Saturday, June 4, 2011

कहाँ होता है भाग्य ?

एक सज्जन का प्रश्न हल्द्वानी नैनीताल से आया कि मैं अपने भाग्य के बारे में जानना चाहता हूँ। जो भी जीव इस संसार में पैदा हुआ है उसे कर्म की गति मिली है। किसी को कर्म की गति शरीर से मिली है किसी को धन से मिली है किसी को अपने को प्रदर्शन करने से मिली है किसी को शिक्षा देने के द्वारा मिली है तो किसी को बुद्धि से मिली है किसी को दूसरे की सेवा से मिलती है किसी को अपनी बुद्धि का प्रयोग नही करने के बाद दूसरे की बुद्धि के सहारे मिली है किसी को राख से साख निकालने की आदत है और किसी को धर्म से कर्म की गति मिली है किसी को लगातार काम करने के बाद ही गति मिली है किसी को मित्रों दोस्तों और अपने से बडे भाई बहिनो के द्वारा मिली है तो किसी को संसार मे विचरण करने से मिलती है। गतियां भी कई प्रकार की होती है एक गति तो जरा सा प्रयास करने के बाद कार्य का हो जाना और एक गति लगातार जूझते भी रहना और जूझने के बाद भी जब कार्य नही हो तो सिर को पीटना और अपने भाग्य को रोना माना जाता है। कुछ लोग आराम से बिना कुछ किये ही हाथ पर हाथ धरे बैठे होते है और उनके पास बिना किसी साधन के भी सभी सुख आने लगते है वह आराम से समाज मे प्रतिष्ठा भी बनाता है और लोगों को ठेंगा दिखाकर अपने जीवन को जीता भी है। वही बात एक दूसरे के लिये भी मानी जाती है कि दिन रात मेहनत करता है ,चोरी चकारी छल फ़रेब करता है डकैती डालता है जीव को जीव नही समझ कर केवल मशीन की तरह से काम करवा कर उनकी मेहनत को अपने लिये कमाने का साधन बनाता है,तथा अन्त में जब उसे सन्तुष्टि नही मिलती है तो जिन लोगों के साथ मिलकर पहले काम किया होता है या जिन लोगों के साथ मिलकर उल्टे काम किये होते है वे ही अगर अधिक मालदार हो गया तो लूट ले जाते है और कमजोर हो गया तो भेद नही खुलने के डर से उसे समाप्त ही कर देते है। कुंडली के चार भाग होते है पहला भाग धर्म कहलाता है दूसरा भाग अर्थ कहलाता है तीसरा भाग काम कहलाता है और चौथा भाग मोक्ष के रूप में जाना जाता है,वेदों ने भी अपने अपने अनुसार इन भागों को चार पुरुषार्थों के रूप में माना है,और यही चारों पुरुषार्थ हर व्यक्ति के लिये आजीवन प्रभावी होते है और इन्ही पुरुषार्थों के बीच में उसकी पूरी जिन्दगी गुजर जाती है,हर व्यक्ति के अन्दर एक ही तमन्ना होती है कि उसे मोक्ष का साधन क्या मिलेगा,उसी मोक्ष के लिये वह तीनो पुरुषार्थों को अपने द्वारा करता है और अन्त में जब तक अपने मोक्ष को नही प्राप्त कर लेता तब तक वह भागता रहता है।
प्रस्तुत कुंडली वृष लगन की है इस कुंडली में धर्म क्षेत्र को देखने के लिये पहला पांचवा और नवां भाव देखना पडेगा। पहला भाव खाली है पंचम भी खाली है नवें भाव में शनि (व) और राहु विराजमान है। पहला भाव शरीर के रूप में पंचम भाव शरीर से संतान को प्राप्त करने के रूप में नवां भाव जहां से शरीर की उत्पत्ति हुयी है के रूप में माना जाता है। नवां भाव ही भाग्य के लिये धर्म के लिये और ऊंची शिक्षा के लिये माना जाता है। भाग्य के पहले रिस्क का स्थान है भाग्य के बाद कर्म का स्थान है। भाग्य और कर्म का मालिक वृष लगन में शनि