यूरेनस का नाम हमारे भारत वर्ष मे ज्योतिष के लिये कम ही माना जाता है,हम लोग शुरु से ही केवल नौ ग्रहों को लेकर चलते आये है और इन्ही नौ के द्वारा फ़लकथन की सीमा मे बन्धे हुये है,बहुत पहले जब मै ज्योतिष का विद्यार्थी ही था तो मन मे बार बार सवाल आया करते थे कि प्लूटो यूरेनस नेपच्यून आदि के बारे मे जानना जरूरी है और इनके बारे मे जानने के लिये उस समय कोई साधन भी नही था,केवल विदेशी किताबो मे इनके बारे मे लिखा गया था,और विदेशी किताबे हमारी पहुंच से बहुत बाहर की बात थीं। जब संचार के क्षेत्र मे क्रांति आयी और हमारी सुलभता मे इन्टरनेट आदि की प्राप्ति हुयी तो विदेशी किताबों से इन पाश्चात्य ग्रहों के बारे मे जानने की उत्कंठा बलवती होना जरूरी था सो इनके बारे मे जितना ज्ञान मिला उसके बाद समझ मे आया कि यवन जातक जैसे विद्वान ज्योतिषी कुछ गूढ दिमाग मे रखकर इन ग्रहों के बारे मे अपनी धारणा रखते थे लेकिन अपनी समझ को अधिक विस्तार देने के लिये इन ग्रहों का नाम सही रूप मे सामने रखने से कतराते थे।
नौ ग्रहों के लिये तो पता चल ही गया था और बहुत से विद्वानो के मत से और समझ से पढने समझने और उनके द्वारा मिलने वाले अच्छे और बुरे फ़लो के बारे मे जैसी बुद्धि थी उसी हिसाब से समझ भी आ गयी थी।इन तीन ग्रहों का जीवन मे बहुत महत्व माना जाता है,जब astrology weekly जैसी साइटों मे मेम्बर बना और इन साइट मे जो भी विद्वान जुडे थे उनके द्वारा आपसी विचार विमर्श किया तो इन तीनो ग्रहों की उपस्थिति भी जरूरी समझ कर कुंडली के भावानुसार उनका रोपण भी किया गया,पहले की कुंडलियों के अन्दर और बाद की कुंडली जो भी मेरे पास आयीं समस्या और समाधान के साथ ग्रहों की स्थिति के अनुसार जब देखा गया कि सभी नौ ग्रह सही फ़ल दे रहे है लेकिन जातक दुखी है तो बाकी के इन तीनो का विवेचन करने पर पता लगा कि किसी का प्लूटो खराब है किसी का नेपच्यून ही खराब है और कोई अपने यूरेनस को सही प्रयोग मे नही ला रहा है। कुंडली के अष्टम भाव को प्लूटो से जोड कर देखा गया,यूरेनस को ग्यारहवे भाव से जोड कर देखा गया और नेपच्यून को बारहवे भाव से जोडने पर इनकी सिफ़्त बिलकुल ही सही सामने आने लगी।
यूरेनस कुम्भ राशि का स्वामी है,वैसे अभी तक शनि को ही मानकर देखा गया है लेकिन शनि की सिफ़्त अगर काली और अन्धेरी तथा फ़्रीज करने वाले कारको से देखी जाये तो कभी भी मनुष्य मित्रता जैसी बात आगे बढा ही नही सकता है,कर्म फ़ल के रूप मे भी अगर कुम्भ राशि को देखा जाये तो भी कर्म फ़ल केवल सामने रहने वाले कारक के रूप मे ही समझा जा सकता है,सामने के भाव को आज के जमाने मे दूसरे भाव मे कितना है और छठे भाव मे कितना जमा है साथ ही दसवे भाव से कितनी कार्य शैली है जिससे मिलने वाले फ़ल को देखा जा सकता है,इस बात मे और अधिक बल तब मिला जब नाडी ज्योतिष मे प्रवेश किया,कारण वैसे कुंडली के सभी भावों का विवेचन करने के लिये अलग अलग प्रयोग मे लाया जाता है लेकिन नाडी ज्योतिष मे केवल चार भाग की कुंडली बनायी गयी और धर्म अर्थ काम तथा मोक्ष के रूप मे बारह भावों का वर्गीकरण जैसे पहला पांचवा और नवां धर्म से दूसरा छठा और दसवा कर्म से तीसरा सातवां और ग्यारहवा काम से तथा चौथा आठवा और बारहवा मोक्ष से मानने पर कर दसवां तो कर्म फ़ल दूसरा और कार्य शक्ति छठे से देखने पर और भी सटीकता मिली। इस यूरेनस का प्रभाव जितना व्यक्ति की जिन्दगी मे अधिक होगा उतना ही वह सफ़ल और असफ़ल माना जायेगा। इसका कारण भी साफ़ है कि व्यक्ति अगर अपने मित्रों और कार्य के रूप मे अपने व्यवहार को कार्य की रूप रेखा को प्रस्तुत करने की क्षमता रखता होगा उतना ही उसे सफ़ल होने के लिये और जितना वह अपने मे संकुचित होगा और अपने को बाहर की दुनिया से काट कर रखेगा उतना ही वह आगे बढने मे अपने को असफ़ल पायेगा।
कुम्भ राशि का पूर्ण होना दो अन्य सहायक राशियों पर निर्भर है,जैसे मिथुन से बुध को साथ लेना और तुला से शुक्र को साथ लेना। मिथुन से प्रदर्शन की कला चाहे वह लिखने मे हो या बोलने मे या हाव भाव प्रदर्शित करने के मामले मे हो,उसी तरह से तुला से वह बेलेन्स करने की औकात को रखना किये जाने वाले प्रदर्शन मे सजीवता को प्रस्तुत करना और जो समझ मे आजाये उसे सामने रखना इन दोनो कारकों के सामने रखने से यूरेनस अपनी सजीवता को और अधिक प्रभावशाली बना लेता है। खाली लिखना आता है और उसे प्रस्तुत करने के लिये कोई साधन नही हो तो वह लिखा हुआ बेकार ही माना जा सकता है,कोई चित्र बना सकता हो और उसके अन्दर रंगों का सामजस्य नही बिठा सकता है तथा उसे दिखाया किसे जाना है का पता नही मालुम हो तो भी उस चित्र की गरिमा बेकार की मानी जायेगी। इस बात को समझने के लिये अगर यूरेनस को समझ लिया जाये तो जो भी कला है जो भी ज्ञान है उसे सजा कर प्रस्तुत करने पर जल्दी से समझ मे आ सकता है। कुम्भ राशि बडे भाई का घर भी माना जाता है और बडे पुत्र की पत्नी के लिये भी जानी जाती है,पिता के भाव से तीसरी राशि होने के कारण पिता का पराक्रम भी माना जाता है पिता की अन्दरूनी ताकत भी मानी जाती है और पिता के पहिनावे के लिये तथा पिता के नाम को करने के लिये भी मानी जाती है,इसके साथ ही यह राशि दिशाओं से दक्षिण-पूर्व यानी अग्नि दिशा की कारक होने के कारण अपनी स्थापना पैदा होने वाले स्थान से आग्नि कोण मे ही स्थापित होने और वहीं से अपनी तरक्की के लिये भी मानी जाती है।
जीवन साथी के लिये भी कुम्भ राशि का असर देखने मे आता है कि पत्नी या पति पढे लिखे समाज से होता है,अपने को राजकीय कार्यों मे लगाकर रखने वाला माना जाता है,दिमाग मे अहम भरा होता है,किये जाने वाले कार्यों मे और फ़लों के अन्दर अहम से ही काम करना और अहम के बदले मे कार्य फ़ल अगर दूसरे भाव से देखा जाये तो अपने ही लोगों से फ़ालतू मे बैर पैदा कर लेना और किसी न किसी मामले मे गुप्त जानकारी करने की आदत बना लेना,अक्सर राज्य और सरकार से सम्बन्ध रखने के कारण जीवन साथी के अन्दर एक प्रकार की राजनीति पैदा हो जाना जिससे वह अपने से सम्बन्ध रखने वाले कारकों के प्रति गुप्त नीति से अपने को लगाये रखना,जैसे एक राजनीतिज्ञ की धारणा होती है कि अमुक व्यक्ति जो विरोधी पार्टी का है उसकी गतिविधिया क्या चल रही है और वह अपने किन उद्देश्यों मे सफ़ल होने के लिये आगे बढा रहा है,इन सब के लिये पहले से पहले ही काट तैयार रखना,और जैसे ही प्रतिद्वंदी के रूप मे सामने आये परास्त कर देना। इस कारण को समझने के लिये लालकिताब का भी सहारा लेते है तो उसके अन्दर कहा गया है कि हर जातक का लगन जातक की गद्दी होता है और सप्तम स्थान केवल मंत्रणा प्राप्त करने का स्थान होता है तथा अष्टम स्थान उस जातक की आंखे होती है और ग्यारहवां भाव उस जातक के पैर होते है। कुम्भ राशि की गद्दी उसके मित्र और बडे भाई का पद होता है,अपने पिता की बडी सन्तान के रूप मे वह भले ही नही पैदा हुआ हो लेकिन उसके कार्य बडे बडे भाई जैसे ही होते है,मित्रों की संख्या बढ चढ कर होती है,इन्सानी सहायता के रूप मे देखा जाता है और कन्या सन्तान की प्रोगेस से खुश होता है,दिली रूप मे माता से लगाव होता है,मकान आदि को या तो किराये से लेकर रहता है या किराये से चलाने की प्रक्रिया को करता है। धन और धन से मिलने वाले ब्याज को या तो देने का काम करता है या लेने का काम करता है,यह कार्य भी या तो किसी के अपमान मे जाने से धन की सहायता के रूप मे माना जाता है या खुद के अपमान मे जाने के बाद धन की सहायता लेने के लिये माना जाता है। जोखिम को लेना और जोखिम को पैदा करना भी एक आदत मे माना जाता है।
कुम्भ राशि मे भाग्य का कारक शुक्र होता है,शुक्र को भाग्य का स्वामी मानने के साथ साथ विदेश न्याय और यात्रा से सम्बन्धित कारको के लिये भी जाना जाता है,भाग्य की उन्नति शादी के बाद ही मानी जाती है,साथ ही जब जीवन मे कठिन समय आता है तो पत्नी से सम्बन्धित कारण पैदा होते है या किसी स्त्री सम्बन्धी कारण से ही न्याय मे जाना पडता है,भाग्य को बढाने के लिये भूभाग के अन्तिम मे नैऋत्य कोण यानी दक्षिण-पश्चिम दिशा को ही प्रयोग मे लाना पडता है। कार्यों के अन्दर प्लूटो की वृश्चिक राशि आने के कारण या तो मरे हुये धन को जिन्दा करने की आद्त होती है या भौतिक कारण जो मृत्यु के बाद की सम्पत्ति के प्राप्त होने के कारको मे अपने लिये जाने जाते है को पाना भी होता है। वृश्चिक राशि का प्रभाव प्लूटो के लिये बहुत ही उत्तम माना जा सकता है,जैसे किसी भी मशीनरी को चालू कर देने की आदत,दिमागी बल से मशीन से आश्चर्य जनक कारणो को पैदा करने की आदत,शमशानी कारणो को पैदा करने की आदत यह बात अक्सर समाज सोसाइटी और इसी प्रकार के कारको मे भी जाना जाता है,प्लूटो की गति के अनुसार ही जीवन मे जो कार्य होते है वे करने के लिये बुद्धि का प्रयोग भी माना जा सकता है,जैसे गूढ से गूढ कारणों मे चलते चले जाना और अधिकतर किसने क्या किया है वह इतिहास के रूप मे जानकारी करके रखना,किसे कहाँ अपमान की नजर से देखना है और किसे कहाँ अपमान से बचाना है इस बात का भी बहुत अधिक ज्ञान होने की बात भी प्लूटो से जानी जा सकती है। इस राशि का एक और सबसे बडा मूल्य माना जाता है कि या तो दोस्त वर्ग न्याय से जुडा होता है या यात्रा सम्बन्धी कारणों से जुडा माना जाता है,नही तो धार्मिक रूप से सभा सोसाइटी के रूप मे जुडा माना जा सकता है,कारण काल पुरुष की कुंडली के अनुसार भी यूरेनस की राशि कुम्भ मे गुरु की धनु राशि का होना माना जाता है,अक्सर जब भी जातक को समय मिलता है वह सीधे से बाप दादा की हैसियत को बखान करने के लिये अपनी योग्यता को दिखाने की कोशिश करता है,जो मित्र कानूनी रूप से जुडे होते है वे कानून से सहायता मे आते है और जो समाज के रूप मे जुडे होते है वे समाज के रूप मे सामने आते है,अगर यूरेनस का असर जीवन मे जरा भी भिन्न है तो खुद के परिवार से दूर जाकर दूसरे समुदाय के परिवार से जुडना पडता है।
