Friday, August 27, 2010

नाम राशि और जन्म राशि

हमारे भारत वर्ष में नाम राशि को जन्म की चन्द्र राशि से रखे जाने का विधान है। चन्द्र राशि से नाम रखे जाने का मुख्य औचित्य केवल माता की औकात को रखना होता है,और जातक अपनी माता को अपने साथ आजीवन ही नही जब तक उसका परिवार चलता है उसकी माता का अंश नाम के रूप में जुडा रहना माना जाता है। जातक की कुंडली में चन्द्रमा के नक्षत्र के पाये के अनुसार नाम को रखा जाता है,सूर्य को पिता और चन्द्र को माता मानकर ज्योतिष में दोनो को जातक के प्रति आदर के भाव में माना जाता है सूर्य को आत्मा का भी रूप दिया गया है जातक की आत्मा के बारे में सोचने पर जैसा कुंडली में सूर्य है उसी के अनुसार जातक की आत्मा का भाव माना जाता है कि जातक इस संसार में किस प्रकार की इच्छा को लेकर पैदा हुआ है और वह आगे के जीवन में उन इच्छाओं को कैसे और किन साधनों से पूर्ण करेगा। जातक का रूप गुरु के रूप में पुरुष जातक के लिये और शुक्र का रूप स्त्री जातक के लिये माना जाता है। गुरु और शुक्र जिस राशि में होते है उसी के अनुसार अपना शरीर धारण करते है तथा शरीर की गति और शक्ति के लिये अन्य ग्रहों को माना जाता है। आजकल ही नही जब जातक के माता पिता किसी धर्म विशेष से नही जुडे होते है और अपनी कर्म गतिको ही अपना जीवन मान लेते है तो जातक का नाम अपनी रुचि के अनुसार रख लेते है,अधिकतर नाम जो बिना चन्द्र राशि के रखे जाते है वे या तो समय की गति पता नही होती है या फ़िर चन्द्र राशि को देखने वाले नही मिलते है और जब कोई रूप नही मिलता है तो जातक का नाम चलते हुये नामों से या फ़िर सोच कर अपनी अपनी रुचि से रख लिया जाता है,इस प्रकार के भावों से जातक का चरित्र उस नाम के अनुसार जाना जाता है,लेकिन यहां पर माता का प्रभाव जातक के साथ नही होने से जातक का मानसिक द्वंद अक्सर सामने जब आता है जब जातक के भी संतान होती है और वह अपने अनुसार नाम नही रखकर ज्योतिष से अपने नाम को रखने की कोशिश करता है। उदाहरण के लिये अगर किसी ने अपना नाम बिना चन्द्र राशि के रख लिया है और ज्योतिष के अनुसार जातक के पुत्र या पुत्री का नाम उस नाम की शत्रु वर्ण में आता है तो जातक को अपनी ही संतान परेशान करने के लिये मानी जा सकती है,या तो जातक को संतान बरबाद कर देती है या फ़िर जातक खुद संतान को बरबाद कर देता है। लेकिन सभी जगह पर यह धारणा लागू नही होती है,कभी कभी भूले का भगवान होने के कारण नाम के अनुरूप ही नाम को रखा जाना माना जाता है,दक्षिण भारत की ज्योतिष के अनुसार नाम कुंडली से ही रखा जाता है चाहे वह देख कर रखा जाये या बिना देखे रखा जाये,लेकिन जो नाम प्रकृति के अनुसार है वही रखा जायेगा,अगर जातक के परिवार वाले उस नाम को हटाना भी चाहें तो वह नाम हट नही पाता है। नाम को रखे जाने पर देखी जाने वाली बातें:-
  • नाम को रखे जाने पर जातक के कुल खानदान और परिवार में जो भी व्यक्ति प्रसिद्ध हो गया हो उसका नाम का पहला अक्षर जातक के नाम के आगे रखना सही होता है चाहे वह राशि से बन रहा हो या नही,इस बात से जातक के परिवार की पुरानी रीतियां और कार्य समाप्त नही होते है और परिवार उसी तरह से चलता रहता है जैसे पहले उस पूर्वज के जमाने से चलता आया था.
  • जातक या जातिका का नाम चन्द्र राशि से रखने पर जातक के नाम में माता का अंश आजाता है और इस अंश के कारण जातक के साथ माता का आशीर्वाद हमेशा चलता रहता है माता की आत्मा उस जातक को किसी भी परेशानी से बचाती रहती है,साथ ही माता का खून होने के कारण और माता के विचार मिलने के कारण जातक अपने कुल को साथ लेकर चलता है,लेकिन माता ही अगर अन्य कुल या अन्य खून की है तो जातक का व्यवहार भी अन्य कुल की तरह से ही रहेगा वह अपने पिता के कुल वाली बातों से या तो दूर रहेगा या जातक अपने पिता के कुल से बेकार की दुश्मनी लेकर अपने जीवन को जियेगा.
