Wednesday, September 1, 2010

महसूस करने की ताकत

लोगों को हँसते हुये देख कर हम हंसने लगते है लेकिन रोते समय अक्सर नही,लोगों को अक्समात भागते देखकर उनके साथ हम भागना चालू कर देते है,लेकिन अकेले भागने पर कोई साथ नही भागता है,जो बात कई लोग कहते है उसे हम बिना समझे बूझे कहना चालू कर देते है। यह सब शरीर के द्वारा सुनने देखने महसूस करने और सूंघने आदि की क्रियाओं के द्वारा होता है। हमारे द्वारा जो कहा जाता है उसका प्रभाव वातावरण में किस प्रकार से पडता है,हमारे द्वारा जो देखा जाता है उसका प्रभाव हमारे शरीर पर कैसा पडता है,हमारे द्वारा जो सुना जाता है उसके द्वारा हमारे शरीर पर क्या प्रभाव पडता है,हमारे द्वारा जो सूंघा जाता है उसका प्रभाव हमारे शरीर पर क्या पडता है और हमारे द्वारा जो महसूस किया जाता है उसका प्रभाव हमारे शरीर पर क्या पडता है, इन सब बातों के साथ अगर हमने किसी को कुछ कहा,सुनने वाले ने भी उस बात को सुना और नही भी सुनने वालों के कान में भी बात सुनी गयी,जो लोग उस बात की परीक्ष या जानकारी के बिना सुनते है वे महसूस नही करने की शक्ति से उस बात को कहना चालू कर देते है,तोते का बच्चा घर के अन्दर कही गयी बातों को कहना तो चालू कर देता है लेकिन उस बात को महसूस नही करता है,उसी प्रकार से नासमझ बच्चा भी कही गयी बात को कह तो देता है लेकिन उसे महसूस नही करता है। अगर हमारे से कोई हमारी मन पसंद बात को कहता है तो वह हमारा दोस्त बन जाता है और जब कोई हमारी बात को पसंद नही करता है और हमारी बात का उल्टा जबाब देता है तो वह हमारा अप्रिय व्यक्ति बन जाता है,कारण उसके द्वारा कही गयी बात को हम समझ नही पा रहे है या वह हमारी बात को नही समझ पा रहा है। जो भाषा हमारे द्वारा प्रयुक्त की जाती है उस भाषा के बिना भी हम अगर कोई बात करना चाहते है तो वह शरीर की गति और शरीर के अन्य अंगों के संचालन से हम आधी अधूरी बात को लोगों के सामने कर तो देते ही है,एक भाषा को जानने वाला अगर दूसरी भाषा को नही जानता है तो कोई भी बात सामने वाले को समझा नही सकता है,और वह अगर मुस्करा कर उसे गाली भी दे तो वह यही समझता है कि सामने वाले ने उसे कुछ प्रेम से कहा है। लेकिन वह कोई बात अच्छी बात भी क्रोध वाले भाव बनाकर कहता है तो वह उस बात के लिये भी समझेगा कि वह गाली दे रहा है।

मनुष्य शरीर भी एक मशीन की भांति है,जैसे कहना सुनना देखना सूंघना महसूस करना और शरीर की संचालन विधि से चलना आदि। आज के जमाने में इस मशीन को समझना कोई बडी बात नही है,आज अधिकतर लोग कम्पयूटर के उदाहरण से समझ सकते है,कि मनुष्य का शरीर किस प्रकार से काम करता है। कमप्यूटर के अन्दर की बोर्ड से कोई भी संदेश हम भेजते है,कम्पयूटर उस संदेश को ग्रहण करता है,अच्छा संदेश लिखा है तो अच्छा प्रसारित करता है और बुरा संदेश लिखा है तो बुरा प्रसारित करेगा,इसमें संदेश लिखने वाले की बुद्धिमानी के ऊपर निर्भर करता है। शरीर के अन्दर की बोर्ड का कार्य कान करते है,नाक करती है,मुंह करता है,त्वचा करती है,आंखे करती है। कानो के द्वारा सुना जाने पर जो क्रिया शरीर की होती है वह सुनी गयी बात को समझने पर ही निर्भर है,लेकिन जो सुना गया है वह समझा भी जाना जरूरी है,जैसे कम्पयूटर के अन्दर जो लिखा गया वह कम्पयूटर की ना समझी जाने वाली भाषा में लिखा गया है तो कम्पयूटर कुछ भी लिख देगा कारण उस भाषा को अगर कम्पयूटर जानता ही नही है तो अभिव्यक्ति कहां से होगी,उसी प्रकार से जो व्यक्ति तमिल भाषा को नही जानता है और तमिल का जानकार व्यक्ति उस व्यक्ति से कुछ भे कहेगा वह कोई प्रक्रिया नही करेगा। आंखो के द्वारा जो देखा जाता है वह कुछ हद तक समझा जा सकता है,वह चाहे शरीर के द्वारा इशारे से कहा गया हो,या फ़िर किसी प्रकार के हाव भाव को देखा गया हो,इस बात को अधिक प्रमाणित किया जाता है कि आंखे सभी भाषा के लोगों के हाव भाव व्यवहार को समझती है वे चाहे जीव जन्तु की हो या मनुष्य की आंखों से जो देखा जाता है वह काफ़ी हद तक समझा जा सकता है।