यूरेनस की कुम्भ राशि के प्रति जो अकाट्य सत्य बताये गये है वे इस प्रकार से है :-
नौ ग्रहों के लिये तो पता चल ही गया था और बहुत से विद्वानो के मत से और समझ से पढने समझने और उनके द्वारा मिलने वाले अच्छे और बुरे फ़लो के बारे मे जैसी बुद्धि थी उसी हिसाब से समझ भी आ गयी थी।इन तीन ग्रहों का जीवन मे बहुत महत्व माना जाता है,जब astrology weekly जैसी साइटों मे मेम्बर बना और इन साइट मे जो भी विद्वान जुडे थे उनके द्वारा आपसी विचार विमर्श किया तो इन तीनो ग्रहों की उपस्थिति भी जरूरी समझ कर कुंडली के भावानुसार उनका रोपण भी किया गया,पहले की कुंडलियों के अन्दर और बाद की कुंडली जो भी मेरे पास आयीं समस्या और समाधान के साथ ग्रहों की स्थिति के अनुसार जब देखा गया कि सभी नौ ग्रह सही फ़ल दे रहे है लेकिन जातक दुखी है तो बाकी के इन तीनो का विवेचन करने पर पता लगा कि किसी का प्लूटो खराब है किसी का नेपच्यून ही खराब है और कोई अपने यूरेनस को सही प्रयोग मे नही ला रहा है। कुंडली के अष्टम भाव को प्लूटो से जोड कर देखा गया,यूरेनस को ग्यारहवे भाव से जोड कर देखा गया और नेपच्यून को बारहवे भाव से जोडने पर इनकी सिफ़्त बिलकुल ही सही सामने आने लगी।
यूरेनस कुम्भ राशि का स्वामी है,वैसे अभी तक शनि को ही मानकर देखा गया है लेकिन शनि की सिफ़्त अगर काली और अन्धेरी तथा फ़्रीज करने वाले कारको से देखी जाये तो कभी भी मनुष्य मित्रता जैसी बात आगे बढा ही नही सकता है,कर्म फ़ल के रूप मे भी अगर कुम्भ राशि को देखा जाये तो भी कर्म फ़ल केवल सामने रहने वाले कारक के रूप मे ही समझा जा सकता है,सामने के भाव को आज के जमाने मे दूसरे भाव मे कितना है और छठे भाव मे कितना जमा है साथ ही दसवे भाव से कितनी कार्य शैली है जिससे मिलने वाले फ़ल को देखा जा सकता है,इस बात मे और अधिक बल तब मिला जब नाडी ज्योतिष मे प्रवेश किया,कारण वैसे कुंडली के सभी भावों का विवेचन करने के लिये अलग अलग प्रयोग मे लाया जाता है लेकिन नाडी ज्योतिष मे केवल चार भाग की कुंडली बनायी गयी और धर्म अर्थ काम तथा मोक्ष के रूप मे बारह भावों का वर्गीकरण जैसे पहला पांचवा और नवां धर्म से दूसरा छठा और दसवा कर्म से तीसरा सातवां और ग्यारहवा काम से तथा चौथा आठवा और बारहवा मोक्ष से मानने पर कर दसवां तो कर्म फ़ल दूसरा और कार्य शक्ति छठे से देखने पर और भी सटीकता मिली। इस यूरेनस का प्रभाव जितना व्यक्ति की जिन्दगी मे अधिक होगा उतना ही वह सफ़ल और असफ़ल माना जायेगा। इसका कारण भी साफ़ है कि व्यक्ति अगर अपने मित्रों और कार्य के रूप मे अपने व्यवहार को कार्य की रूप रेखा को प्रस्तुत करने की क्षमता रखता होगा उतना ही उसे सफ़ल होने के लिये और जितना वह अपने मे संकुचित होगा और अपने को बाहर की दुनिया से काट कर रखेगा उतना ही वह आगे बढने मे अपने को असफ़ल पायेगा।
कुम्भ राशि का पूर्ण होना दो अन्य सहायक राशियों पर निर्भर है,जैसे मिथुन से बुध को साथ लेना और तुला से शुक्र को साथ लेना। मिथुन से प्रदर्शन की कला चाहे वह लिखने मे हो या बोलने मे या हाव भाव प्रदर्शित करने के मामले मे हो,उसी तरह से तुला से वह बेलेन्स करने की औकात को रखना किये जाने वाले प्रदर्शन मे सजीवता को प्रस्तुत करना और जो समझ मे आजाये उसे सामने रखना इन दोनो कारकों के सामने रखने से यूरेनस अपनी सजीवता को और अधिक प्रभावशाली बना लेता है। खाली लिखना आता है और उसे प्रस्तुत करने के लिये कोई साधन नही हो तो वह लिखा हुआ बेकार ही माना जा सकता है,कोई चित्र बना सकता हो और उसके अन्दर रंगों का सामजस्य नही बिठा सकता है तथा उसे दिखाया किसे जाना है का पता नही मालुम हो तो भी उस चित्र की गरिमा बेकार की मानी जायेगी। इस बात को समझने के लिये अगर यूरेनस को समझ लिया जाये तो जो भी कला है जो भी ज्ञान है उसे सजा कर प्रस्तुत करने पर जल्दी से समझ मे आ सकता है। कुम्भ राशि बडे भाई का घर भी माना जाता है और बडे पुत्र की पत्नी के लिये भी जानी जाती है,पिता के भाव से तीसरी राशि होने के कारण पिता का पराक्रम भी माना जाता है पिता की अन्दरूनी ताकत भी मानी जाती है और पिता के पहिनावे के लिये तथा पिता के नाम को करने के लिये भी मानी जाती है,इसके साथ ही यह राशि दिशाओं से दक्षिण-पूर्व यानी अग्नि दिशा की कारक होने के कारण अपनी स्थापना पैदा होने वाले स्थान से आग्नि कोण मे ही स्थापित होने और वहीं से अपनी तरक्की के लिये भी मानी जाती है।
जीवन साथी के लिये भी कुम्भ राशि का असर देखने मे आता है कि पत्नी या पति पढे लिखे समाज से होता है,अपने को राजकीय कार्यों मे लगाकर रखने वाला माना जाता है,दिमाग मे अहम भरा होता है,किये जाने वाले कार्यों मे और फ़लों के अन्दर अहम से ही काम करना और अहम के बदले मे कार्य फ़ल अगर दूसरे भाव से देखा जाये तो अपने ही लोगों से फ़ालतू मे बैर पैदा कर लेना और किसी न किसी मामले मे गुप्त जानकारी करने की आदत बना लेना,अक्सर राज्य और सरकार से सम्बन्ध रखने के कारण जीवन साथी के अन्दर एक प्रकार की राजनीति पैदा हो जाना जिससे वह अपने से सम्बन्ध रखने वाले कारकों के प्रति गुप्त नीति से अपने को लगाये रखना,जैसे एक राजनीतिज्ञ की धारणा होती है कि अमुक व्यक्ति जो विरोधी पार्टी का है उसकी गतिविधिया क्या चल रही है और वह अपने किन उद्देश्यों मे सफ़ल होने के लिये आगे बढा रहा है,इन सब के लिये पहले से पहले ही काट तैयार रखना,और जैसे ही प्रतिद्वंदी के रूप मे सामने आये परास्त कर देना। इस कारण को समझने के लिये लालकिताब का भी सहारा लेते है तो उसके अन्दर कहा गया है कि हर जातक का लगन जातक की गद्दी होता है और सप्तम स्थान केवल मंत्रणा प्राप्त करने का स्थान होता है तथा अष्टम स्थान उस जातक की आंखे होती है और ग्यारहवां भाव उस जातक के पैर होते है। कुम्भ राशि की गद्दी उसके मित्र और बडे भाई का पद होता है,अपने पिता की बडी सन्तान के रूप मे वह भले ही नही पैदा हुआ हो लेकिन उसके कार्य बडे बडे भाई जैसे ही होते है,मित्रों