Monday, September 5, 2011

बंधन

जीव आत्मा के साथ बंधा है,शरीर गति से बंधा है। बंधन का कारण यह चित्त है और चित्त का कारक चन्द्रमा है। सबसे बडा होता है मानसिक बन्धन यानी चन्द्रमा का बन्धन। माता पुत्र से बंधी है कारण पुत्र का मोह है,पिता से पुत्र बंधा है कारण पिता का मोह है। घर से शरीर बंधा है क्योंकि रहना है,यह लोभ कहलाता है,जहाँ लोभ पैदा हो जाता है वही राहु का कारण मन जाता है,राहु जब तक चित्त मे नही आता है,चित्त मे भ्रम नही होता है।

गति को देने वाली प्रकृति है,इस प्रकृति से भी बंधन है,हवा से बंधन जीने के लिये है पानी से बंधन भी जीने के लिये है,धरती से बंधन भी स्थापित रहने के लिये है,ईश्वर से भी बंधन जीवन की सत्ता को संचालित करने के लिये है,अग पानी हवा धरती ईश्वर यह जब तक एक साथ बंधे है जीवन है इनका दूर होना ही मृत्यु है। मृत्यु से डर लगता है कारण जीने का मोह है,जब तक मोह है डर का रहना जरूरी है,जब कि पता है कि मरना तो है ही,फ़िर मोह करना बेकार की बात है,जीने का लोभ ही मरने का डर है,यही राहु का सबसे बडा रूप है।

यह शरीर मेरा है,यह एक भूल है,इसे माता के गर्भ से प्राप्त किया गया है इसलिये यह माता का है,माता ने भी प्रकृति से तत्वों को लिया फ़िर उसे बनाया है तो प्रकृति का है,फ़िर मेरा कहाँ से हुआ ? केवल भ्रम है कि मेरा है,लोभ है कि यह मरे नही यही भ्रम चित्त का है और यही राहु है। परिवार मे रहते हुये परिवार के लोग कहने लगते है कि यह मेरा पौत्र है मेरा पुत्र है मेरा भाई है मेरा भतीजा है मेरा भानजा है मेरा पति है मेरा पिता है,जब तक काम करने की क्षमता है तो मालिक कहता है मेरा नौकर है जब तक काम करवाने की क्षमता है कहता है मेरा मालिक है,धन है तो सेठ है धन नही है तो भिखारी है,अपराध कर दिया तो मुल्जिम है,दया कर दी तो साधु है,यह भ्रम है चित्त का और यही लोभ है कि यह एक सम्बन्धित रिस्तेदार का रिस्तेदार है,रिस्तेदारी राहु है।

शिक्षा देने वाला बना तो शिक्षक है शिक्षा को पाने वाला बना तो विद्यार्थी है,विद्यार्थी और शिक्षक का अहम है,बीच मे विद्या है एक देता है तो दूसरा लेता है,देने वाले को अहम है कि मै देने वाला हूँ और लेने वाले को अहम है कि मै शिक्षा को लेता हूँ,शिक्षक विद्यार्थी शिक्षा इन तीनो से एक कारक को दूर कर दो अहम की समाप्ति हो जाती है,जो अहम समाप्त हुआ वही भ्रम की स्थिति समाप्ति और वही पर राहु का द्रश्य रूप से सामने होना।

बडा अहम तो बडा पद और छोटा अहम तो छोटा पद,बडा अहम और छोटा अहम बीच मे रहने वाला पद,अगर तेनो की श्रंखला से एक को अलग कर दिया जाये तो तीनो का जी मूल्य समाप्त। कप चाय और पीने वाला इन तीनो के अन्दर भी एक भ्रम पीने वाले के लिये चाय चाय के लिये कप और कप के लिये चाय,चाय को हटा तो क्या पिया जायेगा,कप को हटा तो किससे पिया जायेगा और पीने वाले को हटा दो तो कौन पियेगा,बहुत बडा भ्रम और यही भ्रम राहु है।

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