कुत्ते की आंखे मनुष्य के हाव भाव को पहले देखती है,अगर मनुष्य किसी प्रकार से गुस्से में है और वह गुस्से से कुत्ते को भोजन देना चाहता है तो वह भोजन की तरफ़ भी देखेगा और मनुष्य के हाव भाव की तरफ़ भी,लेकिन अपने शरीर को बचाने के लिये उतनी दूरी पर रहेगा जहां से वह अपने शरीर की भाग कर रक्षा कर सके। उसी तरह से पक्षी को भी देखा जा सकता है वह मनुष्य से दाना तो लेने के लिये आतुर रहेगा लेकिन मनुष्य के हाव भाव को पहले समझने की कोशिश करेगा। मनुष्य के हाव भाव में बनावट मिल सकती है,जैसे कि लोग नाटक करते है,सिनेमा जगत ही नाटक और हाव भाव प्रदर्शित करने के ऊपर चल रहा है,हाव भाव और प्रदर्शन की क्रिया में जितनी मौलिकता होती है उतना ही वह नाटक या फ़िल्म अच्छी चलती है और नाम भी होता है,लेकिन अन्य जीव जन्तु नाटक करना नही जानते है और जो जानते है वे कुछ न कुछ मनुष्य की श्रेणी में आते है जैसे बन्दर अपने को बचाने के लिये डराने के लिये बनावटी घुडकी देता है और जैसे ही समझता है कि मनुष्य या अन्य जीव जन्तु उसकी घुडकी से डर गया है वह अपने बचाव का रास्ता पकड लेता है।

शरीर के अणु अपने अनुसार गति को पकड लेते है । जैसे कोई सो रहा है अचानक उसके कान के अन्दर आवाज आती है कि "भागो आग",इस शब्द के कान में पडते ही वह आंखों का प्रयोग करेगा और जब वह स्थिति को समझ जायेगा कि जगह पर रहने से ही वह सुरक्षित है या दूर भाग कर अपने को आग से बचाया जा सकता है,अथवा आग थोडी मात्रा में है तो उसे बुझाकर अपने को सुरक्षित किया जा सकता है। इन तीन प्रकार की गतियों को पकडने के लिये केवल कानों के द्वारा सुनी गयी आवाज से ही सम्भव हुआ।

अचानक सोते सोते महसूस हुआ कि शरीर किसी स्थान पर जल रहा है,फ़ौरन शरीर के अणु काम करना शुरु कर देंगे,और आंख खोलते ही माजरा समझ में आजायेगा कि आग सोने वाले स्थान में लगी है और सबसे पहले शरीर को सुरक्षित करने का तरीका खोजना पडेगा,अगर सम्भव है तो उसे बुझाया जायेगा और असम्भव है तो भागा जायेगा,और कुछ भी सम्भव नही है तो आग में जलना ही पडेगा।

सोते सोते अचानक नाक के अन्दर जलने की बदबू आयी,फ़ौरन शरीर के अणुओं ने काम करना शुरु कर दिया कि कहीं आसपास आग लगी है,जागकर आंखों से देखकर और महसूस करने के बाद अगर आग दूर लगी है और केवल धुंयें से समझा गया है तो उस आग की अपनी तरफ़ बढती हुयी दूरी को समझा जायेगा उसके बाद ही या तो सोया जायेगा या फ़िर आग बुझाने के लिये प्रयास शुरु किये जायेंगे।