की संख्या बढ चढ कर होती है,इन्सानी सहायता के रूप मे देखा जाता है और कन्या सन्तान की प्रोगेस से खुश होता है,दिली रूप मे माता से लगाव होता है,मकान आदि को या तो किराये से लेकर रहता है या किराये से चलाने की प्रक्रिया को करता है। धन और धन से मिलने वाले ब्याज को या तो देने का काम करता है या लेने का काम करता है,यह कार्य भी या तो किसी के अपमान मे जाने से धन की सहायता के रूप मे माना जाता है या खुद के अपमान मे जाने के बाद धन की सहायता लेने के लिये माना जाता है। जोखिम को लेना और जोखिम को पैदा करना भी एक आदत मे माना जाता है।
कुम्भ राशि मे भाग्य का कारक शुक्र होता है,शुक्र को भाग्य का स्वामी मानने के साथ साथ विदेश न्याय और यात्रा से सम्बन्धित कारको के लिये भी जाना जाता है,भाग्य की उन्नति शादी के बाद ही मानी जाती है,साथ ही जब जीवन मे कठिन समय आता है तो पत्नी से सम्बन्धित कारण पैदा होते है या किसी स्त्री सम्बन्धी कारण से ही न्याय मे जाना पडता है,भाग्य को बढाने के लिये भूभाग के अन्तिम मे नैऋत्य कोण यानी दक्षिण-पश्चिम दिशा को ही प्रयोग मे लाना पडता है। कार्यों के अन्दर प्लूटो की वृश्चिक राशि आने के कारण या तो मरे हुये धन को जिन्दा करने की आद्त होती है या भौतिक कारण जो मृत्यु के बाद की सम्पत्ति के प्राप्त होने के कारको मे अपने लिये जाने जाते है को पाना भी होता है। वृश्चिक राशि का प्रभाव प्लूटो के लिये बहुत ही उत्तम माना जा सकता है,जैसे किसी भी मशीनरी को चालू कर देने की आदत,दिमागी बल से मशीन से आश्चर्य जनक कारणो को पैदा करने की आदत,शमशानी कारणो को पैदा करने की आदत यह बात अक्सर समाज सोसाइटी और इसी प्रकार के कारको मे भी जाना जाता है,प्लूटो की गति के अनुसार ही जीवन मे जो कार्य होते है वे करने के लिये बुद्धि का प्रयोग भी माना जा सकता है,जैसे गूढ से गूढ कारणों मे चलते चले जाना और अधिकतर किसने क्या किया है वह इतिहास के रूप मे जानकारी करके रखना,किसे कहाँ अपमान की नजर से देखना है और किसे कहाँ अपमान से बचाना है इस बात का भी बहुत अधिक ज्ञान होने की बात भी प्लूटो से जानी जा सकती है। इस राशि का एक और सबसे बडा मूल्य माना जाता है कि या तो दोस्त वर्ग न्याय से जुडा होता है या यात्रा सम्बन्धी कारणों से जुडा माना जाता है,नही तो धार्मिक रूप से सभा सोसाइटी के रूप मे जुडा माना जा सकता है,कारण काल पुरुष की कुंडली के अनुसार भी यूरेनस की राशि कुम्भ मे गुरु की धनु राशि का होना माना जाता है,अक्सर जब भी जातक को समय मिलता है वह सीधे से बाप दादा की हैसियत को बखान करने के लिये अपनी योग्यता को दिखाने की कोशिश करता है,जो मित्र कानूनी रूप से जुडे होते है वे कानून से सहायता मे आते है और जो समाज के रूप मे जुडे होते है वे समाज के रूप मे सामने आते है,अगर यूरेनस का असर जीवन मे जरा भी भिन्न है तो खुद के परिवार से दूर जाकर दूसरे समुदाय के परिवार से जुडना पडता है।
यूरेनस की कुम्भ राशि के प्रति जो अकाट्य सत्य बताये गये है वे इस प्रकार से है :-
- जातक का मुख्य उद्देश्य मित्रो की सहायता से जुडा होता है,बिना मित्रों के उसका जीवन अधूरा होता है.
