Thursday, December 22, 2011

माया सभ्यता का खौफ़

जगत यानी दुनिया ब्रह्मांड से जुडी है,इस ब्रह्माण्ड में कब क्या होगा इस बात का लोग आकलन अपने अपने दिमाग से किया करते है। एक खौफ़ संसार के सामने पैदा हो गया है कि वास्तव में आने वाले 21 दिसम्बर 2012 को दुनिया में प्रलय होनी है,ग्रह सत्य है,भाव सत्य है,जीव सत्य है,ईश्वर सत्य है,माया झूठी है इस बात को हमारे ऋषि मुनि हमेशा से कहते आये है.प्रस्तुत कुंडली मे आप ध्यान से देखें,सूर्य धनु राशि का है जो लगन का मालिक है और जिस तारीख की बात सोचनी होती है उसी तारीख की शुरुआत की लगन को लेना हितकर होता है। सूर्य पर नजर देने वाले ग्रह मे केवल शनि ही है,शनि की अन्य नजरे भी भाग्य और धर्म तथा विश्व समुदाय पर है,शनि की नजर कुंडली के बारहवे भाव पर भी है,सबसे अधिक ग्रहों से आक्रान्त बारहवां भाव ही है,कारण बारहवे भाव का स्वामी चन्द्रमा अष्टम मे विराजमान है,इस चन्द्रमा पर भी केवल राहु की ही द्रिष्टि है.राहु के साथ शुक्र बुध भी है,इस प्रकार से राहु ने शुक्र और बुध का बल लेने के साथ अपने मिश्रित बल को छठे भाव के मंगल पर अष्टम मे विराजमान चन्द्रमा पर वक्री गुरु और केतु पर तथा बारहवे भाव पर असर दिया है। राहु को कुंडली के अनुसार मानसिक भय के लिये देखा जा सकता है यह भय वृश्चिक राशि का बुध यानी उस बात को जिसका पूरा होना सम्भव ही नही है,बात की कोई औकात ही नही है,अक्सर इस बुध को बेकार की बात से भी जोड कर माना जा सकता है,झूठे लोगों की कुंडली में वृश्चिक राशि का बुध राहु के साथ होता है। राहु आशंका भय को देने वाला है तो बुध साथ होने से जो बात का कारक है भयवाली बात को देने वाला होता है। यह भय का असर कहां से प्राप्त होता है इस बात के लिये लगन से चौथा स्त्री कारक शुक्र को माना जाता है। चौथा भाव राहु के अधीन होने के साथ बुध और शुक्र के आधीन भी है। लगन सिंह राशि की है और शुक्र की औकात मानसिक रूप से सिंह राशि की मानी जा सकती है। किसी बात की जानकारी के लिये अगर नाडी शास्त्र के ग्रंथो को टटोल कर देखा जाये तो व्यक्ति का नाम जो कारण को प्रस्तुत कर रहा है तथा भय को दे रहा है या चिन्ता पैदा कर रहा है,के प्रति मन के कारक भाव चौथे को ही देखा जाता है और जो भी ग्रह चौथे भाव मे होता है और चौथे भाव पर जिन ग्रहों की नजर होती है वही कारक भय को प्रदान करने वाले माने जाते है। शब्द "माया" सिंह राशि का ही है,जो भय दिया जा रहा है वह माया नाम के शब्द से जुडा है। बुध राहु का योगात्मक प्रभाव ज्योतिष और गूढ जानकारी से भी माना जाता है लेकिन बुध जब राहु के साथ वृश्चिक राशि का होता है तो मृत्यु सम्बन्धी कारक को प्रदान करने के लिये भी माना जाता है। यह भय देने के लिये जिन लोगों की करतूत बतायी जाती है उनके लिये दसवे भाव के गुरु को जो वक्री है,तथा केतु के साथ है,वक्री गुरु को धर्म के विरुद्ध चल कर अपना धर्म स्थापित करने के लिये भी माना जाता है केतु के साथ होने से वह धर्म ईशाई समुदाय से जोड कर देखा जा सकता है। संसार ईश्वर की देन है और ईश्वर प्रकृति को संभाल कर चलता है वह मनुष्य या किसी भी जीव जन्तु को बेलेन्स बनाकर चलने के लिये अपनी गति को प्रकृति के द्वारा संसार मे प्रसारित करता है। जब गुरु वक्री है तो मानवीय कृत कारणो को अपने बल में शामिल करने के लिये तथा मनुष्य जाति में अक्समात ही भय पैदा करने के लिये यह कारण पैदा करना माना जा सकता है। जो बात अगली साल के लिये बोली जाती है अगर उसी बात को आज के परिपेक्ष मे देखे तो गुरु चन्द्र मंगल शुक्र को छोड कर बाकी के ग्रह आज भी उसी स्थान पर है जहां उन्हे अगली साल होना है,यानी राहु भी चौथे भाव में बुध के साथ है,शनि भी तीसरे भाव मे तुला राशि का है केतु भी दसवे भाव मे है और शुक्र के छठे भाव मे होने से तथा मंगल के लगन में होने से कारण तो आज भी पैदा हो सकता था। कहा गया है कि पानी से प्रलय होनी है,पानी का कारक चन्द्रमा है और चन्द्रमा खुद ही राहु के घेरे में होकर यानी राहु की पंचम नजर से ग्रसित होकर गहरे भूभाग में विराजमान है.चौथे भाव को तालाब या समुद्र अष्टम भाव को गहरे यानी कुये और इसी प्रकार से जमीनी पानी के लिये तथा बारहवे भाव को बरसात से जोड कर देखा जाता है।
मन का कारक चन्द्रमा मृत्यु भाव मे है,और जब मन ही मौत की आशंका से ग्रसित हो तो शरीर की हालत क्या हो सकती है इस बात को भी समझा जा सकता है। इस मौत की आशंका को चन्द्रमा पर प्रेषित करने के लिये चौथे भाव के राहु की शक्ति को जो बुध और शुक्र के प्रभाव से पूर्ण है देने के लिये माना जा सकता है। चार ग्रहों की सम्मिलित नजर बारहवे भाव में जाने से लोगो की सम्मिलित नजर ईश्वर की तरफ जरूर जाती है इस बात को नहीं झुठलाया जा सकाता है,जब किसी भी व्यक्ति को मौत से सम्बंधित आशंका हो जाती है तो वह ईश्वर से बचाव के लिए प्रार्थना करता है इस प्रार्थना का रूप ग्रहों की सम्मिलित दृष्टि से बारहवे भाव में होने से मंदिरों में मस्जिदों में गुरुद्वारों में चर्च में की जाने की बात मिलाती है लोग सम्मिलित होकर प्रार्थना को करने के लिए एकत्रित होने के कारणों को भी जाना जा सकता है.लेकिन जो कारण करोडो सालो से चलते आये है,जब भी जीव की हानि हुयी है तो अपने ही कारणों से हुयी है,प्रकृति अपने बेलेंस को बैठाने का काम करती हमेशा करती रहती है जिस जीव की अधिक उत्पत्ति हो जाती है फिर जीव अपनी जीविका के लिए तरह तरह के उपक्रम करता रहता है उन्ही उपक्रमों के अन्दर जीव खुद के इस प्रकार के कारण पैदा कर लेता है की वे ही कारण उसके लिए मौत की आवाज बनाने लगते है और जीव की समाप्ति होने लगती है.
