अक्सर देखा जाता है कि किसी भी कारण के निवारण के लिये ज्योतिषी द्वारा रत्न को धारण करने लिये सलाह दी जाती है,रत्न को धारण करने के बाद भी जब जातक को फ़ायदा नही मिलता है तो ज्योतिष और ज्योतिषी के लिये जातक के मन में आस्था हटने लगती है। रत्न को भी धारण किया और फ़ायदा भी नही हुया तो यह रत्न का जंजाल क्या है ? अक्सर इसी बात पर लोगों के दिमाग में रत्नो के प्रति आपाधापी का समय मान लिया जाता है। इस बात की पुष्टि के लिये जातक अपने रत्न को लेकर विभिन्न रत्न व्यवसाइयों के पास भागता है,कोई उसे सही बताता है कोई गलत बताता है,गलत बताने का एक कारण और भी माना जाता है कि हर रत्न व्यवसायी अपने को उच्च कोटि का व्यवसायी मानता है और अपने माल के अलावा किसी के भी माल को खरा बताने में संकोच करता है। इस बात के पीछे जिसने रत्न जातक को दिया है वह और रत्न दोनो ही जातक के दिमाग में गलतफ़हमी डाल देते है,जातक या तो वह रत्न वापस करने के लिये व्यवसायी के पास जाता है या उसे अपने पास रख कर केवल यही मान कर बैठ जाता है कि उसे ठगा गया है।
रत्न क्या है ?
रत्न को समझने के लिये अगर कोई कितना ही बडा पारखी है कभी समझ नही सकता है,कारण कोई भी रत्न जमीन से निकला केवल जमीन का ही टुकडा है। लाल हरा पीला नीला काला जैसा भी रंग है वह जमीन का दिया हुआ है। जिस वक्त में वह रत्न जमीन से निकाला गया है वह किसी को तो फ़ायदा देने वाले और किसी को नुकसान देने के लिये ही माना जायेगा। रत्न को काट छांट कर अलग अलग आकार में बनाना और अलग अलग रूप से धारण करने के योग्य बनाना भी रत्न के आकार को सजाना संवारना होता है।
कैसे दी जाती है रत्न को शक्ति ?
रत्न को जमीन से निकालना ही रत्न का गर्भ धारण है। रत्न का आकार प्रदान करना उसे अलग अलग रूप मे बनाना रत्न का प्रकृति के अनुसार गर्भकाल में उसी प्रकार से आकार प्रदान करना है जैसे किसी बच्चे का गर्भकाल में आकार प्रकार बनता है। रत्न जब बनकर तैयार हो जाता है पूरी तरह से परखने के बाद जौहरी के पास आजाता है तो वह एक जन्मे हुये बच्चे की तरह से माना जाता है। जब किसी को रत्न की जरूरत पडती है तो वह उस रत्न को अपने पास ले जाता है,और उसे जिस कारण के लिये जरूरत पडती है तो वह उसी कारण के अनुसार अभिमन्त्रित करता है। अभिमन्त्रित करने का अभिप्राय उसी प्रकार से जैसे किसी बच्चे को शिक्षा दी जाती है,उसे बुद्धिबल से पूर्ण बनाया जाता है। अक्सर लोग यह कहकर रत्न जातक को पकडा देते है कि इसे लेजाकर अमुक मंत्र को पढ कर पहिन लेना,जातक ले जाता है बताये गये मंत्र को पढ कर रत्न को धारण कर लेता है,लेकिन जब काम नही करता है तो दोष रत्न को दिया जाता है,और अगर रत्न धारण करने के समय के आसपास से दिन सुधरने लग गये और फ़ायदा होने लगा तो रत्न देने वाले और रत्न दोनो के प्रति जातक के दिमाग में आस्था जगना स्वभाविक है। अक्सर यह भी देखा जाता है कि रत्न को बेचने वाले अपने अपने प्रकार को बहुत ही बढा चढाकर बोलते है और बेचने के लिये कितने ही तरह के ठगी वाले कारण पैदा करते है,लेकिन बिना शक्ति की पूर्णता को प्राप्त किये रत्न कार्य करने में हमेशा असमर्थ होता है। रत्न को प्रभावी बनाने के लिये ग्रह के अनुसार अभिषेख किया जाता है,रत्न को ग्रह मानकर उसे ग्रह की प्रकृति के अनुसार ही सम्बन्धित स्थान पर स्थापित किया जाता है,ग्रह के अनुसार ही समय पर उस रत्न को स्थापित किया जाता है,ग्रह के अनुरूप ही उसे नियत समय पर शक्ति देने का कार्य मन्त्रित विधि से किया जाता है। यह मन्त्रित विधि कोई एक दिन की या एक अल्प समय की नही होती है,अलग अलग जातक के लिये अलग अलग प्रकार के ग्रह के खराब समय के दिनो अथवा वर्षों के अथवा आजीवन के लिये अभिमन्त्रित करना पडता है,यह भी नही कि एक साथ कई रत्नो को रख लिया और अभिमन्त्रित कर दिया,कारण जिस