Tuesday, March 30, 2010

हनुमान पूजा और वैज्ञानिक तथ्य

हमारे भारत वर्ष में अक्षर पूजा की मान्यता रही है,अक्षरों को मूर्तियों में उकेर कर और उनके रूप को सजाकर विभिन्न नाम दिये गये है। समय की धारा में मूर्ति को ही भगवान मान लिया गया और उन्ही की श्रद्धा से पूजा की जाने लगी,हनुमान जी की पूजा का अर्थ भी यही लिया गया। अक्षर "ह" को सजाकर और ब्रह्मविद्या से जोड कर देखा जाये तो "हं" की उत्पत्ति होती है। मुँह को खोलने के बाद ही अक्षर "ह" का उच्चारण किया जा सकता है। अक्षर "हं" को उच्चारित करते समय नाक और मुंह के अलावा नाभि से लेकर सिर के सर्वोपरि भाग में उपस्थित ब्रह्मरन्ध तक हवा का संचार हो जाता है। "हं हनुमतये नम:" का जाप करते करते गला जीभ और व्यान अपान सभी वायु निकल कर शरीर से बाहर हो जाती हैं। इसी प्रकार मारक अक्षर "क" का सम्बोधन करने पर और बीजाक्षर "क्रीं" को सजाने पर मारक शक्ति काली का रूप सामने आता है,लेकिन बीज "क्रां" को सजाने पर पर्वत को धारण किये हुये हनुमान जी का रूप सामने आजाता है,ग्रहों के बीजाक्षरों को उच्चारण करने पर     उन्ही अक्षरों के प्रयोग को सकारात्मक,नकारात्मक और द्विशक्ति बीजों का उच्चारण किया जाता है। जैसे मंगल जिनके देवता स्वयं हनुमान जी है,के बीजात्मक मंत्र के लिये "ऊँ क्रां क्रीं क्रौं स: भोमाय नम:" का उच्चारण किया जाता है,इस बीज मंत्र में "क्र" आक्रामक रूप में सामने होता है,बडे आ की मात्रा लगाने पर समर्थ होता है और बिन्दु का प्रयोग करने पर ब्रह्माण्डीय शक्तियों का प्रवेश होता है।

 इसी प्रकार से अगर शिव जी के मंत्र को जपा जाता है तो "ऊँ नम: शिवाय" का जाप किया जाता है,अक्षर "श" को ध्यानपूर्वक देखने पर बैठे हुये भगवान शिव का रूप सामने आता है,लेकिन जबतक "इ" की मात्रा नही लगती है,तब तक शब्द "शव" ही रहता है,इ की मात्रा लगते ही "शिव" शक्ति से पूर्ण हो जाता है,शनि देव का रंग काला है और ग्रहों के लिये इनका प्रयोग शक्ति वाले श का प्रयोग किया गया है,अगर शनि के बीज मंत्र को ध्यान से देखें तो "शं" बीज का प्रयोग किया गया है,"ऊँ शं शनिश्चराय नम:" का जाप करने पर भगवान शनि के द्वारा दिये गये कठिन समय को आराम से निकाला जा सकता है।

 लेकिन अक्षर "शं" को साकार रूप में सजाने पर मुरली बजाते हुये भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति भी मिलती है,और उस मूर्ति का रंग भी काला है,वृंदावन में कोकिलावन की उपस्थिति इसी बात का द्योतक मानी जा सकती है। शब्द हरि को अगर सजा दिया जाये तो लिटाकर रखने पर सागर के अन्दर लेटी हुयी भगवान विष्णु की प्रतिमा को माना जा सकता है। "श्रीं" शब्द को सजाकर देखा जाये तो लक्ष्मी जी का रूप साक्षात देखा जा सकता है।

 ह्रीं को सजाकर देखने पर माता सरस्वती को देखा जा सकता है,इसी प्रकार से विभिन्न अक्षरों को सजाकर देखने पर उन भगवान के दर्शन होते है।

15 comments:

कृष्ण मुरारी प्रसाद said...

हनुमान जी मेरे लिए इतने बड़े प्रेरणा-स्त्रोत है कि ....
...मैनेजमेंट में उनका प्रयोग करता हूँ ....
..."अगर आप संजीवनी बूटी नहीं पहचान सकते तो पहाड़ ही उठा लाओ , पहचानने बाले पहचान लेंगे...और काम हो जाएगा...."...go extra miles...do some extra work....cross the limit.....
....शत् शत् नमन.....
http://laddoospeaks.blogspot.com/

वीनस केसरी said...

बहुत सुन्दर विवेचना

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

जय हनुमान..

Udan Tashtari said...

शब्दों से सही विश्लेषण किया है..बढ़िया!

chandel's said...

bhagwaan ko shabdo mai esse behtar bayan nahi kiya ja sakta

Dr.Hemantkumar Madne said...

jai hanuman aapne vakai me Hanumanji ki Shakti vaigyanik tarike se vivechan kiya or hame bataya sir thank you.

12Vastu said...

I love hanuman ji,
This is very good explaintion about hanuman JI.

Jai HANUMAN JI.

Tapan said...

aapki site se bahut kuch sikhne ko mila hai guruji

Tapan said...

Very nice site..........I learnt lot

guruji said...

सुधी पाठकों, वास्तव में हनुमान जी सहृदय भक्तवत्सल हैं. उनकी छोटी पूजा से ही हमारे कई कार्य सिद्ध हो जाते हैं. पवनसुत हनुमान जी की जय...

Dr. Ram Mehta said...

Very very scientific and convincing, Namaskar

Unknown said...

I LOVE YOU BALA JI HANUMAN

रामदरबार फाफडा व स्वरटस said...

गुरुजी मी हं हनुमाते रूद्रातमकाय हूं फट का जप करताहू मुझे हवन कैसे करना चाहिए मी पुणे से अशोक परमार

रामदरबार फाफडा व स्वरटस said...

गुरुजी मी हं हनुमाते रूद्रातमकाय हूं फट का जप करताहू मुझे हवन कैसे करना चाहिए मी पुणे से अशोक परमार

Unknown said...

Great thinking