Wednesday, April 21, 2010

बैलेंस है तो खर्च करिये !

हम पैदा हुये थे तब हमारे पास केवल माता का सहारा था,कुछ बडे हुये तो पिता और परिवार का सहारा मिलने लगा और बडे हुये तो आसपास के लोगों का सहारा मिलने लगा,और हम लगातार एक दूसरे से सहारा लेकर बढते गये,लेकिन आज जब तुम दूसरों को सहारा देने के काबिल बन गये तो अपने आपको भींच कर चल रहे हो,यह लगता है कि जैसे सभी कुछ तुम्हारा ही है। यह ज्ञान कमाने की कला और सब कुछ जो भी हमारे पास है वह सब यहीं से मिला है,आये थे तब किसी यह अन्दाज भी नही था कि कल की सुबह हमारे लिये ठीक रहेगी,हर पल हर घडी माता यही सोचती थी कि हाथों में जान नही है,सिर भी अपने आप स्थिर नही रहता है,करवट भी नही बदली जा सकती थी,हाथ पैर और सभी अंग किसी लायक नही थे,हमे समर्थ किया उस माता ने,हमे पाला पोषा और कर्म किया जब हम बडे हो गये हमारे पास शक्ति आ गयी तो हम उसी माता पर अहसान दिखाने लग गये,जैसे हमी अपने साथ सब कुछ लेकर आये थे,मतलब हमारे पास सब कुछ होते हुये भी हम कंजूस बन रहे है। जब हमने यहीं से लिया है तो यहीं उसे बांट दीजिये,जिससे जो हमने लिया है उसका कर्जा हमारे पास नही रहेगा। हमारे पास आंखों से देखने की ताकत है और हम अच्छा ही अच्छा देखने की कामना करते है,कहीं भी बुरा देखने की कामना हमारे मन में भी नही होती है। लेकिन हम अपने कर्मों से अपने आप को बुरा बनाने की कोशिश करते हैं। हमारे पास जो अच्छा देखने की आदत होती है,उस आदत को हम दूसरों के लिये अगर प्रयोग करते है तो वह हमारे लिये चुकाने जैसा होता है,लोगों की आंखों को अच्छा लगे तो हमें भी अच्छा लगेगा,हँसता हुआ देखकर हम भी हँसते है,लेकिन रोता हुआ देखकर कभी कभी ही रोना आता है,लेकिन जब हमे दूसरे को देखकर रोना आता है तो हम वास्तव में उसे महसूस करते है,अपने को देखकर रोना आये तो कोई बडी बात नही है लेकिन दूसरे को देखकर भी हमे रोना आना चाहिये। इसी तरह से जब हम किसी दूसरे की बुरी बातें सुनकर खुश होते है तो यह हमारा बडप्पन नही है,दूसरे की बुरी बातें सुनकर अगर हम दुखी होते है तो हमारा बडप्पन होता है,जब तक हम दूसरों की बुरी बातें सुनकर सुखी होते रहेंगे,हमारे पास दूसरों की बुरी बातें आती रहेंगी,और जिनकी हम बुरी बातें सुनकर जितना खुश होते रहेंगे उतना ही अच्छा उन लोगों का होता रहेगा,और कालान्तर में हम दूसरे की बुरी बातों को सुन सुन कर उन्ही की तरह से बुरे बनते जायेंगे। बुराई हर किसी में होती है,घर कितना ही सुन्दर बना हो लेकिन एक बुराई उस घर में भी होती है,पाखाने के लिये जो जगह बनाई जाती है वहाँ तो गन्दगी होती ही है,कितना ही जतन करो,लेकिन पाखाना प्रयोग करते समय बदबू तो आयेगी ही,कितने ही कैमिकल को प्रयोग कर लोग लेकिन बदबू पीछा नही छोडती है,इसी प्रकार से शरीर होता है,जब अपान वायु अपना बल देती है तो कितना ही सेंटेड कमरा हो बदबू अपनी जगह काम करती ही है,उसी तरह से हर व्यक्ति के अन्दर बुराई है,कितना ही साफ़ इस मन को रखा जाये लेकिन दस याम में एक याम के अन्दर इस मन के अन्दर भी बुराई आ ही जायेगी,कितना ही बडा साधू महात्मा हो बुराई उसके अन्दर भी होगी,हम दूसरों की बुराई को सुनने की जगह अगर हम केवल भलाई को सुने तो हम भी कुछ समय में भले हो जायेंगे। अक्सर हमने महसूस किया है कि जो हमारे साथ किसी भी बात से बुराई करता है,और उस बुराई करने वाले के साथ कोई घटना हो जाती है तो हम अपने मन में महसूस करते है कि भगवान उसके लिये न्याय का काम किया है,उसने तुम्हारे साथ अन्याय किया था लेकिन भगवान ने तुम्हारे साथ किये गये अन्याय का बदला दिया है,जैसे ही तुम उस अन्याय करने वाले के साथ बुरी घटना को सुनकर खुश हुये वह अन्याय तुम्हारे साथ भी होना निश्चित है कारण तुमने अपने अन्दर यह बीज तो बो ही लिया कि अन्याय का फ़ल बुरी घटना से मिलता है। इसी प्रकार से किसी ने तुम्हे भोजन दिया,वह भोजन भले ही तुम्हारी कमाई का था,लेकिन फ़िर भी तुम्हे उस भोजन देने वाले का अहसान इसलिये मानना चाहिये कि उसने तुम्हे पका कर और रुचि के अनुसार बना कर दिया है,तुम अपने पैसे को नही खा सकते थे,खाना तो तुम्हे अन्न को ही है। भोजन देने वाले ने तुम्हारे साथ जो उपकार किया है उसका बद्ला कभी भी आप नही लौटा सकते है। अक्सर लोग अपना काम निकलने के बाद जिसने काम को निकाला है उसे भूल जाते है,और अपने को स्वार्थी सिद्ध करते है। जब जिसने तुम्हारा काम निकाला था अपने काम के लिये तुम्हारे  पास आता है तो तुम कोई ना कोई बहाना ठोक देते हो,वह उस समय अपने मन को मसोस कर चला तो जाता है लेकिन उसकी अन्तरात्मा यह जरूर कह जाती है कि अबकी बार तुम्हारा काम कोई निकालने वाला नही मिले। जीव की आत्मा को भगवान ने अपने अपने काम को करने के लिए भेजा है,शेर को हिरन को खाने के लिये भेजा है हिरन को घास खाने के लिये भेजा है और घास ने धरती के अन्दर स्थिति तत्वों को खाया है,जिसने किसी को खाया नही है वह केवल धरती है,वह केवल अपने अन्दर से देना जानती है,वह लेती केवल अपने काम को पूरा करवाने के बाद,धरती को अपने लिये खुदवाना होगा तो वह बहुत पहले से ही उस स्थान पर सोना इकट्ठा कर लेती है और समय पर किसी प्रकार से उसे प्रदर्शित करने के बाद अपने स्थान को खोदने के लिये व्यक्तियों को इकट्ठा भी कर लेती है। जिस प्रकार से धरती अपने बैंक बैलेंस को अपने पास नही रखती है तो हम भी उसी धरती के तत्व है,हमे भी अपने लिये अपना बैलेंस बनाकर रखने से कोई भविष्य में फ़ायदा तो होने वाला नही है।

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