जातक के लिये रत्न को अभिमन्त्रित करना है उसके अनुसार ही उस रत्न को सन्कल्पित करना होता है,जब तक रत्न को सन्कल्पित नही किया गया है उसे किसी प्रकार से प्रयोग में नही लाया जा सकता है। जातक की कुंडली के अनुसार ग्रह की दशा को देखा जाता है,और जिस ग्रह की दशा चल रही है,या कोई खराब ग्रह जातक के लगनेश पर गोचर कर रहा है,तो दशा के समय के अनुसार वह दशा खराब ग्रह की है,या त्रिक भाव के कारक की दशा है,तो उसके लिये किस समय में किस भाव मे वह दशा वाला ग्रह अधिक कुप्रभाव देगा उस समय के लिये उस रत्न को उतने ही समय के लिये अभिमन्त्रित करना जरूरी होता है। जैसे शनि की दशा मे यह जरूरी नही है कि शनि खराब ही फ़ल देगा वह भाव के अनुसार अपना फ़ल देने के लिये माना जायेगा। अलग अलग समय के लिये अलग अलग श्रेणी में रत्न को मंत्रों से अभिमन्त्रित करना पडता है,जैसे शनि रत्न नीलम को तभी तक प्रभावी माना जाता है जब तक शनि कारक ग्रह या कारक भाव पर अपना असर दे रहा होता है। जैसे ही शनि की रश्मियां उस कारक ग्रह या कारक भाव से दूर होती है,वही नीलम बजाय फ़ायदा के नुकसान देने लगता है। इसके अलावा भी जैसे शनि बुद्धि के कारक ग्रह बुद्ध पर अपना असर दे रहा है तो एक उपाय बुध की शक्ति को बढाने से माना जाता है दूसरा उपाय शनि की शक्ति को घटाने से माना जाता है,शनि की शक्ति नीलम के द्वारा तभी घटाई जा सकती है जब उसे सम्बन्धित समय के लिये अभिमन्त्रित किया गया है,बिना अभिमन्त्रित नीलम उसी प्रकार से माना जायेगा जैसे किसी पागल को अच्छे अच्छे कपडे आभूषण पहिना कर खडा कर दिया जाये। रत्नों के मामले में आज भी देखा जाता है कि यह एक झूठ का बाजार बन कर रह गया है,जोहरी रत्न को काट कर उसे विभिन्न आकार देकर,केवल बेचने से अपने को सामने रखते है,फ़ायदा देना या नुक्सान देना उनके द्वारा नही देखा जाता है। रत्न को अभिमंत्रित करवाने के लिये नाम और गोत्र के अनुसार ही अभिमंत्रित करवाना जरूरी होता है,रत्न को कितने समय के लिये पहिना जाना है उसी समय के अनुसार रत्न को अभिमंत्रित करना पडता है,जैसे शनि का समय ढाई साल के लिये एक भाव पर और दस महिने सम्बन्धित ग्रह पर गोचर करने का होता है,उस समय के लिये ही नीलम को अभिमन्त्रित करना पडता है,अभिमत्रित करने का तात्पर्य रत्न के अन्दर प्राण प्रतिष्ठा करने से होता है। जैसे नीलम को ढाई साल के लिये अभिमन्त्रित करना है तो उसे पहले शनि के नक्षत्र में खरीदना पडता है,फ़िर उसे भावानुसार वस्तु के अन्दर स्थापित करना होता है,या ग्रह के अनुरूप वस्तु पर स्थापित करना होता है,फ़िर एक साल के लिये तीन लाख मंत्र के जाप सन्कल्पित व्यक्ति के लिये शनि मंत्र से करने पडते है,इस प्रकार से ढाई साल के लिये साढे सात लाख मंत्रों का जाप करने के बाद जातक को पहिनने के लिये कारक भाव और कारक ग्रह के अनुसार धातु में पहिनने के लिये राय दी जाती है,इस प्रकार से पहिने जाने वाले रत्न का प्रभाव जीवन जरूर पडता है। इस प्रकार से अभिमंत्रित रत्न की कीमत साधारण रत्न की कीमत से कई सौ गुना बढ जाती है,लेकिन उस एक बात और भी ध्यान रखने योग्य है कि किसी अन्य व्यक्ति के लिये सन्कल्पित मन्त्र से अभिमन्त्रित रत्न किसी दूसरे को पहिनाने से बडी बडी दुर्घटनाये भी होती देखी गयी है। रत्न को पहिनने पर अगर अचानक कोई अनहोनी होती है तो यह अक्समात नही मानना चाहिये कि वह अनहोनी खराब थी,जैसे किसी नीलम को पहिनते ही किसी बहुत पहले से जानकार व्यक्ति से लडाई हो जाती है तो यह मान लेना चाहिये कि वह व्यक्ति किसी प्रकार से बडा अहित करने वाला था इस कारण से उससे लडाई हो गयी है,अथवा कोई वस्तु खत्म हो जाती है तो वह वस्तु किसी प्रकार से जानजोखिम में देने वाली भी हो सकती थी,अक्समात रत्न जो अभिमंत्रित है से विश्वास नही उठा लेना चाहिये।
रत्न क्या है ?
