Wednesday, September 22, 2010

अभय बनाम भय

गुरु कानून का रखवाला है,गुरु के कानून के आगे कोई कानून नही चलता है,गुरु ही प्रकृति के कानून को बनाने वाला है,कब वह सीधी चलती हवा को विपरीत कर दे यह किसी को पता नही होता है। जैसे ही गुरु विपरीत होता है हवा का उल्टा चलना माना जाता है,जमीनी जीव ऊपर आने लगते है ऊपरी जीव जमीन के अन्दर जाने लगते है। जो चलते पुर्जा कहे जाते है वे खामोश हो जाते है और जिनकी कोई औकात नही होती है वे चलते पुर्जा बन जाते है,यह गुरु की महिमा है,गुरु जो जीव की श्रेणी में है और जो जीव को जिन्दा रखने के लिये भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका को अदा करता है।

गुरु का वक्री होना ही गुरु का विपरीत होना कहा जा सकता है। गुरु की चाल को समझना हर किसी की बात नही कारण गुरु हमेशा पंच तत्वों की गरिमा को संचालित रखना चाहता है। हमारी एकता और अखंडता को गुरु कभी भी निरंकुश नही होने देता है वह सम्बन्धों का कारक भी है,अपनी विचार धारा से जुडे लोगों से सम्पर्क बनाता भी है और अपने विचार धारा से जुडे लोगों से सम्पर्क हटाता भी है।

किसी भी निर्माण को वह ध्वस्त भी करता है,किसी निर्माण को बना भी देता है,लगने वाली ताकत चाहे किसी जीव की हो,हवा की हो या पानी की हो उसे उससे कोई लेना देना नही वह अपने अनुसार ही कार्य को करता है गुरु किसी भी उस कानून को नही मानता है जो कानून प्रकृति के विपरीत हो। जीव अगर कानून से विपरीत चलने की कोशिश भी करता है लेकिन गुरु अपनी कानूनी मर्यादा से बाहर जाते ही जीव को वापस प्रकृति के कानून की तरफ़ जाने के लिये बेबस कर देता है।

एक महल बहुत ही मेहनत और कारीगरी से बनाया जाता है,हवा अपने साथ असंख्य मिट्टी और बालू के कण लेकर आती है,उन्हे उस महल को क्षय करने के लिये दिवारों से चिपकाती है,उन्हे साफ़ करने पर दिवाल का जो हिस्सा क्षय होता है उसे बाद में देर में समझा जा सकता है जब वह क्षय खुली आंखों से प्रत्यक्ष में सामने द्रश्य होने लगता है। उस दिवाल के उस भाग को जो क्षय हो चुका है निर्माण उस तरह से नही किया जा सकता है जो शुरु में किया गया था।

गुरु के वक्री होने के कारण हवा जो सीधी चलने वाली थी उल्टी चलने लगती है,मनुष्य अपने कानून को बदलने लगता है,जो आहत करने वाले होते है वे ही बचाने वाले सिद्ध होने लगते है और जो बचाने वाले होते है वे ही आहत करने वाले हो जाते है। जो धरती स्थिर है वह कंपकपाने लगती है,जो हवा चलनी थी वह बंद हो जाती है,जो पत्ते लहराने चाहिये थे वे शांत हो जाते है। अचानक परिवर्तन के माहौल को देखकर गायों के बछडे रंभाने लगते है,गाय अपने बछडों की सुध भूल कर दिशाभूल हो जाती है। धरती के जीव समतल मैदान में आकर लहराने लगते है,कभी किधर भागते है कभी किधर भागते है। सोते हुये लोगों की अचानक आंख खुल जाती है वे समझ नही पाते है कि विचित्र रोने की आवाजें कहाँ से आ रही है। अचानक आवाज आती है जैसे कोई बिना टायर ट्यूब के गाडी कंकरीट की सडक पर दौडी जा रही हो,पृथ्वी के अन्दर कंपन होता है,किवाड बजने लगते है,नींद दूर हो जाती है,लोगों के अन्दर एक अनौखा सा भय अपने आप व्याप्त हो जाता है। घर के बडे बूढों का दिमाग विचलित हो जाता है,महिलायें उत्तेजना से भर जाती है,पुरुष डरने लगते है कि कोई अनहोनी बात नही हो जाये। सर्दी वाले स्थानों में गर्मी महसूस होने लगती है और गर्मी वाले स्थानों में सर्दी महसूस होने लगती है। जहाँ रेगिस्तान होता है वहाँ बरसात होने लगती है और जहाँ पैदावार के क्षेत्र होते है वहाँ सूखा पड जाता है। जो काम धीरे धीरे होने वाले होते है वे जल्दी होने लगते है जो काम जल्दी होने वाले होते है उनके अन्दर देर होने लगती है। जो धरती पर चलने वाले होते है वे वायु मार्ग से चलने लगते है और जो वायु मार्ग में चलने वाले होते है वे धरती पर चलने लगते है। जो लेख कानून के रूप में पहले बना लिये होते है वे लेख अचानक बदले जाने लगते है और जो कानून पहले बदले जा चुके होते है उन्हे दुबारा से बनाया जाने लगता है। जहाँ हिंसा की आशंका होती है वहां शांति हो जाती है और जहां शांति होती है वहां हिंसा होने लगती है।

जिस स्थान पर धर्म के नाम पर लडाई होने लगे गुरु उस स्थान को इस काबिल बना देता है कि सभी अपने अपने अनुसार अपने अपने धर्म को एक ही स्थान पर देखने लगे। हिन्दू ने अयोध्या में राममंदिर में राम को देखना चाहा लेकिन मुसलमानों ने उस मंदिर में मस्जिद को बनाकर अपने खुदा को देखना चाहा,दोनो की चाहत एक ही थी कि वह ईश्वर को देखे। हिन्दू अपने राम को बडा बताना चाह रहा है तो मुसलमान अपने खुदा को बडा बताने में लगा है,एक ही प्रकृति के दो अलग अलग नामों को बडा बताने के लिये गुरु अपनी औकात को प्रकट कर रहा है। जो है उसे नही दिखा रहा है और जो नही है उसे दिखाने की कोशिश कर रहा है। मानवीय न्याय भगवान के न्याय को चुनौती दे रहा है। पूजा आस्था नमाज सभी एक ही तरह के मार्ग है,कोई पूजा करने के बाद अपने भगवान को मनाना चाहता है कोई नमाज अदा करने के बाद अपने खुदा को मनाना चाह रहा है,लेकिन दोनो का मार्ग एक ही है,वह भी उसे मना कर अपनी भलाई चाहता है और वह भी अपनी भलाई के लिये उसे मनाना चाह रहा है। मस्जिद को तोडने के रूप में मानव अपने अहम को बढा रहा है और मन्दिर को बनाने के रूप में मानव अपने अहम को और अधिक बढा रहा है। जो मूर्तियां मंदिर में लगेंगी वे भी पत्थर की तराशी हुयी होंगी और जो दिवाले मस्जिद की बनेंगी वे भी पत्थर की ही बनी होंगी। जितनी बडी दिवालें बनेंगी वे सभी अहम की दिवालें होंगी जो मूर्तियां बनेंगी वे भी सभी अहम की मूर्तियां होंगी। गुरु अहम को पूजना चाहता है,जो हवा अन्दर बाहर जा रही है उसे अहम के कारण मानव भूल रहा है,बहुत बडी गल्ती है,एक ही हवा से सभी जिन्दा है,जो हवा मुसलमान छोडता है उसे हिन्दू भी अपने ह्रदय में जीने के लिये ले जाता है और जो हवा हिन्दू छोडता है वह मुसलमान अपने ह्रदय में ले जाकर जिन्दा है। हवा किसी की गुलाम नही है,वह बरसते हुये बादलों को खींच कर रेगिस्तान को तर कर सकती है तो समुद्र में उफ़ान पैदा करने के बाद बडे से बडे शहरों को नेस्तनाबूद कर सकती है। उस हवा को बदलने में मानव लगा है। अपने शरीर के अन्दर गंदी हवा को भर कर भय को पैदा कर रहा है,इस गंदी हवा को त्यागो और अपने को अभय बनाकर एक ही रास्ते को अलग अलग रास्तों में नही बांटो।

No comments: