Thursday, August 19, 2010

साईं बाबा के दर्शन लाभ का फ़ल

महाराष्ट्र के शिरडी धाम में बाबा साईं की मान्यता से किसी भी समुदाय के व्यक्ति को कोई आपत्ति नही है,जिसका कोई सहारा नही है वह बाबा को अपना सहारा मान कर चल देता है,और बाबा की कृपा उसे प्राप्त जरूर होती है। बाबा की महत्ता के लिये अधिक बताना सूर्य के सामने दीपक को जलाने के बराबर है,बाबा साईं क्यों प्रसिद्ध हो गये और उनको चमत्कार देने के लिये कौन कौन सी शक्तियों ने उन्हे धरती पर चमत्कार दिखाने के लिये भेजा इस बात के लिये अपने छोटे से ज्योतिषीय ज्ञान को प्रकट करने की कोशिश कर रहा हूँ,विद्वजन किसी भी त्रुटि के लिये क्षमा करेंगे। साईंबाबा का जन्म परभनी जिला में पथरी नामक कस्बे में हुआ था,यह कस्बा निजाम सल्तनत के द्वारा एक ब्राह्मण के द्वारा बसाया गया था.यह कस्बा १९ अंश २५’ उत्तर अक्षांस और ७६ अंश ४५’ पूर्व देशांतर पर स्थापित है। बाबा का जन्म १८३० को रात बारह बजकर एक मिनट पर माना जाता है लेकिन उनके जन्म समय के लिये कोई कागजी या मानक सबूत नही है,लेकिन उनकी समाधि के लिये १५ अक्टूबर १९१५ ईस्वी सन में बताया जाता है.जिस समय उनका जन्म हुआ था उस समय मिथुन लगन थी,चन्द्र राशि भी मिथुन ही थी,चन्द्रमा के साथ राहु मिथुन राशि में विराजमान था। लगनेश बुध बक्री होकर शनि सूर्य शुक्र के साथ छठे भाव में विराजमान थे,गुरु मृत्यु भाव में विराजमान था,और मंगल वक्री होकर लाभ भाव में स्वगृही था। वैसे बाबा के जन्म के समय के लिये बहुत से मतान्तर है लेकिन महर्षि अरविन्द के द्वारा कथित जन्म समय को सटीक इसलिये माना जाता है क्योंकि इस समय में महान हस्ती ही जन्म लेती है। मिथुन राशि कालचक्र के अनुसार पराक्रम और हिम्मत की राशि है,इस राशि में चन्द्रमा के बैठ जाने से व्यक्ति का पहिनावा सफ़ेद वस्त्रों में माना जाता है,लगन में राहु के होने से व्यक्ति को दाढी रखने की आदत होती है,दूसरे भाव के स्वामी चन्द्रमा के होने से बाबा को सफ़ेद रंग की पोशाक ही अच्छी लगती थी,मंगल का वक्री होना और ग्यारहवें भाव में वक्री होना घुटनों के नीचे का हिस्सा नग्न ही मिलता है,शनि के वृश्चिक राशि में होने से निवास निर्जन स्थान में मिलता है,गुरु के मृत्यु भाव में होने से जीव का समाधि में उपस्थिति होना भी मिलता है,शनि के साथ शुक्र का होना सभी तरह की पराशक्तियों का निवास पास में होना,शनि को कृष्ण और सूर्य को ईश्वर शुक्र को वृश्चिक राशि का होने से लक्ष्मी से दूर रहना और दूसरों को धनी बनाकर खुद फ़कीर रहना भी मिलता है,लगन का राहु कही हुयी बातों को पूरा होना भी माना जाता है,राहु अगर छाया है तो बाबा की भक्ति पूजा पाठ का असर जो भी बाबा को देखता है उसी पर हो जाता है,मंगल का वक्री होना बाबा को गुस्सा से दूर रखता है,लाभ का बक्री मंगल स्थिर राशि में होने से और लालकिताब के अनुसार नीम के पेड के लिये भी माना गया है। छठा भाव कर्जा दुश्मनी बीमारी और आफ़तों के भाव से माना जाता है,शनि से सेवा सूर्य से शाही शुक्र से भौतिक सम्पत्तियां और बुध बक्री से अपने लिये नही रखकर दूसरों को देना भी माना जाता है। सूर्य से लकडी शनि से राख बक्री मंगल से अष्टम द्रिष्टि देने से धूनी के लिये भी माना जाता है। धनु का केतु बाबा की लगन से सप्तम में है,यह केतु धर्म भाग्य ध्वजा मन्दिर की चोटी मस्जिद की मीनारों और गुम्बदों से भी अपनी मान्यता रखता है,मिथुन राशि का राहु असीमित शक्ति को प्रदान करने वाला है। बाबा की जो तस्वीरें मिली है उनके अनुसार उन्हे किसी न किसी प्रकार से छत्र के नीचे दिखाया गया है,इन तस्वीरों के हिसाब से छत्र राहु का प्रतीक है और चन्द्र सफ़ेद पोशाक में लगन यानी शरीर को भी प्रदर्शित करता है कि बाबा की जन्म तारीख जो महर्षि अरविन्द जी ने बताई है वह सही है।
किसी भी कुंडली के अनुसार गुरु जन्म और मृत्यु को सूचित करता है,कारण ज्योतिष में गुरु को जीव की संज्ञा दी गयी है और सूर्य को आत्मा का कारक माना गया है,शनि स्थान का कारक है और शुक्र उस स्थान की बनावट और मृत्यु के समय कौन वहाँ उपस्थित था के मामले में बताता है,बाबा ने जब समाधि ली उस समय को १५ अक्टूबर १९१५ ईस्वी का दिन बताया गया है,समाधि का समय दिन के ग्यारह बजे का है,कारण उनकी समाधि लेने के समय की तस्वीर को गौर से देखें तो अक्टूबर माह की सुबह ग्यारह बजे सूर्य की रोशनी तिर्यक वायव्य से उत्तर की ओर बढती दिखाई देती है,बाबा को समाधि के पास खडा बताया गया है और बाबा खुले स्थान में है,बाबा और जन सामान्य की छायायें अग्नि कोण से वायव्य में है.इस समय की कुंडली को देखते है तो जो गुरु अष्टम में था वही गुरु बक्री होकर चौथे भाव में है,लगन जो जन्म देने वाले समय की मिथुन है वह मृत्यु स्थान में है,शनि लगन के साथ मृत्यु स्थान में है,मंगल नीच का होकर केतु के साथ धर्म और भाग्य भाव में है,तस्वीर में ध्यान से देखने पर बायें भाग में राहु के रूप में घनी छाया का कोई साधन है,उसके बाद चन्द्र यानी जनता खडी है,बने हुये मकानों के बाहर शुक्र यानी वाहनों के रूप में है,सूर्य राहु का नवम पंचम योग है और राहु सूर्य यानी आत्मा को ग्रहण दे रहा है,बाबा सफ़ेद वस्त्रों में है और केतु का कारक एक हाथ उनके दाहिने कंधे पर है,साथ ही दाहिने हाथ में कोई बर्तन है जो बाबा समाधि के समय में अपने साथ रखना चाहते थे। मंगल को भूमि का पुत्र भी कहा गया है,मंगल जल राशि में है और केतु के साथ है,मंगल के पहले शनि है जो अष्टम भाव में गुफ़ा समाधि और पराशक्तियों के रूप में जाना जाता है। मकर राशि का राहु मुस्लिम जातियों से सम्बन्धित होता है और कर्क राशि का मंगल केतु के साथ हिन्दू कट्टर धर्मालम्बियों के रूप में माना जाता है,धर्म का मृत्यु स्थान कुंडली का चौथा भाव माना गया है,गुरु बक्री होकर विराजमान है,जीव समाधि की तरफ़ बढ रहा है,इस भाव के प्राप्त होने से यही माना जाता है कि उन्होने समाधि उपरोक्त तारीख को दिन के ग्यारह बजे ही ली थी।
