Sunday, April 15, 2012

गुप्त सम्बन्ध और वैवाहिक जीवन

जातक के जन्म समय के ग्रह जीवन में सभी सुख तो नही देते है,कोई न कोई ग्रह तो अपनी सीमा रेखा से बाहर हो जाता है और जातक को उसी सीमा में कष्ट देने के लिये अपनी हरकतो को करने लगता है। जातक जिस परिवार मे जन्म लेता है उस परिवार की भलाई बुराई तो वह सहन कर सकता है लेकिन जातक का विवाह अपने परिवार और घर मे नही हो सकता है इसलिये उसे अपने जीवन के जवानी से अन्तिम समय तक के लिये जीवन के लिये दूसरे पर निर्भर होकर रहना पडता है। बचपन तो माता पिता निकाल देते है शिक्षा भी माता पिता और परिवार के लोग मिलकर निकाल देते है,इसके बाद नौकरी और धन कमाने की स्थिति भी कैसे भी निकल जाती है लेकिन विवाह के बाद क्या होगा यह किसी को पता नही होता है,अक्सर इसी बात मे लोग भ्रम मे रहते है और जिसे अच्छा समझा जाये वह खराब निकल सकता है जिसे खराब समझा जाये वह अच्छा भी निकल सकता है। उपरोक्त कुंडली कन्या लगन की है लगनेश बुध सप्तम में अपना स्थान बनाकर बैठे है,साथ में बारहवे भाव का मालिक सूर्य भी है.यह सूर्य सप्तम मे आकर नीच का फ़ल देने के लिये अपनी युति देता है इसी सूर्य को केतु जो तीसरे भाव मे है वह मंगल का बल लेकर भी सूर्य को देता है,इस प्रकार से नीच के सूर्य को बल मिल जाता है और वह जातक के साथ घात करने से नही चूकता है।यह कुंडली एक लडकी की है जो विद्या और बुद्धि के क्षेत्र मे नाम कमाने वाली है,धन भाव मे वक्री शनि है इसलिये बुद्धि से धन कमाने की योग्यता है,मंगल केतु तीसरे भाव मे है इसलिये कम्पयूटर और तकनीकी कारणो मे बहुत ही आगे बढने वाली है,गुरु चन्द्र चौथे भाव मे है इसलिये परिवार और मर्यादा मे रहकर अपने पारिवारिक जीवन को चलाने वाली है। छठा शुक्र जीवन मे हजार दोष पैदा करने वाला है,नीच का सूर्य सप्तम मे बैठ कर अपने नीच प्रभाव को देने वाला है,बुध जो सातवे भाव मे बैठ कर अपनी नीची बुद्धि को सूर्य और केतु के साथ मिलकर प्रकाशित करने वाला है। माता का कारक गुरु स्वगृही है,इस प्रकार से माता धार्मिक भी है भाग्यशाली भी है और धर्म कानून तथा मर्यादा पर चलने वाली है,पिता का कारक बुध सूर्य के साथ नीच प्रभाव को रखने वाला है और लेकिन कार्यों से ईमानदारी के कार्य जो ब्रोकर से सम्बन्धित है करने वाला है,सूर्य से तीसरा राहु वाहन से सम्बन्धित व्यवसाय पिता के द्वारा करने वाला है,सूर्य से बारहवे भाव मे शुक्र होने से पिता मे मोटापा भी है और वह अपने कार्यों को उत्तम रूप से स्थिर रहकर कार्य करने वाला है।

जन्म के गुरु और जन्म के चन्द्रमा पर जब गोचर के गुरु ने अपनी युति बनायी तो जातिका की शादी धार्मिक रूप से रीति रिवाज से की गयी,लेकिन जैसे ही फ़ेरे समाप्त हुये जिस वर के साथ शादी की गयी थी उसके पहले से गुप्त सम्बन्ध रखने वाली लडकी आ गयी और अपने अनुसार वर के प्रति पहले से चलते हुये अपने प्रेम सम्बन्ध के सबूत विवाह के समय पूरे समाज को दिखाये,इस प्रकार से एन वक्त पर विवाह होकर भी नही हुआ,लडके वाले जातिका के परिवार वालों से बचने के लिये एक एक करके खिसक लिये और जातिका विवाह के जोडे में अपने घर पर रह गयी। राहु जो जन्म समय और गोचर दोनो से अपनी युति दे रहा था और अक्समात ही खुशी को गम मे बदलने के लिये अपनी शक्ति को देकर चला गया। बिना कुछ किये हुये एक प्रकार से सामाजिक दंड जातिका को दे गया जिसके लिये जातिका ने और जातिका के परिवार वालो ने कभी सोचा भी नही होगा कि उनके साथ ऐसा होगा। जिस लडके के साथ विवाह तय किया गया था वह अपने जन्म स्थान से दूर नौकरी कर रहा था और उसने नौकरी मे ही किसी लडकी को अपनी जीवन संगिनी चुपचाप बना लिया था घर वालो को कानो कान खबर नही थी। पहले तो वह शादी के लिये ना नुकर करता रहा,लेकिन माता के अधिक कहने पर वह शादी के लिये तैयार हुआ और इस जातिका के साथ उसके घर वालो ने रिस्ता तय किया,शादी के एन वक्त पर  जिस लडकी को वह जीवन संगिनी बनाकर बैठा था,आयी और जीवन को एक दाग देकर चली गयी। स्त्री की कुंडली मे शुक्र जब छठे भाव मे होता है तो हजार दोष देने के लिये माना जाता है,यही शुक्र पति भाव से बारहवे होने पर काम धन्धे के मामले मे और जीवन के उन्नति के क्षेत्र मे पति को तो आराम देने वाला होता है लेकिन खुद को समय समय पर इसी प्रकार के आक्षेप विक्षेप देने के लिये माना जाता है। सूर्य नीची राजनीति देकर जीवन के कोई भी किये गये अच्छे कामो मे भी बुराई देने के लिये माना जाता है।

कुंडली मे मंगल केतु की युति एक प्रकार से तो तकनीकी कारणो मे फ़लदायी होती है किसी भी नेटवर्किग के काम मे सफ़लता को देने वाली होती है किसी भी साधन को तकनीकी रूप से चलाने के लिये उत्तम मानी जाती है और पहिचान के रूप मे एक प्रकार से इंजीनियर की उपाधि देती है लेकिन पहिचान के रूप मे एक भटकती आत्मा के अलावा और कुछ भी प्रदान नही करती है। जो भी परिवार विवाह के बाद मिलता है वह अक्सर तामसी भोजन को खाने पीने वाला और जो धर्म और रीति रिवाज हिंसा की तरफ़ जाते है उनकी तरफ़ मन लगा कर चलने वाला होता है। मंगल केतु जब सूर्य से नवे भाव मे आजाते है तो पिता या पिता के परिवार से कोई न कोई दुष्कर्म ऐसा भी हो जाता है जिसके कारण पिता का कोई भी धर्म सहायता मे नही रहता है जहां भी भाग्य के लिये जीवन को आगे बढाने के लिये देखा जाता है वहां धन और पराक्रम की बात तो पूरी हो जाती है लेकिन शरीर सुख समाज का सुख और परिवार का सुख सामने नही रह पाता है।

1 comment:

गोविंद said...

गुरूजी सादर चरणस्पर्श
गुरू जी क्या गलत करा जो एसा हुआ कारण बताऔ कया गलती हँ