प्रकृति कभी किसी को आहात नहीं करती है इस बात का भी ध्यान लोगो को रखना चाहिए,हम अपने को अपने आप ही समाप्त कर ले तो बात और है जैसे आज के युग में दूर दूर तक मारक क्षमता को रखने वाले हथियार खानपान में बदलाव और मिलावट जैसे कारण,अपनी अपनी योग्यता के अहम् के कारण अपने को ही स्थापित करने के लिए पैदा होने वाले कुचक्र और मनुष्य को मनुष्य के द्वारा ही समाप्त करने की युति तो बन सकती है लेकिन प्रकृति को दोष देना और प्रकृति से डरना यह बेकार की बात मानी जा सकती है.गुरु के वक्री होने का अर्थ भी एक मायने में लिया जा सकता है की जीव अपनी सोच को उलटा रख रहा है,आत्मा का स्थान सूर्य के रूप में अपने ही भाव में है और गुरु की ही राशि में है,धर्म के स्थान में है ईश्वर पर विशवास करने के लिए कारण तो बन रहा है लेकिन तूफ़ान बाढ़ समुद्री कारणों से पृथ्वी का विनाश ऐसा कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा है.चन्द्रमा से अष्टम में राहू बुध और शुक्र के होने से समस्त मानवीय जाती के अन्दर ज्योतिष और इस प्रकार के कथन करने से जो प्रभाव मिलेगा उसके द्वारा आम व्यक्ति इन बातो से ज्योतिष वाले कार्नो को झुठलाने के लिए भी शक्ति को प्राप्त करना माना जा सकता है,यह सब कारण भी गुरु केतु की युति से प्रस्तुत करने के लिए एक विशेष समुदाय की चाल को भी माना जा सकता है जो इसी प्रकार के कथन को प्रसारित करने के बाद संसार में प्रचलन में ज्योतिष ईश्वर और लोगो के द्वारा अनर्गल रूप से की जाने वाले भविष्यवाणी की तरफ से विश्वास का हटाना मुख माना जा सकता है.
सृष्टि विनाश का कारण नहीं हो सकता है,इस बात का दावा हम नहीं ग्रह कर रहे है,सूर्य उद्वेलित नहीं है,राहू चन्द्रमा के भाव में है इसलिए कोइ अनीति नहीं कर सकता है,केतु गुरु के साथ है इसलिए संसार का पालक बन रहा है,क्रूर ग्रह मंगल का स्थान छठे भाव में है इसलिए वह किसी प्रकार की शरारत कर नहीं सकता है,शनि तुला राशि का उच्च का है इसलिए जो भी करेगा वह मानवीय हितो की रक्षा के लिए बेलेंस बनाने का काम ही करेगा,शनि की नजर सूर्य पर है इसलिए इस प्रकार के कथन करने के बाद वह सरकारों में बदलाव ला सकता है,लोगो के सरकारी प्रभावों को व्यवसायिक रूप से प्राप्त करने में योगदान का होना माना जा सकता है.मृत्यु का कारक गुरु वक्री है इसलिए बजाय मृत्यु देने के जीवन देने के लिए भी अपनी शक्ति को दे रहा है.चन्द्रमा का स्थान अष्टम में है इसलिए सूखे स्थानों पर पीने के पानी और सिंचाई के साधनों में बढ़ोत्तरी के उपाय किये जा सकते है,शुक्र बुध राहू तथा चन्द्रमा की युति से पानी से ऊर्जा प्राप्त करने के लिए पानी का कैमिकल प्रयोग किया जा सकता है.चन्द्रमा का स्थान चीन जापान और पूर्वी देशो की तरफ होने से नए नए आविष्कार किये जा सकते है,अधिक गर्मी से उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव का तापमान बढ़ने से पानी की मात्रा कुछ सीमा तक बढ़ सकती है,लेकिन एक दम से नहीं.
माया कलेंडर का कथन जिन लोगों ने अपने हित के लिए या जनता को भ्रमित करने के लिए बनाया है उस कलेंडर की मनगढ़ंत बाते तो जनता के अन्दर फिल्म मीडिया या प्रचार प्रसार विज्ञापन आदि के लिए प्रयोग में लाकर सस्पेंस तो पैदा किया जा सकता है लेकिन हकीकत में कुछ भी नहीं है.

No comments: