Monday, March 7, 2011

अष्टम शनि और छठा गुरु

आठवे शनि के लिये आपके लिये कल लिखा था,आपको समझ में आया होगा,लेकिन छठे गुरु का व्यवहार इस शनि के लिये कैसा होगा इसका विवरण लिखना भी जरूरी है। कारण गुरु जो जीवात्मा के लिये जाना जाता है और गुरु जो प्राणवायु के रूप में अपनी उपस्थिति को देता है,शनि के साथ अपना कैसा व्यवहार करता है। छठा भाव कर्जा दुश्मनी बीमारी के लिये माना जाता है और रोजाना के कार्यों के लिये भी माना जाता है। इस भाव पर कन्या राशि का पूरा अधिकार होता है,और कन्या राशि के स्वभाव के कारण बुध का भी कुछ न कुछ प्रभाव भी मिलता है। गुरु अगर प्राणवायु के रूप में है तो बुध विस्तार के लिये माना जाता है,गुरु अगर जीव के रूप में है तो बुध सम्पर्क बढाने के लिये अपनी योग्यता को देता है,गुरु अगर कार्यशील मनुष्य है तो बुध की कन्या राशि उसे कर्जा दुश्मनी बीमारी देने के लिये और उन्ही कारणों को दूर करने के लिये अपनी औकात को देती है। कन्या राशि का गुरु वृश्चिक राशि के शनि को अपना बल देता है,यह बल प्रकट रूप में शनि के लिये लाभदायक हो जाता है और व्यक्ति के अन्दर उन शक्तियों का विकास होने लगता है जो जीव के प्रति कठिनाइया देने के लिये जानी जाती है और वे कठिनाइयां किस कारण से पैदा होती है और कैसे उन्हे दूर किया जा सकता है। जैसे लगन का सामना सप्तम भाव से होता है और लगन अगर सकारात्मक है तो सप्तम को नकारात्मक माना जाता है इसी सकारात्मक और नकारात्मक की आपूर्ति करते करते जीवन का अन्त हो जाता है,उसी प्रकार से छठा भाव अगर कठिनाई से कमाने के लिये रोजाना के कार्यों को करने के लिये जाना जाता है तो छठे भाव के सामने बारहवां भाव आराम करने के लिये कमाने के बाद खर्च करने के लिये भी माना जाता है,कन्या राशि के सामने गुरु की मीन राशि का होना और इस राशि का प्रभाव अपने आप में बडी से बडी संस्था को संभालने और उसके प्रति कार्य करने के लिये भी माना जा सकता है,कन्या राशि से डाक्टरी और रोगों का निवारण करने के लिये कार्य किया जाना भी माना जाता है और गुरु अगर कन्या राशि में है तो जातक को रोगों के प्रति जानकारी प्राप्त करने में कठिनाई नही होती है वह अपने अनुसार आसानी से रोगों को पकड कर उनके पैदा होने के कारण और उन्हे दूर करने के लिये अपनी योग्यता को देने के लिये माना जाता है। कन्या राशि ही कर्जे की मालिक है और इस स्थान पर गुरु के होने से व्यक्ति के अन्दर कर्जा करने की हिम्मत होती है तो कर्जा किसलिये किया गया है उसकी भी जानकारी होती है,और कर्जे को चुकाया कैसे जाना है इसकी भी जानकारी होनी जरूरी है,गुरु की निगाह शनि पर होने से जातक अपने द्वारा बीमारी को अष्टम शनि यानी जो पदार्थ जमीन के नीचे से मिलते है या जो पदार्थ बिलकुल ही बेकार के होते है या वे पदार्थ जो जडी बूटियों के रूप में मिलते है और जमीन के अन्दर पैदा होते है से रोगों को दूर करने के लिये अपनी योग्यता का परिचय देने के लिये माना जाता है,जैसे जमीन के अन्दर से निकलने वाले पत्थर जो रत्नो के रूप में माने जाते है और वे जातक के लिये किसी अलावा तत्व की पूर्ति के लिये व्यक्ति को फ़ायदा देने वाले होते है तो वे पत्थर ही रत्न के रूप में जातक के द्वारा पीडित व्यक्ति को प्रदान करने के लिये सलाह दी जायेगी और उनसे व्यक्ति की बीमारी दूर होने में कोई सन्देह नही माना जा सकता है। इसी प्रकार से जो कर्जा व्यक्ति के पास हो गया है और गुरु अगर शनि को बल दे रहा है तो व्यक्ति अपने द्वारा बेकार से बेकार शनि का प्रयोग करने के बाद अपने कर्जे को दूर करने के लिये अपने प्रभाव को प्रकट करेगा,जैसे जातक पर कर्जा हो गया है वह अष्टम शनि को जानता है तो कबाडा वस्तुओं के प्रयोग से भी अपने कर्जे को दूर कर सकता है,मिट्टी को भी अपने द्वारा कीमती बनाकर या राख को भी सिद्ध करने के बाद अपने ज्ञान से पीडित व्यक्ति को देकर उससे मिलने वाली आय को कर्जे के लिये प्रयोग में लेगा। कन्या राशि कर्जे के रूपों को भी प्रस्तुत करती है। लगन से छठा भाव जातक के शरीर से जुडा होता है जातक के शरीर से सम्बन्धित जो भी कारक होते है सभी के लिये वह कर्जा करने वाला चुकाने वाला और कर्जे के द्वारा सन्तुष्टि या असन्तुष्टि को देने वाला माना जाता है। इस गुरु का प्रभाव जातक के लिये दुश्मनी बनाने वाला भी माना जाता है,रोजाना के कार्यों के अन्दर उसे अपने अपने अनुसार अपने ही क्षेत्र के लोगों से जूझना भी पडता है,जैसे अगर कोई डाक्टर है तो उसे अपने क्षेत्र के अन्य डाक्टरों के द्वारा भी जूझना पडेगा और एक दूसरे के कम्पटीशन में कोई भी बात हो सकती है वह बात चाहे मानसिक रूप से एक दूसरे के प्रति मानी जाये या अपने अहम को प्रकट करने के बाद कोई दूर की जाने वाली बीमारी को और बढाने और बढाने के बाद जातक की बुराई करने के बाद उसे बदनाम करने और धन आदि से दूर करने या किये जाने वाले डाक्टरी कार्य को खत्म किये जाने के लिये माना जाता है,लेकिन जातक के अन्दर अष्टम शनि की औकात है और वह अपने को गरीब से गरीब व्यक्तियों की सेवा में लेकर चलना जानता है और अपनी सेवा वाले कार्यों के द्वारा वह अपना स्वार्थ नही देख रहा है सभी को एक समान रूप से लेकर चलना जानता है उसे आराम और ऐश करने वाले साधनों से कोई मतलब नही है तो वह अपने कितने ही बुरे दुश्मन को भी पछाडने की हिम्मत रखने के लिये जाना जायेगा,साथ ही किसी भी प्रकार की दिक्कत आते ही उसके साथ सैकडों लोग साथ देने के लिये तैयार हो जायेंगे।

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