Friday, October 8, 2010

सब वस्तुयें ईश्वर को अर्पित करे

भोजन बनता है,थाली मे परोसा जाता है,भोजन को परोसने के बाद पुकार लगाई जाती है,भोजन की थाली पर बैठने के बाद भोजन का ग्रास भगवान के लिये निकाला जाता है,उसके बाद भोजन को ग्रहण किया जाता है। भोजन जब शरीर में पहुंचता है तो शरीर को ताकत मिलती है। अक्सर भोजन करने के बाद लोग कहते है कि "अब राम मिले हैं",वास्तव में राम भी तभी अच्छे लगते है,जब पेट भरा हुआ हो,भूखे भजन नही होयं गोपाला यह लो अपनी कंठी माला। जाप के लिये माला तो कर में फ़िरे मन में घूमे रोटी,रोटी मिले तो जाप चले बिन रोटी दुनिया खोटी। सही भी है कितना ही ज्ञानी हो,लेकिन रोटी के लिये सभी अपने अपने ज्ञान को प्रसासित प्रचारित कर रहे है। कोई रामायण के नाम पर कोई भागवत के नाम पर कोई अल्लाह के नाम पर कोई मशीहा के नाम से सभी रोटी को लेकर अपने अपने नाम को प्रसाति प्रचारित कर रहे है। लेकिन जाति पांति पूंछे ना कोई,हरि को भजे सो हरि को होई,हरि सब के पास है हर किसी किसी के पास ही मिलते है,हर को भजना वही जानता है जो हर बनकर शमशान में पडा रहता है,उसे किसी दीन दुनिया की चिन्ता नही होती है। कोई दे गया तो खा लिया,नही दे गया तो मस्त होकर पडा है,और जब जिसने पैदा किया है और उसे चिन्ता है तो वह मन के माफ़िक ही खाने पीने को भेजता है,यह स्वयं अनुभूत माना है।

शरीर को प्रभू को अर्पित करने के बाद घर द्वार परिवार छोड कर वीराने की तलास में चल दिया। एक वीराना मिला जहाँ कोई भी जानकार तो छोडो मनुष्य जाति भी नही थी। जानवर भी कोई आसपास नही दिखाई दे रहा था। दिन तो जैसे तैसे कट गया,शाम होते ही आफ़तों का दौर चालू हो गया। एक तो ठंडक बढती जा रही थी,दूसरे भूख भी बढती जा रही थी,पेट की आग शरीर की ठंड को दूर करने में असमर्थ थी। दोनो घुटनों को आपस में समेट कर पेट के अन्दर लगाकर एक झाडी के नीचे पड गया,सोचा जो होना होगा वह होगा,प्रभू के लिये दुनिया को छोडा है तो प्रभू ही सम्भालेगा। रात के अन्धेरे में कोई कहीं नही दिखाई दे रहा था,केवल आसमान के तारे झाडी के अन्दर से टिमटिमाते हुये दिखाई दे रहे थे,सभी उपाय विफ़ल हो रहे थे,ठंड को हटाने के लिये कोई भी उपाय समझ नही आ रहा था,पैर बिलकुल ठंडे हो गये थे,कंपकंपी के अलावा किसी तरह से शरीर को साधने की हिम्मत नही थी। धीरे धीरे चेतना गुम होती चली गयी,मरना तो सोचा ही नही था,इसलिये यह पता ही नही था कि मर भी सकता हूँ। आंख खुली तो उसी झाडी के नीचे पडा था,झाडी के बाहर धूप खिली हुयी थी,मुझसे सट कर एक काले रंग का कुत्ता बैठा था,बहुत बडा कुत्ता था,शरीर में हरकत होते ही वह उठकर दूर जा खडा हआ,कूँ कूँ की आवाज करने लगा। मैने शरीर को सभी जगह देखा कोई पीडा नही थी,उस झाडी से निकला और बाहर निकल कर जाडे से बचाव का रास्ता सोचने लगा। भूख भी लगी थी,असहनीय भी थी,सोचा पहले भूख का इन्तजाम किया जाये। खैर पीलू चापड रूंज के पेड ही दिखाई दे रहे थे,एक बेर का पेड देखा उसके ऊपर कच्चे बेर लगे थे,झाडी से एक बेर तोडा और मुंह के अन्दर देते ही बहुत ही कडवा लगा,सो उसे थूक दिया। आगे चल कर देखा एक कगार के नीचे से पानी का सोता चल रहा भूख के अन्दर पानी भी अच्छा नही लगता है। पानी के किनारे कई तरह के पेड खडे थे,एक पेड पर बैंगनी रंग के बहुत छोटे छोटे काली मिर्च के बराबर के फ़ल लगे थे,दो चार तोड कर मुंह के अन्दर खाने में मीठे लगे,स्वाद आने के कारण खूब सारे तोडे और खाता गया। थोडी देर बाद पानी पीने की इच्छा हुयी,खूब पानी पिया। उन फ़लों को खाने के बाद और धूप लगने के बाद नींद आने लगी,एक साफ़ जगह देखकर उसी पर धूप में लेट गया। लेटते ही नींद आ गयी। आवाज सुनकर जगा तो देखा कि दो व्यक्ति खाकी वर्दी में खडे थे,दोनो के पास बंदूक थीं,उन्होने मेरे बारे में पूंछा,मैने अपनी पहिचान और घर छोडने का कारण बता दिया। वे पहले तो हँसे फ़िर अपने साथ चलने के लिये उन्होने कहा। मैं बिना कुछ विचार किये उनके पीछे पीछे चल दिया,थोडी देर तक चलने के बाद वे दोनो एक घने जंगल के बीच में एक समतल जगह पर ले गये जहां दस बारह और लोग थे,जो अपने अपने कंबलों में लिपटे पडे थे,एक ने मेरे बारे में उन दोनो से पूंछा तो उन्होने मेरे द्वारे बताये गये हाल को ज्यों का त्यों बता दिया। एक ने कहा कि साथ में रख लो सामान ले चलने के काम आयेगा,मेरे से पूंछा खाना बनाना आता है,मैने हां में सिर हिला दिया।
उन लोगों ने जो वास्तव में डकैत थे,उनका काम डकैती डालना होता था,दिन में वे आराम करते थे और रात को वे डकैती डालने के लिये जाते थे,उनके लाये गये सामान को वे आपस में बांटते थे,खाना बनाने का काम हमें सौंपा हुआ था,खाना दिन में गुप्त जगह पर बनाना पडता था जहां से धुंआ भी बाहर कहीं न दिखाई दे। आटे को तिरपाल पर गूंद कर उससे मोटी मोटी रोटियां बनानी पडतीं थी,रोटी के साथ कोई सब्जी नही होती थी,केवल नमक और पिसी मिर्च से रोटी खानी पडती थी,वे लोग तो कभी कभी लूट के सामान के साथ अचार आदि लाते थे,तो दो चार दिन के लिये थोडा बहुत अचारभी मिल जाता था,लेकिन बाद में कभी उसी नमक मिर्च के सहारे ही रोटी को खाना पडता था,रात को उनके चलने या स्थान बदलने के समय उनका सामान जैसे चार पांच कम्बल और खाना बनाने वाली तिरपाल पानी लाने वाली प्लास्टिक की केन भी साथ में लेकर चलनी पडती थी,पैरों के लिये उन्होने पुराने जूते दे दिये थे,पहिनने के लिये दो स्वेटर दे दिये थे। ओढने के लिये एक बहुत ही पुराना कम्बल भी दे दिया था। एक दिन रात को खाना बनाने की कह कर सभी लोग गये और फ़िर वे वापस नही