Friday, November 5, 2010

दीपावली पर सिद्ध की जाने वाली तांत्रिक वस्तुयें

रोजाना की सुख सुविधाओं और भाग्य में बढोत्तरी करने वाली वस्तुओं को तांत्रिक वस्तु कहा जाता है। इनके अन्दर दुर्लभ और प्राचीन वस्तुओं को मुख्य माना जाता है। कई रत्न जो हम अपने ग्रहों की शक्ति के लिये पहिनते है,कई वस्तुयें सुख और सौभाग्य को बढाने के लिये उपयोगी है,जिनका प्रयोग दैनिक जीवन में किया जाता है। अक्सर यय वस्तुयें या तो पूजा स्थान में रखी जाती है या घर के अन्दर विशेष स्थानों में रखी जाती है,उन वस्तुओं को सही समय पर साफ़ सफ़ाई करने के बाद उनकी पुन:स्थापना करना दीपावली,होली और ग्रहण के समय में किया जाता है।
पूजा घर में रखी तस्वीरें जिनसे हम अपनी मानसिक भावनाओं को सम्बन्धित तस्वीर के प्रति प्रयोग में लाते है,और उसी भावना उसी व्यवहार को अपने जीवन में प्रयोग में लाने लगते है। पूजा में तीन तरह के देवी देवताओं की प्रस्तुति मानते है। पहले पुरुष देवता होते है जिनके अन्दर श्रीराम श्री कृष्ण विष्णु ब्रह्मा शिव आदि को और अपने अपने अनुसार पुरुष रूप में स्थापित इष्ट होते है,दूसरे स्त्री देवताओं के अन्दर काली सरस्वती लक्ष्मी और अपने अपने मतों के अनुसार मानी जाने वाली देवियां होती है। तीसरे वे देवी देवता होते है जो मानसिक रूप से ही प्रयोग में लाये जाते है और वे भौतिक रूप से सभी के सामने प्रस्तुत नही किये जाते है। इन सभी को इनके मन्त्रों से अभिमन्त्रित करने के बाद इनको जाग्रित किया जाता है,और एक नये भाव के साथ स्थापित किया जाता है।

इसके अलावा और भी वस्तुयें होती है जैसे पहिने जाने वाले रत्न,कोई अपने सूर्य की कमजोरी के लिये माणिक को पहिनता है,पहनी जाने वाली माणिक का प्रभाव सूर्य की रोशनी में ही बढाया जाता है,इसके लिये अमावस्या के दिन में माणिक को नमक से धोकर सूर्य की रोशनी में उसे सुखाकर सूर्य को सम्मुख रखकर और सूर्य मंत्र से अभिमन्त्रित करने के बाद पहिनते है,मोती और चन्द्रमणि को चन्द्रमा की कमजोरी के लिये पहिना जाता है,इसका अभिमन्त्रित करना चन्द्रमा की रोशनी में ही मुख्य माना जाता है,लेकिन अमावस्या की रात्रि में चन्द्रमा उदय नही होता है इसलिये इसे भी अमावस्या को दिन के समय ही अभिमन्त्रित करना पडता है और दूध से धोकर सूर्य के सामने ही इसे चन्द्र मन्त्रों से अभिमन्त्रित करने के बाद पहिना जाता है। मंगल की कमजोरी के लिये मूंगा को पहिना जाता है,यह रत्न अमावस्या की रात में लक्ष्मी पूजन के बाद जो हवन आदि के लिये अंगारे बनाये जाते है उस समय इसे शहद से धोकर और अंगारों के ताप में हल्का सा ताप देकर फ़िर ठंडा करने के बाद साफ़ पानी से धोकर मंगल के मंत्रों से अभिमन्त्रित करने के बाद पहिन लिया जाता है। बुध के लिये पन्ना का प्रयोग किया जाता है,यह बुध की कमजोरी और कमन्यूकेशन की परेशानी में पहिना जाता है। इसे भी लक्ष्मी पूजा के समय पालक आदि के हरे पत्ते के अन्दर लपेट कर बुध के मन्त्रों से अभिमन्त्रित किया जाता है और किसी बहिन बुआ बेटी के हाथों से पहिन लिया जाता है,गुरु के लिये पुखराज का प्रयोग किया जाता है,इसे हल्दी मिले पानी में धोकर फ़िर हल्का सा चूने से धोकर फ़िर हल्दी मिले पानी से धो लिया जाता है,उसके बाद गुरु के मन्त्रों से अभिमत्रित करने के बाद स्वयं के द्वारा धारण कर लिया जाता है,शुक्र के लिये हीरा का प्रयोग किया जाता है इसे लक्ष्मी पूजा के समय ही लक्ष्मी के साथ थाली में अष्टदल कमल पर रखकर शुक्र के मंत्रों से अभिमन्त्रित किया जाता है,और पति को पत्नी के द्वारा तथा पत्नी को पति के द्वारा पहिना जाता है,अनुपस्थिति में स्वयं के द्वारा भी पहिन लिया जाता है,लेकिन शुक्र के रत्न के फ़लीभूत होने के लिये जो व्यक्ति इसे पहिनता है उसकी न्यौछावर की जाती है,यानी जो भी श्रद्धा होती है उसके अनुसार मुद्रा सा खाने पीने का सामान पहिनने वाले के सिर से सात वार उबारा करने के बाद एक स्थान पर रख दिया जाता है दूसरे दिन उसे किसी सफ़ाई कर्मचारी या फ़कीर को दान में दिया जाता है,यह राहु दान कहलाता है,जिससे शुक्र के इस रत्न को किसी की नजर नही लगती है और यह अपने अपने समय में अपना प्रभाव देता रहता है। शनि के लिये नीलम का विधान है,लेकिन जिस भाव में शनि जन्म का होता है उसी भाव के अनुसार नीलम को धारण किया जाता है,जैसे शनि अगर कर्क राशि का है तो सफ़ेद नीलम ही फ़लदायी होगा,वृश्चिक राशि का है तो कत्थई आभा लिये ही फ़ायदा देगा,मीन का शनि है तो पीली आभा वाला नीलम ही फ़लदायी होगा। इसे छाछ या सरसों के तेल से धोकर लोहे के सामान जैसे चम्मच या चिमटे के ऊपर रखकर दाहिने हाथ की मध्यमा उंगली से दबाकर शनि मंत्रों का जाप किया जाता है,जाप पूरे होने पर उसे दही से धोया जाता है और फ़िर साफ़ पानी से धोकर उसे पहिन लिया जाता है। इसी प्रकार राहु और केतु के रत्नों गोमेद और लहसुनिया के लिये क्रियायें की जाती है।

