Monday, May 10, 2010

शक्ति का रहस्य



संसार में किसी भी काम में हाथ डालने से पहले अपनी शक्ति का पता लगा लेना चाहिये। तभी हम संसार में किसी भी काम किसी भी विभाग या शाखा में सफ़लता प्राप्त कर सकते है। एक विद्वान ने कहा है - Weaklings have no place in the world. कमजोरों के लिये संसार में कहीं स्थान नही है। हमे अपनी पूरी शक्तियों का ज्ञान नही है,इसलिये ही हम संसार को भार रूप में मालुम हो रहे है,और हमारा कहीं ठिकाना नही है,क्योंकि हमको स्वयं अपनी शक्तियों पर विश्वास नही है। परमात्मा ने किसी को निर्बल या बलवान नही बनाया है,तुम अपनी अवस्था को जैसी चाहो बना सकते हो। तुम कहोगे कि हमारे प्राचीन ऋषि मुनि महात्माओं में शक्तियां और सिद्धियां थी। इन बातों के राग अलापने से उन्नति की तरफ़ तुम कुछ भी नही बढ सकते। उनके अन्दर जो सिद्धियां और शक्तियां थी,वे तुम्हारे अन्दर भी है और तुम भी अपनी अपार उन्नति कर सकते हो। और महात्मा भी बन सकते हो।

प्रयत्न करो पुरुषार्थ करो परिश्रम करो तप करो और तुम्हारे भीतर जो शक्ति का भंडार है उसे खोल दो। तुम्हारे भीतर एक ऐसी शक्ति विद्यमान है कि तुम उसकी सहायता से जो कुछ चाहो सो कर सकते हो।

कोई इसे पराशक्ति ज्ञानशक्ति इच्छाशक्ति क्रियाशक्ति कहते है,कोई चित्तशक्ति कहकर पुकारते है,कोई जगन्माता जगदम्बा जगजननी के नाम से स्मरण करते हैं।

यह आनन्दमयी चितिशक्ति उपास्य की ही शक्ति है,उपासक को बिना इस शक्ति की सहायता के परमात्मा की प्राप्ति नही हो सकती है।

"नाययात्मा बलहीनेन लभ्य:" - शक्तिहीन को न आत्मा की और न परमात्मा की ही प्राप्ति हो सकती है,इसलिये शक्ति की उपासना करो,चितिशक्ति पूर्ण प्रेमस्वरूप है,चितिशक्ति सत्यस्वरूप है,चितिशक्ति सर्वव्यापक है,चेतनमय है।

चितिशक्ति की प्रसन्नता के लिये तुम्हे बलिप्रदान करना होगा,किन्तु हिंसात्मक बाह्य बलि नही। अपने अहंकार रूपी मस्तक को प्रेमरूपी तलवार से पृथक करके उनके चरण कमलों में समर्पण करो। प्राणिमात्र पर प्रेम करो। चितिशक्ति जगजननई जगदम्बा है। चितिशक्ति तुच्छ से तुच्छ कीट और महान से महान प्राणी ब्रह्मा तक में सबमे है,सर्वप्रिय है। क्योंकि उसका निवास सब प्राणियों में है,सब उनकी प्रिय संतति है,सबकी रक्षा और पालन अपने ऊपर कष्ट लेकर कर रही है। चितिशक्ति प्रेमस्वरूप है,चर अचर प्राणिमात्र में व्यापक है।

भूत मात्र में चितिशक्ति है,इसलिये सबको आत्मवत समझो। बालक युवा वृद्ध स्त्री पुरुष भिखारी राजा साधु या पापी मूर्ख या विद्वान सबके प्रति प्रेम की धारा बहाओ। शुद्ध विचारों को ही निरंतर अन्त:करण में उदय होने दो। अशुद्ध विचार पास भी न फ़टकने पावें। शुद्ध विचार और शुद्धाचरण ही माँ को प्रसन्न करने का उपाय है। सद्विचार करो,शुद्धाचरण पालन करो,अगर माँ को प्रसन्न करना है,शुद्ध विचार ह्रदय में अखण्ड रूप से जागृत रखो।

शक्ति का संचय करो शक्ति की उपासना करो,शक्ति ही जीवन है,शक्ति ही धर्म है,शक्ति ही सत्य है शक्ति ही सब कुछ है,शक्ति की सर्वत्र आवश्यकता है। बलवान बनो वीर बनो निर्भय बनो साहसी बनो स्वतंत्र बनो और शक्तिशाली बनो।

तुम निरे माटी के पुतले नही हो,हाड मांस और रक्त के थैले नही हो,निर्जीव मुर्दे के समान नही हो,तुम एक सजीव शक्तिसम्पन्न चेतन आत्मा हो। तुम्हारे जीवन का उद्देश्य किसी विशेष उद्देश्य को पूर्ण करना है।