साईंबाबा एक अवतार के रूप में प्रकट हुये,उन्होने ने अपने समय में जो शिक्षायें दीं वे हिन्दू और मुसलमानो को एकाकार होकर रहने की दीं थी,उन्होने किसी धर्म को खराब नही बताया था वे हमेशा सभी धर्मों के लोगों का आदर करते थे,उनकी मुख्य शिक्षा थी कि कोई भूखा प्यासा अगर दरवाजे पर आता है उसे भोजन और पानी से तृप्त करो,उसे अगर आश्रय चाहिये तो अपने बरामदे में उसे आश्रय दो,अगर कोई धन की मांग करता है तो तुम्हारे पास है तो दो,और नही है तो उसे दुत्कारो नही उसकी आवश्यकता को अपनी आवश्यकता समझकर पूरा करने की कोशिश करो,और सम्मान सहित विदा करो,आत्मा में परमात्मा है,परमात्मा में श्रद्धा करो,अपने किये गये कर्मों के लिये फ़लों की प्राप्ति के लिये सबूरी करो,और यही दो शब्द उनके बीज मंत्र है जो आज किसी को भी अपने जीवन को बिताने के लिये काफ़ी है,"श्रद्धा और सबूरी" आज सम्पूर्ण जगत में फ़ैल चुकी है। बाबा ने नानासाहब चन्दोरकर की पुत्री मयना को बचाया था,दास गनु ने अपनी पुलिस की नौकरी छोड कर बाबा की सेवा की थी,तात्या पाटिल और कोटे पाटिल बाबा के छोटे भाई कहे जाते है,भाईजा भाई पाटिल को बाबा अपनी माँ के रूप में मानते थे। हेमद पंत को बाबा ने साईं चरित्र लिखने के लिये आदेश दिया था। उन्होने अपने आदेशों में कहा था कि जो भी व्यक्ति इस शिरडी की मिट्टी में अपना पैर रखेगा वह जीवन की मुशीबतों से बच जायेगा,द्वारका माई की समाधि की सीढियां चढने वाला अपने पापों से प्रायश्चित अपने आप पा जायेगा। उन्होने कहा था कि इस भौतिक शरीर के बाद भी वे यहाँ सभी की रक्षा करेंगे और जो भी अपने भाव से उन्हे अपने स्थान से पुकारेगा वे उसकी सहायता करेंगे। मेरी समाधि लोगों को अपने पास हमेशा बुलाती रहेगी और लोगों की मनोकामनायें पूरी करती रहेगी। जो अपने को मेरी शरण में लायेगा,जो मेरे पास आयेगा और जो अपने को मुझे समर्पित कर देगा उसकी मैं हमेशा सहायता करूंगा। तुम मुझे देखो मैं तुम्हे देखूंगा,अगर तुम अपनी परेशानी मुझे दोगे मैं जरूर उन परेशानियों को ग्रहण करूंगा,जो मेरी सेवा करेगा उसके पास किसी बात की कमी नही रहेगी।
साईंबाबा की आरती
आज गुरुवार है सांई जी का वार है,सच्चे मन से ध्यान लगा ले,तेरा बेडा पार है॥ साईं बाबा जन्म लियो सिरडी में दुख हरने को,सिरडी में दुख हरने को। दीन मलीन कुलीन सभी की इच्छा पूरण करने को,इच्छा पूरण करने को॥ साईं जी को चित्त में रखकर करलो हर पल यह साकार है॥ आज गुरुवार है साईंजी का वार है सच्चे मन से ध्यान लगा ले तेरा बेडा पार है॥ किया समर्पित जब अपने को साईं बना सहारा है,साईं बना सहारा है। साईं साथ चला जब तेरे दुख ने किया किनारा है,दुख ने किया किनारा है।श्रद्धा और सबूरी वाला दिया मंत्र यह प्यारा है,दिया मंत्र यह प्यारा है। जाति पांति का भेद नही है किया सभी से प्यार है॥ आज गुरुवार है साईं जी का वार है,सच्चे मन से ध्यान लगा ले,तेरा बेडा पार है॥ अपनी ममता के साये में लेलो बाबा इस दास को,ले लो बाबा इस दास को। मौत के मुँह में पडा हुआ हूँ रोको जाती सांस को,रोको जाती सांस को। गहन अन्धेरा छाया जीवन में दे दो ज्योति प्रकाश की,दे दो ज्योति प्रकाश की। नही भरोसा इस दुनिया का झूठा जग संसार है,झूठा जग संसार है॥ आज गुरुवार है साईं जी का वार है,सच्चे मन से ध्यान लगा ले तेरा बेडा पार है ॥ 
ऊँ साईं जय सांई,सांई बाबा जय हो जय.
॥ऊँ साईं,जय साईं,साईं जय साईं ऊँ॥

1 comment:

Astik Vinek said...

परंतु jis aadhaar par ग्रहों की गाड़ना की गई है उसके लिए क्या दिन माना gayaa