Monday, April 5, 2010

पुरुष फ़ेस है तो स्त्री न्यूटल

अनादि काल से महिलायें तिरस्कार झेलती आयीं है। पति के रूप में प्राप्त पुरुष स्त्री को कामना के रूप में स्वीकार करने के बजाय अवमानना के रूप में प्रयोग करता है,जब कि प्रकृति ने स्त्री को निराकार और पुरुष को साकार रूप में इस संसार में उपस्थित किया है। निराकार और साकार का रूप समझे बिना स्त्री पुरुष कभी भी अपने को सामजस्यता में नही रख पायेंगे,पहले आपको बता देना चाहता हूँ कि साकार और निरकार का अर्थ क्या है ? इस संसार में धनात्मक कारक साकार है,और ऋणात्मक कारक निराकार है,दोनो का अनुपात समान रूप से प्रयोग में लाने पर जीवन बिना किसी अवरोध के चला करता है,और इनके अन्दर जरा सा भी अनुपात बिगाड लिया जाये तो जीवन कष्टकारक हो जाता है। एक स्त्री एक पुरुष का अनुपाती रूप धनात्मक शक्ति को ऋणात्मक शक्ति में विलीन करने के लिये काफ़ी है,एक पुरुष अगर कई ऋणात्मक शक्तियों की पूर्ति करने के लिये उद्धत होता है तो वह जानबूझ कर अपनी जीवन की गति को असमान्य करता है,या तो वह जीवन को कम करता है अथवा वह जीवन भर अभावों में जीता है। उसी प्रकार से अगर एक स्त्री अगर कई सकारात्मक कारकों को अपने जीवन में प्रयोग करती है तो वह अपने जीवन को जल्दी समाप्त करने की चाहत करती है साथ ही जीवन को बरबाद करने के अलावा और कुछ नही करना चाहती है। इस बात को समझने के लिये आपको कहीं नही जाना है केवल अपने आसपास के माहौल को देखना है,आप किसी विधवा स्त्री या विधुर को देखिये,उसके जीवन को देखिये,उसकी आयु को देखिये,एक महिला का पति अगर चालीस साल की उम्र में गुजर गया है तो वह महिला अपनी वास्तविक उम्र से बीस साल और अधिक जिन्दा रहती है,अगर एक पुरुष चालीस साल में विधुर हो गया है तो वह अपनी वास्तविक उम्र से बीस साल और अधिक जिन्दा रहता है,इस अधिक उम्र को प्राप्त करने का कारण क्या है। इसे कोई भी बालिग आराम से समझ सकता है। अगर पुरुष अधिक स्त्रियों की कामना करता है और अधिक से अधिक कई स्त्रियों के साथ समागम करता है तो उसकी उम्र हर पहलू में कम होती चली जाती है,वह चाहे कितना ही धनी हो,कितना ही खाने पीने वाला हो,उसके पास चाहे कितने ही शरीर को बलवान बनाने वाले तत्वों की अधिकता हो,वह अपनी उम्र को कम ही करेगा। उसी प्रकार से कोई स्त्री अगर एक से अधिक पुरुषों के साथ समागम करती है तो वह भी अपनी उम्र की एक एक सीढी कम करती चली जाती है। इस बात को समझने के बाद भी अगर कोई स्त्री या पुरुष अधिक स्त्री या पुरुष की कामना करता है तो वह वास्तव में सोसाइट करने वाली बात ही करता है।
स्त्री पुरुष को ईश्वर ने संसार में निर्माण के लिये भेजा है यह तो एक साधारण व्यक्ति भी जानता है,लेकिन भावनाओं की गति को पकड कर चलने के साथ ही अगर दोनो अपने अपने कार्यों को करते चले जाते है,और वे जीवन की गति को निर्बाध चलाने के लिये एक के बाद एक निर्बाध (Resistance) पैदा करते जाते है तो जीवन आराम से निकल जाता है। इस स्त्री और पुरुष की गति को अगर रोजाना के प्रयोग में ली जाने वाली बिजली से तुलना करें तो आराम से समझ में आ सकता है,फ़ेस और न्यूटल दो भाग में घरेलू बिजली प्रयोग में ली जाती है,फ़ेस को न्यूटल से सीधा जोडने पर फ़्यूज उड जाता है,और फ़ेस को किसी रजिस्टेंस के माध्यम से न्यूटल तक पहुंचाने से उस रजिस्टेंस से जीवन की भौतिकता में सुख भी प्राप्त किया जा सकता है,और फ़्यूज भी नही उडता है,बिजली की गति सामान्य भी रहती है। स्त्री को न्यूटल और पुरुष को फ़ेस समझे जाने पर दोनो की आपसी शक्ति को प्रकृति ने बच्चे रूपी रजिस्टेंस पैदा किये है,दोनो अपनी अपनी शक्ति को बच्चों के माध्यम से खर्च करें तो बच्चे तरक्की करते जायेंगे,और दोनो का जीवन भी सार्थक होता चला जायेगा। लेकिन दोनो के बीच बीच में होने वाले शार्ट सर्किट से भी बचना पडेगा। भगवान रूपी पावर हाउस,तार और खम्भों रूपी माता पिता,आन आफ़ करने वाले स्विच रूपी रोजाना के कार्य और व्यवसाय,इन्डीकेटर रूपी नाम और समाज में वेल्यू,एम सी बी रूपी भाग्य और भगवान के प्रति श्रद्धा भी ध्यान में रखनी जरूरी है।