सोते समय अचानक गला रुंद गया और सांस लेने में तकलीफ़ आनी शुरु हो गयी,शरीर के अणुओं ने काम करना शुरु कर दिया और जाग कर देखा तो कमरे में कोई गैस फ़ली हुयी थी,कमरे से पहले भागने में ही भलाई समझी गयी,इस प्रकार से चेतना का शरीर में आना भी उपरोक्त कारणों से संभव हुआ,यहाँ शरीर के अंग नाक और मुंह दोनो ने मिलकर अपना काम किया।

शरीर में महसूस करने की जितनी अधिक शक्ति है उतना ही शरीर के द्वारा प्रकट करने की क्षमता में विकास माना जाता है। शरीर के अन्दर महसूस करने की शक्ति अगर कम है तो शरीर के द्वारा कम से कम मात्रा में प्रकट करना माना जाता है। शरीर की महसूस करने की शक्ति को विकसित करने के लिये शरीर को विभिन्न कार्यों में लगाना पडता है विभिन्न माहौल में जाना पडता है,विभिन्न शारीरिक गतियों को देखना पडता है। बच्चा बचपन में ऊंची जगह पर चढने की कोशिश करता है और जैसे ही वह गिरता है उसे महसूस करने की शक्ति मिल जाती है कि गिरने से शरीर में चोट लगेगी और दर्द भी होगा। जानवर को पीटने पर उसकी महसूस करने की शक्ति जाग जाती है वह समझने लगता है कि अमुक कारण से उसके शरीर में पीडा हुयी थी और वह दुबारा से उस स्थान या कारण से दूर ही रहने की कोशिश करता है।

महसूस करने की शक्ति को अधिक से अधिक जानने के लिये लोग पढाई करते है बडी बडी शिक्षाओं को लेते है किताब में लिखी भाषा को पढ कर उसे अपने ऊपर महसूस करने के लिये ख्याली भाव भी मन में लाते है। अगर किसी विशेष स्थान के बारे में पता चलता है कि उस स्थान पर जाने से फ़िसल कर व्यक्ति नदी में गिर जाता है और वह मर जाता है,उसे तैरने के बाद भी नही बचाया जा सकता है तो वह कई बार सुनने के बाद और उसकी सत्यता को परखने के बाद कोई भी उस स्थान पर जाने की कोशिश नही करता है और भूल से कोई उधर जाता भी है तो उसे रोकने के लिये कई साधनों का प्रयोग किया जाता है,साइन बोर्ड अदि लगा दिये जाते है। उसी प्रकार से कोई व्यक्ति अगर अचानक बने सडक के खड्डे में गिर जाता है तो वह दुबारा से किसी के उस खड्डे में नही गिरने से रोकने के लिये पत्थर आदि सडक पर रख देता है,जैसे ही कोई नया व्यक्ति उस रास्ते से आता है उसे पत्थर देखकर ही पता चल जाता है कि खड्डा है और कोई उसके अन्दर गिर कर चोट खा चुका है,या गिरने से पहले ही किसी भले मानुष ने सचेत करने के लिये पत्थर लगा दिये है।

महसूस करने के बाद ही भरोसा किया जाता है,जब तक किसी बात को कार्य को करने के बाद या सुनने के बाद महसूस नही किया गया है तो उस पर भरोसा नही किया जा सकता है। जब किसी वस्तु के खाने से व्यक्ति की मौत हुयी तो उस वस्तु को खाने के लिये मना किया जाने लगा कि उसके खाने से मौत हो जायेगी,इस बात को साबित करने के लिये किसी ने अपनी जान दे कर सभी को महसूस करवाया।

धर्म का कार्य लोगों की मर्यादा को कायम रखना है लोगों को लडाना नही है,यह बात सभी समझते है कारण जो भी धर्म के लिये लडा अन्त में उसे कुछ भी प्राप्त नही हुआ बल्कि अपने ही लोगों को धर्म के नाम पर बलि दे दी गयी। जाति पांति के नाम पर बंटवारा हुआ और हजारों लोग बेघर होकर मारे मारे फ़िरे कितने ही जाति के नाम पर मार डाले गये और कितने ही अपंग होकर जिन्दा रहे,यह एक इतिहास बना और स्कूल कालेजों में पढाया लिखाया जाने लगा,लोगों के अन्दर बुद्धि जागी और वे इस जाति पांति के नाम से चिढने लगे,लेकिन जो लोग उस दर्द को नही समझ पाये जिनके सामने प्रेक्टिकल रूप से सामने नही आया,उनके लिये करके देखने वाली बात को माना जाता है। यह बात मनुष्य की बात से परे मानी जा सकती है,कारण मनुष्य को जल्दी महसूस करने की ताकत होती है लेकिन जानवर को खुद अपने ऊपर जोखिम घट जाने के बाद ही पता चलता है,जैसे एक भेड कुये में चली गई तो दूसरी भेड ने कुछ समझा नही वह पहले वाली भेड का अनुसरण करती हुयी कुये मे जा गिरी,अगर उसे महसूस करने की दिमागी ताकत होती तो वह पहले वाली भेड के कुयें में गिरते ही रुक जाती और सभी भेडें जो उसके पीछे चलने वाली थी कुंये में गिरने से बच जातीं। यह भेड चाल वाली आदत आज भी नासमझ मनुष्य जाति के अन्दर है वह एक के पीछे एक बिना महसूस करने की ताकत के चलती चली जा रही है।

महसूस करने की क्षमता भी है लेकिन फ़िर भी उस जोखिम को किया जा रहा है,तो समझना चाहिये कि उसके सामने कोई बडी मजबूरी है। जैसे स्वर्गीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी को मानव बम से मारने के लिये प्रयोग किया गया मानव बम का प्रयोग। उस महिला को पता था कि उसका बम से मरना जरूरी है,लेकिन समझदारी नही होने के कारण उसे मरना भी पडा और देश को एक बहुत बडा आघात भी दिया। उसके सामने मजबूरी महसूस करवाने के लिये जो प्रयोग किये गये उनके अन्दर बिना सिर पैर के कारण और उदाहरण बताये गये,उसका मरना कुचालियों की साजिस थी,खुद तो डूबे ही और उस बेचारी को पाठ पढाकर भी ले डूबे।

मनुष्य के अन्दर सबसे अधिक महसूस करने की ताकत है,लेकिन वह अपनी महसूस करने की ताकत को भूल जाता है। किसी वाहन को तेज गति से चलाने के बाद एक्सीडेंट हुआ,और दुबारा से भी एक्सीडेंट हो गया,इसका कारण एक ही था कि वह पहले एक्सीडेंट में बहुत पीडा को झेल चुका था लेकिन वह भूल गया था कि उसका फ़िर भी एक्सीडेंट हो सकता है। इस भूलने वाली प्रक्रिया का लाभ आज के राजनीतिक दल उठाते है,जैसे जाति के नाम से जातिगत राजनीति करना। जो जाति उस दल से जुडने जा रहा है उसे महसूस करने की क्षमता है कि वह जातिवाद के नाम से केवल अपने ही मनुष्य का खून बहायेगा,वह अपने ही मनुष्य के दिल में नफ़रत पैदा करेगा,लेकिन जानबूझ कर उस महसूस करने की ताकत को प्रयोग नही कर पा रहा है,उसके अन्दर जो मजबूरी है वह स्वर्गीय श्री राजीव गांधी की हत्यारिन की मजबूरी से मिलती जुलती है।

