Thursday, June 23, 2011

ह्रदय रोग (2)

अक्सर ह्रदय रोग इन स्थानो में अधिक पनपते है जहां पानी का इकट्ठा रहना माना जाता है जैसे हमेशा बहने वाली नदी के किनारे के स्थान समुद्री किनारों वाले स्थान तथा पहाडी घाटियों के बीच में या नीचे तलहटी में बसे हुये स्थान। इसके अलावा भी आज के जीवन की चलने वाली गतियों में मानव जाति के द्वारा की जाने वाली चिन्ता भी ह्रदय रोग का मुख्य कारण माना जा सकता है। चिन्ता के भी कारण तभी बनते है जब मानसिक गतियों का स्थिर नही रहना,जो भी काम किया जाता है उसके अन्दर किसी न किसी कमी के कारण अथवा किये जाने वाले काम के पूरे होने के समय में अचानक किसी भी प्रकार की कमी के कारण कार्य का बन्द हो जाना या काम की कीमत के मिलने के समय में अचानक काम की समाप्ति हो जाना भी ह्रदय रोग की मुख्य भूमिका मानी जाती है। ह्रदय का कारक चन्द्रमा है और चन्द्रमा को मन का कारक भी कहा जाता है,चन्द्रमा के साथ राहु के मिलने से मन के अन्दर आशंकायें बनी रहती है,और उन आशंकाओं या भ्रम से मन हमेशा उसी भ्रम के लिये चिन्ता मे बना रहता है,दूसरे चन्द्रमा के साथ मंगल होने से और चन्द्रमा तथा मंगल का साथ दु:स्थानों में होने से भी ह्रदय रोग की बीमारी का कारण जाना जाता है। प्रस्तुत कुंडली में चन्द्रमा मंगल के साथ वृश्चिक राशि का है,इस राशि में विराजमान चन्द्रमा और मंगल अक्सर मृत्यु का कारण ह्रदय रोग से पीडित होने पर ही देते है।
इसके लिये भी केतु की सहायता लेनी पडती है लेकिन इसके लिये लहसुनिया का रूप बदल जाता है,इस स्थान के चन्द्र मंगल वाली युति के जातकों को लहसुनिया स्लेटी रंग की जिसके अन्दर हल्की लालिमा हो को स्वर्ण में पहिना जाना ठीक रहता है। ध्यान यह भी रखा जाता है कि इस स्थान पर चन्द्रमा का रूप या तो विधवा माता के रूप में हो जाता है अथवा माता का जन्म अपने भाई बहिनो में छोटे रूप मे होता है अथवा जातक के परिवार में ही ताई के रूप में माता का रूप होता है या ताई का जातक के साथ मानसिक रूप से अनबन का कारण भी बनता है,जातक का स्वभाव अपने ही भाई बहिनो के प्रति गलत बनता रहता है और जातक के अन्दर अपनी मानसिक द्वन्दता के कारण वह अपने ही लोगों के साथ तर्क करने के लिये अपने को हर समय तैयार रखता है जातक के अन्दर अपने ही भाई के साथ अपघात करने में कोई दिक्कत नही होती है वह किसी न किसी प्रकार से धन के रूप में समाज के रूप में परिवार के रूप में भाई के साथ घात करने के लिये अपनी मानसिकता को लगाये रखता है।
 जातक का मन रूपी चन्द्रमा जब शरीर से अधिक काम करने लगता है तो भी ह्रदय रोग के लक्षण मिलने लगते है,जैसे चन्द्रमा मिथुन राशि का होकर तीसरे भाव में आजाये,तो जातक अपने को भावुकता से काम करने वाला होता है वह अक्सर मन के अनुसार रोने लगता है मन के अनुसार हंसने लगता है मन के अनुसार रुष्ट हो जाता है मन के अनुसार गालिया देने लगता है और मन के अनुसार ही वह अपने को लेकर चलने वाला होता है अक्सर वे कलाकार जो नाटक आदि में काम करते है अपनी भावुकता से लोगों को हंसाने और रुलाने आदि का कार्य करते है उनके अन्दर इस प्रकार की बीमारी पायी जाती है,एक्टर अधिकतर इसी बीमारी का शिकार होते है,इसके साथ ही चन्द्रमा अगर कन्या राशि का होता तो जातक के अन्दर ह्र्दय की बीमारी का होना पाया जाता है,इसके लिये भी एक कारण बहुत ही चौंकाने वाला माना जाता है कि जातक अपनी छोटी उम्र में ही कामुकता की गिरफ़्त में आजाता है उसके द्वारा सोचे काम बन नही पाते है वह अपने किसी भी प्रयास में सफ़ल नही हो पाता है तो सीधा असर ह्रदय पर ही जाता है,वैसे भी छठा भाव चौथे का तीसरा है यानी अपने ह्रदय को लोगों के सामने प्रस्तुत करने का कारण बनना,अपने रोजाना के कामों के अन्दर इस राशि वाले चन्द्रमा के लिये माना जाता है कि वह पानी वाले काम अधिक करता है जैसे साफ़ सफ़ाई करना लोगों के लिये सेवा वाले काम करना लोगों के प्रति अपनी भावनात्मक प्रस्तुति को देना आदि इसके अलावा चन्द्रमा जब अष्टम यानी वृश्चिक राशि का होता है तो जातक के अन्दर तकनीकी कला का विकास होना भी माना जाता है वह अक्सर रूहानी कार्यों के लिये अपने को लेकर चलने लगता है किसी भी क्षेत्र के कामो के अन्दर वह अपनी अन्तर्द्र्ष्टि को अधिक प्रयोग में लेने लगता है इस प्रकार से दिमाग में अधिक वजन पडता है और सांसों के अन्दर बदलाव आने लगता है तो भी जातक के ह्रदय पर असर पडना शुरु हो जाता है।
इस प्रकार के चन्द्रमा वाले जातको को काले रंग की लहसुनिया को पहिनना चाहिये लेकिन यह लहसुनिया तांबे में पहिना जाना उचित है। तांबा मंगल की धातु है और इस धातु में अगर केतु को धारण किया जायेगा तो मानसिक गति जो बिगडती है उसके अन्दर कोई न कोई सहायक कारण बनने लगेगा और जातक के ह्रदय पर पडने वाले बोझ में कमी आजायेगी,इसके अलावा भी जातक को स्वभाव में परिवर्तन लाना जरूरी है जैसे तीसरे चन्द्रमा के लिये छोटी बहिन पर बुरा प्रभाव होगा जरूर लेकिन उसके लिये अगर पहले से ही सोच कर कार्य किये जायेंगे तोवह परेशानियों से बची रहेगी और दिमागी रूप में जातक के लिये ठीक रहेगा,इसके अलावा जातक को अपने कार्यों के अन्दर वे कार्य जो अक्समात हंसी या गमी की सीमा में आते हो नही करना चाहिये,उस स्वभाव मे कमी लानी चाहिये जिनके अन्दर आंखों में अधिक आंसू आते हो,इस बात को भी जान लेना आवश्यक है कि जिनके जल्दी आंसू आते है उनके लिये लो-ब्लड प्रेसर की बीमारी को जाना जाता है और जिनके आंसू आते ही नही है वे हाई-ब्लड प्रेसर के मरीज होते है।
अधिक जानकारी के लिय ईमेल कर सकते है।
अपने बारे में जानने के लिये बेव-साइट से अपने प्रश्न को जन्म विवरण के साथ भेज सकते है.

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