आये। तीन दिन तक उन रोटियों को सम्भाल कर रखा,फ़िर धीरे धीरे उन्ही रोटियों को खाता रहा,पानी नदी से लाकर पीता रहा। उनके सात कम्बल और एक तिरपाल के साथ में चार पांच किलो के आसपास वजन का आटा रहा होगा,वह ही अमानत उन लोगों की थी। के प्लास्टिक की केन भी वे छोड गये थे। मुझे जंगल में रहने का अभ्यास हो ही गया था। मैने उसी स्थान को रहने के लिये उपयुक्त माना और उनके द्वारा छोडे गये कुल्हाडी नुमा हथियार से एक कगार में नीचे एक गुफ़ा को खोदना शुरु कर दिया। दिन भर में उस गुफ़ा के अन्दर इतनी जगह हो गयी थी कि रात को उसके अन्दर पैरों को समेट कर सोया जा सके। जंगली जानवरों से भी कई बार मुलाकात हो चुकी थी,लेकिन उनसे बचने के लिये वह कुल्हाडी नुमा हथियार और कंकड ही सबसे बडे हथियार के रूप में होते थे,वैसे अधिकतर जानवर अपनी रास्ता चले जाते थे,वे हमे देखकर खुद हमसे बचने की कोशिश करते थे। चार दिन के अन्दर मैने उस गुफ़ा को इतना खोद लिया कि उसके अन्दर घुस कर लकडियों की सहायता से टाटी बनाकर बन्द कर लेने से चैन की नींद सोया जा सके। आटा खत्म नही हुआ था,दूसरे तीसरे दिन चार रोटी बनाकर उस नमक और मिर्च से खा लेता था। बची हुई रोटी को पालीथिन के अन्दर लपेट कर रख देता था। गुफ़ा को खोदता गया और वह अधिक गहरी होती गयी। सुबह जाकर नदी में स्नान करता,फ़िर शाम को ठंड से बचने के लिये कुछ लकडी और जानवरों के गोबर के छाने बीनता,लाकर उन्हे गुफ़ा के बाहर रखता और गुफ़ा में जाकर आंखे बन्द करने के बाद राम राम का स्मरण करना शुरु कर देता। पता नही नींद आजाती थी या समाधि में चला जाता था,लेकिन कभी कभी तो अहसास यह होता था कि जो रोटी एक दिन पहले बनाने के बाद ठंड के कारण खराब नही होती थी,वह हरे रंग की फ़फ़ूंदी लगी मिलती फ़िर उसे खाने की इच्छा नही होती थी,वह गुफ़ा से बाहर फ़ेंक कर मन मारकर रह जाता। आटा भी खत्म हो गया,कोई भी चीज खाने की नही रह गयी। प्लास्टिक की केन के अन्दर सुबह भोर में जाकर पानी भर कर लाता और दिन भर उस गुफ़ा के अन्दर राम राम करता रहता,धीरे धीरे भूख खत्म हो जाती और नींद भी आजाती। पता नही कितने दिन निकल गये,शरीर में ताकत नही रही कि मैं बाहर निकल केन के अन्दर पानी भर कर ला सकूँ। मौसम में गर्मी आनी शुरु हो गयी थी,दिन में गुफ़ा के अन्दर ठंडक रहती लेकिन रात को वह गर्म हो जाती थी,अन्दर नमी होने के कारण कभी कभी चींटियां परेशान करती थी,लेकिन एक दो बार साफ़ कर देने के बाद फ़िर नही परेशान करती थी। कुछ समय बाद चींटी अगर शरीर में चिपट कर काटती भी तो पता चलना बन्द हो गया कि दर्द भी होता है। राम राम को जपने के बाद जब नींद में चला जाता तो भोजन भी मिलता,पानी भी मिलता और अजीब अजीब अन्जान लोगों से मुलाकात भी होती। एक दिन कोई चरवाहा उधर से