8 comments:

Priyanka said...

Guru ji, bahut uttam likha hai. Magar jeewan ki gadi k 2 pahiyon mein se agar ek kharab ho or dusra theek tab bhi weh dusre ka jeewan kharab kar hi deta hai. Istriyon or purushon ki yahi vidambana hai ki weh khud kuchh nahi karna chahte hain magar weh expect sab kuchh karte han. Ek maan ka hi case le lijiye, uski beti mein kitni hi kamiyaan ho, weh apne sasuraal mein hi chahe vidhwa istri ho use na puchhe weh use kabhi galat nahi kahegi, magar apni bahu k case mein wo sab kuchh hone k bawjud bhi jhoothe ilzaamon ki bauchhar kar degi. Pati-patni k rishton ko kayin for granted lekar chalte hain, ki kuchh bhi kar lein magar patni ko wapis to aana hi parega. Yahi rudiwadi vichaar istriyon k shoshan ka karan bante hain. Tabhi pare- likhe purush bhi wahi karte hain jo unhone apne pariwaar mein dekha or khud hi napasand bhi kiya. Ant mein yahi kahungi, seekhaya to bahut kuchh ja sakta hai, isiliye kisi ko bhi kuchh bhi seekhane k liye khud seekhna sabse pehle jaruri hai.

रामेन्द्र सिंह भदौरिया said...

