Sunday, September 12, 2010

गृह-क्लेश

सुबह से लेकर शाम तक कितने ही कारण घर के अन्दर बनते है जिनसे घर के वातावरण दूषित प्रभाव शामिल हो जाता है। घर एक मंदिर की तरह से होता है जहां रहने वाले सभी लोग अलग अलग प्रकार की शक्तियों की तरह से होते है। अगर हिन्दू रीति से माना जाये तो माँ शिवकी तरह से होती है,पिता विष्णु की तरह से होता है,भाई हनुमान जी की तरह से होता है,बहिन दुर्गा के रूप में होती है जातक खुद ब्रह्मा की तरह से होता है,पत्नी लक्ष्मी की तरह से होती है,और घर के बुजुर्ग लोग भैरों की तरह से होते है,सास ससुर सरस्वती के रूप में होते है,भान्जे भतीजे मामा पुत्र आदि गणेशजी के रूप में होते है। इन्हे ग्रह के रूप में माना जाय तो माँ चन्द्रमा की तरह से होती है पिता सूर्य की तरह से होता है भाई मंगल के रूप में होता है बहिन बुध के रूप में होती है जातक खुद गुरु के रूप में होता है और पत्नी शुक्र के रूप में होती है,जमीन जायदाद और घर मकान शनि के रूप में होते है सास ससुर और रिस्तेदार राहु के रूप में होते है,पुत्र भतीजे भान्जे आदि केतु के रूप में होते है। गृह क्लेश को अगर ग्रह क्लेश कहा जाये तो भी ठीक है,जब जातक के ग्रह क्लेश में होते है तो घर के अन्दर क्लेश मिलना भी स्वाभाविक है। अक्सर कन्या की शादी की जाती है तो लोगों का अहम होता है कि उन्होने अपनी कन्या की शादी बडी धूमधाम से की है और उन्होने जो खर्चा किया है वह उनकी कन्या के लिये फ़ायदा देगा। लेकिन जो कन्या घर के लिये दुर्गा का रूप होती है वही कन्या अपने पति के घर जाकर लक्ष्मी का रूप धारण कर लेती है,और कन्या का पति जंवाई केतु यानी गणेशजी के रूप में बन जाता है। इसी लिये घर में आने वाले जंवाई की आवभगत की जाती है,लेकिन आजकल जो हो रहा है वह सभी को पता है कि गणेशजी जो सभी का भला सोचने वाले है और वक्त पर सहायता देने वाले उन्ही का मानस अधिक आदर पाकर अहम से भर जाता है और उन्हे हर छोटी बात उनकी अहमियत को समाप्त करने के लिये काफ़ी है,उत्तेजित होजाना,ससुराल का बदला जाकर उस दुर्गा से निकालना और ताने कसना आदि बातें मानी जाती है। इस तरह से क्लेश का कारण सबसे पहले घर की बहिन बुआ बेटी को माना जाता है। वह अपने ससुराल में जाकर विभिन्न प्रकार के कारण अपनी माता या पिता से या भाई से कहती है और घर के अन्दर संबन्धो को लेकर तनाव हो जाता है। इस बात को सीधे से पिता और माता के द्वारा दिये गये दहेज और कन्या की शादी के अन्दर किये गये खर्चे से जोड दिया जाता है,आपस के अहम के कारण कि इतना दिया था या इतना ही क्यों दिया था इतना क्यों नही दिया, आदि बातें सम्बन्धों के अन्दर बिखराव करना शुरु कर देती है। माता पिता को इस मामले में सोचना चाहिये कि नवरात्रा में जब वे दुर्गा पूजा करते है तो कन्याओं को भोजन करवाते है,और उनके भोजन के बिना नवरात्रा का व्रत पूरा नही माना जाता है,तो उन्होने जो कन्या के प्रति खर्चा किया है वह पुत्री होने के मामले में सही है,वह जब माता पिता के पास पैदा हुयी तो वह अपने दुर्गा के रूप को लेकर पैदा हुयी थी,जब उसकी शादी कर दी तो वह आपके घर से विदा हो गयी,जितना तुमसे सेवा की जानी थी उतनी तुमने कर दी,सेवा करना ही दुर्गा के लिये भक्ति के रूप में माना जाता है,उसे पाला पोषा उसे खिलाया पिलाया उसकी शिक्षा दीक्षा सभी पूरी की और जब दुर्गा का व्रत पूरा हुआ तो उसे जैसे व्रत का उद्यापन करते है उसी प्रकार से शादी का नाम देकर अपने घर विदा कर दिया। विदा करने के बाद उस दुर्गा का रूप जिस