को ही माना गया है। शनि की सिफ़्त को समझने के लिये आप हमारे अन्य ब्लाग पढ सकते है। शनि कर्म का दाता है और कर्म के अनुसार ही अपनी उपस्थिति को देता है। लेकिन शनि के साथ अगर राहु का प्रकट होना मिले तो कर्म की विस्तार श्रेणी में इजाफ़ा भी माना जाता है,शनि राहु के भेद को समझने के लिये आप हमारे इस ब्लाग को पढ सकते है। इसके साथ ही वक्री शनि अपने अनुसार उसी प्रकार से जाना जाता है जैसे एक व्यक्ति कार्य को मेहनत से करता है और एक व्यक्ति कार्य को दिमाग से करता है,दिमाग से कार्य करने वाले का शनि वक्री होता है और मेहनत से कार्य करने वाले का शनि मार्गी होता है,लेकिन जब शनि गोचर से मार्गी होता है तो वक्री शनि वाले फ़ायदा उठाते है तता वक्री होने पर मार्गी शनि वाले फ़ायदा उठाते है। इस कुंडली में भी शनि राहु का स्थान नवें भाव में है। धर्म स्थान में राहु शनि के होने से व्यक्ति के अन्दर दिमागी काम करने की क्षमता है और वह कार्य को धर्म में ग्रहण करता है। धर्म का मालिक भी शनि है और कार्य का भी मालिक शनि है। शनि वक्री होने के कारण जब यह शनि गोचर से मार्गी होगा तो इस जातक को आराम से कार्य करने का अवसर मिलेगा यानी मेहनत करने वाले लोगों को और मेहनत से किये जाने वाले कार्य को दिमाग से करवा लेगा तथा जब गोचर से वक्री होगा तो जातक को खुद ही मेहनत से कार्य करने का अवसर देगा। एक बात और भी ध्यान में रखनी होगी कि इस शनि को शक्ति किन किन कारकों से प्राप्त होगी,इस कुंडली को ध्यान से देखें,शनि के सप्तम में केतु तीसरे भाव में है और वह जनता की राशि कर्क में है। केतु को बल देने वाले ग्रहों में गुरु जो केतु के पीछे धन भाव में है साथ ही केतु से नवें भाव में विराजमान शुक्र है वह भी केतु को बल दे रहा है। जब केतु के रूप में साधन व्यक्ति को मिल जाते है और उन साधनों में बल देने के लिये गुरु और शुक्र जो कि दोनो ही अपने अपने क्षेत्र के प्रधान है,जैसे गुरु विद्या में और आध्यात्म में तथा शुक्र भौतिकता में धन सम्पत्ति में और भवन में अपने बल को देता है। इस कुंडली में शनि (व) तथा राहु भाग्य भाव में इस जातक की बुद्धि असीम है और उस बुद्धि को अगर जातक कार्य की बुद्धि के रूप में प्रयोग करता है और भावानुसार विदेश या विदेश से सम्बन्धित कानून से सम्बन्धित यात्रा वाले कार्य सम्पादित करने से कार्य में मंगल का साथ लेकर तकनीकी कला का विकास करने के बाद अथवा मंगल का कमन्यूकेशन की राशि में उपस्थिति होने के कारण अगर कमन्यूकेशन सम्बन्धी जानकारी करने के बाद प्रयोग करता है तो वह एक अच्छा धन वाला माना जायेगा।
इस जातक के लिये शनि के वक्री समय में भावानुसार सही फ़ल को प्राप्त करने के लिये काला सुलेमानी पत्थर को पहिनना जरूरी है,कारण जब शनि वक्री होगा तो जो भी इसे भाग्य से मिला होगा यह अपने कारणो से समाप्त कर लेगा,यह युति अगर किसी भी जातक के नवें भाव में शनि राहु के रूप में मिलती है तो उसे काला सुलेमानी पत्थर जरूर पहिनना चाहिये। इसकी कीमत Rs.5200/- है साथ भेजने का खर्चा अलग से है। सम्पर्क करें - astrobhadauria@gmail.com

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