Monday, April 19, 2010

गुरु और कोर्ट केश

गुरु को सम्बन्धों का कारक माना जाता है। माता पिता भाई बहिन पुत्र पुत्री और जितने भी रिस्ते नाते है सभी गुरु की श्रेणी में ही आते है,किसी भी रिस्ते को पहिचानने के लिये गुरु को ही देखना जरूरी है,यहाँ तक कि खुद के शरीर के साथ खुद का सम्बन्ध भी गुरु से ही जाना जाता है। शिक्षा में गुरु को आध्यात्मिक शिक्षा के रूप में धर्म और मृत्यु के बाद के जीवन के लिये भी गुरु को पहिचाना जाता है। गुरु जब कुंडली में अपनी विरोधी नीति को किसी भी सम्बन्धी के भाव से व्यक्त करता है तो सम्बन्धों में बिगाड आता है लेकिन सम्बन्धों को बनाने के लिये किये जाने वाले प्रयासों में अगर सूर्य आडे आता है तो सम्बन्ध बनने के बजाय और बिगडते जाते है। कारण गुरु और सूर्य के मिलने से जीवात्मा योग तो मिलता है लेकिन अहम की वृत्ति भी दिमाग में भरती है,यह तब और भारी होता है जब मंगल सूर्य और गुरु का आपसी संयोग मिलता है। गुरु विभिन्न भावों के अनुसार विभिन्न बैर भाव बनाता है,और जब गुरु का प्रभाव केन्द्र और त्रिकोण के लिये आघात देता है तो सम्बन्ध जन्म से ही खराब हो जाते है,और जब गोचर से आघात देता है तो सम्बन्ध कुछ समय के लिये खराब होते है लेकिन फ़िर बन जाते है। पाराशर के नियम के अनुसार कि हर भाव का बारहवां भाव उसका विनाशक होता है। और हर भाव का आठवां भाव उस भाव का रिस्क लेने का स्थान होता है,विनाशक बनने पर अगर विनाशक ग्रह के विरोध में ग्रह को कृत्रिम रूप से उत्पन्न कर लिया जाता है तो विनाशक ग्रह या भाव से छुटकारा मिल जाता है,उसी प्रकार से रिस्क वाले स्थान को सही रूप से समझ कर अगर विनाशक स्थिति को अन्य स्थान और निर्माण वाले कारक में प्रयोग कर लिया जाये तो रिस्क का सही मतलब और फ़ल मिल जाता है। गुरु का बैर भाव और कोर्ट केश का व्यविधान केवल पारिवारिक मामलों के लिये ही देखा जाता है,लेकिन सम्बन्ध चाहे वह व्यवसायिक हों या पारिवारिक सम्बन्ध तो सम्बन्ध ही कहे जायेंगे। गुरु का भावानुसार सम्बन्धों के साथ विरोध बहुत ही तीखा देखने को मिलता है,जैसे गुरु लगन में है तो वह सप्तम तीसरे और ग्यारहवें भाव से विरोध करेगा,गुरु अगर धन भाव मे है तो वह चौथे आठवें और बारहवे भाव से विरोध करेगा,गुरु अगर पराक्रम में है तो वह सन्तान धर्म और लगन से विरोध करेगा,गुरु अगर चौथे भाव मे है तो वह छठे दसवें और दूसरे भाव से विरोध करेगा,गुरु अगर पंचम मे है तो वह जीवन साथी लाभ और पराक्रम से विरोध करेगा,गुरु अगर छठे भाव मे है तो वह रिस्क वाले भाव खर्चे वाले भाव और सुख भाव से विरोध करेगा,इसी प्रकार से सप्तम का गुरु धर्म लगन और सन्तान भाव से विरोधात्मक प्रभाव देगा। विरोध करवाने वाले कारकों में राहु केतु रोजाना की चिक चिक करवाते है,मंगल मारकाट और फ़ौजदारी वाली बातें करवाता है,शनि कोल्ड वार करवाने के लिये माना जाता है,शुक्र धन सम्पत्ति और बंट्वारे वाले कारणों में बैर करवाने वाला होता है बुध बहिन बुआ बेटी के रूप में बैर को बढवाने वाला होता है आदि कारक भी सामने आते है।

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