Monday, September 13, 2010

गृह-क्लेश (2)

घर के अन्दर वैसे तो सभी संतान एक जैसी होती है माता ने सभी को समान रूप से पाला पोषा होता है,लेकिन समय की कमी या पालने पोषने के समय किसी सुख दुख के कारण कमी भी रह जाती है तो माता को दोषी नही बनाया जा सकता है। भाई बहिन एक ही आंगन में खेले कूदे और बडे हुये होते है,फ़िर भी एक दूसरे के अन्दर असमानता का भाव अक्सर मिल ही जाता है। किसी को दूध अच्छा लगता है किसी को दही अच्छा लगता है और किसी को छाछ ही अच्छी लगती है,एक रूप को तीन प्रकार का भाव जब मिलता है तो वह भाव ही आगे चलकर एक दूसरे की इच्छाओं को कर्मो को और रहने वाले स्थान के प्रभाव को बदलने के लिये काफ़ी माना जा सकता है। तीनो ही बच्चों को समान रूप से समान वस्तुओं का वितरण किया जाता है,एक तो दूसरे को खिलाने का शौकीन होता है वह अपने मिले हिस्से से भी दूसरे को खिलाना जानता है,एक के अन्दर भाव होता है कि वह अपना भी खाले और दूसरे का भी कैसे भी लेकर खाले और तीसरे का भाव रहता है कि अभी नही खाया जाकर बाद में खाया जाये। यह प्रकृति माता के पेट से पैदा नही हुयी होती है इस प्रकृति को प्रकट करने वाले या तो ग्रह होते है या फ़िर माता के द्वारा बच्चे के गर्भ के दौरान किये गये,महसूस किये गये,और दूसरों के द्वारा आरोप प्रत्यारोप के द्वारा दिये गये भावों से भी माना जा सकता है।
शरीर मशीन की तरह से है इसके अन्दर जैसी शक्ति होगी वैसा ही दिमाग भी होता है,अक्सर सभी लोगों ने महसूस किया होगा कि स्वस्थ शरीर वाला व्यक्ति कम गुस्सा करता है और कमजोर शरीर वाला अधिक गुस्सा करता है,जिसके अन्दर गुस्सा अधिक होता है वह कटु बोलता भी है और अपने लिये सब कुछ करने के बाद या तो सब बरबाद कर देता है या फ़िर खुद को ही बरबाद कर लेता है। पुरुष तो बाहर रहकर और स्वतंत्रता से अपने दिन को निकाल लेता है लेकिन स्त्री अपने ही संसार में व्यस्त रहकर घर और अपने घर वालों के लिये ही अपने दिमाग को समेटे रहती है,उसके लिये जो भी अच्छा बुरा सोचना होता है वह अपने ही घर के लोगों के लिये ही सोचना होता है उसे बाहर की सोचने की ताकत ही मिल पाती है,कोई स्त्री अगर बाहर के माहौल को सामने भी रखती है तो लोक लाज और मर्यादा से बाहर जाने वाली बात के कारण वह किसी बाहर की बात को घर के अन्दर रख भी नही पाती है। इसी कारण से स्त्री के अन्दर अधिकतर आंतरिक विचार लगातार चलने के कारण भी ऐसा देखा जाता है,कि वह अपने घर के अन्दर ही क्लेश का कारण पैदा करती है।
घर का क्लेश होने से घर के जितने भी सदस्य होते है वे सभी किसी न किसी बात से आहत होते है। और अपने अपने दिमाग को स्वतंत्र नही रखकर अपने को उसी क्लेश को दूर करने के लिये अपने को लगाये रहते है लेकिन बाहर की कोई कमी होती है तो उसे तो पूरा किया जा सकता है लेकिन घर के अन्दर की कमी को पूरा करने के लिये कई कारण सामने आते है। अगर छोटे पुत्र की पत्नी घर में क्लेश पैदा करने लगती है तो बडा पुत्र भी कुछ नही बोल पाता है कारण वह बोलता है तो समाज के परिवार के और सुनने वाले भी उसे ही दोष देने लगते है कि वह बडा था उसे सोचना