Wednesday, October 6, 2010

समुद्र स्नान और शिव दर्शन

नाडी ज्योतिष में वर्णन किया गया है कि जब व्यक्ति अघोर नाडी के सानिध्य में होता है,तब उसे समुद्र स्नान करने के बाद शिव दर्शन करने के बाद अघोर नाडी से शांति मिलती है,अघोर नाडी का सानिध्य परिवार और रिस्तेदारी में कहीं से भी हो सकता है,यह जरूरी नही है कि वह जातक के जीवन में या जातक की कुंडली में ही उपस्थित हो,जातक की कुंडली में जातक जातक का परिवार जातक के भाई बहिन माता का परिवार खुद के बच्चे मामा चाचा मौसा मौसी पत्नी पत्नी का परिवार पत्नी के भाई बहिन जातक के भाई बहिनों के पति और पत्नियां पिता पिता का परिवार ताऊ ताई ताऊ के बच्चे चाचा के बच्चे मामा के बच्चे आदि सभी रिस्तेदार किसी न किसी प्रकार से जातक के जीवन के लिये भाग्य और दुर्भाग्य प्रकट करने वाले होते है।

प्रश्न यह पैदा होता है कि क्या जातक के सबसे दूर रहने के बाद भी सभी रिस्तेदारों के भाग्य दुर्भाग्य का असर जीवन में मिलता है,उसका उत्तर यही मिलता है कि जब तक जातक का शरीर जीवित है तब तक जातक के जीवन में उसके रिस्तेदारों के भाग्य और दुर्भाग्य का असर जरूर ही पडेगा,यह जरूरी नही है कि भाग्य का असर साक्षात ही पडे,और दुर्भाग्य सामने आकर ही टकराये,जैसे व्यक्ति के जीवन में चाचा का साथ नही है लेकिन चाचा के भाग्य से जातक को कर्जा दुश्मनी बीमारी में फ़ायदा होगा,और चाचा के दुर्भाग्य से इन सब कारकों में जातक के लिये बढोत्तरी मिलने लगेगी। इसी प्रकार से जातक अपने ताऊ से कितनी ही दूर रहे लेकिन ताऊ के भाग्य के कारण जातक अपने जीवन में किसी भी जोखिम को पार कर सकता है लेकिन ताऊ के दुर्भाग्य से उसे जोखिम के अन्दर जाते ही हानि मिलनी शुरु हो जायेगी। जातक के रिस्तेदारों में यह तो निश्चित है कि किसी न किसी की दुर्भगा अघोर विलक्षणा सर्पिणी विपत्ति शूलिनी आदि नाडियों में किसी भी तरह की अघोर वृत्ति की नाडी तो होगी ही,जब जीवन का एक भी पहलू किसी प्रकार से काम नही कर पा रहा है तो जीवन की गति उसी प्रकार से धीमी या बन्द हो जायेगी,जैसे साइकिल की चैन की एक कडिया अगर टूट गयी है तो पूरी की पूरी साइकिल ही बेकार हो जाती है।

शरीर में पानी की मात्रा सबसे अधिक है,और पानी से ही शरीर चल रहा है,धरती पर भी पानी की मात्रा सबसे अधिक है और स्थल भाग भी एक तिहाई ही है,उसमे भी झीले और नदिओं की गणना को जोडा जाये तो उससे भी कम स्थल भाग की प्राप्ति होती है। समुद्र का पानी पीने के लिये प्रयोग में नही लाया जा सकता है,यहाँ तक कि पानी अगर मुँह के अन्दर चला जाये तो मुंह का स्वाद बिगड जाता है। लगातार समुद्र में स्नान करने के बाद भी शरीर का रंग काला पड जाता है,या समुद्री हवा के सानिध्य में रहने पर भी रंग काला हो जाता है। नमक के अन्दर जो प्रभाव होते है वे किसी भी क्षार को काटने के लिये काफ़ी होते है,शरीर में व्याप्त किसी भी तंत्र दोष को दूर करने के लिये नमक के पानी को प्रयोग में लाया जाता है,यहाँ तक कि जब कोई रत्न अपना काम नही करता है तो नमक के पानी से धोलेने पर वह अपना काम करने लगता है। घर के अन्दर अगर अधिक नकारात्मक इनर्जी भर गयी है तो घर के एक कोने में नमक मिला पानी रखने के बाद धीरे धीरे घर की नकारात्मक इनर्जी गायब होने लगती है। हमारे भारत में चार धाम की तीर्थ यात्रा करने पर तीन जगह पर समुद्र का पानी ही मिलता है,चाहे वह द्वारका धाम के बारे में जाना जाये,या रामेश्वरम धाम के लिये या पुरी धाम के लिये या गंगासागर धाम के लिये। केवल एक धाम ही पहाडी यात्रा के लिये माना जाता है वह चाहे अमरनाथ की यात्रा हो या बद्रीनाथ केदारनाथ की यात्रा हो।

अघोर वृत्ति के अन्दर क्षार पैदा होना स्वाभाविक है। गंदे लिबास में रहना,महीनो स्नान नही करना,गंदा भोजन करना,मांस मदिरा का सेवन करना,आदि बातें सामान्य रूप से पायीं जाती है। कुत्ते के अन्दर जो आदतें होती है वे ही मनुष्य के अन्दर अपने आप प्रकट होने लगती है,जैसे वेज नानवेज जैसा भी मिलगया वैसा ही खा लिया,अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिये लगातार भागते रहना आदि बातें मिलती है। यह सब क्षारीय तत्व शरीर के अन्दर अधिक बढने के कारण होजाता है। क्षार को काटने के लिये लवण का होना जरूरी है,लेकिन उतना ही जितना कि शरीर को सहन हो,समुद्र के अन्दर जो नमक मिलता है वह अधिक तेज होता है,किनारों पर पानी भर कर उसे सुखाकर नमक को पैदा भी किया जाता है,शिव स्थान के पास के समुद्र में कोई न कोई अवरोध जरूर होता है चाहे वह उथले पानी के रूप में हो या किसी प्राकृतिक स्थल भाग के द्वारा उतनी ऐरिया को डिवाइड किया गया हो। शरीर में व्याप्त क्षारीय तत्व जो किसी न किसी प्रकार से तंत्र मंत्र या अघोरी कारणों से पैदा हो गये होते है उन्हे समुद्र के स्नान के बाद आराम से काटा जा सकता है। शिव स्थान के दर्शन करने तक उसी समुद्री पानी के प्रभाविक तत्वों के अन्दर ही रहना पडता है। इसलिये जो भी बाह्य शारीरिक अवयव होते है उसी नमक के कारणों से जुडे रहते है,और रोमकूपों के माध्यम से नमक का प्रवेश महसूस करने वाले स्थानों तक आराम से चला जाता है,और अन्दर तक के क्षारीय तत्वों को समाप्त कर देता है।

2 comments:

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढिया पोस्ट प्रेषित की है। आभार।

Laxminarayan Joshi लक्ष्मीनारायण जोशी said...

नाडी ज्योतिष में वर्णन किया गया है कि जब व्यक्ति अघोर नाडी के सानिध्य में होता है,तब उसे समुद्र स्नान करने के बाद शिव दर्शन करने के बाद अघोर नाडी से शांति मिलती ह l

आदरणीय अति उत्तम जानकारी आपने प्रेषित क़ी है I इस जानकारी से कईयों को लाभ पहुंचेगा I
कृपया अघोर नाड़ी दोष को अधिक विस्तार में समझायेंगे तो आपकी जातकों पर कृपा होगी I