम धनुष से भी है और मेष का दूसरा नाम मेढा या बकरा से भी है,आज भी राजस्थान के लोग अपने धनुष पर विश्वास करते है और उनके पास जो नगद धन के रूप मे उपस्थिति होता है वह बकरी का धन हमेशा मिलता है। कुम्भ राशि का त्रिकोण मिथुन राशि और तुला राशि का है,भारत मे मिथुन राशि का स्थान दक्षिण मे तथा तुला राशि का स्थान बिहार बंगाल आसाम नागालेंड मे है। जितने भी मारवाडी लोग गुजराती लोग इन स्थानो मे जाकर तरक्की कर जाते है वहां अन्य प्रांतो के लोग जाकर तरक्की नही कर पाते है। साथ ही राजस्थान और गुजरात मे बाहर से आने वाले लोगों मे भी इन्ही प्रांतो के लोग अधिक देखने को मिलेंगे। जिनमे दक्षिण के वही लोग राजस्थान मे आकर बसना पसंद करते है जो पारिवारिक कारणो से धन की कमी से नगद धन की बचत नही कर पाने से परेशान होते है,और अपना कार्य क्षेत्र पानी वाले साधनो मे वाहन वाले क्षेत्रो मे मकान और भवन निर्माण मे पेट्रोल डीजल और चांदी चावल आदि के कार्यों मे निपुणता हासिल करना चाहते है। इसी प्रकार से बिहार बंगाल और आसाम तथा उत्तर प्रदेश मध्य प्रदेश आदि के लोग इन राज्यों मे तभी आते है जब उन्हे कर्जा दुश्मनी बीमारी या अन्य पारिवारिक कारणो से परेशान कर दिया जाता है और वे अपने को इन सब कारणो से दूर करने के बाद मरना या करना की मानसिकता लेकर कुम्भ राशि के क्षेत्र गुजरात और राजस्थान मे प्रवेश करते है,यहां के लोग उन्हे मित्रता से स्वीकार करते है और उन्हे अपने लिये श्रेष्ठ स्थान लगने के कारण वे यहां से जाने का भी मन नही करते है।

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