रत्न को समझने के लिये अगर कोई कितना ही बडा पारखी है कभी समझ नही सकता है,कारण कोई भी रत्न जमीन से निकला केवल जमीन का ही टुकडा है। लाल हरा पीला नीला काला जैसा भी रंग है वह जमीन का दिया हुआ है। जिस वक्त में वह रत्न जमीन से निकाला गया है वह किसी को तो फ़ायदा देने वाले और किसी को नुकसान देने के लिये ही माना जायेगा। रत्न को काट छांट कर अलग अलग आकार में बनाना और अलग अलग रूप से धारण करने के योग्य बनाना भी रत्न के आकार को सजाना संवारना होता है।
कैसे दी जाती है रत्न को शक्ति ?
रत्न को जमीन से निकालना ही रत्न का गर्भ धारण है। रत्न का आकार प्रदान करना उसे अलग अलग रूप मे बनाना रत्न का प्रकृति के अनुसार गर्भकाल में उसी प्रकार से आकार प्रदान करना है जैसे किसी बच्चे का गर्भकाल में आकार प्रकार बनता है। रत्न जब बनकर तैयार हो जाता है पूरी तरह से परखने के बाद जौहरी के पास आजाता है तो वह एक जन्मे हुये बच्चे की तरह से माना जाता है। जब किसी को रत्न की जरूरत पडती है तो वह उस रत्न को अपने पास ले जाता है,और उसे जिस कारण के लिये जरूरत पडती है तो वह उसी कारण के अनुसार अभिमन्त्रित करता है। अभिमन्त्रित करने का अभिप्राय उसी प्रकार से जैसे किसी बच्चे को शिक्षा दी जाती है,उसे बुद्धिबल से पूर्ण बनाया जाता है। अक्सर लोग यह कहकर रत्न जातक को पकडा देते है कि इसे लेजाकर अमुक मंत्र को पढ कर पहिन लेना,जातक ले जाता है बताये गये मंत्र को पढ कर रत्न को धारण कर लेता है,लेकिन जब काम नही करता है तो दोष रत्न को दिया जाता है,और अगर रत्न धारण करने के समय के आसपास से दिन सुधरने लग गये और फ़ायदा होने लगा तो रत्न देने वाले और रत्न दोनो के प्रति जातक के दिमाग में आस्था जगना स्वभाविक है। अक्सर यह भी देखा जाता है कि रत्न को बेचने वाले अपने अपने प्रकार को बहुत ही बढा चढाकर बोलते है और बेचने के लिये कितने ही तरह के ठगी वाले कारण पैदा करते है,लेकिन बिना शक्ति की पूर्णता को प्राप्त किये रत्न कार्य करने में हमेशा असमर्थ होता है। रत्न को प्रभावी बनाने के लिये ग्रह के अनुसार अभिषेख किया जाता है,रत्न को ग्रह मानकर उसे ग्रह की प्रकृति के अनुसार ही सम्बन्धित स्थान पर स्थापित किया जाता है,ग्रह के अनुसार ही समय पर उस रत्न को स्थापित किया जाता है,ग्रह के अनुरूप ही उसे नियत समय पर शक्ति देने का कार्य मन्त्रित विधि से किया जाता है। यह मन्त्रित विधि कोई एक दिन की या एक अल्प समय की नही होती है,अलग अलग जातक के लिये अलग अलग प्रकार के ग्रह के खराब समय के दिनो अथवा वर्षों के अथवा आजीवन के लिये अभिमन्त्रित करना पडता है,यह भी नही कि एक साथ कई रत्नो को रख लिया और अभिमन्त्रित कर दिया,कारण जिस जातक के लिये रत्न को अभिमन्त्रित करना है उसके अनुसार ही उस रत्न को सन्कल्पित करना होता है,जब तक रत्न को सन्कल्पित नही किया गया है उसे किसी प्रकार से प्रयोग में नही लाया जा सकता है। जातक की कुंडली के अनुसार ग्रह की दशा को देखा जाता है,और जिस ग्रह की दशा चल रही है,या कोई खराब ग्रह जातक के लगनेश पर गोचर कर रहा है,तो दशा के समय के अनुसार वह दशा खराब ग्रह की है,या त्रिक भाव के कारक की दशा है,तो उसके लिये किस समय में किस भाव मे वह दशा वाला ग्रह अधिक कुप्रभाव देगा उस समय के लिये उस रत्न को उतने ही समय के लिये अभिमन्त्रित करना जरूरी होता है। जैसे शनि की दशा