प्रत्येक मनुष्य में दैवी शक्ति छिपी हुयी है,और वह सब कुछ कर सकता है,समस्त मानसिक और शारीरिक निर्बलताओं पर विजय प्राप्त करो और जीवन को आनन्द मय बनाओ। कोई निर्बल व्यक्ति स्वतंत्र नही रह सकता है। शक्ति स्वयं ईश्वर रूप है। यह शक्ति सर्वव्यापक है। यह शक्ति तुम्हारे भीतर गुप्त है। तुम इस शक्ति के बल से अपनी परिस्थति को बदल सकते हो। तुममें शक्ति है। शक्ति तुम्हारे भीतर बाहर सर्वत्र मौजूद है।

शक्ति तुम्हारी जननी है,तुम्हारे शरीर और प्राणों की जननी है। जगत में और तुम्हारे शरीर में जो कुछ जीवन है - चेतन है ,उस सबकी वही दयामयी जननी है।तुम यह कल्पना करो कि तुम सदा शक्ति में ही रहते हो,शक्ति में ही चलते हो और शक्ति में ही जीवित रहते हो।आगे पीछे ऊपर नीचे दायें बायें सब तरफ़ शक्ति ही शक्ति देखते रहो।

तुम अपनी मनस्थिति को को उस महान शक्ति से संयुक्त कर लो जिससे सब शक्तियां प्रवाहित हो रही हैं।

शक्ति की प्रार्थना
रात्रि के पिछले हिस्से में अपने बिस्तर से उठ बैठो और शान्त होकर एक दिव्य ध्वनि को,जो सारे संसार में गूंज रही है,ध्यान से सुनो। यह ध्वनि तुम्हारे ह्रदयमन्दिर में हो रही है,ह्रदय मंदिर ही चितिशक्ति का निवास स्थान है। अंग-प्रत्यंग को ढीला करके शान्ति और स्थिरता से किसी भी सुखासन से बैठ जाओ और नीचे लिखी हुयी प्रार्थना करो-
प्रार्थना
दयामयी जननी ! आननदमयी,स्नेहमयी,अमृतमयी,माँ !! तुम्हारी जय हो । माँ ! जिस प्रकार बिना पंख के पक्षी अपनी माँ की बाट जोहते रहते हैं,जैसे भूख से पीडित बछडे अपनी माँ की बाट देखते रहते है,वैसे ही माँ ! मैं तुम्हारी बाट देखता रहता हूँ। तुम जल्दी से आकर मुझे दर्शन दो। तुम मेरे मन में,शरीर में व्याप्त हो। मैं तुम्हे समझ सकूँ,ऐसी बुद्धिशक्ति मुझे प्रदान करो।
दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो:,स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।
दारिद्रयदु:खभयहारिणि का त्वदन्या,सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ॥

हे माँ ! तुम्हारा स्मरण करने से समस्त जीवों के भय का नाश होता है। और शांत चित्त से स्मरण करने से अत्यन्त शुद्ध बुद्धि तुम देती हो। दरिद्रता दुख और भय का नाश करनेवाली तुम्हारे सिवा कौन है। सबों के उपकार के लिये तुम्हारा चित्त सदा दया से सुकोमल रहता है।

इस प्रकार इस मंत्र को अनेक बार पाठ करके पूर्ण श्रद्धा के साथ भगवती का ध्यान करके फ़िर सो रहो। प्रात:काल उठते वक्त विर उस शक्ति का चिन्तन करो,थोडी देर ध्यान मग्न बैठे रहो। इस साधन से तुम्हे विलक्षण बातें मालुम होंगी।

इसका सिद्धान्त है कि समस्त विश्व का संचालन और ज्ञान जिस महतत्व द्वारा हो रहा है,उसे गुप्त मन या सर्वव्यापक मन कहते है,उसको चलाने वाली शक्ति है। प्रतिदिन सि शक्ति की श्रद्धा के साथ उपासना करने से शक्ति तुम्हे प्रेम करेगी,चाहेगी। तुम भूल भी जाओ,माँ तुम्हे कभी नही भूलती।

इस विधि से एक मास साधन करके देखो और तुम्हे एक मास में ही विलक्षण बल और शक्ति मालुम देगी।

जिन जिन कामनाओं को पूर्ण करना हो उनको माँ से कह दो और अनन्य चिन्तन करो,तत्काल तुमको उन पदार्थों की प्राप्ति होगी।

विद्या धन बल ऐश्वर्य ये सब इस पराशक्ति से ही उत्पन्न होते है,और शक्ति का साधन करने से अवश्य फ़ल सिद्धि होती है। इस महाशक्ति की उपासना से तुममें आश्चर्यजनक शक्ति की जागृति होगी और तुम असाध्य से असाध्य कार्य को साध्य कर सकोगे। संसार में जीवित रहना हो तो शक्ति सम्पादन करो और यह समझते रहो कि तुम माँ की गोद में सदैव सुरक्षित हो और समग्र शक्तियों का भण्डार तुम्हारे अन्दर है।

(डाक्टर श्रीदुर्गाशंकरजी नागर)

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