Tuesday, August 24, 2010

इष्ट की आराधना

देखता हूँ कि संसार में तरह तरह के जीव जन्तु अपना अपना जीवन जी रहे है। कई जीव वनस्पति पर जिन्दा है तो कई जीव वनस्पति को भोजन के रूप में लेने वालों पर जिन्दा है। कई जीव वनस्पति और जीवित जीवों दोनो को भोजन में लेकर जिन्दा है। मनुष्य रूप में जन्म लेकर जीव ने अपने जीवन को सार्थक बनाया है,मनुष्य के रूप में जीवन मिलना बडा कठिन सा जान पडता है। घास खाने वाले जीव का बच्चा दो घंटे बाद उठकर अपने आहार की खोज करने लगता है,कीट पतंगे दो चार दिन में अपना आहार खोजने लग जाते है,कुत्ते बिल्ली के बच्चे एक माह में अपना आहार खोजने लगते है लेकिन मनुष्य तीन साल के बाद अपने आहार को खोजने लगता है वह मनुष्य के खाने के सामान को कम और मिट्टी कूडा करकट जो भी मिले उसे मुंह में लेजाने से मतलब रखता है,मनुष्य के बच्चे पर अगर ध्यान नही रखा जाये तो वह कुछ भी खा सकता है,वह मिट्टी को खा सकता है अपने द्वारा त्यागे गये मल को भी खाने से नही चूकेगा अगर उसके ऊपर ध्यान नही दिया गया तो। जम मैं छोटा था तो चीटा खा गया था,मैने चीटा खाने के लिये मुंह में रखा और चीटा ने अपनी जान बचाने के लिये जीभ को अपने दोनो पैने दांतों से पकड लिया,बचाव के लिये एक ही साधन था बडे जोर से चीखना,चीखा और माँ दौड कर आयी,देखा मैं रो रहा हूँ ऊपर से नीचे देखा मुंह के अन्दर देखा चीटा जीभ में चिपका हुआ था उसे अपनी साडी के आंचल से पकडा और निकाला चीटे की मुंडी जीभ में ही चिपकी रह गयी थी,चीटा का बाकी का शरीर बाहर निकल आया था उसे भी धीरे से निकाला,फ़िर चीटा देखकर डर लगने लगा,कभी चीटा सामने भी आता तो चिल्लाने लगता- "चीता ऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽ".,कहा जाता है कि जैसा आहार वैसा व्यवहार,राजस्थान के लोग बाजरा खूब खाते है,बाजरे की रोटी का स्वाद कुछ अलग सा होता है,देशी बाजरा की रोटी खाने से वह अच्छी लगती है लेकिन शंकर बाजरा की रोटी खाने से वह कुछ अकराती है,अकराने का कारण उसके अन्दर मिली हुयी यूरिया की खाद को ही समझा जा सकता है। जो जिन्दा रखे वह अन्न और जो इच्छा करे वही मन्न,जिन्दा रखने के लिये अन्न की जरूरत पडती है,लेकिन अन्न के अलावा भी कई वस्तुयों को खाया जा सकता है,खाना पेट भरने के लिये खाते है फ़िर पेट की मशीन अपना काम करती है,उस खाये गये भोजन को अपने अपने स्थान पर पहुंचाना और शरीर का पालन करना इसी पेट की मशीन का काम है,कहा जाता है कि बडे से बडा कुआ भरा जा सकता है लेकिन इस पेट की मशीन को नही भरा जा सकता है। दिन खाय रात को सोते,सुबह जगे तो रीते,यानी दिन भर खाया और रात को सो गये सुबह जगे तो फ़िर खाली का खाली। इस पेट को भरने के लिये ही मनुष्य तो क्या संसार का कोई भी जीव जन्तु अपने अपने कार्यों को कर रहा है। एक कसाई से पूंछा कि जो यह रोजाना हत्यायें कर रहे हो उसका कारण क्या है उसने सीधे से जबाब दिया कि मुझे हत्या करना ही आता है बचपन से माता पिता ने ही हत्या करने का काम सिखाया है इसलिये मैं तो हत्या करना ही जानता हूँ,और जो भी जानवर काटता हूँ उसके बदले में मुझे अपने बच्चों की रोटी मिलती है,मैं अपने बच्चों की परवरिस करता हूँ। मैने उससे पूँछा कि जब तुम जानवर को काटते हो तो वह फ़डफ़डाता है,चीखता है चिल्लाता है,तुम्हे दया नही आती,खून देखकर तुम्हारे हाथ नही कंपते,वह