Friday, October 8, 2010

नवरात्रा की स्थापना

अश्विन मास के नवरात्रा की शुरुआत आज से हो रही है,जनमानस की भावना दैवी शक्तियों के प्रति अपने अपने भाव के अनुसार शुरु हो गयी है। आज दिन शुक्रवार है,चन्द्रमा,सूर्य,बुध,शनि कन्या राशि में है। शुक्र मंगल तुला राशि में है,राहु धनु राशि में है केतु मिथुन राशि में है,गुरु वक्री होकर मीन राशि में है। गुरु ही जगत का जीव है सूर्य जगत की आत्मा है,शनि जगत के कार्य है,राहु जगत की शक्ति है केतु जगत के साधन है,बुध जगत का प्रदर्शन है,मंगल जगत की शक्ति है,चन्द्रमा जगत की मानसिक गति है। इन सब ग्रहों के अनुसार कालचक्र की भावना बहुत ही सुन्दर बनती है।

तुला राशि में कालचक्र की शक्ति विराजमान है,तुला राशि तुलनात्मक कार्यों के लिये मानी जाती है,लाभ या हानि के लिये व्यापारी सोचता है। पास या फ़ेल होने के लिये विद्यार्थी सोचता है। सभी सोचों के पीछे अपने अपने अनुसार शनि से कार्यों के प्रति खर्चा कैसा होना चाहिये रहने के प्रति खर्चा कैसा होना चाहिये,शरीर और घर द्वार के सामन की रक्षा कैसे होनी चाहिये,घर के बुजुर्गों पर खर्चा कैसा हो इस प्रकार की भावनायें तुला राशि में स्थापित कालचक्र की शक्ति सोच रही है। मन जो चन्द्रमा का कारक है कन्या राशि में है और कालचक्र की शक्ति के बारहवें भाव में है,मन शनि के साथ होने से तथा दिमाग में एक साथ कई काम होने से जम सा गया है। जनता का ध्यान अपने अपने व्यापार कार्य और घर की शान्ति के लिये दैवी शक्तियों के प्रति जा रहा है। लेकिन शक्ति का निवास तुला राशि में होने से जो भी पूजा और पाठ की तरफ़ मन ले जा रहा है वह केवल तुलनात्मक कार्यों से ही अपने अपने अनुसार पूजा पाठ के लिये अपना ध्यान ले जा रहा है।
शुक्र लक्ष्मी का कारक है,मंगल शक्ति का कारक है,धन की शक्ति का रूप सामान्य रूप से माना जा सकता है। दुर्गा की शक्ति तुला राशि मे होने से शक्ति भी अपने को तुलनात्मक रूप से व्यक्त करने के लिये मानी जा सकती है,तुला राशि की दिशा पश्चिम में है,जितने भी पश्चिम के देश राज्य स्थान है वहाँ और घर के अन्दर जो भी दिशा पश्चिम से सम्बन्ध रखती है सभी जगह दुर्गा का कोई न कोई रूप उपस्थित रहने के लिये जरूरी माना जा सकता है। कितने रूप माता दुर्गा के इस राशि में बनते है उनके लिये अगर सोचा जाये तो पूरे नवरात्रा ही नही कितने साल उनका वर्णन करने के लिये लगेंगे। मेरे ख्याल से बहुत मुश्किल काम है,माता की सेवा तो की जा सकती है माता के बारे में व्याख्या करना मेरे वश की बात नही है,बडे बडे तपस्वी मुनि देव दनुज सभी लगे रहे फ़िर भी उनकी व्याख्या नही कर पाये तो मेरे वश की बात कहाँ हो सकती है। अभी व्यवसाय और पश्चिम की बात चल ही रही थी कि फ़ोन की घंटी बज गयी,चमत्कारिक रूप से माता ने अपना प्रभाव बताया कि एक भक्त राजस्थान की प्रसिद्ध करणी माता के स्थान में आया है। शुक्र मंगल का प्रभाव सीधा धर्म स्थान पर जाने से पराक्रम में राहु की उपस्थिति माननी पडती है,कारण भाग्य भाव में केतु है। करणीमाता जिनके मन्दिर में चूहों की भरमार है,मुझे भी इसी साल गर्मियों में उनके दर्शन करने के लिये जाना पडा था। और अबकी बार दुर्गा का स्थान करणीमाता के रूप में मानना जरूरी हो गया है। जय करणीमाता,सभी भक्तों के दुख हरो,सभी को सुख समृद्धि दो जो भी दुखिया आपको माने उसके सभी कष्ट हरो,जगत के कल्याण की भावना से चलने के लिये सभी के अन्दर बुद्धि का प्रभाव दो। रूप के बारे में दुर्गा की सवारी ही भक्त की पहिचान करवाती है। जिस सवारी पर दुर्गा सवार है उस सवारी का रूप अपने दिमाग में अपने लिये बना लेने से ही माता की भक्ति की भावना मन के अन्दर अपने आप ही पैदा हो जाती है। उनकी सवारी और उनका रूप तथा उनकी सेवा के लिये तो समझ में आ ही गया है। माता के रूप की बात दिमाग में आयी थी रूप का प्रभाव जब तक दिमाग में नही आयेगा उनके बारे में