राहु को रूह की उपाधि दी गयी है। जब लगन में हो तो खोपडी पर सवार भूत की तरह काम करता है,धन भाव में हो तो पता नही क्या कह उठे और कहा हुआ सच होने लगे,तीसरे भाव मे हो तो बीसियों लोगों की शक्ति भी उसके सामने फ़ेल हो जाये यानी वह जो कहे वह बात पूरी मानी जाये लडाई पर उतर जाये तो भीड को चीरता हुआ अपने कार्य को पूरा कर जाये चौथे भाव में हो तो हमेशा दिमागी शक के कारण अपने ही जीवन को नर्क बनाले पंचम में हो तो बुद्धि को इतना घुमाये कि परिवार और बुद्धि का पता ही नही लगे कि कितनी बुद्धि है और परिवार कहां पर है, छठे भाव में हो तो अवसर के आते ही कर्जा दुश्मनी बीमारी पर भूत की तरह सवाल हो जाये सप्तम में हो जीवन साथी पर भारी रहे और हमेशा जीवन साथी को प्राप्त करने के लिये अपनी नये नये गुण प्रकट करता रहे साथ ही जो भी जीवन साथी मिले उससे उसकी संतुष्टि नही हो अष्टम में हो तो जीवन साथी के अन्दर कामुकता का इतना प्रभाव देदे कि जीवन में एकान्तीवास और दूर रहने के कारण पैदा कर दे,पहले तो अष्टम का राहु शादी ही नही होने देता है और शादी हो भी जाये तो दूरिया बना दे,नवे भाव में हो तो पूर्वजों की इतनी मान्यता दे दे कि जातक हमेशा अपने पूर्वजों के नाम को बढाता जाये या नीचे गिराता जाये साथ ही धर्म में केवल उन्ही धर्मो को मान्यता दे जो रूह से सम्बन्धित होते है दसवें भाव में हो तो हमेशा बाहर के बडे काम करने की सोचे और कार्य करे तो भूत की तरह लग जाये और नही करे तो आलस से महीनो एक ही स्थान पर पडा रहे ग्यारहवे भाव में हो तो या तो शिक्षा के कार्य नाम लेने वाले करता जाये या शिक्षा का नाम ही बदनाम कर दे,दोस्तों की इतनी भरमार हो कि रोजाना के खाने पीने के खर्चे दोस्ती में ही कमाई को पूरी कर दे और बारहवां राहु या तो कारावास की सजा दिलवादे या जंगल वीराने में आवास की सुविधा देकर अपनी क्षमता को पूरा करने के लिये अपनी शक्ति को अथवा इतना डरा दे कि जीवन नरक की तरह से बीतता रहे।
सबसे खतरनाक राहु सप्तम का माना जाता है,राहु छाया ग्रह है और जीवन में लडाई उसी ग्रह से की जा सकती है जो दिखाई देता हो और सामने उसकी शक्ति की प्रकट प्रत्यक्ष हो,राहु अद्रश्य शक्ति के रूप में जब सामने हो तो कैसे लडाई जीती जा सकती है। देखने में साधारण सा दिखाई देने वाला व्यक्ति जीवन साथी के रूप में हो लेकिन उसकी शक्ति छुपे रूप में इतनी हो कि पहिचाने जाने तक वह कितना अहित कर जाये कोई पता नही हो,इसके साथ ही अगर व्यक्ति के जीवन साथी की मौत समय से पहले हो जाये और व्यक्ति अपनी वैवाहिक जिन्दगी को दूसरे जीवन साथी के साथ गुजारने का मानस बनाये तो वह राहु के रूप में रूह इतना परेशान करे कि जीवन साथी के रूप में नया जीवन साथी घर छोड कर ही भाग जाये या किसी न किसी बडी बीमारी से ग्रसित होकर एक कोने में पडा कराहता रहे। राहु का कार्य विस्तार के रूप में भी जाना जाता है,अगर सप्तम में राहु है तो वह या तो जीवन साथी के जीवन को इतना आगे बढा दे कि वह अपनी औकात को भी नही समझ पाये और पलक झपकते ही ऊंचाइयों पर चढता चला जाये,साथ ही अपने जीवन साथी के घेरे को इतना विस्तृत कर दे कि पहिचानना भारी पड जाये,और अगर भारी पड जाये तो रोजाना जीवन साथी पागल जैसे रोल अदा करे और भूत सा बना घूमता रहे,औरत है तो दांत बाहर बाल बिखरे हुये मर्द है तो बढी हुई दाढी और गन्दे दांत बदबूदार सांसे निकालकर जीवन को नरक बना दे.नवा भाव वंशावली को बताने वाला और वंश का नाम करने वाला होता है,धर्म और मर्यादा को रखने वाला होता है,सप्तम का राहु सबसे पहले नवें भाव को देखता है,अच्छा या बुरा प्रभाव वह पहले इसी भाव पर प्रकट करता है,दूसरी पंचम नजर ग्यारहवें भाव पर पडने के कारण या तो लाभ वाले मामले को बहुत आगे बढाने वाला हो या अपने कारण पैदा करने के बाद लाभ की सीमा को गिराने वाला हो साथ दोस्तों और बडे भाई बहिनो के प्रति भी दिक्कत देने वाला या ऊंचा उठाने वाला माना जाता है,लगन पर सप्तम की द्रिष्टि पडने से केतु के अन्दर या तो साधनो के रूप में बल भरता जाये या इतना घोर बना दे कि लोग पास बैठने से भी दूर रहे,तीसरे भाव में जाकर या तो घर से बाहर जाकर अपने प्रदर्शन को ऊंचा बना दे या गुपचुप रूप से बाहर निकलने का भाव बना दे।
2 comments:
guru ji bahut badiya tarike se samjhaya aapne..
JO JADA MANTE HAI LYA SO JADA PERESHAN HOTE HAI
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