जानवर का गला काटने के लिये जो बूचड खाने बनाये जाते है उनके अन्दर सभी जानवरों को आटोमेटिक तरीके से काटने और उनकी खाल मांस हड्डी और अन्य अवयवों को अलग करने के लिये आटोमेटिक तरीके ईजाद किये गये है,जानवरों को एक विशेष स्थान पर बंद कर दिया जाता है,उनकी गर्दन की लम्बाई के अनुसार ही कटर लगाये गये है,सभी जानवरों के सामने एक साथ ही उनके मनपसंद भोजन को गिराया जाता है,सभी जानवर अपने अपने मुंह को उस भोजन को खाने के लिये जैसे ही ले जाते है अचानक ऊपर से चलने वाला गडासा उनकी गर्दन पर गिरता है और सैकडों की संख्या में जानवर उस बूचडखाने की मशीन की बलि चढ जाते है,कारण जानवरों ने पहले उस प्रकार की महसूस करने की ताकत को नही देखा था,उन्ही के सामने जो जानवर लाइन में होते है वे भी उसी प्रक्रिया को करने के बाद बलि चढ जाते है,यह अंजवाने वाली बात मानी जाती है,कि जब तक उस महसूस करने वाली बात को अंजवाया गया तब तक काफ़ी देर हो चुकी थी। यही हाल मनुष्य समुदाय को बनाने में करता है,समुदाय को इकट्ठा करने के बाद मनुष्य जानवरों की तरह का उपाय करता है,अपने को मानवीय शक्ति से पूरित मानता है,लेकिन जब कोई अन्य समुदाय अपने पराक्रम में सफ़ल होता है तो समुदाय के समुदाय जानवरों की भांति ही बलि चढ जाते है। जैसे एक देश की सेना दूसरे देश की सेना को समुदाय के रूप में ही हताहत करती है,एक मनुष्य को जो एक दूसरे को जानता तक नही है पहिचानता तक नही है केवल एक ही भावना कि वह दुश्मन है,उसे मारना है,यह भी पता है कि गोली लगने के बाद तलवार लगने के बाद बम गिरने के बाद असहाय पीडा होगी,सांस शरीर से एक दम नही निकलती है,जिसे मारने जा रहे हो वह भी एक मनुष्य है,उसी तरह से माता के गर्भ से पैदा हुआ है जैसे तुम हुये हो,जैसे जैसे तुम अपने घर परिवार में पले बढे हो उसी प्रकार से वह भी पला बढा है,जैसे तुमने भोजन किया है जैसे तुमने अपने परिवार की चाहत और परिवार वालों की चाहत को समझा है उसी प्रकार से सामने वाले ने भी समझा होगा,लेकिन समुदाय और कानून का सहारा लेकर हत्या करने में दर्द नही होता,और महसूस करने की ताकत को अपमानित करना पडता है.

बुद्धि से युक्त व्यक्ति समाज से अलग रहता है वह अपने समुदाय को नही बनाता है,जो अधिक महसूस करता है उसे समाज में बेकार का आदमी कहा जाता है,जिसे दर्द नही होता है और वह इन्सान और जानवरों को मारने में कतई दर्द को नही समझता है वह मनुष्य कैसे कहा जा सकता है,सबसे बडी ताकत जो महसूस करने की ताकत के रूप में मानी जाती है वह इन्सान के पास है,दूसरों के दर्द को समझना दूसरों की आफ़त के समय उसकी सहायता करना,दूसरों को भलाई के रास्ते पर ले जाने वाले लोग आज अपनी उस सुप्रीम शक्ति को भूलते जा रहे है,इस भूल जाने में उनके सामने कौन सी मजबूरी है,और जो वे भूल रहे है,और जो उनको भुला रहा है क्या वह उनकी भलाई चाहता है,वह तो अपने गुट से राज करने के लिये तुम्हे आकर्षित कर रहा है,तुम महसूस करते हो कि वह तुम्हारी महसूस करने की ताकत का गलत फ़ायदा लेने जा रहा है,और फ़िर भी तुम उस गुट की तरफ़ बढते जा रहे हो तो उस बूचड खाने के जानवर से कम नही हो,किसी दिन उसी मशीन के नीचे तुम्हे भी आना होगा चाहे वह मशीन किसी भी रूप में हो।

1 comment:

Nitin said...

Guruji ! bramha ne srushti banyi, prithvi banayi,prithvi par 84 laksa yoniya banayi, lekin un sabme insanko sabse khas banaya / dekhiye sare jiv jinco rid ki haddi hai, sabki aadi(__) hai/ jaise hathi, bail, chuha, sabhi ki rid ki haddi aadi hai/ is karan koi prani soch nahi sakta / lekin manushya ki rid ki haddi sidhi (!)yane khadi hai/ isi karan insan hi soch sakta hai/ baki prani nahi / yane mai to manta hu bhagwane muze lakho me ek nahi 84 lakho me ek banaya hai/ our un logonke upar daya karta hu bechre bhagwan ne itna achha banya lekin in 84 lakh baki praniyo ki sangat me bahotse log sidhi rid ki haddi hote huya bhi aadi rid ki haddiyo jaise hi khudko samjte hai / mai to bhagyashli hu kyu ki bhagwan ne muje 84 lakhme ek banaya hai to bhagwanki najar me bhi mai kitna khas hu hai na ?