Sunday, July 17, 2011

कालसर्प योग का श्रावण के महिने में उपचार

कालसर्प दोष
कालसर्प दोष के प्रति काफ़ी गलत धारणा लोगों के अन्दर व्याप्त हो रही हैं,हर कोई हर किसी को किसी न किसी प्रकार से कालसर्प दोष का अधिकारी बना कर पैसा बनाने की जुगत में लगा हुआ है,सबसे पहले राहु और केतु के बारे मे जानना जरूरी है,अगर किसी प्रकार से राहु और के केतु के एक तरफ़ सभी ग्रह आजाते है तो उसके बारे में कह दिया जाता है कि अमुक को कालसर्प दोष है,और हर मर्ज की एक दवा बताते हुऐ कहा जाता है,कालसर्प दोष की शांति करवा लेनी चाहिऐ,शांति के नाम पर पूजा जाप और नासिक और न जाने कहां कहां स्नान और हवन आदि करने के लिये बोला जाता है.लेकिन होता वही है जो होना है,कर्म की गति तो रुकती नही है,राहु और केतु के बारे में जानने के लिये मैं आपको विश्व प्रसिद्ध ज्योतिष "लालकिताब ज्योतिष" की तरफ़ लिये चलता हूँ,लालकिताब में साफ़ तरीके से लिखा है, कि राहु की सिफ़्त सरस्वती की है,और केतु को गणेशजी की उपाधि दी गयी है,अगर सरस्वती और गणेशजी दोनो खराब है,तो फ़िर विद्या और साधन का महत्व ही नही रह जाता है,क्यों कि सरस्वती को विद्या की देवी कहा गया है,और गणेशजी को साधनों का देवता कहा गया है,गणेशजी को प्रथम पूज्य कहा गया है,हर किसी स्थान पर दैहिक,दैविक,और भौतिक कारणो में साधन के रूप में विद्यमान देवता को अगर बुरी नजर से देखा जाये तो कितना अच्छा है,यह तो कोई अनपढ भी समझ सकता है,दैहिक कारणों में गणेशजी शरीर के अन्दर खाने के समय हाथ के रूप में देखने के लिये आंख के रूप में,पचाने के लिये आंत के रूप में और मल त्याग करने के लिये गुदा के रूप में उपस्थित है,संतान पैदा करने के लिये लिंग और भग के रूप में,सोचने के लिये दिमाग के रूप में,आंखॊं की रक्षा करने के लिये पलक के रूप में सिर में बाल के रूप में,सुनने के लिये कान के रूप में जिंदा रखने के लिये ह्रदय के रूप में और खून में रुधिर कणिका के रूप में विद्यमान हैं,दैहिक कारणों में ही पुत्र के रूप में आगे का वंश चलाने के रूप में,भानजे के रूप में शारीरिक नाम को चलाने के रूप में,ससुराल में साले के रूप में,ननिहाल में नाना और मामा के रूप में विद्यमान है,घर की रखवाली के लिये कुत्ते के रूप में,लिखने के लिये पेन के रूप में,लोगों से संचार व्यवस्था रखने के लिये कम्प्यूटर के रूप में,और कम्प्यूटर में की बोर्ड और माउस के रूप में,टेलीफ़ोन और मोबाइल के रूप में,यू.एस.बी. पोर्ट में कोई भी नया सिस्टम लगाने के रूप में जब गणेशजी हर जगह विद्यमान है,यह सब दैहिक और भौतिक कारणों के अन्दर आजाते है,गाडी में ड्राइवर और टायर ट्यूब के रूप में,चलाते वक्त स्टेयरिंग के रूप में,सरकार में नेता के रूप में,आफ़िस में अधिकारी के रूप में,सडक पर साइनबोर्ड के रूप में,कोरियर कम्पनी में पत्र बांटने के रूप में,गणेशजी की महत्ता तो है ही,इसके अलावा देवताओं में बता ही चुका हूँ,कि वे सर्वपूज्य और प्रथम मान्य है,तो गणेशजी और माता सरस्वती का इतना अपमान क्यों काल सर्प दोष के नाम पर किया जा रहा है,लोग कहते हैं कि शत्रुता के चलते राहु खत्म कर देता है,केतु हाथ पैर तोड देता है,मगर शत्रुता वाले कारण कौन पैदा करता है,राहु केतु तो करने नही आते है न?,अगर आप हिन्दू धर्मालम्बी है,तो आपने भगवान शिव का नाम तो सुना होगा पूजा पाठ भी किया होगा,शिव परिवार को ही लेलो,शिवजी का वाहन नादिया है यानी बैल,और माता भवानी का वाहन है शेर,दोनों के अन्दर कितनी मित्रता है,शेर का भोजन ही बैल है,अब उनके पुत्र गणेशजी को लेलो,उनका वाहन चूहा है और शिवजी के गले में नागों की माला है,नाग का भोजन ही चूहा है,इधर कार्तिकेयजी को लेलो,उनका वाहन है मोर और शिवजी के गले में नाग हैं,मोर का भोजन ही नाग हैं,लेकिन शत्रुता को भी अगर काम में ले लिया जावे तो वह शत्रुता भी फ़ायदा देती है.इसे और अच्छी तरह से समझने के लिये लोहे और तेल का संगम समझना भी उचित होगा,तेल तरल है,लोहा कठोर है,लोहे को लोहे से लडाने के बाद उससे लाखों तरह के काम लिये जाते है,और तरल तेल से लोहे को स्मूथ चलाने के लिये तेल का काम लिया जाता है,तलवार तेज धार रखती है,उसमें मूंठ अगर गोल नही लगाई जावे तो वह चलाने वाला का हाथ ही काट डालेगी,इस तरह से लोहा अगर केतु है,तो तेल राहु है,तलवार अगर राहु है तो उसमे लगी मूंठ केतु है,इसी तरह से बन्दूक अगर केतु है तो उसमे चलने वाली बारूद की गोली राहु है,बिजली का तार अगर केतु है तो उसके अन्दर चलने वाला करेंट राहु है,किताब अगर केतु है तो उसके अन्दर लिखा हुआ राहु है,कम्प्यूटर अगर केतु है तो उसके अन्दर चलने वाले सोफ़्टवेयर राहु है,बैटरी अगर केतु है तो करेंट राहु है,मोबाइल अगर केतु है,तो उसके अन्दर लगी बैटरी राहु है.इस प्रकार से राहु और केतु को समझा जा सकता है.