  • नाम के अक्षरों की संख्या नाम से सम्बन्धित व्यक्ति के भाई बहिनो की संख्या बताती है लेकिन यह संख्या मात्रा और अक्षरों की संख्या में भेद होने से आधा अक्षर प्रयोग होने से और कई भ्रान्तियों से अलग भी देखी गयी है.
  • नाम के शुरु के अक्षर में बडी मात्रा जातक को शुरु के जीवन में सहयोग करती है,छोटी मात्रा जातक को शुरु के जीवन में ही परेशानी देती है,बिना मात्रा के जातक का जीवन सामान्य रूप से चलता जाता है.
  • नाम के अन्दर आधे अक्षर जातक को एक साथ कई काम करने के लिये बाध्य करते है उसी प्रकार से कई जीवन जातक को जीने पडते है,अधिक आधे अक्षर जीवन के कई कामों को पूरा भी नही होने देते है,लेकिन शुरु के आधे अक्षर अक्सर नाम को आगे बढा देते है उसका कारण होता है कि जातक को शुरु के जीवन में ही कई विद्याओं से गुजरना पडा होता है कई समस्यायों से गुजरना पडा होता है.
  • अधिक अक्षरों के नाम की महिमा भी बडी होती है और कम अक्षरों की संख्या भी एकांकी जीवन जीने के लिये बाध्य करता है,जैसे किसी का नाम राजनारायण है और उसका नाम अगर राज ही कहा जाये तो वह अपने को सम्पूर्ण परिवार से अलग कर लेगा और अपना जीवन एकांकी रूप से ही जीने की इच्छा करेगा,उसका मोह अपने परिवार से या तो दूर हो जायेगा या परिवार के सदस्य खुद ही उससे दूर हो जायेंगे.
  • नाम के शुरु में अगर छोटी मात्रा का प्रयोग किया गया है बीच के अक्षर में बडी मात्रा का उपयोग किया गया है और अन्त के अक्षर में अगर आधे अक्षरों के साथ कई अक्षर प्रयोग में लिये गये है तो जातक शुरु की जिन्दगी गरीबी में बीच की जिन्दगी अमीरी में और अन्त की जिन्दगी कई समस्याओं से घिर कर जीनी पडेगी.
  • चन्द्र राशि से साधारण मध्यम और उच्च नामों के अक्षर प्रयोग में लिये जाते है,जैसे अक्षर चू का प्रयोग बडे काम के लिये माना जायेगा लेकिन बडी मात्रा के उपयोग को अधिकतर नही लिया जाता है,और अक्षर को चु से प्रयोग करने का मानस जनता में बन जाता है.
  • नाम के आखिरी का अक्षर सेवा वाले कामों के लिये उत्तम माना जाता है,लेकिन यह आखिर में बडे आ की मात्रा के कारण अधीनस्थ सेवा करने वाला माना जाता है,बडी ई की मात्रा से स्त्री लिंग का प्रकट होना माना जाता है,सानिध्य में पुल्लिंग को पुकारने के लिये छोटे उ की मात्रा को प्रकट किया जाता है और कई अक्षर उस नाम के उन्नति के कारणों में गिने जाते हैं,जैसे परसा परसू परसराम,मनसा मनसू मनसुख,कल्ला कल्लू कालीचरण आदि इस श्रेणी में आते है.
  • अक्षर चू अश्विनी नक्षत्र के पहले पाये का नाम है,इस नाम की गरिमा व्यक्ति के लिये उन्नति के लिये पूर्व दिशा के लिये मानी जायेगी और जातक का बल हाथ और पैर के ऊपरी भाग से पहिचान में आयेंगे.
  • नाम का चे अक्षर भी इसी नक्षत्र के दूसरे पाये के लिये माना जायेगा और शुरु का जीवन महिलाओं को पुरुषों के लिये और पुरुषों को महिलाओं के लिये उन्नत माना जायेगा,जैसे चेतना चेतराम आदि.
  • नाम का अक्षर चो आदतों को बतायेगा जाति विशेष या समुदाय विशेष का स्वामी बतायेगा,जैसे चोखा चोखी चोरी चोटी चोली चोनी आदि तथा जाति विशेष के लिये चोधरी चोमरिया चोरास्ती चोसलिया आदि.
  • नाम का अक्षर ला भी इसी नक्षत्र के चौथे पाये में आयेगा और व्यवसायी व्यक्ति के रूप में प्रयोग किया जायेगा,जो स्वयं के प्रयासों से सफ़ल माना जाता है,लोगों को याद रखने की क्रिया में यह अक्षर बहुत ही उपयुक्त माना जाता है,उत्तर भारत में इसे बच्चों को लाला लाल लालू लाली आदि तथा व्यवसाय के लिये लाला लालची आदि के नाम से जाना जाता है.
  • नाम का अक्षर ली भरणी नक्षत्र से जुडा है इस नाम की दिशा भी पूर्व है और इस नाम का तत्व भी भूमि है,इस प्रकार का जातक महसूस करने के लिये जाना जाता है जैसे लीला लीलाधर लीलाराम लीलावती आदि.

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