Thursday, April 12, 2012

भाग्य में मंगल शुक्र सुख चैन में पाबंदी

प्रस्तुत कुंडली सिंह लगन की है लगनेश सूर्य अष्टम मे विराजमान है,भाग्य मे भाग्येश और सुखेश मंगल के साथ तृतीयेश और कार्येश शुक्र विराजमान है.जीवन साथी के भाव पर केतु और राहु की पूरी द्रिष्टि है जीवन साथी के भाव से आगे सूर्य और बुध है.पुरुष कुंडली होने के कारण जीवन साथी का कारक शुक्र है और जीवन साथी का मालिक शनि तीसरे भाव मे बैठ कर वक्री हो गया है,तुला राशि का शनि उच्च का होता है लेकिन वक्री होने के कारण नीच का प्रभाव देने लगा है,राहु और केतु दोनो ही उच्च के है लेकिन केतु का पंचम भाव मे होना और राहु का ग्यारहवे भाव मे होना जातक के लिये किसी भी समस्या से जूझने के लिये खुद का निर्णय मायना नही रखता है। पंचमेश जो मंत्रणा के लिये जाने जाते है बारहवे भाव के स्वामी चन्द्रमा के साथ जब सुख भाव मे वक्री होकर बैठ जाते है तो जो भी कारण मंत्रणा मे बताया जाये वह अस्थिर ही रहता है और खुद की दी जाने वाली राय कोई मायना नही रखती है। सूर्य का स्थान अष्टम मे होने के कारण और धनेश तथा लाभेश का स्थान भी सूर्य के साथ होने से जीवन मे गुप्त ज्ञान प्राप्त करने और अस्पताली दवाइयों आंखो ह्रदय सम्बन्धी बीमारी बाहर के लोग यात्रा और इसी प्रकार के कामो के अन्दर जातक का ध्यान रहना भी माना जाता है.वक्री गुरु होने के कारण जातक का कार्य करने का स्थान और रहने का स्थान भी मंगल से कन्ट्रोल रहने के कारण या तो पिता और पिता की सम्पत्ति पर निर्भर होता है या पत्नी और पत्नी के कार्यों पर निर्भर रहता है। भाग्य से नवे भाव मे केतु होने के कारण और केतु का शिक्षा तथा बुद्धि के भाव मे होने पर कालेज शिक्षा या स्कूली शिक्षा से जुडा हुआ होना भी माना जाता है लगनेश के साथ बुध होने से ज्योतिष और विचित्र विद्याओं से सम्बन्धित बाते भी जानी जा सकती है। मंगल की नजर बारहवे भाव मे होने से यात्रा और खर्चे पर अंकुश होता है तथा मंगल की अष्टम नजर चौथे भाव मे गुरु और चन्द्रमा पर होने के कारण जातक आने जाने के समय किसी स्थान पर रुकने के समय मिलने वाले सुख के समय भी कन्ट्रोल मे रहना जरूरी है.पारिवारिक कारणो से भी खुद के दिमाग को प्रयोग करने मे जनता से जुडने मे दिक्कत का कारण माना जा सकता है। एक पुत्र की पैदाइस भी आपरेशन के बाद मानी जा सकती है खुद के लिये भी यही बात मानी जाती है वैसे पूरे परिवार की जिम्मेदारी और रीति रिवाजो को चलाने के लिये तथा सामाजिक खर्चो को करने के लिये भी यह केतु और मंगल शुक्र की युति अपना असर देती है। केतु का भाग्य मे अवरोध भी करना माना जा सकता है जैसे केतु से चौथे भाव मे सूर्य बुध के होने से जातक की बुद्धि से किसी एन जी ओ जैसी संस्था को चलाना और गुप्त रूप से धन का प्राप्त करते रहना उस धन से शिक्षा संस्थानो और जनता के बीच की बुद्धि वाली प्रक्रिया को विदेशी सहयोग से चलाना आदि। जातक के भाग्य के भाव को वक्री शनि के द्वारा देखे जाने तथा मंगल के स्वयं ही भाग्य भाव मे बैठ जाने से जातक को अपने समाज परिवार और मर्यादा से दूर जाना भी मिलता है यानी जो कार्य परिवार समाज और घर मे पहले से होते रहे हो उनके अन्दर बदलाव लाकर आधुनिकता मे आगे ले जाना,तथा यही बात गुप्त बातो के लिये भी मानी जाती है जैसे किसी शिक्षा आदि को बहुत जल्दी से प्राप्त कर लेना लेकिन उस शिक्षा का सही रूप मे उपयोग नही हो पाना कारण मंगल और वक्री शनि के कारण पितृ दोष का पैदा हो जाना,इस दोष से जो भी