Tuesday, June 1, 2010

मान अपमान

हमारे स्वाभिमान को जब धक्का लगता है तो हम समझते है कि हमारा अपमान हुआ है,अपमान करने के लिये कोई बाहरी व्यक्ति कभी प्रयास नही करता है बाहरी अगर किसी बात का अपमान करेगा तो केवल कुछ समय के लिये ही माना जायेगा लेकिन घर का या बहुत दिनो से जान पहिचान रखने वाला व्यक्ति अगर अपमान करेगा तो वह असहनीय हो जायेगा। वैसे कहा तो यह गया है कि मान अपमान हमेशा अहम के साथ रहने वाले अनुचर है और इन दोनों के कारण ही अहम की बढोत्तरी और घटोत्तरी होती है। कोई जब मान करता है तो अहम के पेड में पानी लगाने वाली बात होती है और जब कोई अपमान करता है तो अहम के पेड से नमी को सोख लिया जाता है। अपमान तब और अधिक माना जाता है जब किसी प्रकार से मर्यादा यानी सामाजिकता से दूर किया जाये,अधिकतर मान अपमान की बातें परिवार में अधिक होती है,माता पिता के द्वारा भी अपमान मिलता है लेकिन उस अपमान के पीछे बहुत कुछ भलाई छुपी होती है,बडे भाई के द्वारा भी अपमान मिलता है लेकिन उस अपमान के बदले मनोबल की कमी को पूरा किया जाना होता है,बडी बहिन के द्वारा अपमान दिया जाता है जिसके अन्दर सांसारिकता के अन्दर अपने को आगे रखने में बल मिलता है,भाभी के द्वारा अपमान मिलता है उसके अन्दर अपने को कुछ बनाने और जीवन में तरक्की का भेद छुपा होता है,चाचा के द्वारा भी अपमान किया जाता है जिसके अन्दर कर्जा दुश्मनी और बीमारी से मुक्ति का रास्ता भी मिलता है ताऊ के द्वारा अपमान मिलता है उसके अन्दर रिस्क लेने वाली बातों और उनसे बचने के भेद छुपे होते है,चाची के द्वारा अपमान जो मिलता है उसके अन्दर भी माता के अहम की बढोत्तरी और उसके अन्दर मिलने वाले भेद भावों से बचने के तरीके छुपे होते है,अधिकतर मामलों में परिवार में चोरी और सीनाजोरी वाली बातें चाची के द्वारा ही सीखने को मिलती है,ताई के द्वारा भी जब अपमान मिलता है तो धन के प्रति अधिक जोर मिलता है और जब ताई का इशारा धन को खर्च करने का होता है तो समझना चाहिये कि कहीं भी परीक्षा ली जा सकती है। पुत्र के द्वारा अपमान मिलता है जब पुत्र को उसकी माता के द्वारा पिता की कमजोरी बताई जाती है और वह कमजोरी अधिकतर परिवार की सहायता के मामले में होती है पुराने धन और जायदाद के मामले में मानी जाती है। पुत्र का पिता की बातों से सहमत होना और एक दिन अचानक असहमत हो जाना भी माता के कारणों से मिलता है,माता के द्वारा अन्दरूनी तौर पर कुछ और कहा जाता है और पुत्र के सामने कुछ और कहा जाता है,अधिकतर मामलों में इन बातों से पुत्र के द्वारा पिता को सामाजिक अपमान दिया जाता है,जैसे परिवार के प्रति की जाने वाली रीति रिवाजॊं से दूर हो जाना,कर्मकाण्ड को नही मानना,दादा दादी के कार्यों के प्रति प्रहसन करना,पिता के द्वारा किसी प्रकार से आगे की संतति को बढाने के लिये जो प्रयास किये जाते है शादी विवाह किये जाते है,उन्हे फ़टकार देना या छोड देना,अपने मन से चलना और अपनी ही शक्ति से अपने को खत्म करते जाना आदि माना जाता है,पुत्री के द्वारा कुलवंती होने से दूर हो जाना और आधुनिकता के नाम पर या धन के नाम पर अपने को समाज में शो करने की कोशिश करना,पिता के द्वारा किये जाने वाले प्रयासों को अपने मन से ही दूर करते जाना और एक दिन अपने अनुसार जीवन साथी चुनकर या जो पहले पिता के द्वारा जीवन साथी बनाया गया है उसे छोड कर दूर होते जाना,जब भी मौका मिले तो पिता की सम्पत्ति को अपने ऐशो आराम के लिये प्रयोग करना,किसी ना किसी बहाने से उन्हे अपने द्वारा बनाये गये नियमों के अन्दर बांधते जाना,आदि बातें पुत्री संतान के द्वारा अपमानित करने के प्रति मानी जाती है,भाइयों या बहिनो की संताने भी अपमान देती है,जैसे कि अगर खुद का पुत्र या पुत्री के द्वारा कोई पारिवारिक मर्यादा को त्याग कर समाज से दूरी बना ली गयी है तो समय आने पर अपने समाज के प्रति मिलने वाले विक्षोभों से अवगत करवा कर अपमानित करना आदि माना जाता है।

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