रत्नों के अलावा और भी कई वस्तुयें घर के अन्दर भाग्य वृद्धि के लिये प्रयोग में लायी जाती है,जैसे लक्ष्मी शंख को घर मे लक्ष्मी वृद्धि के लिये रखा जाता है,समुद्र की वस्तु होने से और चन्द्रमा का आधिपत्य होने के कारण यह रखने वाली दिशा के अनुसार अपना कार्य करता है,जैसे इसकी पूंछ जो शंख का पतला हिस्सा होती है उत्तर दिशा में रखने से घर के अन्दर बचत किये जाने वाले धन की बढोत्तरी होती रहती है,पूर्व दिशा में रखने से घर के सदस्यों के अन्दर एक दूसरे के प्रति समर्पण की भावना बनी रहती है,पश्चिम दिशा मे रखने से भौतिक वस्तुओं का बढना पाया जाता है और दक्षिण दिशा में रखने से कर्जा दुश्मनी बीमारी और बेकार की आफ़ते बढती रहती है। इसे दीपावली की रात को दही या छाछ के अन्दर थोडा सा सिन्दूर मिलाकर धोया जाता है,फ़िर साफ़ नमक मिले पानी से सात बार अन्दर पानी डालकर खंगाल लिया जाता है,उसके बाद साफ़ पानी से धोकर साफ़ करने के बाद अच्छी तरह से सुखा लिया जाता है फ़िर बिना टूटे चावलों को लेकर इसके अन्दर भर दिया जाता है,चार समुद्री कौडी को इसके अन्दर डालकर पीले कपडे में लपेट कर रखने वाले स्थान पर स्थापित कर देना चाहिये,इसके मुख भाग पर दाहिने हाथ की अनामिका उंगली को रखकर इस मंत्र का जाप करना चाहिये - ऊँ नमो दक्षिणावृताय विष्णु अस्त्र रूपाय लक्ष्मी शब्द घोषाय धनम देहि देहे दापह दापह स्वाहा,इस मन्त्र को विष्णु लक्ष्मी के रूप को ध्यान में रखकर जाप करना चाहिये,ध्यान रहे इस शंख पर कभी लाल या पीले पुष्पों की माला या सुगन्ध हीन फ़ूलों की माला अर्पित नही करनी चाहिये,जिस स्थान पर यह शंख है उस स्थान पर अन्य सामान को भी स्थाप्ति नही करना चाहिये।