पहिचान करना मुश्किल का काम होगा। शुक्र सजा हुआ है,मन्गल से लाल रंग का शुक्र से कपडा मंगल से धर्म के लिये प्रयुक्त होने वाला। माता का आशीर्वाद किसके लिये है,माता का आशीर्वाद की शक्ति राहु के रूप में मिल रही है,उनके पराक्रम में राहु का रूप मिल रहा है। राहु भाग्य की शक्ति के रूप में विराजमान है,शक्ति को देने वाला भी केतु है,केतु भाग्य स्थान को देख रहा है। राहु अनन्त आकाश की ऊंचाइयों के रूप में माना जाता है,राहु से ही आसमानी ग्रहों की शक्ति जनजीवन तक पहुंचती है। केतु उस शक्ति को संभालने और प्रयोग करने के रूप में माना जाता है,केतु के ऊपर ही जिम्मेदारी आजाती है उस शक्ति तक पहुंचा देने की। केतु ही भाग्य भाव में विराजमान है,केतु ही धर्म स्थान तक पहुंचायेगा। तो माता तक जाने के लिये केतु को कैसे पहिचाना जाये ? यह प्रश्न दिमाग के अन्दर उत्पन्न होता है।
केतु को जीवों के रूप में देखे जाने पर उन्ही जीवों को देखा जाता है जो अपने शरीर में पूंछ रखते है। पूंछ जीवों की गति को संभालने के लिये प्रयोग में ली जाती है। मछली की पूंछ जल के अन्दर मछली को गति देती है,चूहे की पूंछ चूहे को भागने दौडने और पीछे के अनुमान लगाने के लिये मानी जाती है। छिपकली की पूंछ छिपकली को आगे भागने के लिये अपनी गति देती है। लेकिन इन जीवों से देवी तक कैसे पहुंचा जा सकता है,मनुष्य को इन जीवों से पहिचान करनी है कि वे अपने को इसी प्रकार के जीवों की गति को पहिचान कर ही देवी तक जा सकते है। मनुष्य रूप में भी केतु की मान्यता है,केतु जो साधन का प्रयोग करना जानता हो,जैसे ड्राइवर को ही ले लीजिये,वह गाडी चलाकर माता के दरबार तक ले जा सकता है। केतु की मान्यता धर्म स्थान के पुजारी के रूप में माना जा सकता है,पुजारी देवी के मन्दिर में पूजा और उनके वास्तविक रूप को बताने में समर्थ है। आसमान में उडने वाले वाहनों में हवाई जहाज की भी पूँछ काम में आती है,वह अपनी पूंछ के सहारे से ही अपनी गति को बदलने के लिये माना जाता है,उसकी सवारी करने के बाद देवी तक जाया जा सकता है। घर के अन्दर देवी तक पहुंचाने के लिये केतु से भान्जे को भी माना जा सकता है,मामा को भी माना जा सकता है,जंवाई को भी माना जा सकता है,नाना को भी माना जा सकता है।
जिसका फ़ोन करणीमाता से आया था वह एक ड्राइवर है,वह कलकत्ता की एक पार्टी को करणीमाता तक लेकर गया है। जो पार्टी गयी है वह भी मेरी जानकार है,उसके लडके के साथ उसके भान्जे और भतीजे गये है,हवाई जहाज से जयपुर तक आये और जयपुर से करणीमाता तक उस ड्राइवर के साथ गये है। करणीमाता तक जाने के लिये जो साधन है वे हमने आपको बताये है,लेकिन माता तक आज जाने का कारण भी क्या है ? इस बात का उत्तर समझने के लिये उदाहरण देखना पडेगा। जो साथ में गया है वह माता करणी का पूरा भक्त है,उसने अपने निवास स्थान में कलकत्ता में करणीमाता का मन्दिर स्थापित कर रखा है। रोजाना भाव भक्ति से वह पूजा अर्चना करता है। लेकिन भावना की पूजा होती है,वह अपने लडकों के लिये सुख साधनों की प्राप्ति के लिये माता की पूजा के लिये पुजारी को रखता है,उसके बडे लडके ने पुजारी को अपशब्द कहे,और यह कह कर अपमानित कर दिया कि वह कुछ नही करता है हराम की खाता है और देवी के नाम से घंटी बजाकर दक्षिणा ले जाता है। पुजारी ने कोई जबाब नही दिया,वह दूसरे दिन से पूजा करने के लिये भी नही आया,जिस मन्दिर को वह अपने पूरे मनोवेग से सजा रहा था,मूर्ति के सामने दीपक जलाकर आरती और भजन गा रहा था वह सब बन्द हो गये। इधर माता का प्रकोप चालू होता है,जीवन की गति जो चलती है उसके अन्दर बदलाव आता है,जब मन्दिर के पुजारी को निकाला तो उस लडके को कुछ भी पता नही चला,वह अपने कामों में लगा रहा,भोजन के समय पर भोजन मिल गया सोनेके समय पर सोना मिल गया,पत्नी की जगह पर पत्नी और पुत्र की जगह पर पुत्र,व्यवसाय चल ही रहा है,कोई बदलाव सामान्य जीवन में नही आया।