घर में वह गयी है उसके लिये वह लक्ष्मी का रूप बन जाती है,अगर उस घर के लोगों को लक्ष्मी को पहिचानने की ताकत है तो वे उसे सही रखेंगे,अन्यथा उसे चोर डाकू लुटेरे छली लोग या तो ले जायेंगे या बरबाद कर देंगे। यह छली लोग या तो खुद के ही घर वाले होंगे जो आने वाली लक्ष्मी को बहला फ़ुसलाकर घर के अन्दर लडाई झगडा करवायेंगे,अथवा उनके कर्मों से जैसे उन्होने किये होंगे उनके अनुसार उस लक्ष्मी से फ़ल प्राप्त करने के अधिकारी होंगे। दुर्गा का रूप घर की मुशीबतों को काटना भी होता है और माता पिता और घर परिवार के सदस्यों को उनके कर्मों की सजा देना भी होता है। अक्सर जो लोग अहम से कन्या को पालते है और कहते है कि उन्होने अपनी कन्या के लिये इतना खर्चा किया है तो कन्या भी समझ जाती है कि उनके माता पिता ने उसके लिये जो खर्चा किया है उसका फ़ल उनको चाहिये,वह अपने अनुसार कार्य करने लगती है और जो भी काम करती है वह घर वालों के खर्चे पूरे करने में ही लगा देती है,लेकिन वह अपना रूप बदलना भूल जाती है जो उसे किसी के घर की लक्ष्मी बनना था वह अपने ही माता पिता के लिये आजीवन दुर्गा के रूप में बनी रहती है। दुर्गा की सवारी शेर की होती है वह जहां भी रहती है घर परिवार भाई बहिन और सभी के लिये एक अहम तो होता ही है,अगर कोई बात होती है तो परिवार के परिवार जरा सी देर में लडाई झगडा और अन्य कारणों से समाप्त हो जाते है। अगर कन्या को निस्वार्थ भाव से पाला गया है उसे घर और बाहर की सभी शिक्षायें दी गयीं है और उसे समय से ससुराल के लिये विदा कर दिया गया है तो वह दोनो तरफ़ के लिये एक कहावत बन जाती है कि- "लडका से लडकी भली जो कुलवन्तिन होय,नाम चलावे माई बाप को दो घर दियना देइ",यानी लडका से लडकी अच्छी है जो कुल की मर्यादा के अनुसार चलने वाली होती है,वह अपने माता पिता का नाम ऊंचा करती है और कभी ससुराल में और कभी मायके में आकर दीपक जलाती है और रोशनी पैदा करती है।
इसके अलावा घर के अन्दर जब किसी प्रकार का भेद भाव होता है तो दुर्गा और लक्ष्मी में भेद पहले पैदा हो जाता है,शिव की अर्धांगिनी पार्वती जब अपने पुत्र गणेश की मान्यता के चक्कर में लक्ष्मी की औकात को भूलती है और समझती है कि लक्ष्मी गणेश से नीची है तो घर की दुर्गा को भी मौका मिल जाता है,वह भी गणेश को बल देने लगती है और लक्ष्मी की अवहेलना करने लगती है। वह अपनी भेदभाव वाली शक्ति को पैदा करने के बाद घर के अन्दर इधर की बात उधर और उधर की बात इधर करने लगती है,लक्ष्मी को बुरा लगने लगता है वह अटल लक्ष्मी की जगह पर झटति लक्ष्मी का रूप धारण कर लेती है,वह भी अपने माता पिता से अपने कष्टों का बखान नमक मिर्च लगाकर करने लगती है,उसके माता पिता भी उसे ले जाते है या कोर्ट केश आदि करने के बाद जहां लक्ष्मी आयी थी निर्माण करने के लिये वहां वह झटति लक्ष्मी वकीलो और जजों और थाने आदि में घर की अटल लक्ष्मी को भेजना चालू कर देती है,उधर घर की दुर्गा को भी मौका मिल जाता है वह अपनी चाल से जो उद्यापन माता पिता को शादी सम्बन्ध के बाद करना था वह अपने लिये कोई चलता फ़िरता केतु तलाश कर अपने रास्ते पर चली जाती है,एक तरफ़ तो अपनी लक्ष्मी झटति लक्ष्मी बन गयी और दूसरी तरफ़ जो दुर्गा नाम चलाने के लिये आयी थी भेदभाव के कारण वह नाम को समेट भी ले गयी और समाज परिवार और स्थान पर अपना उल्टा नाम दे गयी। अगर उस आने वाली लक्ष्मी का रूप समझा जाता और उसे अपनी शक्ति के अनुसार घर के माहौल में डाला जाता तो वह अलक्ष्मी का रूप धारण कर लेती है.

No comments: