Tuesday, August 31, 2010

क्यों मिलती है आदमी को बन्धन की सजा ?

मकडी का जाला आपने देखा होगा,वह अपने जाले को शिकार को फ़ांस कर मारने और अपने भोजन की पूर्ति के लिये बनाती है,एक एक ताना बाना बडी होशियारी से बुना जाता है,और उस ताने बाने के अन्दर एक प्रकार लसलसा पदार्थ लगाकर छोडा जाता है,जैसे ही कोई शिकार आकर उस जाले में फ़ंसता है उसी समय खुद को जाले से निकालने के लिये प्रयास करता है और जितना वह प्रयास करता है उतना ही जाले के अन्दर और फ़ंसता जाता है,जब वह प्रयास करते करते थक कर चूर हो जाता है तो मकडी आराम से आकर उसे अपना आहार बना लेती है।

मकडी का जाला और अधिक शिकार के प्रयास के कारण और बडा बनाया जाता है धीरे धीरे मकडी की सन्तान भी उसी जाले को बडा बनाने के लिये कोशिश करने लगती है और जाला एक सीमा से बाहर जाकर बहुत बडा बन गया होता है जाले को तोडना खुद मकडी की दम से बाहर की बात होती है और एक दिन जब मकडी अपने ही बनाये जाल में फ़ंस जाती है तो उसकी संतान भी उसे बाहर नही निकाल पाती है,अपने ही बुने हुये जाल के तानो बानों में वह इतनी जोर से फ़ंस जाती है कि वह किसी प्रकार से भी नही निकल पाती है और उसी जाले में सूख सूख कर मर जाती है।

मनुष्य भी अपने कर्मो का जाल बनाता है शिक्षा को लेता है और तरक्की के लगातार रास्तों पर जाने के लिये और अधिक से अधिक धन कमाकर अपने भविष्य को सुरक्षित करने के लिये प्रयास करता है,अपने परिवार सहित कई प्रकार के कामों में लग जाता है लोभ के कारण उसे पता ही नही चलता है कि कब वह अच्छा काम कर गया है और कब उससे गलत काम हुया है,अचानक गलत कामों का भंडा फ़ूटता है और मनुष्य अपने ही बनाये गये कर्मों के जाल में फ़ंस जाता है,वह जितना उस कर्म जाल से निकलने की कोशिश करता है उतना ही और अधिक फ़ंसता जाता है और एक दिन उसी कर्म जाल में फ़ंस कर उसकी मौत हो जाती है।

बिच्छू रात्रिचर कीट है और उसके पीछे बहुत विषैला डंक होता है। वह अपने हथियार को पीछे बांध कर चलता है,बडे से बडे जीव को वह पल में धराशायी कर देता है,कितना ही बडा जीव हो बिच्छू के जहर से तडप उठता है कराहता है और उसे लगता है कि उसके शरीर में आग लगा दी गयी है,बिच्छू इतना बडा काम करना जानता है,समेटने के लिये दो बाहों की कटार अपने साथ आगे करके चलता है,पीछे से वह समेटने वाले जीवों को धराशायी करता हुआ निकलता चला जाता है। वह यह सब अपने लिये ही करता है मादा बिच्छू बहुत जहरीली होती है और वह जब डंक मारती है तो नर बिच्छू से अधिक पीडा होती है। इस विष की गर्मी के कारण वह कई बिच्छुओं से अपना सम्पर्क बनाती है और उसके उदर में पलने लगते है उन सभी बिच्छुओं के बच्चे,जैसे ही मादा बिच्छू प्रजनन करती है सभी बच्चे सबसे पहले अपनी माँ के शरीर का ही भोजन करते है और मादा बिच्छू का पहला और आखिरी प्रसव होता है,वह अपने बच्चों की भूख का ही शिकार हो जाती है।

यह सब सजायें जीव या मनुष्य को उसके कर्मों के अनुसार मिलती है। हर आदमी को कर्म बन्धन में बन्ध कर अपने अपने कर्मों को करना चाहिये,अगर कर्म नही किये जायेंगे तो किसी न किसी प्रकार से उदर पूर्ति और परिवार की पूर्ति के लिये कोई न कोई चालाकी या छल कपट करना पडेगा,पहले पहले मान लीजिये कि छल कपट और चोरी चालाकी करने पर किसी ने नही पकड पाया लेकिन किसी न किसी दिन तो पकड में आना ही है,कहावत भी है जो चोरी करता है अपनी खुशबू वहीं छोड देता है और उस खुशबू के बाहर फ़ैलते ही चोर की जात पहिचान ली जाती है। जब चोर पकडा जाता है तो सजा मिलती है वह सजा बन्धन की भी होती है और शरीर की प्रताडना की भी,जब शरीर को प्रताणित किया जाता है तो आत्मा को भी कष्ट होता है,अगर व्यक्ति को पहले ही कर्म बन्धन में अपने को बांधने के लिये तैयार कर लिया गया होता तो शरीर को इतना कष्ट भी नही मिलता और जेल वाली सजा भी नही मिलती।

