Wednesday, February 2, 2011

कुंडली में ग्रह की उपयोगिता

जीवन के शुरु होते ही सुख दुख पाप पुण्य हारी बीमारी लाभ हानि आदि अच्छे और बुरे परिणाम सामने आने लगते है,सुख को महसूस करने के बाद दुखों से डर लगने लगता है हानि को समझ कर लाभ को ही अच्छा माना जाता है,जीवन के शुरु होने के बाद मौत से डर लगने लगता है। यही बात कुंडली में समझी जा सकती है,ग्रह की प्रकृति हानिकारक है या लाभ को प्रदान कराने वाली है। अगर ग्रह हानि देने वाला है तो उसे लाभदायक बनाने के प्रयत्न किये जाते है और लाभदायक तो लाभदायक है ही। खराब ग्रह के बारे में लालकिताब में लिखा है,-"बसे बुराई जासु तन,ताही को सम्मान,भलो भलो कहि छोडिये खोटिन को जप दान",बुराई करने से तात्पर्य है अनुभव करवाना,अगर किसी बुरी वस्तु का अनुभव ही नही होगा तो उसके अच्छे या बुरे होने का मतलब भी समझ में नही आयेगा,कई बार कई कारकों को हम सुनकर या पढकर या दूर से समझ कर ही त्याग देने से मतलब रखते है,जब कहा जाता है कि अमुक वस्तु जहरीली है और उसे अगर खा लिया गया तो मौत हो सकती है,और जब भी उस वस्तु को सामने देखा जाता है तो उससे केवल सुनकर या पढकर या दूर से समझ कर ही दूर रहने में भलाई समझी जाती है और जब कोई अपना या ना समझ व्यक्ति उस वस्तु की तरफ़ आमुख होता है तो उससे वही कहा जाता है जो हमने सुना या पढा या समझा या दूर से देखा। ग्रह कुंडली में जब सही तरह से मान्यता के रूप में देखा जाये तो जीवन के चार पुरुषार्थों में चारों ही अपने अपने स्थान पर सही माने जाते है। धर्म के रूप में शरीर परिवार और पुरानी वंशावली के प्रति मान्यता को समझा जाता है,अर्थ के रूप में मिला हुआ जो परिवार और हमारे कुटुम्ब ने हमे दिया है,हमारे द्वारा रोजाना के कार्यों से जो प्राप्त होता है और जो हमारे वंश से या हमारी उच्च शिक्षा के बाद प्राप्त होता है के प्रति माना जा सकता है। काम के रूप में हमारे से छोटे बडे भाई बहिन हमारे जीवन में कदम से कदम मिलाकर साथ चलने वाले लोग एवं वे लोग जिनके लिये हम आजीवन अपनी जद्दोजहद को जारी रखते है,चाहे वह पति पत्नी के रूप में हो,या संतान के रूप में या फ़िर संतान की संतान के प्रति हो,जब सही मायनों में हमने जीवन को समझ लिया है और तीनो पुरुषार्थों को पूरा कर लिया है तो बाकी का बचा एक मोक्ष यानी शांति नामका पुरुषार्थ अपने आप ही अपनी उपस्थिति को उत्पन्न कर देगा।
ग्रह की प्रकृति
सूर्य और चन्द्र अकेले ही सकारात्मक और नकारात्मक होते है बाकी के ग्रह अपनी अपनी अलग अलग प्रकृति अलग अलग राशियों में देने के लिये माने जाते है। सूर्य अयन में सकारात्मक और नकारात्मक का परिणाम देता है और चन्द्रमा पक्ष में अपने सकारात्मक और नकारात्मक रूप में उपस्थित होता है। उत्तरायण और दक्षिणायन का रूप सूर्य का है तो कृष्ण और शुक्ल पक्ष चन्द्रमा का है। यह प्रभाव कुंडली के सभी ग्रहों और राशियों के लिये इन दोनो ग्रहों का माना जाता है। लेकिन बाकी