एक पति महोदय आफ़िस से जल्दी घर आ गये,सर्दी की ऋतु थी,पत्नी बच्चे का स्वेटर बुन रही थीं,पति ने पत्नी से कहा कि "भूख लगी है कुछ खाने को देदो",पत्नी स्वेटर बुनते हुये कहा कि "रुको,अभी खाला लगाती हूँ",पति ने सोचा कि कोई फ़न्दा ट्रिपिकल होंगे,इसलिये रुकने को बोला है,वे समाचार पत्र लेकर उसे पढने लगे,जब आधा घंटा से ऊपर हो गया तो उन्होने ने फ़िर कहा,-"अगर फ़ुर्सत मिल गयी हो तो खाना लगा देतीं",पत्नी ने फ़िर से वही उत्तर दिया,-"थोडा रुको,अभी लगाती हूँ",पति चुपचाप हो गये और फ़िर से समाचार पत्र को उलटने पलटने लगे,इतनी देर में बच्चा स्कूल से वापस आ गया,उसने कहीं बैग फ़ेंका,कहीं जूते उतार कर फ़ेंके कहीं टाई कहीं शर्ट और मम्मी के पास आकर बोला "मम्मी भूख लगी है",पत्नी ने स्वेटर को सलाइयों सहित एक तरफ़ पटका और भाग कर रसोई में गयी और जल्दी से खाना गर्म करने के बाद टेबिल पर लगाकर पति को और बच्चे को आवाज दी,"खाना लग गया है,आजाइये",दोनो बाप बेटे और पत्नी खाने की मेज पर बैठ कर खाना खाने लगे,पति ने धीरे से पत्नी से पूंछा-"मैने दो बार कहा कि खाना लगा दो,तब तुमने खाना नही लगाया और रुक जाओ,रुक जाओ,कह कर टाल दिया,लेकिन बच्चे के आते ही खाना भी लग गया और जरा सी भी देर नही हुयी,इसका क्या कारण है ?" पत्नी ने मुस्कराते हुये कहा-"सुनो जी ! बच्चे से मेरा खून का सम्बन्ध है,और तुमसे मेरा सामाजिक सम्बन्ध,सामाजिक सम्बन्ध एक दूसरे के व्यवहार और कार्यों से जुडा है,जबकि खून के सम्बन्ध में व्यवहार और कार्य कोई मान्यता नही रखते है",पति को समझ में आ गया था। उसी प्रकार से "बेटी" और "बहू" में अन्तर होता है,बहू और सास के सम्बन्ध सामाजिक होते है,माँ और बेटी के सम्बन्ध खून के होते है.बेटी के साथ कार्य और व्यवहार को नही समझा जाता है,बहू के साथ कार्य और व्यवहार को समझ कर ही कार्य किया जाता है।

Randhir Singh Suman said...

nice

Admin said...

@ भदौरिया

पति कों इंतजार करने की वजह यह भी हो सकती है ताकि सारा परिवार एक साथ भोजन करे. इसमें खून और व्यहार के रिश्तों की बात करना नैन्सफी है..शेष आप जयादा गुणवान हैं

Priyanka said...

Guruji, mere khyaal se ye sab humari hi banayi hui manyatayein hai, ki beti k liye sab jayaz hai kintu bahu k liye nahi, tabhi humne larkiyon ko alag-2 rishton mein jabran jakar k rakha hai. Jab karya or vyavahar beti ko nahi aata ya seekhaya gaya jo aage kisi or ghar ki bahu hai to apni bahu ko kya seekhaya jayega? Yahan mere khyaal se ye baat honi chahiye ki jise jaisa theek lage use waisa karna chahiye. Charity begins from home... agar beti mein wo lakshan nahi to bahu ko usi baat par kuchh kehne ka haq nahi hona chaiye.

Bhadauria said...

आचरण और धर्म एक साथ नहीं निबाहे जा सकते.दोनों का पालन समय -समय पर एक साथ जरूर किया सकताजाते है.
खून का सम्बंध रिस्ते से होता है,जो कि भाई से दुशमन बना सकता है.आचरण खून के रिस्ते से ज्यादा से ज्यादा नजदीक होता है.
रिस्ते निबाहे जाते हैं,आचरण सामाजिक स्तर से किये जाते हैं.

sareeta said...

maine sare vichar pare hai . mai bhi ek patni hu ma hu, mai aisa sochti hu patni ek ankh pati hai dusri ankh bachai hai ,woh ekankh bhi band kou karna chahegi. mare aisa manana hai ki subh aurat aisa nahi hoti .anubhav se hi expreience hota ha ,ore hamesh bad ya good nahi hota.
guruji mai apke sare articals parti hu appkai anubhav ore astrology mix hai yehi safalta ka manter hai mai apkai articals se hamesha immpressed hu

Unknown said...

Bakwas