- कुटुम्ब के मामले मे वह अक्सर अपने लोगों से ही दूर रहने की कोशिश करता है,यहां तक कि माता और पिता के अन्तिम समय मे अपनी पूरी सहायता नही दे पाता है.धन के कारण बहुत ही बडे रूप मे सामने होते है किसी छोटे संस्थान मे काम करना वश की बात नही होती है,जीवन मे धन का क्षेत्र भी पैदा होने वाले स्थान से अग्नि कोण मे बनता है.
- अपने से छोटे भाई के प्रति अगर जातक अपनी सहायता प्रस्तुत करता रहता है व्यक्तिगत रूप से शारीरिक सुरक्षा बनी रहती है.
- दो रहने वाले मकान हमेशा साथ रहते है,माता का दोहरा जीवन मिलता है,पहला वाहन अधिकतर दो पहिया ही आता है.
- बुद्धि के मामले मे कमन्यूकेशन की विद्या ईश्वर के द्वारा प्रदत्त होती है,कमन्यूकेशन के साधनो मे बुद्धि बहुत तेज मानी जाती है.
- माता खानदान के लोग अक्सर दुश्मनी मानते है और दाव पडने पर अपनी शत्रुता को निभाने से नही चूकते है.जनता के लोग जो वाहन से सम्बन्धित होते है भावना प्रधान होते है वे अक्सर किसी न किसी प्रकार का पारिवारिक सम्बन्ध बनाकर घर को बरबाद करने के लिये अपनी योजनाये बनाया करते है.
- पत्नी का स्वभाव अहम से पूर्ण होता है और अक्सर पत्नी खानदान से कोई पत्नी के प्रति सहायता के लिये नही होता है,जब भी कोई आफ़त पडती है तो केवल मृत्यु सम्बन्धी कारण ही सामने आते है,पत्नी को अक्सर माता के बाद कोई न कोई मृत्यु के बाद की चल या अचल सम्पत्ति का मिलना होता है.
- किसी भी काम मे जोखिम लेने की आदत होने के बाद उस जोखिम से निपटने की शक्ति का मिलना ईश्वरीय माना जाता है,जन्म का स्थान या तो माता के परिवार मे या माता के परिवारी जनो के सहयोग वाले स्थान से माना जाता है,जन्म के समय कोई न कोई अस्पताली कारण जरूर मिलते है,अधिकतर जातक ननिहाल मे पैदा होते है या ननिहाल मे शुरु का जीवन निकालना पडता है.
- भाग्य शादी के बाद ही उदय होता है अक्सर विवाह के लिये भी दोहरे सम्बन्धो के लिये माना जाता है,या तो कोई सम्बन्ध पहले से होकर टूट गया होता है या शादी के बाद एक सम्बन्ध आजीवन चलने की बात मानी जाती है.भाग्य न्याय यात्रा या विदेशी सम्बन्धो के मामले मे जातक की पूंछ स्त्री जातक खूब करते है.
- किये जाने वाले कार्यों को अक्सर गूढ रखा जाता है,लेकिन वही कार्य कभी न कभी अपमान जोखिम और जीवन के अन्तिम समय मे खुल कर सामने आने से जातक के प्रति लोगों मे गलत धारणा बनती है.यह धारणा अक्सर पत्नी या पति कृत धन और मृत्यु के बाद की सम्पत्ति के प्रति मिलते देखे जाते है.
- मित्र वर्ग मे न्याय यात्रा धर्म संस्कृति इतिहास से जुडे लोग होते है,पिता परिवार के लोग अक्सर बडप्पन के कारण और अपने स्वार्थ की सिद्धि के लिये ही सम्पर्क मे रहने की कोशिश करते है.
- पिता का पहला घर अक्सर बरबाद होता है,तथा माता के प्रभाव से या पानी के किनारे वाले स्थानो मे प्रवास का पहलू बनाया जाता है.जीवन का अधिक समय पानी वाले क्षेत्रों मे या किनारे पर ही बिताया जाता है,जीवन की अन्तिम गति अक्सर दक्षिण-पूर्व या दक्षिण-पश्चिम मे ही होती है.
2 comments:
bahut hi sunder ............ shabd hi nahi h mere paas kya kahu so beautifull thanks sir g
bahut hi sunder..............
bahut hi dil ko chu gaya.
thanks sir g.....
Post a Comment