Monday, April 5, 2010

विश्वास करो,वे तुम्हारी सहायता जरूर करेंगे !

आशंकायें जीवन में आती है,आशंकाओं के निवारण के लिये और आशंकाओ की हकीकत को जानने के लिये मनुष्य प्राचीन काल से ही प्रयासरत रहा है। समय को पहिचान लेना और समय आने से पहले कार्य का पूरा कर लिया जाना भी आशंकाओं को दूर करने में एक अच्छा साधन माना जा सकता है,लेकिन आफ़त अक्समात सामने आजाये और उस आफ़त से जूझने का कोई साधन पास में नही हो तो केवल ईश्वर ही याद आयेगा,ईश्वर के जिस भी रूप के प्रति श्रद्धा है,उसी रूप में वह विश्वास के बल का प्रतिरूप बनकर सहायता के लिये हाजिर हो जायेगा। तुम्हारी आफ़त निकल जायेगी,और उस समय जब तुमने उस आफ़त को निकालने वाले विश्वास रूपी व्यक्ति को पहिचान लिया है तो ईश्वर के दर्शन तुम्हे जरूर हो चुके है। यह तुम्हे मान लेना चाहिये। महाभारत की एक कथा के अनुसार युद्ध होने से पहले द्रोपदी अपने वास्तविक रूप में महाभारत के मैदान में उपस्थित हुयी,उनका साक्षात रूप काली का था,कुंती ने अपने पांचो पुत्रों की रक्षा के लिये उनसे विनय की,उसी युद्ध के मैदान में एक टिटहरी ने अपने अंडे दिये थे,वे भी गिनती में पांच थे,टिटहरी ने जब कुंती को आशीर्वाद लेते देखा तो उसे भी अपने अंडो की चिन्ता हुयी,उसने भी काली का रूप धारण किये द्रोपदी से प्रार्थना की कि " हे माँ काली ! जब पांच पंड बचें तो पांच अंड भी बचें",माता काली के रूप में द्रोपदी ने उसे आशीर्वाद दिया कि बच जायेंगे। और जब युद्ध हुया तो पांचों पांडव युद्ध में विजयी हुये थे,और युद्ध मैदान के बीच में रखे अंडों की रक्षा भी हुयी,युद्ध में एक हाथी का घंटा टूट कर उन अंडो पर गिरा और वे पांचों अंडे सुरक्षित रहे,उनके आसपास हाथी घोडे रथ पैदल सभी रहे लेकिन अंडो को कोई क्षति नही पहुंची। श्रद्धा और विश्वास के लिये किसी भी साधन का होना जरूरी है,जब तक कोई साधन नही होगा तो विश्वास करने का कोई सवाल ही नही होता है,विश्वास या तो जन्म से माता पिता के द्वारा करवाया जाता रहा हो,या विश्वास समाज या रहने वाले स्थान से करवाया जाता रहा हो,विश्वास किसी धार्मिक पुराण या गाथा को पढकर सुनकर या देखकर किया जाने लगा हो। लेकिन जो लोग कभी धर्म कर्म कांण्ड आदि पर विश्वास नही करते है,उनको क्या ईश्वर सहायता नही भेजता है,ऐसा भी नही है,जिसे उसने इस संसार में भेजा है उसकी सहायता की जिम्मेदारी उसी पर है,इसकी भी एक मिथिहासिक गाथा मैने पढी है,-"मालवा के पठारी भाग में एक किसान रहा करता था,उसे ईश्वर पर पूरा भरोसा था,बिना आथित्य सत्कार के वह भोजन नही किया करता था। वह पूजा पाठ और नित्य क्रियाओं को करने के बाद केवल किसी अतिथि के आने का इन्तजार करता था,जब कोई अतिथि उसके घर आता तभी उसके साथ वह भोजन करता,रोजाना तो अतिथि आते नहीं,कभी कभी पांच पांच दिन तक उसे भूखा ही रहना पडता,लेकिन उसके विश्वास से अतिथि आते जरूर थे। एक गर्मी के मौसम में वह पानी पी पीकर सात दिन तक भूखा ही रहा,कोई अतिथि नही आया,वह दरवाजे पर बैठा किसी अतिथि की बाट जोहता रहता। आठवें दिन एक अतिथि आत उसे दिखाई दिया,नंगे पैर,मैला कुचैला दुर्गंध युक्त शरीर,वह जब पास में आया तो उस किसान ने उस अतिथि से भोजन करने के लिये याचना की,अतिथि तैयार हो गया,जल्दी से भोजन परोसा गया,किसान और अतिथि साथ साथ भोजन करने बैठे,किसान ने भोजन करने से पूर्व ग्रास निकाला,पानी का समर्पण ग्रास को दिया और भगवान को धन्यवाद दिया कि उसे अतिथि और भोजन दोनो एक साथ दिये है। वह जब अपनी भोजन से पूर्व की क्रियायें कर चुका तो देखा अतिथि बिना कोई भगवान को धन्यवाद दिये अपने भोजन करने में व्यस्त था। किसान को क्रोध आया कि उसने आचमन भी नही किया,गौ ग्रास भी नही निकाला,पानी का भोजन के चारों तरफ़ समर्पण भी नही किया,भगवान को धन्यवाद भी नही किया,उसके दिमाग में आया कि बिना इन सब बातों के किये उसे भोजन करने का कोई अधिकार नही है,उसने अतिथि को फ़ौरन भोजन न करने के लिये कहा और उसे अपने घर से निकाल दिया,अतिथि बिना पूर्ण भोजन के चला गया,वह जाते हुये अतिथि को देखता रहा,उसी समय उसकी अन्तरात्मा में आवाज गूंजी,-"अरे मूर्ख ! जिस व्यक्ति को ईश्वर ने इतनी उम्र तक भोजन दिया है,उसे तू एक दिन भोजन नही दे पाया,और बिना भोजन के ही वापस भेज दिया,तुझे जरूर अतिथि निरादर का पाप लगेगा,जा जल्दी से उसे वापस बुलाकर ला और माफ़ी मांग कर उसे भोजन करा",किसान दौड कर उस अतिथि के पास गया और उसे वापस लाया,भोजन करवाया और आदर सहित उसे भेजा। धर्म रीतिरिवाज आदि किसी पर जबरदस्ती नही थोपे जाने चाहिये,जिसकी जैसी भावना हो उसी के अनुसार उसे चलने देना चाहिये। नीति अनीति को समझाना महापुरुषों का काम है,लेकिन जबरदस्ती नीति पर चलना,या अनीति से रोकने का काम महापुरुषों का नही है। कारण नीति पर चलने के लिये जबरदस्ती प्रेरित करने पर व्यक्ति को नीति ही बोझ लगने लगेगी,और अनीति पर जाने से रोकने पर अनीति का परिणाम उसे केवल कहानी की तरह ही समझ में आयेगा,वह अनीति को कभी समझ नहीं पायेगा,केवल बालक,स्त्री और वृद्ध ही पथ प्रदर्शक की चाहत रखते है,अन्य नहीं। 

12 comments:

Priyanka said...

Bahut achcha article hai, guruji.

रामेन्द्र सिंह भदौरिया said...

धन्यवाद प्रियंकाजी.

Bhadauria said...

बहुत खूब.जीतेय रहो.

bjgoyal said...

c

bjgoyal said...

थोडे-से सुख, थोडे-से दुख, थोडे सपने थोडी आशा!
इनसे ही बनता है जीवन, ये ही जीवन की परिभाषा!

Deepmala said...

too good

Deepmala said...

bahut achha hai

Deepmala said...

tooooooooo good

Unknown said...

बहुत सुन्दर पोस्ट गुरूजी।

Unknown said...

Kis par viswas kre Kis par nhi... Yhi zindgi ki uljhan h.. Na to viswas prakat hota h or na aviswas ka Karan..antaraatma shunya h.. Koi awaz nhi aati.. Mardarshak ki rah dekhte hue jeevan aage bdh rha h.

Unknown said...

Guruji mera naam pushpa mali ha muje mari janm date or time ka pata nahi ha ma mare bhivsay ke bare ma janna chati hu

Unknown said...

सुंदर शब्दों में समझायी गयी कहानी