अकेले राहु केतु कभी परेशान नही करते
राममुन के दो पुत्र है,दोनो की कुन्डली मे काल सर्पदोष है,बडे की कुन्डली में राहु चौथा और केतु दसवां है,राहु के साथ शुक्र भी है और चन्द्रमा भी,केतु के साथ कोई भी नही है,केतु छठे शनि को देख रहा है,इधर राहु चन्द्र और शुक्र का बल लेकर भी शनि को देख रहा है,चन्द्र और शुक्र राहु का बल लेकर केतु से विपरीत हैं,शनि ने अपने धन के त्रिकोण मै बैठ कर (दूसरा,छठा और दसवां भौतिक सम्पदा के लिये देखा जाता है,दूसरा धन है तो छठा रोजाना के कार्य करने और कर्जा दुश्मनी बीमारी के लिये हुज्जत का घर है और दसवां घर कार्य और पिता तथा सरकार के लिये गिना ही जाता है) केतु ने शनि को देखा है,शनि कर्म का कारक है,कर्म भी छठे घर का यानी केवल नौकरी के द्वारा ही धन कमाने का उद्देश्य,केतु टेलीफ़ोन के लिये भी गिना जाता है,टेलीफ़ोन का काम भी किया है,लेकिन शनि ठंडा ग्रह भी है,चालाकी से भरा ग्रह भी है,नीच प्रकृति का ग्रह भी है,कन्या का शनि होने के नाते आजीवन लडकियों के लिये काम करने वाला शनि भी है,शनि और राहु के बीच में गुरु,सूर्य,और बुध भी फ़ंसे है,गुरु जीव है तो सूर्य आत्मा,गुरु जीव है तो बुध बुद्धि,सूर्य बुध दोनो मिलकर सरकारी लखटकिया हैं,मेला,प्रदर्शनी के अन्दर पैदा गिनने का काम भी करते है,कार्य किया तो जायेगा,लेकिन केतु का बल लेकर,अगर साथ में सहायक है तो काम बन्दा कर सकता है,और बिना सहायक के वह बेकार सा ही है,शनि यानी कर्य को सहारा देने के लिये सूर्य पिता के रूप में है,पिता के बाद पुत्र का उदय है,और वह सहायक के रूप में है,सूर्य सरकार है,वह भी समय पर सहायक होगी लेकिन पुत्र के लिये,गुरु शनि को सहारा दे रहा है,गुरु ज्ञान का कारक है जो भी काम किया जायेगा वह ज्ञान का सहारा लेकर किया जायेगा,गुरु और सूर्य पांचवें भाव में विराजमान है,हर काम को मजाक के रूप में किया जायेगा,एम्यूजमेन्ट का सहारा लेकर किया जायेगा,राहु चौथे घर में माता का बल देता है,मकान का बल देता है,पानी का बल देता है,चौथे घर में शुक्र माया नगरी को पैदा करता है,वह माया बिजली की रोशनी की माया हो या बारूद की आतिशबाजी की माया,अथवा राहु यानी बात की सत्यता की माया,वाहन की माया,जानने वाले लोगों की माया,ह्रदय की खूबसूरती की माया,चौथा घर खेत है,खेती में चन्द्र यानी चावल की माया,शुक्र यानी गेंहूं की माया,हरी घास या चरी की माया,राहु चन्द्र मिलकर मन को अशान्त करते है,राहु विद्या और चन्द्र ह्रदय,हमेशा हर बात में विद्या का प्रयोग करने की माया,शुक्र पत्नी है,तो चन्द्र छलिया औरत भी है,एक औरत के द्वारा छलने की माया,राहु पितामह है,और चन्द्र शुक्र मिलकर पितामह के लिये सूचित करते है कि वे भी अपनी पत्नी के यानी दादी के अलावा शुक्र पत्नी तो चन्द्र छलिया औरत से सम्बन्ध या ठगे गये थे,शुक्र खेती है,चौथा घर पानी है,चन्द्र पानी में पैदा होने वाली फ़सल है,यानी खेती में चावल का पैदा होना भी मिलता है,सफ़ेद वस्तुओं का पैदा होना भी मिलता है.राहु खाद है,चन्द्र से सफ़ेद और शुक्र से हरा रखने के लिये,सफ़ेद खाद यानी यूरिया का प्रयोग भी खेती के लिये होता है,राहु बिजली है,चन्द्र पानी है,शुक्र खेती है,तीनो का संगम करने के लिये बिजली से पानी निकालकर खेती करने वाली बातें भी मिलती है,राहु कुआ है,चन्द्र पानी है,शुक्र कच्चा घर भी है,जन्म का स्थान भी यही मिलता है,इस प्रकार से राहु हर जगह से सहायक मिलता है,केतु का काम सहायक होना भी मिलता है,शनि काम और दूसरे भाव के प्रति धन वाले काम,केतु तार है,तो शनि काम है,जातक तार का काम भी जानता है,केतु को चन्द्र देख रहा है,आमने सामने की टक्कर है,सहायक होना केवल पानी के लिये,माता के लिये घर के लिये और जान पहिचान वाले लोगों के लिये,लेकिन राहु को बल मिला,चन्द्र का शुक्र का,पितामह को शुक्र यानी खेती मिली,शुक्र यानी उनकी पत्नी यानी दादी के द्वारा,चन्द्र ने राहु का बल लिया,पितामह ने काफ़ी कुयें बनवाये,पितामह की हैसियत के बारे में भी राहु ने बखान किया,शुक्र और राहु मिलकर मायानगरी बना देते है,चन्द्र अपने घर में विराजमान है,माया नगरी का काम राहु ने दिया तो पितामह ने केतु यानी उस मायानगरी का सहायक बन कर यानी मल्टीनेशनल कम्पनी में ओहदेदार पोस्ट पर रह कर काम किया.इस प्रकार मालुम चलता है कि कभी राहु और केतु मिलकर परेशान नही करते हैं.
कालसर्प दोष की पहिचान
काल सर्प दोष की पहिचान के लिये कुन्डली के भावों में राहु केतु की स्थिति को देखनी पडती है,लगन को पहला भाव कहते है और पहले भाव से बारहवें भाव तक राहु केतु की स्थिति के अनुसार ही काल सर्प दोष का वर्गीकरण किया जा सकता है,राहु केतु के एक तरफ़ ग्रहों का स्थित हो जाना अथवा दूसरी तरफ़ एक या अधिक ग्रहों का बक्री हो जाना,अस्त रहना कालसर्प दोष का निर्माण करता है,कालसर्प का मतलब होता है कि राहु या केतु पर किसी खराब ग्रह की नजर,युति या साथ,खराब ग्रह का मतलब है,कि शनि,मंगल या छठे,आठवें,या बारहवें भाव के स्वामी का साथ भी राहु केतु को खराब कर सकता है,राहु का मतलब पितरों से माना जाता है जो कि पिता के खानदान से सम्बन्धित होते है,और केतु का मतलब माता खान्दान से होता है,जैसे नाना या पडनाना आदि,इन ग्रहों पर किसी खराब ग्रह की युति या सम्बन्ध उसी प्रकार की प्रकृति पैदा करता है,जो कि उनके अन्दर होती है,जैसे लगन में राहु है,और शनि ने राहु को अपना साथी बनाया हुआ है,राहु का मतलब शिक्षा से भी होता है,तो जातक के अन्दर शनि वाली चालाकी फ़रेबी और नीच प्रकृति की भावनाओं का उदय होगा,जातक नेकी के रास्ते पर चल ही नही पायेगा,शनि ठंडा ग्रह भी है,जातक के अन्दर आलस भरा रहेगा,और जब आलस का भाव दिमाग में रहेगा तो जातक चाह कर भी कार्य समय पर नही कर पायेगा,और जीवन यापन के लिये परेशान होता रहेगा,दिमाग भारी रहेगा,जातक को समय पर बात करने और विद्या क प्रयोग करने का समय ही नही मिलेगा,या तो वह समय पर आलस और अन्य कारणों से निश्चित जगह पर पहुंच नही पायेगा,अगर किसी प्रकार से पहुंच भी गया तो वह चालाकी का भाव पैदा करेगा,और वक्त पर पकडा जायेगा,बाद में सिवाय दुखों के और कुछ मिलता नही है,शनि रात का राजा है जहां पर सूर्य की सीमा खत्म होती है शनि की चालू हो जाती है,जातक को निशाचरी काम अच्छे लगेगे,वह दिन में तो अपनी कार्य सीमा को न के बराबर रखेगा और रात में वह चोरी डकैती वाले काम करेगा.इसी प्रकार से अन्य भावों के राहु का और केतु का प्रभाव देखा जा सकता है.
कालसर्प दोषों के प्रकार
कालसर्प दोष बारह प्रकार के होते हैं:-
१.अनन्त कालसर्प दोष,यह पहले भाव में राहु और सातवेम भाव में केतु के रहने तथा अन्य ग्रहों का पहले भाव से सातवें भाव के बीच में रहने पर माना जाता है.
२.कुलिक कालसर्प दोष,यह कुलिक यानी कुल (कुटुम्ब) दूसरे भाव में राहु और आठवें भाव में केतु के रहने पर अलावा ग्रहों के दूसरे भाव से आठवें के मध्य में रहने प माना जाता है.
