Monday, July 4, 2011

दूसरे भाव के लिये विवेचन

कुंडली में दूसरा भाव चेहरे से सम्बन्ध रखता है। इसी भाव से चेहरे की पहिचान देखी जाती है। लेकिन चेहरे की पहिचान के लिये ग्यारहवा भाव और पन्चम भाव भी जिम्मेदार माने जा सकते है। ग्यारहवें भाव से पिता की शक्ल और पंचम भाव से माता की शक्ल के अनुरूप चेहरे की पहिचान मानी जा सकती है। इसी प्रकार से अगर इन दोनो भावों के स्वामी सबल है तो पहिचान मिली जुली भी मानी जा सकती है। धन के लिये भी जो नगद रूप से जातक के पास होता है,उसकी गणना और उपस्थिति भी इसी भाव से की जाती है,इसके लिये ग्यारहवां भाव लगातार दिये जाने वाले लाभ के लिये और पंचम भाव बुद्धि से प्राप्त किये गये धन के लिये माना जाता है,बुद्धि से धन कमाने के लिये भी दूसरे भाव का कारण धन का धन से कार्य करने के लिये माना जाता है। ग्यारहवे भाव का कारण भी लाभ को लाभ के लिये खर्च किया जाना माना जाता है। जैसा लाभ होगा वैसी ही धन की स्थिति होगी यह भी माना जा सकता है। अक्सर धन भाव को देखने वाले मुख्य भावों में छठा भाव और दसवा भाव मुख्य माना जाता है,दूसरा भाव तीसरे भाव से प्राप्त करता है और लगन को देता है। इसके लिये अक्सर आपने देखा होगा कि तीसरा भाव शरीर के प्रदर्शन से देखा जाता है,और लगन को शरीर के प्रति माना जाता है। तीसरे भाव के ग्रहों में राहु केतु से प्राप्त नही किया जा सकता है बल्कि वे बजाय देने के लेने के लिये माने जाते है। अक्सर देखा होगा कि लोग झूठ बोलकर या किसी प्रकार का बडा लोभ देकर धन को लेते है उनकी कुंडली में तीसरे भाव मे जरूर राहु केतु का असर होता है। लगन मे राहु केतु के लिये भी यही माना जाता है कि वे जब जातक पर मेहरबान होते है तो बजाय धन लेने के शरीर से ही धन की बढोत्तरी करने लगते है,और बाहर से अचानक सहायताये मिलनी शुरु हो जाती है.

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