बोला पहले यह सब होता था,जब मैं पिताजी से कहता था कि इसके दर्द हो रहा है यह तडप रहा है तो पिताजी एक थप्पड देते थे,कहते थे इसका चिल्लाना देखेगा तो घर वाले रोटी के लिये चिल्लाने लगेंगे,धीरे धीरे सब सामान्य लगने लगा और अब मुझे कोई दर्द नही होता है। मैने उससे पूंछा आप किसी भगवान को मानते हैं या नही,उसने जबाब में बताया कि मैं भी उसी भगवान को मानता हूँ जिसे मेरे पुरखे मानते आये है,और जैसी इबादत वे करते आये मैं भी करता हूँ,मैने उससे पूंछा कि तुम्हारे धर्म में पाप और पुन्य का नाम तो आता होगा,उसने तपाक से जबाब दिया सभी धर्मों के अन्दर पाप पुन्य की कथायें है,लेकिन पाप पुन्य की कथा तभी अच्छी लगती है जब पेट भरा हो,पेट भरने के लिये काम करना पडता है,मैं काम करता हूँ किसी की चोरी नही करता,किसी के यहाँ डाका नही डालता,मैने उससे पूंछा कि चोरी करना और डाका डालना हत्या से भी बडा अपराध है ? उसने जबाब दिया कि चोरी करने और डाका डालने से किसी की मेहनत की कमाई के हक को छीनना होता है लेकिन हत्या करना तो मेरा काम है उसे करने से कैसा पाप ? जानवरों को काटने के लिये तो सरकार भी मना नही करती उसने भी कानून बनाया है कि कबेला शहर से बाहर होना चाहिये और स्वस्थ जानवर ही काटे जाने चाहिये,अधिकारी आते है और जानवरों को चैक करते है काटे गये मांस को चैक करते है,वे भी मना नही करते है कि जानवर को काटने से पाप होता है। एक जानवर को वह धीरे धीरे काट रहा था,उसको थोडा सा काट देता और फ़िर रुक जाता,मैने उससे पूंछा जब तुम्हे हत्या करनी है तो इस बेचारे को तडपा तडपा कर क्यों मार रहे हो,उसने जबाब दिया कि यह हलाल की कमाई है,झटके से मारने पर मांस के अन्दर खून का रेशा रह जाता है वह लाल दिखाई देता है,और लाल मांस के रह जाने पर ग्राहक नही लेता है,तथा जानवर के मांस से मतलब होता है उसके खून की और अधिक कीमत मिलती है,मांस की अलग कीमत मिलती है,हड्डी चमडा और बालों की अलग अलग कीमत मिलती है,खून का भाव मांस से चार गुना है। मैने उससे पूंछा कि जब आप जानवर को काटते है तो मन में कुछ बुदबुदाते है वह क्या है ? उसने जबाब दिया कि मैं जानवर को काटने के समय अपने इष्ट से प्रार्थना करता हूँ कि यह मेरा कर्म है,मारना मेरा धर्म है,लेकिन पाप दोष सभी इस जानवर को कटवाने वाले पर खाने वाले पर लागू होते है,मुझे किसी भी पाप पुन्य से बचाना। उसने कहा जब खाने वाले नही होंगे तो काटने वाले भी नही होंगे,पहले मेरे पिताजी यहाँ अकेले थे,आज चालीस लोग जानवरों को काट कर बेच रहे है सभी का धन्धा अच्छा चल रहा है। कसाई का इष्ट भी देखा वह था रोटी। पुजारी जी सुबह ही मन्दिर की सफ़ाई करने के लिये आ गये,उन्होने मन्दिर को धोया साफ़ किया भगवान की मूर्ति को साफ़ किया सजाया फ़ूलों की मालायें चढाई,चन्दन लगाया,अगरबत्ती जलाईं और दीपक लेकर आरती की,आरती में काफ़ी संख्या में लोग शामिल हुये सभी को आरती का प्रसाद मिला सभी ने दीपक की रोशनी से हाथ जोड कर थाली में कुछ पैसे डाले और अपने अपने स्थान को चले गये। पुजारी जी अकेले रह गये,थोडी देर में उनकी पत्नी आयीं और टिफ़िन देकर चलीं गयीं। पुजारी जी ने टिफ़िन को एक तरफ़ मन्दिर के कोने में रख दिया और फ़िर आकर भगवान की मूर्ति के सामने अपनी गद्दी पर बैठ गये।  