३.वासुकि कालसर्प दोष,यह कालसर्प दोष तीसरे भाव में राहु और नवें भाव में केतु के रहने तथा अन्य ग्रहों के तीसरे से नवें के मध्य रहने पर माना जाता है.
४.शंखपाल कालसर्प दोष,राहु चौथे भाव में और केतु दसवें भाव मे हो तथा सभी ग्रह एक तरफ़ हों.
५.पद्यम काल सर्प योग,राहु पांचवे और केतु ग्यारहवें भाव में हो तथा अन्य सभी ग्रह एक तरफ़ हों.
६.महापद्यम काल सर्प योग,राहु छठे और केतु बारहवें भाव में तथा अन्य ग्रह एक तरफ़ हों.
७.तक्षक कालसर्प योग,राहु सातवें और केतु पहले भाव में
८.करकट कालसर्प योग,राहु आठवें और केतु दूसरे भाव में तथा अन्य ग्रह एक तरफ़ हों.
९.शंखचूड कालसर्प योग,राहु नवें और केतु तीअरे भाव में तथा अन्य ग्रह एक तरफ़ हों.
१०.घातक कालसर्प योग,राहु दसवें और केतु चौथे भाव में तथा अन्य ग्रह एक तरफ़ हों.
११.विषधर कालसर्प योग,राहु ग्यारवें और केतु पांचवें भाव में विद्यमान हो और अन्य ग्रह एक तरफ़ हों.
१२.शेषनाग कालसर्प योग,राहु बारहवें और केतु छठे भाव में विद्यमान हो तथा अन्य सभी ग्रह एक तरफ़ हों.
कालसर्प योगों का प्रभाव
कालसर्प योगों का प्रभाव जीवन में सुख से भरा भी होता है,और दुख से भरा भी होता है,जन्म राशि के प्रभाव से राहु और केतु तत्वों के अनुसार अपना प्रभाव देते हैं,कुन्डली में मेष,सिंह और धनु राशियां अग्नि तत्व की मानी जाती है,राहु सकारात्मक छाया ग्रह है और केतु नकारात्मक छाया ग्रह.एक तत्व में बढोत्तरी करता है और दूसरा घटाता है,लेकिन प्रभाव दोनो का ही खतरनाक माना जाता है,राहु अक्स्मात अग्नि तत्वॊ वाली राशियों में किये जाने वाले संकल्पों में,द्रढ इच्छा में,कर्मशीलता में,गतिशीलता में बढोत्तरी करता है,और केतु घटा देता है,पृथ्वी तत्वों वाली राशियों में जिनमें वृष,कन्या और मकर है,जातक की मेहनत करने मे,धैर्य में,और आत्म संतोष में सांसारिक वस्तुओं में,समस्याओं के प्रति उदासीनता मे,राहु वृद्धि करता है और केतु घटा देता है.वायु तत्व वाली राशियां जिनमें मिथुन तुला और कुम्भ राशियां आती है,में कल्पनाशीलता में,बुद्धिमानी में,अनुशासन प्रियता में राहु बढोत्तरी करता है,और केतु घटा देता है.जल तत्व वाली राशियों के अन्तर्गत जिनमें कर्क,वृश्चिक और मीन राशियां आती है,में राहु सन्देह,मित्र प्रेम,बातूनी और स्वाभिमानी स्वभाव में बढोत्तरी करता है और केतु घटा देता है.इसके अलावा राशियों के द्वारा भी राहु और केतु अपना प्रभाव देते है,ग्रहों के द्वारा दिये जाने वाले प्रभाव का जो असर मिलता है वह इस प्रकार से है:-
१.सूर्य राहु-दादा के बारे में प्रसिद्धि बखान करता है,जातक को पराविज्ञानी बनाता है,आंखों की रोशनी को चकाचौंध से खराब करता है,अनैतिक स्त्री या पुरुष सम्बन्ध से पुत्र या संतान पैदा करके छोड देता है,पिता की मौत राहु वाले कारणों से करता है,जातक से कानून विरुद्ध कार्य करवाता है,अपने जन्म के समय अपने पिता को और अपने पुत्र के समय पुत्र को कष्ट मिलने की सूचना देता है,संतान काफ़ी मुश्किलों से मिलती है,इसका कारण जातक को वीर्य (सूर्य) इकट्ठा करने में परेशानी होती है,वह अचानक कुत्सित विचार (राहु) दिमाग में आते ही राहु मंगल (जवान सजे धजे पुरुषॊ की तस्वीरें और फ़िल्म) को देख कर कृत्रिम तरीके से वीर्य को स्खलित कर देता है,या राहु शुक्र माया नगरी वाली मायावी स्त्रियों की तस्वीरें और फ़िल्म देख कर वीर्य को कृत्रिम साधनो से स्खलित कर देता है.यह सूर्य में अपना गलत भाव या पारिवारिक मर्यादाओं के अन्दर कृत्रिमता लाने से सूर्य पिता के अन्दर अपना प्रभाव देकर उसे अक्समात कुछ भी करने के लिये स्वतंत्र करता है.