मे यह जरूरी नही है कि शनि खराब ही फ़ल देगा वह भाव के अनुसार अपना फ़ल देने के लिये माना जायेगा। अलग अलग समय के लिये अलग अलग श्रेणी में रत्न को मंत्रों से अभिमन्त्रित करना पडता है,जैसे शनि रत्न नीलम को तभी तक प्रभावी माना जाता है जब तक शनि कारक ग्रह या कारक भाव पर अपना असर दे रहा होता है। जैसे ही शनि की रश्मियां उस कारक ग्रह या कारक भाव से दूर होती है,वही नीलम बजाय फ़ायदा के नुकसान देने लगता है। इसके अलावा भी जैसे शनि बुद्धि के कारक ग्रह बुद्ध पर अपना असर दे रहा है तो एक उपाय बुध की शक्ति को बढाने से माना जाता है दूसरा उपाय शनि की शक्ति को घटाने से माना जाता है,शनि की शक्ति नीलम के द्वारा तभी घटाई जा सकती है जब उसे सम्बन्धित समय के लिये अभिमन्त्रित किया गया है,बिना अभिमन्त्रित नीलम उसी प्रकार से माना जायेगा जैसे किसी पागल को अच्छे अच्छे कपडे आभूषण पहिना कर खडा कर दिया जाये। रत्नों के मामले में आज भी देखा जाता है कि यह एक झूठ का बाजार बन कर रह गया है,जोहरी रत्न को काट कर उसे विभिन्न आकार देकर,केवल बेचने से अपने को सामने रखते है,फ़ायदा देना या नुक्सान देना उनके द्वारा नही देखा जाता है। रत्न को अभिमंत्रित करवाने के लिये नाम और गोत्र के अनुसार ही अभिमंत्रित करवाना जरूरी होता है,रत्न को कितने समय के लिये पहिना जाना है उसी समय के अनुसार रत्न को अभिमंत्रित करना पडता है,जैसे शनि का समय ढाई साल के लिये एक भाव पर और दस महिने सम्बन्धित ग्रह पर गोचर करने का होता है,उस समय के लिये ही नीलम को अभिमन्त्रित करना पडता है,अभिमत्रित करने का तात्पर्य रत्न के अन्दर प्राण प्रतिष्ठा करने से होता है। जैसे नीलम को ढाई साल के लिये अभिमन्त्रित करना है तो उसे पहले शनि के नक्षत्र में खरीदना पडता है,फ़िर उसे भावानुसार वस्तु के अन्दर स्थापित करना होता है,या ग्रह के अनुरूप वस्तु पर स्थापित करना होता है,फ़िर एक साल के लिये तीन लाख मंत्र के जाप सन्कल्पित व्यक्ति के लिये शनि मंत्र से करने पडते है,इस प्रकार से ढाई साल के लिये साढे सात लाख मंत्रों का जाप करने के बाद जातक को पहिनने के लिये कारक भाव और कारक ग्रह के अनुसार धातु में पहिनने के लिये राय दी जाती है,इस प्रकार से पहिने जाने वाले रत्न का प्रभाव जीवन जरूर पडता है। इस प्रकार से अभिमंत्रित रत्न की कीमत साधारण रत्न की कीमत से कई सौ गुना बढ जाती है,लेकिन उस एक बात और भी ध्यान रखने योग्य है कि किसी अन्य व्यक्ति के लिये सन्कल्पित मन्त्र से अभिमन्त्रित रत्न किसी दूसरे को पहिनाने से बडी बडी दुर्घटनाये भी होती देखी गयी है। रत्न को पहिनने पर अगर अचानक कोई अनहोनी होती है तो यह अक्समात नही मानना चाहिये कि वह अनहोनी खराब थी,जैसे किसी नीलम को पहिनते ही किसी बहुत पहले से जानकार व्यक्ति से लडाई हो जाती है तो यह मान लेना चाहिये कि वह व्यक्ति किसी प्रकार से बडा अहित करने वाला था इस कारण से उससे लडाई हो गयी है,अथवा कोई वस्तु खत्म हो जाती है तो वह वस्तु किसी प्रकार से जानजोखिम में देने वाली भी हो सकती थी,अक्समात रत्न जो अभिमंत्रित है से विश्वास नही उठा लेना चाहिये।
3 comments:
guruji mera 23:11:1984, 8:10 pm , pune, maharashtra ka janm hai. muje bahot sare ratn bataye gaye hai, kya aap meri madat kar sakate ho ?
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