Sunday, May 8, 2011

गुरु राहु केतु की वैदिक ज्योतिष में समान द्रिष्टि

गुरु राहु केतु अपने स्थान अपने स्थान से तीसरे भाव पंचम भाव सप्तम भाव और नवें भाव को पूरी द्रिष्टि से देखते है,गुरु का अर्थ वैदिक ज्योतिष में ज्ञान सम्बन्ध क्षमता आदि से लिया जाता है तो नाडी ज्योतिष में जीव से लिया जाता है लाल किताब में गुरु को पिता के रूप में देखा जाता है.इसी प्रकार से राहु का अर्थ वैदिक ज्योतिष में पूर्वजों की आत्माओं से लिया जाता है,जो अपने अन्दर जिन्दा शक्ति को सोखने की शक्ति को रखता है उसे भी राहु कहते है जो अपने रहते हुये अन्य की प्रतिक्रिया को नेस्तनाबूद रखे उसे भी राहु कहते है,नाडी ज्योतिष में जीवन पदार्थ स्थान आदि की अन्दरूनी शक्ति को कहा गया है और लालकिताब में राहु को ससुराल आसमानी शक्ति और रूह के रूप में बताया गया है,उसी प्रकार से केतु को भी नकारात्मक शक्ति के रूप में वैदिक ज्योतिष में जिस के अन्दर जीव नही हो और जिसे प्रयोग में लाया जा सकता है,जैसे जानवर के मरने के बाद उसके सींगों में कोई शक्ति नही है लेकिन उसके सींग के अन्दर छेद आदि करने के बाद बजाने के काम में भी लाया जाता है तो महीन हड्डी आदि को हथियार और कांटे के रूप में भी प्रयोग किया जाता है,जो सहारा देने के लिये प्रयोग में लिया जाये चाहे वह पहिचान बताने के लिये झंडा का रूप हो या कुत्ते को भगाने के लिये डंडा के रूप में हो आजकल जनता के हित के लिये नेता के रूप में भी केतु की उपाधि बताई जाती है,नाडी ज्योतिष में केतु को उन रिस्तों के लिये माना जाता है जो वास्तव में कुछ नही होते है लेकिन सम्बन्धों के व्यवहार के कारण वे आजीवन ही नही कई पीढियों तक चलते रहते है जैसे ननिहाल का रिस्ता साथ ही लालकिताब में भी केतु को मामा के घर में भान्जे के रूप में ससुराल में जंवाई के रूप में और बहिन के घर भाई के रूप में केतु की मान्यता है। लेकिन इन सभी में गुरु को जीव के रूप में मानना और हवा का कारक जो जीव को सांस के रूप में जिन्दा रखती है के लिये माना जाना ठीक है,जिन्दा है तो रिस्ता है,जिन्दा है तो किसी न किसी प्रकार का ज्ञान रखता है मुद्रा चलन में है तो वह जिन्दा है किताब  में जो लिखा है और वह अच्छा या बुरा प्रभाव प्रकट करने में सक्षम है तो उसे जिन्दा माना जाता है,इसी प्रकार से राहु को भी पूर्वजों के रूप में मानना चाहे वह राख के रूप में हो कैमिकल पदार्थ के रूप में हो वह पानी मिलने पर कैमिस्ट्री की उपाधि देता हो,पदार्थ में मिलाने पर फ़िजिक्स की बात बताता हो हवा में मिलने पर गैस की उत्पत्ति करता हो तार के अन्दर जाने पर बिजली की प्रधानता को बताता हो या मोबाइल के अन्दर बैटरी के रूप में चलाने की क्षमता बेलेन्स के रूप में बात करने की क्षमता और सेमीकन्ड्क्टर के अन्दर सोफ़्टवेयर के रूप में कार्य करने की क्षमता के रूप में अपना आस्तित्व रखता हो,इसके विपरीत में केतु को माना जा सकता है।

तीनो ग्रहों की समान द्रिष्टि को समझने के लिये गुरु जहां है वहां से स्थान की पहिचान औकात की पहिचान बताता है,तीसरे स्थान से अपने द्वारा लोगों के अन्दर पहिचानने की शक्ति नाम की शक्ति और प्रदर्शन की शक्ति को बताता है,पंचम स्थान से कितनी शक्ति चाहे वह ज्ञान के रूप में हो या रक्षक और मारक के रूप में हो सम्मोहन के रूप में हो बखान करता है सप्तम से किन किन कारकों से वह मुकाबला कर सकता है और नवें भाव से वह किस प्रकार के समाज समुदाय या रा मेटेरियल से निर्मित है.

2 comments:

prem sain said...

गुरु जी सादर चरणस्पर्श,

बहुत दिनों बाद आपकी कोई नै पोस्ट आई है!

Unknown said...

GURU JI KETU KE BARE MAI JYADA LIKHE