Thursday, October 6, 2011

कुंडली मे पंचभूत और उनके कार्य

गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस मे लिखा है,-"क्षित जल पावक गगन समीरा,पंच तत्व विधि रचा शरीरा",प्रकृति ने भूमि पानी आग आकाश और वायु तत्व को मिलाकर इस शरीर का निर्माण किया है। हमारे जन्म समय पर जो ग्रह भचक्र मे उपस्थित होते है उन्ही के अनुसार हमारे शरीर मे तत्वों की प्रधानता मानी जाती है। शरीर का निर्माण माता के गर्भ मे नौ माह  के अन्दर होता है। सबसे पहले आकाश तत्व का निरूपण पिता के सहयोग से माता रूपी भूमि में आरोपित किया जाता है। उस तत्व का रूप अनाज के बीज की तरह से होता है,और वही आकाश तत्व अपने अन्दर मे सभी तत्वो को समेटे हुये होता है,इस प्रकार से गर्भ के अन्दर शरीर के बढने के बाद उसका स्वछन्द रूप से संसार मे विचरण करने का समय आता है वही समय जन्म के समय का माना जाता है। जन्म समय मे जो लगन होती है उससे पीछे नौ माह जाने पर पंचम भाव में पहुंचा जाता है,पंचम भाव से लगन तक पहुंचने तक जितने ग्रह रास्ते मे आते है उन्ही ग्रहों की भूमिका जीवन में सबसे अधिक होती है बाकी के ग्रहों की समय समय पर जो द्रिष्टि मिलती है वही शक्ति जीवन साथी के रूप में साथ हो जाती है। यानी कहा जा सकता है कि अगर सभी ग्रह इस नौ माह के समय मे जातक को मिल जाते है तो उसमे सम्पूर्णता आजाती है और वह जीवन साथी पर निर्भर नही होता है या वह किसी भी समस्या से जूझने की हिम्मत रखता है,लेकिन राशि प्रभाव से भी यह बात देखनी पडती है कि किस राशि का प्रभाव बाकी के तीन महिनो का बाकी रहा है जो जातक को भुगतने के लिये या तो जीवन साथी के रूप मे या कर्जा दुश्मनी बीमारी के रूप मे या परिवार घर मकान और धन सम्पत्ति के रूप मे सामने आयेगा।