चाहिये था और बहू होने के नाते उसे कुछ नही बोलना चाहिये था। दूसरे प्रकृति के स्वभाव के अनुसार बडे पुत्र से लगाव पिता को होता है और छोटे पुत्र का लगाव माता से होता है माता छोटे पुत्र के लिये कुछ भी करने को तैयार होती है लेकिन बडे पुत्र को वह एक बार नजरंदाज भी कर सकती है। इसलिये अगर छोटे पुत्र की पत्नी कुछ ऐसा वैसा करती है तो माता अधिकतर उसकी कमियों को छुपाकर रखती है या फ़िर अन्दर ही अन्दर उस कमी को मिटाने के उपाय करती रहती है,इस बात से भी बडे पुत्र की पत्नी को महसूस होने लगता है कि उसकी सास अपनी छोटी बहू को तो बहुत कुछ करती है और उसके लिये कुछ भी नही करती है। यह बात भी क्लेश के लिये जिम्मेदार मानी जा सकती है,लेकिन माता के द्वारा भी गल्ती की जाती है कि वह छोटी बहू के लिये वह सब कुछ करने को तैयार होती है जो वह बडी बहू के लिये नही कर सकती है। अथवा यह माना जाये कि छोटा पुत्र अधिक प्रिय होने के कारण वह अपने छोटे पुत्र के हिसाब से ही अपनी छोटी बहू को उसी के अनुसार प्रिय रखना चाहती है,और छोटी बहू को यह भी पसंद नही होता है कि उसकी सास उसके अलावा और किसी को उतनी मान्यता दे जितनी कि वह उसे देती है।
बडी बहू ने रसोई में दाल बनायी और छोंक बघार करने के बाद किसी काम से बाहर आयी,छोटी बहू को मौका मिला और वह रसोई में जाकर दाल के अन्दर नमक दो चम्मच और मिलाकर चुपके से बाहर आ गयी। उसे बडी बहू को सबक सिखाना है या उसकी मान्यता को नीचे दिखाना है,जैसे ही भोजन के लिये सब बैठे दाल में रोटी का निवाला लेकर मुंह तक गया और बडी बहू की छीछालेदर चालू,जो रोजाना दाल को पहले अच्छी तरह से पकाती थी वही बहू आज नमक के कारण सबके दिमाग से उतरने लगी। उसने भी सोचा कि आखिर नमक क्यों अधिक हुआ। उसने नजर रखना चालू कर दिया,वह कुछ समय के लिये रसोई से बडा काम करने का बहाना लेकर या बाथरूम में गयी लेकिन वापस जल्दी से आ गयी और उसने देखा कि उसके बनाये गये सब्जी या दाल के व्यंजनो के अन्दर उसकी देवरानी कुछ मिलाकर गडबड कर रही है तो उसने भी उसे छकाने की सोच ली,वह किसी से कह इसलिये नही पायी कि अगर वह कहती है तो लोग कहने लगेंगे कि वह छोटी बहू को नीचा दिखाना चाहती है,जब छोटी बहू का खाना बनाने का समय आया तो उसने भी कोई गडबडी भोजन के अन्दर रख दी कुछ नही तो दाल के अन्दर पहले से रखे हुये बीनन वाले पत्थर ही उसके अन्दर मिला दिये,भोजन के वक्त जब वे कंकड दांत के नीचे आये तो छोटी बहू की छीछालेदर शुरु हो गयी। इस तरह के तमासे अक्सर अधिकतर घरों के अन्दर देखे जाते है,इसके अलावा जो गुण नही भी हों वह आजकल के टीवी के अन्दर बडे आराम से देखने को मिल जाते है,किस तरह से देवरानी अपनी जेठानी को नीचा दिखाती है किस तरीके से वह अपने पति से देवर का हिस्सा हडपने की बात करती है आदि बातें अक्सर टीवी सीरियल वाले अपने आप पैदा करते रहते है,कभी जेवर के पीछे और कभी रहने वाले कमरे के पीछे कभी साफ़ सफ़ाई के पीछे तो कभी बच्चों के पीछे रोजाना किसी न किसी बात पर घर के अन्दर क्लेश पैदा होता ही रहता है।

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