Monday, September 5, 2011

कर्ता है कोई दूसरा,कर्म करे कोई और,पाने वाला तीसरा ?

मनोरंजन कई प्रकार के होते है,एक मनोरंजन केवल समय को निकालने के लिये होता है,कोई और काम नही है तो जो भी मनोरन्जन का साधन है उससे मनोरन्जन को प्राप्त करना शुरु कर दिया। आंखो से देखा जाये कानो से सुना जाये और मन से मनन किया जाये,परिणाम बुद्धि से दिया जाये, मनोरंजन की परिभाषा मे यही सही रहेगी। घटना को देखना सुनना पढना और उस घटना से शिक्षा प्राप्त करना यह भी मनोरंजन की श्रेणी मे ही आता है। घटना भी कारित किसी के साथ होती है घटना को कारित करने वाला कोई और ही होता है,घटना का जस का तस रूप प्रस्तुत करने वाला कोई और ही होता है,घटना को कारित करने वाले और घटना जिसके साथ कारित होती है को सहन करने वाला,घटना का रूप प्रस्तुत करने वाला एक प्रकार से एक दूसरे से बंध जाये तो वह प्रस्तुति साक्षात प्रस्तुति कहलाती है।जब हमारे युग मे प्रस्तुत करने के साधन नही थे तो हम लिखा करते थे,लिखे हुये शब्दो को पढने के बाद हमारे मन के अन्दर एक द्रश्य चला करता था,वह द्रश्य समझ के अनुसार होता था,लेकिन जब साधन बने तो जो भी सामने है उसे वास्तविक रूप से देखने समझने महसूस करने और उस घटना को मानसिक रूप से अपने ही साथ घटी हुयी महसूस करने के बाद जो स्थिति बुद्धि की होती है उसी का निरूपण ही वास्तविक घटना का निरूपण कहलाता है।

सिंह लगन है तो कारक सूर्य से सम्बन्धित हो गया,सूर्यवंशी भी कहा जा सकता है राजवंशी भी कहा जा सकता है,और प्रकाश को देकर हकीकत की दुनिया को दिखलाने वाला भी माना जा सकता है। सबसे बडी इन्द्रिय मन को माना गया है,कारण सभी इन्द्रिया शिथिल हो सकती है मन मरते दम तक शिथिल नही होता है। मन को कन्ट्रोल करने वाला जितेन्द्रिय की श्रेणी मे आजाता है,और अपने को जितेन्द्र भी कह सकता है। लेकिन यह नाम तो जैन मुनि महावीर स्वामी के लिये माना जाता है,उन्होने अपनी इन्द्रियों को जीता था और पराशक्ति को महसूश किया था। पराशक्ति भी मन से ही प्राप्त की जा सकती है अगर मन भोग और विलास मे लगा होता तो कहां से पराशक्ति को प्राप्त किया जा सकता था। महावीर स्वामी भी सिंह राशि का माना जाता है,सूर्य इसका भी स्वामी है,मानसिक रूप से पराशक्ति को समझने के लिये उनका भी चन्द्रमा कर्क राशि का था इसलिये मानसिक गति मे भावुकता थी और उस भावुकता से उन्होने पहले संसार की गति को अपनी भावना मे ग्रहण किया फ़िर उसे संसार को द्रश्य करने के लिये अपने शरीर को प्रस्तुत किया अपने विचारों को जो भी उन्हे पराशक्ति से प्राप्त हुये प्रसारित किया,शरीर को शक्ति से क्षीण करने का कारण भी उनके लिये एक था,जब शरीर मे क्रिया शक्ति का बहुत अधिक बल रहेगा तो शरीर विभिन्न कामनाओं की पूर्ति के लिये अपनी गति को पैदा करेगा,उस गति से कोई काम बल पूर्वक भी हो सकता है,कोई काम बल पूर्वक किया गया तो किसी की मानसिक शारीरिक कार्य आदि से हिंसा भी हो सकती है,इससे दूर रहने के लिये उन्होने खुद को अपने द्वारा प्रस्तुत नही किया था,उनकी सिंह लगन की कुंडली में मंगल वक्री था। मंगल वक्री होने पर वह शारीरिक बल की बजाय तकनीकी बल को दिमागी बल मे प्रस्तुत कर देता है। उन्होने अपने को सांसारिक जीवो से अलग चला कर प्रस्तुत किया था,अगर वह अपने को लोगों के अनुसार ही चलाते रहते तो साधारण आदमी मे और उनके अन्दर अन्तर ही क्या था ? वे सबसे अलग चलते रहे अपनी इन्द्रियों को उन्होने कन्ट्रोल किया,कारण मंगल की शक्ति जब दिमागी रूप से बनी तो शारीरिक शक्ति का कारण कहाँ प्रस्तुत करना है और कहाँ नही के प्रति दिमागी प्रयोग करने की ताकत पैदा हुयी और उन्होने वक्री मंगल की उपस्थिति से अपने शरीर को कन्ट्रोल किया,और जितेन्द्र कहलाये। हालांकि उनका चन्द्रमा बारहवे भाव मे कर्क राशि का था,नाम तो उनका कर्क राशि से होना चाहिये था लेकिन मंगल के वक्री होने के कारण और अपने पर काबू रखने के कारण उनका नाम जितेन्द्र पडा। 

एक व्यक्ति के पांच पुत्र थे,चार की कुंडली मे गुरु मार्गी था और एक की कुंडली मे गुरु वक्री था। चार तो अपने अपने अनुसार विद्या को प्राप्त करने के बाद अपने अपने अनुसार मिलने वाले कामो को करने मे लग गये,घर के काम करना नौकरी करना और भोजन पानी के अलावा जो भी परिवार मे पहले से चल रहा था उसके अनुसार चलाकर जीवन को बिताना ही उनका काम रह गया,शादी करी बच्चे पैदा किये और बच्चों की परवरिश की और अपनी पूरी उम्र को प्राप्त करने के बाद चलते बने। लेकिन जिसका गुरु वक्री था उसके अन्दर एक अजीब सी भावना थी,वह पढकर सीखने के अलावा करके सीखने मे विश्वास रखता था,वह रटी रटाई शिक्षा को नही देकर शिक्षा को करके सीखने का उपाय बताया करता था,भोजन सभी समयानुसार किया करते थे लेकिन उसके भोजन का कारण सिर्फ़ शरीर को चलाने से था,घर मे अगर धन को महत्व दिया जाता था तो वह धन को केवल साधन के रूप मे समझता था,उसकी सोच मे था कि धन तो शरीर की गति से पैदा किया जा सकता है,और जैसे लोग अपने जीवन को लेकर चलते है उसके अनुसार चलने से तो कोई भी यही कह सकता है कि यह साधारण आदमी है। उल्टा चलना,अपने परिवार की मान्यताओं से दूर रहकर चलना जैसे जितेन्द्र का नियम था,लोग भूखे नही रह सकते थे लेकिन वे कभी भी उपवास करना शुरु कर देते थे,वह उस जमाने की बात थी,ऋषि मुनि जो एक वस्त्र धारी और कम कपडों मे अपने जीवन को निकालते थे,जिन्हे केवल कपडा अपने शरीर की गरिमा को छुपाने तक ही विश्वास था वे एक लंगोटी से अपने जीवन को निकाल लिया करते थे लेकिन आज के युग मे वही बात है,लेकिन बदल गयी है,लोग एक अन्डर वियर रूपी कपडा पहिन कर घूमने लगे है,महिलाये कम से कम कपडे पहिन कर अपने जीवन को चलाना चाहती है,उनकी चाहत भले ही अपने शरीर के प्रदर्शन से हो लेकिन मेरे अनुमान से तो यही माना जा सकता है कि वे भी जैन मुनि की श्रेणी मे आकर अपने इस पंच भौतिक शरीर को कोई महत्व नही दे रही है,या पुरुषों के लिये कहा जाये कि वे अपने शरीर को महत्व नही दे रहे है,फ़ैसन मानने वाले अपने अनुसार देखेंगे,कामुक लोग अपने अनुसार देखेंगे लेकिन हमारे जैसा आदमी तो केवल ऋषि मुनियों के रूप मे ही देखेगा,भले ही एक साधारण आदमी हनुमान जी के मन्दिर के सामने आदर से सिर को झुकाकर प्रणाम करने के बाद निकलेगा लेकिन एक ऋषि मुनि जैसा जामा पहिनने वाला व्यक्ति उनके सामने से आज की प्रणाम करने की कला-"हाय हनु" करके ही निकल जायेगा। यह उन्ही लोगों के अन्दर की बात मानी जाती है जो गुरु वक्री के समय मे पैदा हुये है,वे जैसे भारत मे पैदा हो गये है लेकिन उनकी धारणा किसी भी देश से नही मिलती है,वे कभी बहुत अच्छी तरह से अपने को ढांक मूंद कर निकलेंगे तो कभी एक अन्डरवियर ही पहिन कर निकल सकते है। गुरु वक्री की शिफ़्त आप के समझ मे आ गयी होगी,वह व्यक्ति अपने समाज मे अपने रीति रिवाज से दूर जाकर अपने अनुसार चलने वाला होता है,जितेन्द्र के पास बहुत बडा राजपाट था लेकिन वे अपने को अलग रखकर केवल भूखे रहकर अपने द्वारा ईश्वरीय शक्ति को ग्रहण करना चाहते थे,वे राज भोग से दूर रहना चाहते थे। जब कोई आदमी आगे बढना चाहता है तो वह लाइन मे लगकर कभी आगे नही बढ सकता है वह किसी अन्य रास्ते से अपने को लाइन से दूर करेगा और आगे निकल जायेगा जबकि बाकी के लोग लाइन मे लगे अपनी बारी आने का इन्तजार ही करते रहेंगे,जितना समय वे लाइन मे लगायेंगे इतने समय मे वह व्यक्ति कितना आगे निकल चुका होगा इसका अन्दाज केवल गुरु वक्री वाले ही लगा सकते है। गुरु वक्री की एक शिफ़्त और मानी जाती है कि जो समझ एक साधारण गुरु वाले मे होगी उससे कई गुना उसके अन्दर होगी वह चुटकी लगाते ही अपने को कहां से कहां पहुंचा सकता है इसका अन्दाज हर किसी को नही होता है। 

सिंह लगन मे ही राहु हो और उसके साथ गुरु भी वक्री हो और मंगल भी वक्री हो तो वह जो है उससे कई हजार गुना अपने को संसार मे प्रस्तुत करने की क्षमता को प्राप्त कर लेगा। राहु को विस्तार के रूप मे माना जाता है वह जिस भी भाव मे है और जिस भी ग्रह के साथ है अपने बल से उस ग्रह राशि को कई हजार गुना शक्ति देकर आगे बढाने की हिम्मत को प्रदान कर देगा। आपने सूर्य ग्रहण और चन्द्र ग्रहण के बारे मे सुना होगा,यह ग्रहण राहु के द्वारा ही दिया जाता है चन्द्रमा पर आने से अच्छी भली पूर्णिमा की चांदनी रात अन्धेरे मे तब्दील हो जाती है और अच्छा भला दिन जो सूर्य के प्रकाश से आच्छादित होता है अन्धेरे मे परिवर्तित हो जाता है,यह राहु के प्रभाव के कारण ही होता है। यह राहु अगर सीधे ग्रह के साथ होता है तो उस ग्रह के बल को इतना बढा देता है कि बेचारे ग्रह की बल से अधिक बल प्रयोग करने के कारण पूंगी बज जाती है और राहु अपने कार्य मे सफ़ल होकर उस ग्रह को समाप्त कर देता है,गुरु के साथ साधारण रूप मे होता है तो वह पैदा होने की साल मे नही तो अठारह साल की उम्र मे या छत्तीस साल की उम्र मे और कैसे भी बच गया तो चौवनवी साल मे राम नाम सत्य कर देता है,लेकिन जब यह राहु वक्री गुरु के साथ अपनी युति को देता है तो कहावत के अनुसार -"वक्र चन्द्रमहिं ग्रसइ न राहु",की सिफ़्त से उसे कई गुना और बलशाली बनाकर औकात को बढाने वाला बन जाता है। राहु के छाया ग्रह है और इसकी शक्ति से गुरु के अन्दर जब बक्री होता है तो किसी भी कार्य को समय के अनुसार तुरत फ़ुरत मे करने की क्षमता का देने वाला बन जाता है,अक्सर कैमरे के आगे खडे व्यक्ति को देखा होगा,जब तक कैमरे का फ़ोकस उस व्यक्ति पर होता है तो व्यक्ति कैमरे के ग्रहण मे होता है,अगर वह किसी प्रकार की प्रतिकूल हरकत कैमरे के सामने करता है तो वह अपनी तरफ़ से ही नीचा देखने के लिये माना जाता है,अच्छे कपडे अच्छे बोल अच्छे प्रभाव प्रस्तुत करने के समय जब कैमरा ओन होता है तो बडे बडे  लोग अपने को कुछ से कुछ प्रस्तुत करने लग जाते है और कितने ही बुरे हो अपने को भला साबित करने की कोशिश मे लग जाते है,जिससे कैमरे के अन्दर जो ग्रहण किया गया है वह कहीं भी प्रसारित होगा तो कपडे से बोलचाल की भाषा से और घटना के द्वारा उनकी छवि लोगों के दिमाग मे सही उभरे और लोग अपनी बुद्धि का प्रयोग करने के बाद उनके लिये बहुत अच्छी सी सोच पैदा कर ले। जितेन्द्र थे तो राजा लेकिन उन्होने अपने राजाशाही गुणों को प्रस्तुत नही करके एक मुनि का वेश संसार मे पैदा किया था,कोई भी सोचने के लिये मजबूर हो जाता था कि एक राजा एक संत के वेश मे है,जब यह व्यक्ति संसार के सुखों को त्याग कर माया को दूर फ़ेंक सकता है तो उसके सामने बडप्पन को प्रस्तुत करने से क्या फ़ायदा,लोग सीख वहीं लेते है जहां उनके वश के बाहर की बात हो और वे अपनी बुद्धि को एक दम से बदल दें। 

सिंह लगन मे राहु के साथ वक्री गुरु और वक्री मंगल के होने से रूप एक ऐसे व्यक्ति का प्रस्तुत होता है जो संसार को खेल खेल मे अपनी प्रस्तुति प्रदान करे,और संसार अपने को अपनी बुद्धि से सोच कर देखी या पढी गयी घटना को समझकर एक शिक्षा को प्राप्त करे। वह चाहे मनोरंजन के रूप मे हो या खेलकूद के सम्बन्ध मे हो या किसी धार्मिक भावना के रूप मे हो या किसी शिक्षा या राजनीति से सम्बन्धित हो या व्यापारिक प्रणाली से सम्बन्धित हो या दोस्त और कमन्यूकेशन के साधनो से सम्बन्धित हो,स्त्री और पुरुषों से सम्बन्धित हो,कानून और राजकीय कार्यों के प्रति अपनी भावना को रखती हो। 

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