कई लोग अपने अपने घरों में सियार सिंघी को रखते है,अक्सर ठग लोग कुत्ते बिल्ली के नाखून वाला भाग बडी चतुराई से काट कर सुखा लेते है और उसे तांत्रिक बनकर बेचते है,ना समझ लोग अपने पवित्र स्थान पर इसे बडी श्रद्धा से रखते है,और बजाय फ़ायदा के नुकसान ही उठाते है। कई शास्त्रों में और कई तांत्रिकों के अनुसार यह सियार जानवर के सिर से निकलता है,और समय आने पर सिर से झड कर गिर जाता है,जंगलों में निवास करने वाले या पहिचान रखने वाले लोग उसे सियार के आने जाने के रास्ते या मांदों से प्राप्त कर लेते है,यह एक परजीवी के रूप में होता है और मिट्टी के अन्दर से अपनी खुराक को प्राप्त करता रहता है,यह सिन्दूर में जल्दी पनपता है,इसके बाल बढते रहते है,पहिचान के लिये पीले कनेर की बिना खिली कलियां इसके चारों तरफ़ सटाकर रखीं जाती है,करीब आधा घंटे में वह कलियां खिलने लगती है,दूसरी पहिचान के लिये इस कच्ची जमीन पर जहां कोई निर्माण नही हुआ हो,नंगे पैर खडे होकर दाहिने हाथ में लेकर अपने पैरों की तरफ़ देखने से जमीन के अन्दर पानी की लहरें सी चलती दिखाई देती है,तथा आसमान की तरफ़ दिन में देखने से कुछ समय बाद तारे से झिलमिलाते दिखाई देने लगते है। इसे राहु से प्रभावित माना जाता है और किसी समस्या को सुलझाने के लिये इसे दाहिने हाथ में एकान्त स्थान में लेकर बैठने से समस्या का सुलझाव अपने आप दिमाग में आने लगता है,कभी कभी लोगों को समस्या का चित्रण दिमाग में चलने लगता है,लेकिन इसे मैने अनुभूत नही किया है।

हत्था जोडी भी एक तांत्रिक वस्तु मानी जाती है,इसके अन्दर एक हाथ सा बना होता है और जैसे हाथ की मुट्ठी बांधी जाती है उसी शक्ल की होती है,नाखून भी प्रत्यक्ष रूप से दिखाई देते है,यह बहुत पुराने जंगलों में दाब नामकी घास के पेड की जड से निकलती है,यह केतु की जड मानी जाती है और साधन नही मिलने की दशा में इसे पास में रखने से साधनो की प्राप्ति में सहायता मिलती है,इसे भी सियार सिंघी के साथ सिन्दूर में ही रखा जाता है,तथा कर्जा अधिक होने की स्थिति मे और दिमाग के काम नही करने पर नीले रंग के धागे को सौ बार लपेट कर कर्जा निवारण की मानसिकता बनाते हुये मंगलवार की दोपहर को किसी वीराने में खड्डा खोद कर दबा दिया जाता है,ऐसा करने से कर्जा उतरने लगता है ऐसी लोगों की धारणा है,कोर्ट कचहरी के कामों में अधिक उलझने के समय भी इसे अपने पास रखा जाता है,शादी विवाह के समय मंडप में इसे लाल कपडे में बांध कर लटकाने से वह शादी अटूट बन्धन बन जाती है विदा के समय कन्या के साथ इसे दान में दिया जाता है,दाब घास बहुत ही लम्बी उम्र वाली घास होती है और सूखे इलाकों में इसकी जडें पचास फ़ीट नीचे तक जाकर नमी को सोख कर इस घास को पनपाती है,इसकी जडें गांठदार होती है,अक्सर इसका उपयोग किसान लोग अपने छप्पर बनाने और रस्सी आदि बनाने के काम में लेते है,इसकी पत्ती की धार बहुत तेज चाकू की तरह से होती है जरा सी सावधानी से हाथ पैर को चीर देती है,बरसात के शुरु में इस घास की कोपलें बहुत ही नुकीली जमीन से निकलती है और नंगे पैर चलने पर पैर के अन्दर चुभने से बिच्छू के चढने जैसा दर्द करती है।

इसके अलावा सियार सिंघी और हत्था जोडी के साथ रखी जाने वाली वस्तु बिल्ली की आंवर भी होती है,जो लोग पालतू बिल्लियों से प्राप्त करते है,यह भी सियार सिंघी के साथ सिन्दूर में रखी जाती है तथा भूतडामर तंत्र के अनुसार किसी भी पैशाचिक शक्ति को घर से दूर रखने में सहायक होती है,अक्सर धनिक लोग इसे अपने पास किसी न किसी रूप में रखते है।

1 comment:

संगीता पुरी said...

दीपावली का ये पावन त्‍यौहार,
जीवन में लाए खुशियां अपार।
लक्ष्‍मी जी विराजें आपके द्वार,
शुभकामनाएं हमारी करें स्‍वीकार।।