Thursday, November 25, 2010

दोहरी जिन्दगी

जिन्दगी कभी अकेली देखी ही नही है,और जिन्दगी अकेली होती ही नही है,सब जगह दोहरी जिन्दगी दिखाई देती है,हमे दो कानो से सुनना पडता है,वह तो गनीमत है कि दोनो कान एक सा सुनते है और अगर कहीं अलग अलग सोचने लगें तो बहुत दिक्कत आजाये। दो आंखों से देखना पडता है,दो नाकों से सूंघना पडता है,दो हाथों से करना पडता है दो पैरों से चलना पडता है,हर सोच में दोहरे रूप में सोचना पडता है,एक सी सोच हो नही सकती है दो आदमी अगर एक बात के लिये आपस में विचार करने लगें तो एक कुछ कहेगा और एक कुछ कहेगा।

दिन और रात यह भी एक समय के दो भाग है,सुख और दुख भी एक समय के दो भाग है,यह दोहरी चाल हर किसी के पास भी मिलती है,कभी तो मनुष्य बहुत ही परोपकारी बन जाता है और कभी कभी बहुत ही स्वार्थी बन जाता है,जब वह स्वार्थी बनता है तो परोपकार का पता नही होता है और जब वह परोपकारी होता है तो स्वार्थी भावना का पता नही होता है।

हर आदमी अपने अपने लिये कर्म कर रहा है,लेकिन वह भी है जो दूसरे के लिये भी लगातार कर्म किये जा रहे है,जो कर्म आदमी अपना समझ कर रहा है वह भी दूसरों के हित के लिये ही किया जा रहा है,एक बडा आदमी अगर दस हजार रुपया रोजाना कमा रहा है तो वह पूरे दस हजार का खाना नही खा सकता उसके पेट में भी दो रोटियां ही जायेंगी,अगर वह अधिक खाने की कोशिश करेगा तो वह कई बीमारियों का मरीज बन जायेगा। एक बार वह अपने में मरीज बना तो उसकी कमाई तो होनी नही बल्कि अस्पताली कामों में ही उसका जीवन निकल जायेगा,जब कि छोटा आदमी अगर सौ रुपया रोजाना कमा रहा है तो उसे चार की जगह आठ रोटियों की भूख लगेगी और वह अगर बीमार भी हो गया तो एक टेबलेट लेकर अपनी बीमारी को जल्दी ठीक कर लेगा और अपने काम पर चला जायेगा।

कितनी ही प्रकार से लोग अपने अपने खाने को खाते है कोई हाथ पर रख रोटी खा लेता है कोई टेबिल पर बैठ कर कांटों और चम्म्चों से भोजन को ग्रहण करता है। लेकिन एक बात सोचने लायक है कि कांटों और चम्मचों से किया जानेवाला भोजन उन लोगों के लिये है जिन्हे हाथ धोने के लिये पानी की प्राप्ति नही हुयी और सीधे हाथों से भोजन करने वाले पहले हाथ और पैरों को भी धोते है तब भोजन को ग्रहण करते है,अगर किसी प्रकार की गंदगी उनको समझ में आती है तो भोजन को करने से पहले नहा भी लेते है। जो मजा हाथों से चावल के खाने का आता है वह चम्मच से खाने में नही आता है,जो लोग चम्मच से भोजन करते है वे अपने उंगलियों से निकले अद्रश्य ओज से वंचित रह जाते है,यह भी एक तरह से दोहरापन हो गया,एक तो अपने ओज को ग्रहण करने के बाद अपने शरीर को निरोग रख रहा है एक अपने लिये चम्मचों का प्रयोग करने के बाद जो है उसी पर काम चला रहा है।

गरीब और अमीर दो तरह के लोग मिलते है,गरीब तो अपने लिये ही सोचता है और अमीर सभी के लिये सोचते है,गरीब के लिये कार्य एक के लिये ही करना पडता है जबकि अमीर सभी के लिये कार्य करने की सोचते है,गरीब को वफ़ादारी से काम करना आता है जबकि अमीर सभी से अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिये और केवल लाभ के लिये अपना काम करता है,उसके लिये तो बुड्ढा मरे या ज्वान उसे हत्या से काम।

भगवान भी दो तरह के मिले है,एक भगवान तो कुछ भी नहीलेते और आराम से दर्शन देते है और दूसरे भगवान के लिये कई तरह के दान और पुण्य किये जाते है,उनके मन्दिर में इतने ठाठ होते है कि वहां जाने वाला अपने को ही देखने और आभा को देखने के बाद भगवान की तस्वीर को भी नही समझ पाता है जबकि साधारण वाले भगवान आराम से खुले आसमान के नीचे अपना आसन लगाकर बैठे है और कोई उनके ऊपर जल तक चढाने नही जाता है,यह भी दोहरापन देखने को मिलता है। एक भगवान के मन्दिर में लाइन लगानी पडती है हजारों रुपये की दक्षिणा की पर्ची कटवानी पडती है और एक मन्दिर में लाइन भी नही लगानी पडती है और दर्शन करने में भी दिक्कत नही होती है लेकिन आशीर्वाद कौन से भगवान सही देते है इसका पता नही होता,मैने तो भाई दोनो भगवानों के दर्शन किये लेकिन किसने आशीर्वाद दिया इसका पता नही है।

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