एक उदाहरण के अनुसार एक जातक का जन्म कर्क लगन मे हुआ है,उसके पीछे पंचम भाव मे जाने पर वृश्चिक राशि का रूप उपस्थित है। यह गर्भ के महिने के लिये माना गया है,दूसरे महिने मे उस गर्भ को छठे भाव का असर मिलता है,इस समय में अगर दूसरे और दसवे भाव मे कोई ग्रह है तो उसके अन्दर उस शक्ति का प्रवेश हो जायेगा,तीसरे महिने मे जातक को अपने सप्तम भाव मे गुजरना पडता है उस समय मे ही उसका लिंग निर्धारण हो जाता है,अगर कोई ग्रह सप्तम मे विराजमान है तो उसका प्रभाव उसके लिंग निर्धारण में प्रवेश हो जायेगा इसके साथ ही तीसरे और ग्यारहवे भाव मे जो भी ग्रह है उनसे विरोध करने की क्षमता का भी शक्ति के रूप मे प्रवेस हो जायेगा,जैसे सप्तम मे अगर गुरु शनि का स्थापन है तो जातक के अन्दर पिता और पिता के कार्य के रूप मे ज्ञान और सम्पत्ति के रूप में गुण प्रवेश कर जायेंगे,उसी समय मे अगर शुक्र जैसे तीसरे भाव मे विराजमान है तो कर्क लगन मे तीसरे भाव मे कन्या राशि आती है,इस राशि का प्रभाव कर्जा दुश्मनी बीमारी से जोड कर देखा जाता है,तो जो भी जातक के अन्दर बीमारियां उपस्थित होंगी,वह जीवन साथी के द्वारा या जीवन साथी के कारणो से पैदा होनी मानी जायेंगी,चौथे महिने में जातक को अष्टम भाव का प्रभाव सहन करना पडता है,इस समय से माता के द्वारा प्राप्त किया भोजन और माता के द्वारा सीखी गयी विद्या के साथ पिता के द्वारा जो भी लाभ के कार्य किये जाते है उनका विकास शुरु हो जायेगा,यह अति सूक्ष्म रूप मे होगा,अगर इस भाव मे कोई ग्रह है या किसी ग्रह की द्रिष्टि पड रही है तो जातक के अन्दर जोखिम लेने और अपमान सहने तथा गुप्त कार्य करने का प्रभाव प्रवेश कर जायेगा। इस भाव पर चौथे भाव अष्टम भाव और बारहवे भाव का सम्मिलित असर मिलता है,इन्ही भावो मे बैठे ग्रहों का प्रभाव भी शामिल होता है। पांचवे महिने मे जातक को अपने कुल की मर्यादा धर्म और समाज के बारे मे गुण अवगुण वायु तत्व के रूप मे मिलने शुरु हो जाते है,साथ ही लगन पंचम और नवम भाव मे विराजमान ग्रहों का असर और राशि प्रभाव भी जातक के शरीर मे प्रवेश करेगा। इसी क्रम से नौ महिने तक जो भी ग्रह और राशियां जातक माता के गर्भ मे गुजारेगा उनका प्रभाव जातक के शरीर प र्पंचभूतो के रूप मे प्राप्त होगा। जो पंचभूत जातक को इन नौ महिनो मे नही मिल पायेंगे उन्ही के लिये जातक को आजीवन अपने द्वारा द्वंद करने के बाद प्राप्त करने के लिये जद्दोजहद करनी पडेगी।
उदाहरण के लिये प्रस्तुत जन्म कुंडली को देखें,इसमे कर्क लगन है और पंचम में वृश्चिक राशि का रूप मिलता है,लगन तक पहुंचने में जातक को शनि गुरु केतु चन्द्र का असर तो मिलता है बाकी राहु शुक्र बुध (व) सूर्य मंगल के लिये जातक को जीवन भर जद्दोजहद ही करनी पडेगी। शनि के रूप मे जातक के पास वायु तत्व गुरु के रूप मे आकाश तत्व और चन्द्रमा के रूप में जल तत्व बहुतायत से मौजूद है लेकिन भूमि तत्व जो बुध से मिलता है,अग्नि तत्व जो मंगल से मिलता है और आकाश तत्व को बल देने वाले सूर्य रूपी आत्मा तत्व के लिये जातक को आजीवन जूझना पडेगा। राहु का प्रभाव दूसरे भाव मे होने के कारण जातक को आजीवन अपने शरीर मे मानसिक बल और कुटुम्ब के बल के लिये मादक पदार्थ या दवाइयों को लेना पडेगा,शुक्र के रूप मे जो तीसरे भाव मे विराजमान है,अपनी काम सन्तुष्टि और पत्नी सुख के लिये शुक्र रूपी तत्व के लिये जद्दोजहद करनी पडेगी,भूमि तत्व रूपी बुध के वक्री होने के कारण कभी वह अपनी क्रियाओं के द्वारा पूरित कर लेगा और कभी वह अपने को इस तत्व से हीन मानेगा,अग्नि तत्व की पूर्ति के लिये वह हमेशा ही अस्पताली कारणो से जूझता रहेगा। इस प्रकार से जातक के शरीर मे वायु और आकाश तत्व के रूप मे शनि गुरु के विद्यमान होने के कारण वात वाली बीमारियों से ग्रसित रहना पडेगा,कारण वायु तत्व को और आकाश तत्व को कन्ट्रोल करने वाले तत्व जो सूर्य और बुध के साथ मंगल के रूप में चौथे भाव मे रह गये है वे सहायता नही कर पायेंगे,पुत्र सुख आदि के लिये भी जातक को भटकाव मिलेगा वह दत्तक पुत्र जैसे कारको को अपनी सहायता के लिये प्रयोग करेगा,जैसे बडे भाई का लडका अपने पुत्र रूप मे पालना आदि। केतु के प्रभाव में अष्टम भाव मे विद्यामान जननांग वाली बीमारियों से जातक को जूझना पडेगा कारण केतु के प्रभाव से जो विकास माता के गर्भ मे जातक के जननांग और जननांग सम्बन्धी अन्य सहायक अंगो का विकास होना था वह सही नही हो पाने से वह गुप्त रोगों से ग्रसित रहेगा। इसके साथ ही जल तत्व की अधिकता के कारण तथा जल तत्व को बल देने वाले वीर्य या रज तत्व के रूप मे शुक्र का तीसरे भाव मे होना शरीर मे मज्जा की कमी करेगा और जातक को शरीर में अंगो के संचालन की कमी हो जायेगी। इस जातक को अगर लगन पंचम और नवम भाव के विरोधी तत्वों के रूप मे रत्न उपलब्ध हो जाते है तो वह अपने जीवन मे दस प्रतिशत लाभ को प्राप्त कर सकता है,वनस्पति और जडी बूटियों के रूप में तत्व मिल जाते है तो उसे पच्चीस प्रतिशत लाभ की प्राप्ति हो जायेगी।

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