२.सूर्य केतु:-सूर्य पिता और केतु पुत्र दोनो ही धार्मिक होते है,और अधिक धार्मिकता के कारण कर्म से दोनो की च्युति हो जाती है,धर्म के कारण किसी भी कार्य को करने में कठिनाई केवल इसलिये होती है,कि वे कर्म और धर्म का संयोग नही बिठा पाते है,कर्म के अन्दर अपना प्रभाव दिखाने वाली चालाकी आदि से उनको नफ़रत होती है.पिता के पास नकारात्मक जमीन भी होती है,जो किसी काम की नही होती है.
३.चन्द्र राहु:-माता को जातक के जन्म के पूर्व कष्ट रहा है,की सूचना देता है,यहां पर राहु माता की सास के बारे में सूचना देता है,जो विधवा भी रही हो,माता के दिमाग में बेकार का अन्धेरा भी देता है,जिसे आज की भाषा में टेंसन कहते है,चन्द्र की हैसियत मस्तिष्क भी है अत: जातक का दिमाग भी चिन्ताओं से ग्रसित होता है,चन्द्र जनता है तो राहु जनता के अन्दर एक अन्जाना डर भी देता है,जिस डर के कारण जनता उसे चुनाव आदि में लगातार जीत या शासन देने के लिये बाध्य हो जाती है,चन्द्र राहु मिलकर विधवा माता के द्वारा पालित जिन्दगी को भी सूचित करते है,जातक का झूठा होने का संकेत भी दोनो ग्रह देते है,जातक बुद्धि को भ्रमित करने में माहिर भी माना जाता है,जन्म स्थान के पास दक्षिण पश्चिम में कुआ होने का संकेत भी मिलता है,माता या सास का लालच भी यह दोनो ग्रह बखान करते है,दादा के द्वारा दूर से आकर मकान बनाकर निवास करने का योग भी दोनो ग्रह बताते हैं,जातक को मानसिक परेशानी का ब्यौरा भी यह दोनो ग्रह देते है,अगर किसी प्रकार से मंगल का योग दोनो में मिल जाता है,जो जातक केमिस्ट्री में अपना अच्छा वर्चस्व बना लेता है.
४.चन्द्र केतु:-चन्द्र केतु दोनो मिलकर माता को धार्मिक बना देते है,अगर सभी ग्रह कुन्डली के दाहिनी तरफ़ होते है तो जातक की माता अपना सर्वस्व दूसरों को अर्पित कर देती है,जन्म स्थान के पास झन्डा लगा होता है,मीनार होती है,या जन्म स्थान के पास नहर तालाब या नदी होती है,धर्म मन्दिर या देवी मन्दिर की भी सूचना दोनो ग्रह मिलकर देते है,चन्द्र मस्तिष्क है तो केतु स्नायु मंडल,जातक को स्नायु वाली बीमारी भी होती है,जातक का मन अधिकतर सन्यास की तरफ़ लगा रहता है.
५.मंगल राहु:-मंगल इन्जीनियर है तो राहु मशीन,मंगल मशीन है तो राहु बिजली,मंगल भाई है तो राहु उसकी शिक्षिका पत्नी,राहु से हीरोइन पत्नी भी मानी जाती है,राहु से नाचने वाली पत्नी भी मानी जाती है,राहु से विधवा के साथ भाई की शादी भी मानी जाती है,राहु से भाई का शमशान वास भी माना जाता है राहु से अघोर पंथ की तरफ़ भाई का पलायन भी माना जाता है,मंगल धर्म स्थान है तो राहु धर्म स्थान के पास होने पाठ,मंगल मशीन है तो राहु गोल पहिया,मंगल बिजली है,तो राहु पहिया यानी बिजली से घूमने वाला पहिया,पंखा भी मान सकते है और बिजली वाली मोटर भी मान सकते है,मंगल भाई है तो राहु सिनेमा,भाई का काम सिनेमा में हो,राहु वाहन से भी सम्बन्ध रखता है,मगल वाहन का इन्जीनियर भी बनाता है,मंगल सैनिक है तो राहु आसमान का राजा,यानी स्पेस टेक्नोलोजी में अग्रणी भी बनाता मगर शर्त से गुरु भी साथ होना चाहिये.मंग्तल पराक्रम है तो राहु गाली,जातक बिना सोचे कुछ भी कह देता है,मंगल लोहे का गर्म पाइप है तो राहु बारूद,मंगल भवन है तो राहु सीमेंट,शुक्र साथ है तो भवन निर्माण में सीमेंट का प्रयोग,राहु पितामह यानी दादा है तो मंगल दुश्मन,यानी दादा के दुश्मन रहे हों,मंगल व्यक्ति है तो राहु आदेश,हिटलर की कुन्डली में भी यह दोनो अपना कालसर्प योग बना रहे थे.मंगल रक्त है तो राहु उच्च रक्त चाप की बीमारी,बुध साथ है तो प्लास्टिक के वाल चन्द्र ह्रदय में डाले जाते है.
६.मंगल केतु:-मंगल रक्त है केतु निम्नता यानी लो-ब्लड प्रेशर की बीमारी,स्त्री कुन्डली में मंगल पति है तो केतु साधु यानी मंगल पति केतु लंगोटी को धारण किये रहता है,केतु जटाओं को रखाये रहता है,लेकिन सूर्य का साथ होने पर मूंछों वाला जातक भी मानते है,खाना पकाने के स्थान पर ढाबे के नौकर भी माने जाते है,बिजली का काम करने वाले नौकर भी माने जाते है,गुरु साथ होने पर या युति होने पर बिजली विभाग में अधिशाषी अभियन्ता के पद पर भी आसीन करवा देता है,मंगल लडाई है तो केतु सैनिक,मंगल थाना है तो केतु सिपाही,मंगल भोजन है तो केतु चम्मच,मंगल गुस्सा है तो केतु थप्पड,दोनो मिलकर कुन्डली में महान मंगली दोष भी बना देते है,और पति या पत्नी की औकात को गर्म लोहे की छडी बना देते है,भाई को या पति को स्नायु रोग की बीमारी भी दोनो ग्रह बताते है,मंगल जमीन है तो शुक्र के साथ होने पर खेती करने वाला किसान भी बना देते है,चन्द्र के साथ मिलने पर शादी के योग में साठ प्रतिशत तक कमी आजाती है,शादी के बाद चन्द्र माता गुस्सा करती है,शुक्र पत्नी को भुगतना पडता है,मंगल और शुक्र के बीच में चन्द्रमा होने पर माता प्यार प्रेम में दखल देती है.गृहस्थ जीवन में कथिनाई होती है.
७.बुध राहु:-बुध भूमि है तो राहु मुस्लिम और केतु क्रिस्चियन,शनि साथ है तो जन्म कब्रिस्तान के पास हुआ है,निवास है,बुध व्यापार है तो राहु फ़िल्म लाइन,फोटोग्राफ़ी का कार्य भी बताता है,बुध रीति रिवाज को नही मानता है,अगर राहु साथ हो,जातक अनर्जातीय शादी भी करता है,बुध बहिन है तो राहु विधवा या बदचलन का हाल भी बताता है,मंगल का साथ है तो कम्प्यूटर पर पोर्न साइट भी बनाता है,पोर्न पिक्चर का निर्माण भी करता है,शुक्र साथ है तो पिक्चरों के द्वारा ब्लैक मेल भी करता है,मुस्लिम या क्रिस्चियन से शादी और प्रेम प्यार भी बताता है,बुध वाणी है तो राहु बकवास,यानी जातक बकवासी भी होगा.बुध त्वचा है तो राहु खुजली,बुध व्यापार है तो राहु आतंकवादी.सीमेंट,बिजली,दवाई,पिक्चर,मीडिया,कमन्यूकेशन,पेट्रोल,डीजल,का व्यापार भी करवाता है.
८.बुध केतु:-बुध वाणी है तो केतु साधन,बोलने का साधन यानी रेडियो,प्रवचन करने वाला,बुध हरा है तो केतु झण्डा,यानी मुस्लिम राष्ट्र का ध्वज,केतु लम्बा और बुध हरा,नारियल या खजूर का पेड भी है,बुध बहिन बुआ बेटी है तो केतु भान्जा,नाती,या फ़ुफ़ेरा भाई भी है,बुध बहिन है तो केतु नाना भा है बहिन का पालन पोषण नाना के द्वारा भी है,चौथे भाव में राहु शुक्र चन्द्र और दसवे भाव में  बुध केतु है तो पिता के नाना की जमीन पर अधिकार भी है,जन्म स्थान कच्चे घर मे है और जन्म के दस साल तक जन्म स्थान के घर का सत्यानाश भी है.
९.गुरु राहु:-गुरु जीवन है तो राहु खतरा,जीवन में बलारिष्ट योग भी मिलता है,जब राहु गोचर से गुरु के ऊपर सन्क्रमण करे,तो गोचर के पूरे समय तक जीवन को खतरा बना रहे,और जब गुरु राहु के ऊपर गोचर करे तो जातक दर दर का होकर भटकता रहे,शम्शानो की धूल छानता रहे,भाइयों को और अपने से छोटों को हमेशा प्रवचन ही दिया करे,गुरु हवा है राहु गन्दगी,जातक का निवास गंदी जगह पर हो जहां पर वह गंदगी की बदबू सूंघता रहे,जातक के साथ एक काना या काला आदमी निवास करे,अथवा जातक के पास में निसन्तान व्यक्ति रहता हो,जातक का दरवाजा पूर्व में हो,दरवाजे के नीचे से या मकान के पीछे से नाली या खिडकी लगी हो,मंगल साथ होने पर मकान पर धर्म का झण्डा लगा हो,एक साधू स्वभाव का व्यक्ति साथ रहता हो,घर में प्रवचन कथा वाचन होता रहे,पितामह महान आदमी रहे हों,राहु वाहन और गुरु जीव,जातक हमेशा यात्रा में बना रहे,गुरु हवा और राहु वाहन,जातक के जीवन में हवाई यात्रायें अधिक होती रहें,सूर्य साथ हो तो जातक ऊर्जा मंत्री की पोस्ट पर हो,राहु ऊर्जा और गुरु हवा,सूर्य से गर्मी लेकर जातक सौर ऊर्जा का जानकार हो.
