Tuesday, November 2, 2010

अनुमान

हम किसी भी सूरत में अनुमान लगाना जानते है,वह अनुमान चाहे हार जीत का हो,या फ़िर कल की होने वाली किसी घटना का,अपने अपने अनुभव के द्वारा ही अनुमान लगाया जाना माना जा सकता है। जो वस्तु तौल नाप कर प्रयोग में लायी जाती है उसका अनुमान सटीक बैठ सकता है,लेकिन जिसे नापा ही नही जा सके और जो कई लोगों के हाथों में हो तो उसका अनुमान लगाना बहुत ही कठिन काम है।

जैसे चुनाव के दौरान अपनी अपनी सभी गणनायें दिया करते है सभी को पता होता है कि अमुक पार्टी सबल है और अमुक पार्टी निर्बल है,यह एक भावनात्मक बात होती है कि हमारा झुकाव किस पार्टी की तरफ़ है,अक्सर हम अपने अनुमान को सर्वोपरि मानते है,दूसरे की कही हुयी बात को प्राय: झूठ या बनायी हुयी बात मान लेते है,जब परिणाम आता है तो समझ में आजाता है कि कौन सही कह रहा था और कौन गलत कह रहा था।

नेता कोई भगवान नही है,नेता खुद वही हाड मांस के बने पुतले है जिससे कि आम आदमी बना है। नेता अपनी चतुरता वाली नीति को सामने रखता है उसके पास बहुत सा समय शुरु में होता है,लेकिन जैसे जैसे उसकी प्रसिद्धि बढती जाती है उसके पास समय की कमी होती जाती है। एक दिन उसके पास मिलने तक का समय नही होता है और मिलने के लिये भी कई कई दिन या महिने इन्तजार करना होता है,यह सब समझ के फ़ेर की बात ही कही जा सकती है।

जनता के अन्दर जितनी समझ है उतनी समझ शायद एक इन्सान के अन्दर नही हो सकती है,एक समूह जिस बात को कहना चाहता है वह बात एक आदमी किसी प्रकार से नही कह सकता है,समूह में अच्छी बात को भी बुरा बनाया जा सकता है और एक आदमी बुरी बात को अच्छी नही बना सकता है। मनुष्य की ताकत में बहुत दम है अगर वह कई मनुष्यों को साथ में लेकर चलता है। प्राथमिक रूप से जो सहारा देने वाले लोग होते है,उन्हे हम अपनी प्रगति के समय भूल जाते है,लेकिन उनके सहारे के बिना आगे बढना मुश्किल ही नही असम्भव ही था।

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