कर्म बन्धन की सजा को देने के लिये कई प्रकार के कारण इस संसार में मनुष्य जाति के लिये बनाये गये है। कोई अपने ही परिवार की जिम्मेदारी के नाम की सजा को भुगत रहा है कोई दूसरों को सहायता देने के कामों की सजा को भुगत रहा है कोई गरीबी में अपनी सजा को भुगत रहा है कोई अमीरी में अपनी सजा को भुगत रहा है। हर कोई कर्म के अन्दर लाभ हानि का माप करने के बाद कर्म को करने के लिये तैयार होता है। कर्म के अन्दर जहां लाभ दिखाई देता है और अधिक से अधिक कमाने का कारण मिलता है वहां सबसे अधिक लोग इस कर्म बंधन को बांधने के लिये तैयार होते है। जहां अधिक लाभ होगा वहां चालाकी फ़रेबी अपने दिमाग का कई रास्तों से उपयोग करना आदि मिलेगा। जितनी चालाकी कर्म के अन्दर की जायेगी उतनी ही परवरिस अपने परिवार की भी करनी पडेगी। जैसे कम लाभ वाले कर्म को करने के बाद व्यक्ति का बच्चा अपने आप अपने कर्मों को करने लगेगा,जबकि अधिक लाभ वाले कर्मों को करने वाले का बच्चा अपने पिता पर ही अधिक से अधिक निर्भर रहेगा। अपने कर्मों को करने वाला बच्चा अपने ही अनुसार अपने जगत की रचना कर लेगा जब कि अपने पिता पर निर्भर रहने वाला बच्चा गमले के पेड की तरह से ही रहेगा,अगर किसी दिन उसके पिता उसके गमले में पानी खाद डालना भूल गये तो वह या तो कुम्हला जायेगा या सूख कर खत्म हो जायेगा। जबकि स्वयं को अपने अनुसार बढाने वाला बच्चा अपने अनुसार ही जलवायु से अपनी खुराक को लेगा और आन्धी तूफ़ान बरसात को सहन करने के बाद अपनी जडे जमीन के नीचे तक फ़ैला लेगा फ़िर उसे किसी प्रकार की हवा पानी बरसात नुकसान नही दे पायेगी।

अकर्मी को अधिकतर डर से अपने बचाव के लिये मन्दिर भागना पडता है,वहां वह अपने कर्मो से कमाये गये छल कपट की कमाई को पुजारियों में बांट कर आयेगा,अकर्मी को भागना पडता है पुलिस स्टेशन और थानेदार सहित सभी को अपनी कमाई को देकर आना पडेगा,अकर्मी को भागना पडता है अस्पताल जहां डाक्टर आदि उसकी कमाई को खाने के लिये विराजमान है,अकर्मी को भागना पडता है कोर्ट कचहरी जहां वकील और जजों की फ़ौज उसे चूसने के लिये तैयार बैठे है,अकर्मी को भागना पडता है गुंडो मवाली नेताओं के आगे जहां वे घात लगाये बैठे है कि कब वे उनके पास आये और उन्हे अच्छी तरह से चूसा जाये।

अधिक लाभ कमाने वाले को भागना पडता है एकाउन्टेंट के पास सीए के पास कि उसकी कमाई को कैसे बचाया जाये,उसे भागना पडता है इनकम टेक्स और दूसरे प्रकार के टेक्स चुकाने के लिये,वकीलो को देना पडता है चौकीदार को देना पडता है काम करने वाले लोगों को देना पडता है फ़िर उसके पास हकीकत में दो जून की आराम से खाने की रोटियां भी नही बचती है,उसे चिन्ता के कारण इतने रोग पैदा हो जाते है कि वह अपनी जिन्दगी को डाक्टरों की रहमो करम पर ही जीता है उसने जितने आराम से अपने बच्चों को पाला होता है वे उतनी ही बेरुखी से अपने अपने रास्ते पकड गये होते है कारण उन्हे भी तो अपने पिता की तरह से अधिक कमाई करनी है।

कर्म बन्धन की सजा भुगतने के लिये जेल जाना अच्छा नही है,अस्पताल में भर्ती होना भी अच्छा नही है,मन्दिर में रहकर लगातार भजन करना भी अच्छा नही है,अकेले में बैठ कर जाप करना और ध्यान समाधि लगाना भी ठीक नही है,अगर मनुष्य जन्म लिया है तो कम लाभ वाले लोगों को अधिक आराम देने वाले कर्म करना ही हितकर है,नींद भी अच्छी आती है भूख भी खूब लगती है,बच्चे भी ईमानदार होते है घर को घर समझते है,भरपूर सेवा करते है उन्हे समझ होती है कि बडा कौन और छोटा कौन है.