१०.गुरु केतु:-गुरु केतु साथ में मिलकर नकारात्मक भाव जातक में भर देते है,जातक हमेशा नीचा सोच कर ही कार्य करता है,और नीचा सोच कर कार्य करने पर उसे सफ़लता जरूर मिल जाती है,पंडित जवाहर लाल नेहरू की कुन्डली में गुरु केतु छठे भाव में थे,गुरु महात्मा गांधी और केतु खुद,दोनो ने मिलकर अहिंसात्मक तरीके से भारत को आजाद करवा लिया था,लेकिन दोनो का छठे भाव में पुत्री के घर में निवास करने से पुत्री को राजयोग देकर श्रीमती इन्दिरा गांधी को भारत वर्ष का राज भी दिया,फ़िर नाती यानी बुध केतु के साथ मिलकर लडकी के लडकों को भी राजयोग दिया,बारहवां राहु गुरु केतु के लिये खतरनाक बन गया और बुध यानी श्रीमती इन्दिरा गान्धी,केतु यानी उनके दोनो पुत्रों को हवाई राहु यानी विमान हादसे से तथा बारूदी विस्फ़ोट से दोनो नातियों का खात्मा भी कर दिया,श्रीमती इन्दिरा गान्धी को उनके ही मन्गल यानी जो रक्षा करने वाले लोग थे,उन्ही के द्वारा मन्गल यानी बन्दूक और राहु यानी बारूदी गोली से उनकी भी मौत हुई.गुरु केतु मोक्ष की तरफ़ लेकर चला जाता है,मोक्ष का मतलब होता है कि आगे कोई नाम लेने वाला रहे,यही हाल उनके साथ भी हुआ,आगे की संतान पुत्री के रूप में हुई और कोई पुरुष संतान नही होने से उनका भारत वर्ष में कोई आगे पोता पडपोता नही है,लडकी की संतान को भारत में नाम की मान्यता के लिये नही माना जाता है.
११.शुक्र राहु:-शुक्र माया है तो राहु चकाचौन्ध,जातक माया की चकाचौन्ध में खोया रहता है,राहु काल है तो शुक्र पत्नी पत्नी के प्रति हमेशा भय बना रहता है,राहु की गति उल्टी होती है,और वह अपने प्रभाव के कारण पत्नी के अन्दर भय पैदा करता है,पद्यम नामक कालसर्प योग में जब शुक्र कर्क राशि का हो तो यह निश्चित सा होता है,क्योंकि उस समय राहु सूर्य के घर में होता है,और जातक के अन्दर राहु का पूरा का असर व्याप्त होता है,इस कारण चलते अगर किसी तरह से जातक को अपनी पत्नी की बीमारी या खराब सेहत का पता चले तो उसे दुर्गा पाठ बेहतर फ़ायदा देता है.

श्रावण का महिना और कालसर्प के उपाय

किसी भी प्रकार के कालसर्प दोष की समाप्ति के लिये ज्योतिष में भगवान शिव की आराधना को मुख्य बताया गया है। समुद्र मन्थन के समय में समुद्र से निकले चौदह रत्नों में हलाहल विष को जगत में स्थापित करने के लिये जगह नही थी,उस विष की गर्मी से सम्पूर्ण जगत जब जलने लगा तो भगवान शिव को बुलाना पडा,उन्होने उस विष जो अपने गले में स्थापित किया और नीलकंठ कहलाये। उसी समय जब समुद्र से अमृत निकला तो उसे लेकर देवताओं और दैत्यों में युद्ध शुरु हो गया,आखिर में भगवान विष्णु को मोहिनी का रूप धारण करना पडा और देवताओं को उनका प्रिय अमृत तथा दैत्यों को उनकी प्रिय सुरा का पान करवाया गया,लेकिन असुरों की सेना से एक दैत्य निकला और देवताओं की सेना में जाकर शामिल हो गया,धोखे से उस दैत्य ने अमृत का पान कर लिया,सूर्य और चन्द्र की निगाह उस दैत्य पर पड गयी,उन्होने भगवान विष्णु को इशारे से बता दिया,उनके सुदर्शन चक्र ने उस दैत्य का सिर धड से अलग कर दिया,लेकिन अमृत शरीर में चला गया था इसलिये वह सिर और धड दोनो ही हमेशा के लिये अमर हो गये,सिर का नाम राहु और धड का नाम केतु रखा गया। यह कथा केवल ज्योतिष और पुराणों की शिक्षा को कंठस्थ रखने के लिये बनाई गयी। इसका विश्लेषण इस प्रकार से है। इस संसार रूपी समुद्र में जब जातक जन्म लेता है तो उसे अपने जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये प्राप्त साधनो और विद्या के द्वारा संसार का मन्थन शुरु करता है। उस मन्थन में कभी तो शरीर को हमेशा पूर्ण रखने वाले साधन प्रकट हो जाते है,कभी बहुत ही दुख दायी विष रूपी कष्ट पैदा हो जाते है। कभी लक्ष्मी रूपी धन की आवक हो जाती है,कभी ऐरावत रूपी वाहन आदि की प्राप्ति हो जाती है। कभी कभी ऐसी रोजी रोजगार की उपलब्धि हो जाती है जो कामधेनु रूपी गाय बनकर जीवन को सुरक्षित चलाने के लिये अपना सहयोग करती है। इसी बीच मे सात्विक विचार जो देवताओं के रूप में होते है,और गलत विचार जो दैत्यों के