भाग्य से प्राप्त होता है वह कार्य के आखिरी मे सामने आना और असफ़लता का सामना करना आदि। जातक के लिये भ्रम मे जाने का समय भी माना जा सकता है जैसे राहु का गोचर पिछले अट्ठाइस महिने से पंचम चौथे भाव मे हो रहा है और आगे के अट्ठाइस महिने ही और होना है इस प्रकार से जातक के लिये जो सुनहरा अवसर कार्य और कार्य के फ़ल प्राप्त करने का है वह भटकाव वाले दिमाग के कारण सही स्थिति मे नही जा पाना और विदेशी तथा घरेलू कारणो के प्रति हमेशा ही किसी न किसी बात से असमंजस मे रहना आदि भी देखा जा सकता है। मिथुन का राहु पराक्रमी बनाता है लेकिन जब राहु गलत राशि के साथ गोचर मे आजाता है तो जातक को बहाना बना कर काम निकालना झूठ बोलना और एक से अधिक लोगो के साथ मंत्रणा करने के बाद खुद को भी कनफ़्यूजन मे रखना और क्या सही है क्या गलत है का निर्णय भी नही ले पाना आदि कारण बन जाते है,जैसे कि इस समय राहु जन्म के चन्द्रमा और जन्म के वक्री गुरु के साथ अपना गोचर कर रहा है इसलिये जातक का दिमागी हाल और दिमाग से रोज कुआ खोदना रोज पानी पीना आदि की बातो मे भी राहु अपनी गति को इतना कनफ़्यूजन मे डाल कर रखता है कि जातक को यह पता ही नही चल पाता है कि वह क्या कर रहा है इसका फ़ल आगे क्या मिलेगा और जो फ़ल मिलेगा उसे वह उपभोग मे ले सकता है कि नही आदि। राहु जब चौथे भाव मे गोचर करता है और चन्द्रमा के साथ गोचर करता है तो घर मे ही अपमान का होना माना जाता है अपने ही लोग उसे अपमान देने लगते है और उस अपमान के कारणो को वह किसी से कह भी नही सकता है अपने मन के अन्दर ही घोंट कर रह जाना और जब भी कोई इच्छा हो उस इच्छा का दमन अपने ही अन्दर कर लेना आदि भी माना जा सकता है।
इस राहु के कारण जातक को अनौखी चीजो को खरीदने बेचने के लिये प्रयास करना भी माना जाता है वह अदभुत चीजो की तरफ़ आकर्षित भी होता है और इन चीजो को खरीदने बेचने के कामो के अन्दर अपने को ले भी जाता है उसे लगता है कि बहुत अच्छी फ़ायदा वाली बात है रिस्क भी लेता है और जब फ़ायदे के स्थान पर पहुंचता है तो वहां केवल आशंकाओ के अलावा और कुछ दिखाई भी नही देता है। जातक के इस भाव मे राहु के आने से जातक जनता को करतब दिखाने की कला का भी प्रयोग करता है और उस करतब दिखाने की कला मे जातक के लिये कई प्रकार के दैवीय और राक्षसी कारण भी बन सकते है अधिक कारणो को प्रयोग करने के कारण शरीर के अन्दर एल्कोहल की मात्रा भी पैदा हो जाती है और जातक अक्सर पेशाब वाली बीमारियों से परेशान भी होना देखा जा सकता है,अथवा यौन रोगो की तरफ़ भी जातक का जाना हो सकता है। यह सब पराशक्तियों के छेडने और उनसे कार्य लेने के लिये अपनी अधूरी विद्या को प्रयोग करने के कारण भी होता है। जातक के साथ काम करने के लिये दोहरे साधन होते है वह साधन इतने या व्यक्ति इतने कार्यों को सामने करते है कि जातक को यह लगता है कि वह किसी प्रकार से फ़्री नही है वह अपने को कभी कभी तो इतना कार्यों मे लगा लेता है कि उसे होश भी नही रहता है कि बाकी के काम और करने है साथ ही यह भी होता है कि वह कभी कभी यह भी सोचने लगता है कि कोई काम भी नही है या जो भी वह कर रहा है वह बेकार का काम है और उस काम को करने से कोई फ़ायदा भी नही है। जातक के भाग्य को बढाने के लिये केतकी जडी की नौ फ़ांके चांदी के ताबीज मे रखकर सोमवार को गले मे धारण करने से जो साधन धन और सुख देने के आडे आते है उनके अन्दर फ़ायदा होना भी माना जा सकता है।

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