कुछ नही होता है भगवान की पूजा आराधना से यह बात तभी तक कही जा सकती है जब तक कि भगवान की शक्ति को समझ नही लिया जाये। उस लडके का काम चलता रहा और पुजारी ने अपने लिये दूसरी जगह पर अपना काम शुरु कर लिया होगा या और कुछ करने लगा होगा उसके बारे में कुछ भी पता नही चला। एक दिन उस लडके की गाडी चलाने वाले ड्राइवर ने अपने घर के किसी काम के लिये कुछ पैसे की मांग की,आदत के अन्दर नास्तिकता हो तो दया का भाव पहले समाप्त हो जाता है,वही हाल उस लडके का था। उसने उस ड्राइवर को पैसे तो दिये नही बल्कि उसे नौकरी से निकाल कर अपमानित भी किया और यह कह कर उसे नौकरी से निकाल दिया कि उस जैसे हजारों ड्राइवर सडक पर मारे मारे घूमते है। वह ड्राइवर घर से परेशान था और नौकरी की टेन्सन  भी आजाने वह एक चिट्ठी लिखकर घर में रख गया और सीधा जाकर कलकत्ता की गंगा में छलांग लगा गया। उसका शव निकाला गया,पुलिस को उसके घर वालों ने उसके लिखे सोसाइट नोट को दिया,उसके अन्दर वह साफ़ साफ़ उस लडके के साथ उसके अन्य घर वालों का नाम भी लिख गया कि उन्होने उसे अपमानित किया नौकरी के पैसे भी नही दिये और नौकरी से भी निकाल दिया,इसलिये वह आत्महत्या कर रहा है। तीनो लोगों के लिये पुलिस गिरफ़्तार करने के लिये घूमने लगी,तीनो लोग ही घर से बेघर हो गये। बूढा बाप आजीवन माता की सेवा में रहा,माता ने उसे मन चाही सम्पत्ति और औलाद का सुख दिया। वह सीधा करणीमाता के लिये रवाना हो गया,मन्दिर में माफ़ी मांगी और पूरे महिने उनकी अर्चना की,तब जाकर उनकी जमानत हो पायी,जमानत होने के बाद उन तीनों को सबसे पहले उस बूढे बाप ने करणी माता भेजा,जहाँ से आज फ़ोन आया था।
शक्ति अपने रूप को अलग अलग स्थान पर प्रकट करती है,शक्ति कभी भी धन बल और दिखावा नही चाहती है,शक्ति को याद रखने से वह अपने अनुसार अपना बल देती रहती है,किस व्यक्ति के रूप में वह अपना बल देती है यह समझने वाली बात है। साधन शक्ति से मिलते है,व्यक्ति शक्ति से मिलते है कार्य और सफ़लता असफ़लता के साधन शक्ति से मिलते है,इन्हे पहिचान कर ही नवरात्रा की सेवा अर्चना करना सही होगा।

3 comments:

Dr.J.P.Tiwari said...

अज्ञानता की जब तक है,
घनी धुँध छायी; वह 'क़ाली' है.
भद्रक़ाली - कपालिनी - डरावनी है.
ज्ञानरूप जब चक्षु खुला,
देखा, अरे! वह 'गोरी' है, 'गौरी' है.
वह अब अम्बा है, जगदम्बा है
ब्रह्मानी रूद्राणी कमला कल्याणी है
चेतना हुई है अब जागृत,
माँ ने इसे कर दिया है- झंकृत.
सचमुच आज सन्मार्ग दिखाया है,
मुझे सत्य का बोध कराया है.

Unknown said...

GURUJI....ME APNE APME MANTA HUN KI BHAGVAD KRIPA SE MUJE AAP JASE VUTVRASH SE SAMPARK KARNE KA MAUKA MILA HAI...ME AAPKA DHAYAVAD KARTA HUN... KISHOR MADLANI-PORBANDAR

Unknown said...

GURUJI....ME APNE APME MANTA HUN KI BHAGVAD KRIPA SE MUJE AAP JASE VUTVRASH SE SAMPARK KARNE KA MAUKA MILA HAI...ME AAPKA DHAYAVAD KARTA HUN...