के ग्रह राशि के अनुसार अपने अपने सकारात्मक और नकारात्मक परिणाम देते है,मंगल मेष में सकारात्मक है और वृश्चिक में नकारात्मक,बुध मिथुन में सकारात्मक है तो कन्या में नकारात्मक गुरु धनु में सकारात्मक है तो मीन में नकारात्मक,शुक्र वृष में सकारात्मक है तो तुला में नकारात्मक,शनि मकर में नकारात्मक है तो कुम्भ में सकारात्मक राहु हमेशा सकारात्मक है और केतु हमेशा नकारात्मक है। इसी प्रकार से उदय और अस्त मार्गी और वक्री के लिये भी माना जाता है। उदय सकारात्मक के लिये और अस्त नकारात्मक के लिये माना जाता है।
अकारक ग्रह की उपयोगिता और अनुपयोगिता
अक्सर लोगों की धारणा होती है कि अमुक ग्रह कुंडली में दिक्कत देने वाला है इसलिये इसकी उपयोगिता नही है। अमुक ग्रह का उपाय किया जाये उसका रत्न पहिना जाये या पूजा पाठ से उसे उपयोगी बनाया जाये। यह भी सभी को पता होता है कि ग्रह भी समय समय से अपना फ़ल प्रदान करता है,यह भी पता है कि ग्रह अगर जन्म से ही खराब है तो वह कितना अच्छा फ़ल दे पायेगा। इस बात को समझने के लिये पहले हम अपने शरीर से ही समझने की कोशिश करें कि ग्रह कितना शरीर में कहां फ़लदायी होगा और कहां शरीर में हानिकारक होगा। मेष राशि का मंगल सकारात्मक है,शरीर में खून के रूप में मंगल की उपस्थिति है,सकारात्मक रूप से वह वीरता वाले और निर्माण वाले कार्य करने के लिये माना जाता है,लेकिन शरीर में केवल सकारात्मक रूप से ही वह अपना काम करता रहेगा तो जीवन को समाप्त करने का रास्ता ही नही मिलेगा,और जब जीवन को समाप्त करने का रास्ता नही मिलेगा तो दूसरा जीवन कैसे अपना निर्वाह करेगा। इसलिये मंगल का नकारात्मक प्रभाव वृश्चिक राशि से मिलता है,मेष जन्म देने की कारक है तो वृश्चिक मारने की कारक है। जब जन्म लिया है तो मरना भी है,केवल जीवन ही होता तो मौत का कोई रूप भी नही होता और जब कालान्तर से जीवन ही होता रहता तो नही सृष्टि और नये जीव की उत्पत्ति ही नही होती,डायनासौर ही रहते तो मनुष्य की उत्पत्ति ही नही थी,प्रकृति बदली तो जीवन बदला,जीवन बदला तो जीव का रूप बदला,जीवन को शुरु करवाना जितना आवश्यक था जीवन को समाप्त करना भी उतना ही आवश्यक था। इसी प्रकार से मंगल को अन्य स्थान पर समझा जा सकता है,जैसे तकनीक का विकास करने के लिये मंगल कार्य करता है तो पुरानी तकनीक को समाप्त करने का भी काम मंगल का ही होता है,मंगल किसी ग्रह के साथ खून को खराब करने के बाद बीमारी को देता है तो मंगल डाक्टर के रूप में अपने अन्य ग्रहों के साथ बीमारी को समाप्त करने के लिये भी अपनी योग्यता को देता है। बुध के लिये अगर देखा जाये तो वह शरीर में तंत्रिका तंत्र का मालिक है,वह मिथुन राशि के रूप में शरीर में दाहिने हिस्से में विराजमान होता है तो कन्या राशि के रूप में वह बायें हिस्से में अपनी तंत्रिका तंत्र को विकसित करने के लिये भी अपनी योग्यता को देता है।  

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