जो भी मन्दिर में आता भगवान के दर्शन करता पुजारी जी को प्रसाद चढाने के लिये देता पुजारी जी उस प्रसाद का कुछ हिस्सा मूर्ति के सामने रखे एक बर्तन में डाल देते और प्रसाद उसी व्यक्ति को वापस कर देते,वह दक्षिणा में जो भी चढाता वह भगवान के सामने रखे एक ताला लगे हुये बक्से में डाल कर चला जाता । पुजारी की इसी प्रकार की दिनचर्या चलती रही,दोपहर हुयी पुजारी जी ने मंदिर के मुख्य दरवाजे को बन्द किया और कोने में रखा टिफ़िन उठाया और भोजन करने के लिये पीछे के अहाते में चले गये,भोजन किया और आराम करने के लिये वहीं पर बिछे एक कम्बल पर लेट गये थोडी देर में वे नींद के आगोस में चले गये। समय हुआ वे उठे और फ़िर हाथ पैर धोकर मन्दिर का मुख्य दरवाजा खोल कर अपनी गद्दी पर बैठ गये,लोगों के आने का प्रसाद को चढाने का दौर शुरु हुआ,कोई जल्दी आना चाहता था कोई आराम से आ रहा था,महिलाओं की भीड सबसे अधिक थी,सब कोई न कोई प्रसाद ला रहे थे,भगवान के सामने खडे होकर मन ही मन में हाथ जोड कर मांगते और चले जाते,इसी प्रकार से कार्यक्रम चलता रहा,शाम हुयी फ़िर आरती की गयी,प्रसाद बांटा गया और नौ बजे मन्दिर का मुख्य दरवाजा बन्द करने के बाद अन्दर आये,दान पेटी का ताला खोला,उसमें भरी दान की राशि एक कपडे के थेले में डाली,उस दान पेटी का ताला वापस लगाया और उस थैले को भगवान के चरणों में लगाया,कुछ मन ही मन में बुदबुदाये और मन्दिर की भगवान की एक लाइट को जला छोड कर बाकी की लाइटें बन्द कीं सभी दरवाजे और खिडकियां बन्द की और ताले लगाकर बाहर आकर अपनी मोटर साइकिल उठाई घर की तरफ़ रवाना हो गये। घर जाकर पंडितानी को वह कपडे वाला थैला देकर खुद बाथरूम में घुस गये,फ़ारिग होकर बाहर आये,सोफ़े पर बैठ कर टीवी को चालू किया और समाचार देखने लगे। पंडितानी ने चाय पिलाई फ़िर रसोई में घुस गयीं,भोजन बनाया बच्चों के साथ पंडितजी को भी परोसा और उन्हे खाना खिलाकर अपने साफ़ सफ़ाई के काम में लग गयीं। पंडितजी कुछ देर टीवी के पास बैठे रहे,और जाकर अपने सोने वाले कमरे में पलंग पर जाकर सो गये। इधर पंडितानी ने उस थैले को अपने सभी कामों से निपट कर खोला और उसमें रखी धन की राशि को गिना,गिनने के बाद उस थैले में कुछ पहले से लाये फ़ूल और फ़ूलों से बनी मालायें रखीं,उस थैले को फ़िर में रखा और पंडितजी के पास जाकर उनके पैर दबाने लगी,पंडितजी के पैर दबाते दबाते बोलीं कि कल बडे बच्चे  का एडमिशन होना है उसे दो हजार रुपये चाहिये,पंडितजी ने पूंछा कि आज कन्हैया ने कितना दिया है,वे बोलीं कि पन्द्रह सौ ही दिये है,उन्होने कहा कि कल रुक जाओ परसों इसकी एडमिसन फ़ीस जमा करवा देना और सो गये। दूसरे दिन फ़िर वही कार्यक्रम चालू हुआ,पंडितजी के लिये भी कन्हैया केवल रोटी के ही इष्ट बने,वे उनके घर के खर्चे को पूरा कर रहे थे,और पंडितजी अपने काम के लिये मंदिर जाते और मंदिर उनके लिये पूजा का नही घर के खर्च को चलाने का साधन था। घूमता घामता एक दिन मौलवी जी से मिला,बहुत ही बुजुर्ग व्यक्ति थे,सफ़ेद कुर्ता सफ़ेद लुंगी और सिर पर जाली वाली टोपी,घर से मस्जिद तक जाने में सैकडों बार हाथ ऊपर उठाकर बालेकुम अस्लाम कहते जा रहे थे। मस्जिद में मुख्य दरवाजे पर पहुंचते ही इधर उधर बैठे लोगों को कुछ इशारे किये और दरवाजा खाली करने के लिये कहा,लोग उनकी बात को मानकर दूर चले गये,ठेले वाले ने ठेले को हटा लिया,रिक्से वाले ने रिक्से को हटा लिया,अन्दर पहुंच कर मदरसे की तरफ़ गये,मौलवी जी ने पढाई करने वाले बच्चे बच्चियों को देखा सभी अलिफ़ ऐ बे जीम चे भे कर रहे थे,मदरसी को कुछ कहा और फ़िर घडी को देखते हुये मुख्य भवन में जा पहुंचे दरी को बिछाया और नमाज को पढने लगे,कुछ समय बाद वहीं पास में लगे माइक पर जाकर खडे हो गये,और अजान सुनाने लगे। माइक को बन्द किया और फ़िर लोगों के पास आकर बैठ गये,कुछ लोग उनका इन्तजार कर रहे थे,उनके पास आये और अपनी अपनी थैलियों से पैसे निकालकर उन्हे देने लगे,वह पैसा उन्होने घर घर जाकर लोगों से चंदे के रूप में मांगा था,मौलवी जी ने अपने कुर्ते की जेब से एक डायरी निकाली और उसके अन्दर हर आदमी के लिये गये अलग अलग पन्ने पर बने हिसाब में उस पैसे की गणना को लिखने लगे,सभी हिसाब किताब से फ़ारिग होकर वे अपने घर की तरफ़ रवाना हो गये,घर जाकर रोटी खायी और सो गये,मौलवी जी का भी काम के बाद रोटी के लिये घर आना जरूरी समझा,इसलिये रोटी को उनका भी इष्ट माना जा सकता है। गिरजाघर के पादरी के यहां जा बैठा,उन्होने अपने लिये उसी गिरजाघर में ही आवास बना रखा था,उनके दाहिने हिस्से में एक कमरे में संगीत बनाया जा रहा था,कई लोग संगीत के स्वर बिखेर रहे थे,ईशामसीह जो दुख हरने वाले का रूप देकर वह गाना बनाया जा रहा था,एक बडा हाल बना हुआ था रविवार को वहां प्रार्थना होती थी और बाकी के समय में लोगों को चिट्ठियों के जबाब दिये जाते थे,लोग जो मनीआर्डर आदि भेजते है उनकी गिनती होती है,गिरजाघर को और बडा बनाने के लिये कारीगर अपना काम कर रहे है,संगमरमर मंगाया जा रहा है,सामान आ रहा है,गिरिजाघर बडा बन रहा है। पादरी जी का एक ही काम सभी अपने काम करने वाले साथियो से पूंछना कितना टारगेट पूरा हुआ,कोई कुछ कोई कुछ बताकर अपनी ड्यूटी पूरी कर रहा था,कितनी किताबें बांटी गयी कितने घरों पर जाकर प्राइवेट रूप से मिले,कितना समझाया कितने गाने वितरित किये,कौन रेडियो स्टे्शन गया था कितने लोग आज भोजन करेंगे,कितनों को तनख्वाह दी गयी है,कितने लोग कल कहां कहां जायेंगे। इन सभी कामो को पूरा करने के बाद पादरी जी अपने निवास पर आये,सौ पचास टेलीफ़ोन किये,सौ पचास लोगों के ईमेल पढे और कुछ को पहले से लिखा कापी पेस्ट किया और उसी बीच मे उनका डिनर का बुलावा आ गया,खाने की मेज पर तरह तरह के खाने लगे थे,खाया और जाकर अपने सोने वाले कमरे में सो गये,मतलब पादरी जी का भी इष्ट रोटी था। आराधना का मतलब रोटी,पूजा का मतलब रोटी,अजान का मतलब रोटी,प्रार्थना का मतलब रोटी,कसाई के काम का मतलब रोटी,नौकरी करने वाले बाबू का मतलब रोटी,नेता का भाषण देने का मतलब रोटी,अभिनेता का नाटक करने का मतलब रोटी,मीडिया में रहकर खबरों को सुनाना लोगों की चुगली करने का मतलब रोटी,कानून की कुर्सी पर न्याय देने का मतलब रोटी,सच्चे के लिये रोटी झूठे के लिये रोटी,जब सबके लिये रोटी ही जरूरी है तो बाकी के भगवान तो पेट भरे होने पर ही सही लगेंगे.

4 comments:

समयचक्र said...

बहुत बढ़िया... रक्षाबंधन पर हार्दिक शुभकामनाये और बधाई....

संगीता पुरी said...

बढिया प्रस्‍तुति .. आपको रक्षाबंधन की बधाई और शुभकामनाएं !!

रामेन्द्र सिंह भदौरिया said...

धन्यवाद श्री महेंद्र मिश्र जी और बहिन संगीता पुरी जी आप दोनो लोगों को भी इस पवित्र उत्सव की शुभकामनायें प्राप्त हो,फ़लें फ़ूलें आनन्द करें.

Unknown said...

bahot hi badhiya !!!!