रूप में होते है,अपनी अपनी शक्ति से मिलने वाले साधन रूपी मथानी और विद्या रूपी शेषनाग की रस्सी से संसार रूपी समुद्र का मंथन करते है। शिव रूपी गरल जब पैदा होता है जो क्रोध के रूप में माना जाता है,अगर उस क्रोध रूपी वचनों को संसार रूपी सागर में छोड दिया जाये तो वह पूरे जग को जलाने में अपना कार्य करेगा,जैसे कोई बहुत ही खतरनाक अस्त्र बना लिया और उसे अगर सुरक्षित स्थान में नही रखा गया तो वह किसी भी समय दुरात्मा के द्वारा संसार को ठिकाने लगाने से बाज नही आयेगा,उस समय उस शस्त्र को किसी सुरक्षित और शांत प्रिय स्थान में स्थापित किया जाता है। इसके साथ ही जब बहुमूल्य अमृत निकलता है तो कोई भी दुरात्मा अपने को बुरे विचारों से पूर्ण रखने के बाद भी स्थापित रखना चाहता है तो उसे ही आत्मा रूपी विष्णु के द्वारा ज्ञान रूपी सुदर्शन चक्र से काटना पडता है,यह कारण मानसिक सोच रूपी चन्द्रमा और द्रश्य कारणों के रूपी सूर्य से इंगित किया जाता है,लेकिन जो बुरा कारण अगर किसी प्रकार से भले भलाई वाले शस्त्र से विभूषित हो गया तो वह उस शस्त्र को अपने शरीर में भलाई रूपी रूपी जामा पहिन कर बुरे आचरण करने लगेगा और इस कारण से जो अच्छे विचारों से सुसज्जित लोग है वे उस बुरे विचारों वाले व्यक्ति के कारण बदनाम होने लगेंगे। यही बात राहु और केतु के रूप में मानी जाती है। राहु और केतु को छाया ग्रह के रूप में भी मानने के कारण है,जब कोई व्यक्ति अपने ही विचारों में खो जाये और उसे अपने आसपास के बारे में पता नही चले तो वह जीवन की गति में कुछ से कुछ करने लगता है। उसका शरीर अपने ही विचारों में खोये रहने के कारण जो भी उसके पास साधन होते है उनके अन्दर विद्या रूपी शक्ति को संचार देने से रुक जाता है,शरीर की मानसिक गति जब बिगड जाती है तो शरीर के अन्दर की ऊर्जा का स्थान केन्द्रित नही हो पाता है,पाचन क्रिया से लेकर सोने जागने तथा रोजाना के काम करने की गति भी बिगड जाती है। इस बिगाड से शरीर की ऊर्जा रूपी शक्ति समाप्त होती जाती है और शरीर धीरे धीरे कमजोर होता हुआ बरबाद होने लगता है। अक्सर देखा होगा कि जब व्यक्ति तन्द्रा में नही होता है तो उसे पानी के छींटे दिये जाते है यह एक प्राथमिक उपचार होता है। इसके बाद भीड भाड और समुदाय के अन्दर उस व्यक्ति को स्थापित किया जाता है जिससे उसके अन्दर चलने वाले विचार धीरे धीरे समाप्त होने लगते है और वह अपने द्वारा किये जाने वाले वास्तविक कामो की तरफ़ अग्रसर होने लगता है। हमारे देश में तीर्थ स्थानों का महत्व तभी पूर्ण माना जाता है जब वहां पर स्नान करने के साधन हों,उन साधनों के अन्दर किसी न किसी प्रकार की प्रभाव वाली शक्ति का साक्षात करना हो,जैसे गंगा स्नान समुद्र स्नान और किसी जल विशेष की छींटे देना आदि। इन कारणों से लगातार चलने वाले दिमागी सोच मे परिवर्तन देना और उस परिवर्तन के बाद स्थिति में सुधार लाना आदि बाते मानी जाती है। सम्बन्धित देवता के प्रसाद के रूप में भी मीठा प्रसाद ही अधिकतर मामले में काम में लाया जाता है,साथ ही प्रसाद के रूप में खील और बतासे तथा शक्कर दाने प्रयोग में लाये जाते है,जो लार विचारों के समय में खारी हो गयी होती है उस लार को स्नान ध्यान या पूजा के बाद जब मानसिक स्थिरता को सुधारा जाता है तो उस प्रसाद को लेने के बाद मीठा स्वाद खारे पन में अन्तर लाता है। स्थान बदलना भी एक प्रकार से सुखद माना जाता है। तत्वों की पूर्ति भी शरीर मे बल देने वाली होती है जैसे रत्न धारण करना भोजन करना या करवाना मन्त्र ध्वनि से शरीर की गति में परिवर्तन करना यन्त्र में ध्यान लगाने से दिमागी दबाब को कम करना आदि। कालसर्प योग का एक बेहतर और सर्व सुलभ उपाय है कि रोजाना सुबह को जागकर ऊँ नम: शिवाये का इकत्तीस बार दक्षिण की तरफ़ फ़ेस करके जाप करना और दोपहर को शिवलिंग पर एक धार में जल चढाते हुये यही मन्त्र जपना,सोने से पहले इसी प्रकार की क्रिया करना।
किसी प्रकार की शंका के लिये लिखें- astrobhadauria@gmail.com

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