निकला होगा,उसने गुफ़ा के दरवाजे पर पडा हुआ राख का ढेर देखा तो उसकी उत्सुकता बढी होगी,वह गुफ़ा के दरवाजे पर आया होगा,उसने मुझे बाहर से आवाज दी होगी,लेकिन मेरी नींद नही खुली होगी,वह जंगल से बाहर अपने गांव में आया होगा,उसने मेरे बारे में लोगों को बताया होगा,लोग आने लगे होंगे,पुकारने की कोशिश की होगी मै नही जगा। मैं जगता भी कैसे मैं तो गंगा का स्नान कर रहा था,राजमहल में रह रहा था,बढिया से बढिया भोजन कर रहा था,केवल शरीर ही तो गुफ़ा के अन्दर था। एक दिन भोजन कर रहा था,भोजन करते वक्त जहाँ मैं रह रहा था,भोजन के प्रत्येक ग्रास को राम कहकर खाना पडता था,एक दिन किसी से प्रहसन करते हुये भोजन पर बैठा,और बिना राम का नाम लिये ही भोजन को ग्रहण कर लिया। भोजन देने वाली माई ने डांटा भी और भोजन से उठाकर अपने आदमियों से बाहर भी फ़िंकवा दिया। मेरी अचानक आंख खुली देखा बाहर मेला सा लगा हुआ है,हडबडाकर मैने गुफ़ा के दरवाजे पर उपस्थित व्यक्ति से पूंछा कि वह यहां क्या कर रहा है और कहां से आया है,उसने बडी दूर का नाम लेकर कहा कि वह मेरा नाम सुनकर यहां आया है,और मैने जब उससे पूंछा कि मेरा नाम उसने कैसे सुना तो उसने बताया कि मेरा नाम आठ महिने पहले उसने सुना था। मेरे दर्शन करने के बाद सभी के दुख दूर होने लगे थे। मुझे बडा अजीब सा लगा,कि मैं आठ महिने से कहां था,मुझे पता ही नही है। मैं बाहर आया शरीर जैसा मेरा चेतन था वैसा ही था,बाल जरूर बहुत बडे हो गये थे,दाढी भी लटकने लगी थी।
बाहर आकर देखा और फ़िर वापस उस गुफ़ा में जाने की हिम्मत नही हुयी,मेरे पीछे भीड थी,मेरे गले में पता नही कितनी मालायें थी,लोग मेरे आगे आगे रास्ते को साफ़ करते हुये चल रहे थे,मेरे लिये हजारों लोग हाथ जोडे खडे थे,जो मेरे सामने झुकता केवल मेरे मुंह से राम शब्द ही निकलता। अधिक दूर नही जा पाया था,शाम हो गई थी,एक सज्जन ने अपने साथ ले जाने के लिये कहा मैं उनकी गाडी में बैठ गया,वे अपने साथ अपने घर ले जाने के लिये चल पडे,काफ़ी दूर चलने के बाद मैने उनसे गाडी को रोकने के लिये कहा और उतरकर अन्धेरे में अन्जान दिशा में चल दिया,पीछे से आवजें आ रहीं थी,महाराज ! महाराज ! मैं सभी आवाजों को सुनकर दूर और दूर चलता चला गया,मुझे उस माई की तलाश थी जो मुझे रोजाना रोटी खिलाती थी,राम राम नही कहने पर डाटती थी,जिसने मुझे बाहर फ़िंकवा दिया था,आज भी भटक रहा हँ कितनी ही कोशिश की लेकिन उस माई के दर्शन नही हो पा रहे है। कभी सपने में आती है,दूर से मुस्करा कर हाथ हिलाकर इन्तजार करने को कहती है। मैं चुपचाप इन्तजार कर रहा हूँ,पता नही वह कब किस वेश में आकर मुझे ले जायेगी।

1 comment:

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गुरुवर सच है आत्मा सुखी तो परमात्मा सुखी|